महंगाई का अर्थ है वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में लगातार वृद्धि, जिससे लोगों की क्रय-शक्ति घट जाती है। भारत में महंगाई का बढ़ना कोई नया विषय नहीं है, लेकिन हाल के कुछ महीनों या वर्षों में यह समस्या जिस तरह बढ़ी है, आम आदमी के जीवन पर गहरा असर डाल रही है। रसोई का सामान, पेट्रोल-डीजल, दवाइयाँ, और अन्य आवश्यक वस्तुएँ, सब दिन-प्रतिदिन महंगी होती जा रही हैं। इस स्थिति से आर्थिक समस्याएँ पैदा हो रही हैं और समाज में निम्न वर्ग से लेकर मध्यम वर्ग के उपर इसका गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। आज महंगाई का आलम ये है कि आलू और प्याज जिसे गरीबों का भोजन कहा जाता है, उनकी कीमतें तो आसमान छू रही हैं और वही उनकी थाली से गायब हो रहा है।
इस लेख में हम समझेंगे कि भारत में महंगाई बढ़ने के प्रमुख कारण क्या हो सकते हैं, और इससे निपटने के लिए क्या समाधान हो सकते हैं।
महंगाई की मार सबसे अधिक निम्न-मध्यम वर्ग पर:-
भारत में महंगाई की सबसे बड़ी मार निम्न-मध्यम वर्ग के लोगों पर पड़ रही है क्योंकि इनकी आमदनी तो सीमित होती है, लेकिन रोजमर्रा के जरूरत के सामानों की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। घर का किराया, बच्चों की शिक्षा, खाने-पीने का खर्च, और स्वास्थ्य सेवाओं की बढ़ती लागत के कारण मध्यम वर्ग का बजट चरमरा रहा है। यह वर्ग न तो अमीरों की तरह महंगी चीजें आसानी से खरीद सकता है, और न ही गरीबों की तरह सरकारी मदद पर पूरी तरह निर्भर रह सकता है। इसी वजह से महंगाई का बोझ इन्हें सबसे ज्यादा झेलना पड़ता है। निम्न-मध्यम वर्गीय तबके के लोगों की हालत खराब हो गई है क्योंकि खाने-पीने की वस्तुओं की बढ़ी कीमतें कम होने का नाम नहीं ले रही है।
वर्ष २०२४ में महंगाई की स्थिति:-
वर्ष २०२४ में भारत में महंगाई की स्थिति में बदलाव देखने को मिला है। वर्ष के शुरुआत में महंगाई दर में कुछ नरमी तो देखी गई थी, लेकिन मध्य और अंतिम महीनों में खाद्य-पदार्थों, विशेष रूप से सब्जियों और अनाजों की कीमतों में तेजी से वृद्धि हुई।
अक्टूबर-२०२४ में खुदरा महंगाई दर ६.२१% वार्षिक तक पहुंच गई, जो पिछले १४ महीनों में सर्वाधिक थी। रिजर्ब बैंक आफ इंडिया का यह प्रयास रहता है कि यह महंगाई दर ६% के नीचे ही रहे। इसके बावजूद अगस्त-२०२३ के बाद से यह पहली बार हुआ है कि खुदरा महंगाई दर अक्टूबर-२०२४ में आरबीआई की निर्धारित सीमा ६% से पार चली गई। इसका प्रमुख कारण खाद्य पदार्थों में महंगाई रही है।
खाद्य मुद्रास्फीति (Food Inflation) इस साल सितम्बर महीने में ९.२४% थी जो अक्टूबर महीने में बढ़कर ९.६९% हो गई। इस साल खाद्य-पदार्थों की महंगाई की मार चाहे गांव हो या शहर, हर जगह देखने को मिली है। अक्टूबर महीने में यह जहाँ शहरों में ११.०४% थी वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में भी १०.६९% थी। इसका कारण सब्जियों, फलों, खाद्य-तेलों की कीमतों में बढ़ोतरी है। इनमें भी आलू, प्याज, टमाटर, लहसून आदि की कीमतें तो रुलाने वाली रही हैं।
अक्टूबर महीने में थोक महंगाई दर २.३६% थी, जो नवंबर के महीने में घटकर १.८९% पर आयी है। इसका भी मुख्य कारण खाद्य-पदार्थ और सब्जियों की कीमतों में आयी गिरावट है। अखिल भारतीय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सी. पी. आई.) आधारित कुल महंगाई दर इस वर्ष के जुलाई-अगस्त महीनों के दौरान औसतन ३.६% थी जो बढ़कर सितम्बर में ५.५% और अक्टूबर महीने में ६.२% हो गई जो सितम्बर २०२३ के बाद से सबसे अधिक रही है। संक्षेप में कहें तो इस साल २०२४ में भारत में महंगाई की स्थिति एक मिश्रित रही है। खाद्य-पदार्थों की कीमतें तो काफी बढ़ीं, लेकिन अन्य क्षेत्रों में स्थिरता दिखी।
महंगाई बढ़ने के प्रमुख कारण:-
१. मांग और आपूर्ति का असंतुलन:
महंगाई का सबसे बड़ा कारण, मांग और आपूर्ति के बीच का असंतुलन होता है। जब किसी वस्तु की मांग बाजार में अधिक होती है किन्तु मांग के हिसाब से उसकी आपूर्ति कम होती है, तब उसकी कीमत बढ़ जाती है। उदाहरण के लिए, अगर सब्जियों की पैदावार में प्राकृतिक कारणों से कमी हो जाए, तो बाजार में उनकी कीमत तुरंत बढ़ जाती है क्योंकि सब्जी की मांग तो पहले जैसी ही रहेगी लेकिन पैदावार कम होने से बाजार में उसकी आपूर्ति कम हो जाती है।
२. कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें:
भारत, अपने ऊर्जा-उत्पादन के लिए कच्चे तेल का एक बड़ा हिस्सा आयात करता है। इसलिये जब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत बढ़ती है, तो इसका सीधा असर सीधा भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। पेट्रोल और डीजल महंगे हो जाते हैं जिससे हर चीज की कीमत बढ़ जाती है।
३. प्राकृतिक आपदाएँ:
अकाल, बाढ़, सूखा, और अन्य प्राकृतिक आपदाएँ भी महंगाई का बड़ा कारण हैं। भारत की अर्थव्यवस्था कृषि-आधारित होने के कारण यहाँ फसलों का उत्पादन इन प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित होता है, जिससे खाद्य-पदार्थ महंगे हो जाते हैं।
४. निरंतर बढ़ता सरकारी खर्च:
सरकार जब बजट में बड़े खर्च करती है, जैसे- सब्सिडी देना, सामाजिक-कल्याण की योजनाएँ शुरू करना या अन्य परियोजनाएँ चलाना, तो इसके लिए अधिक धन की जरूरत होती है। यदि यह धन बाजार से उधार लिया जाता है या ज्यादा नोट छापकर जुटाया जाता है, तो इससे महंगाई बढ़ती है।
५. भ्रष्टाचार और काला धन:
भ्रष्टाचार और काला धन भी महंगाई को बढ़ावा देते हैं। काला धन, अर्थव्यवस्था में असंतुलन पैदा करता है। इसके कारण बाजार में नकदी की तो अधिकता होती है, लेकिन उत्पादकता में बढ़ोत्तरी नहीं होती, जिससे महंगाई बढ़ती है।
६. विकासशील अर्थव्यवस्था का प्रभाव:
भारत एक विकासशील देश है, जहाँ आर्थिक विकास के साथ-साथ कीमतों में वृद्धि स्वाभाविक है। नई परियोजनाएँ, शहरीकरण, और औद्योगीकरण से वस्तुओं और सेवाओं की मांग बढ़ती है, जिससे महंगाई बढ़ती है।
७. अंतरराष्ट्रीय कारण:
किसी भी देश की तरह, भारत की अर्थव्यवस्था भी वैश्विक बाजार से जुड़ी हुई है। किसी भी अंतरराष्ट्रीय संकट, जैसे यूक्रेन-रूस युद्ध, अमेरिका में आर्थिक मंदी, या चीन में उत्पादन की कमी, का असर भारतीय बाजार पर भी पड़ता है।
८. जमाखोरी एवं कालाबाजारी:
सरकार की ढुलमुल नीतियों का फायदा उठाकर व्यापारी वर्ग आवश्यक वस्तुओं की जमाखोरी करने लगते हैं और उनकी कीमतों में बढ़ोतरी होने पर बेंचते हैं जिससे कीमतों में इजाफा होता है।
९. बैंकों का अधिक कर्ज देना:
बैंकों के अधिक कर्ज देने से मुद्रा-आपूर्ति बढ़ सकती है जो महंगाई का एक कारण बन सकती है।
१०. उत्पादन-लागत में वृद्धि:
जब उत्पादन-लागत बढ़ती है तो तदनुसार महंगाई भी बढ़ती है।
११. जनसंख्या-वृद्धि:
जनसंख्या-वृद्धि से आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं की मांग में वृद्धि होती है जिससे महंगाई बढ़ती है।
महंगाई का समाज पर प्रभाव:-
महंगाई का प्रभाव केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक और मानसिक भी होता है। यह सीधे लोगों की जीवनशैली और उनकी मानसिक स्थिति को प्रभावित करती है।
१. गरीब और मध्यम वर्ग पर बढ़ता दबाव:
महंगाई का सबसे अधिक प्रभाव गरीब और मध्यम वर्ग पर पड़ता है। उनके लिए जीवन की बुनियादी जरूरतें पूरी करना मुश्किल हो जाता है। जब लोगों की आमदनी कम और खर्चे अधिक होते हैं, तो वे आवश्यक दवाइयों को छोड़कर अपनी हर आवश्यकताओं को भी सीमित करने पर मजबूर हो जाते हैं।
२. शिक्षा और स्वास्थ्य पर असर:
जीने के लिए किसी तरह पेट तो पड़ेगा ही, अन्यथा महंगाई के कारण लोग शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में खर्च कम करने लगते हैं। इससे बच्चों के भविष्य और घर-परिवार के लोगों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है जिसका असर लंबे समय के बाद सामने आता है।
३. मानसिक तनाव और असंतोष:
महंगाई से परिवारों में आर्थिक तंगी और मानसिक तनाव बढ़ता है। कई बार तो यह समाज में असंतोष और भयंकर अपराधों को भी बढ़ावा देता है।
४. सामाजिक असमानताता:
महंगाई से अमीर-वर्ग और भी अमीर होते जाते हैं, जबकि गरीब और गरीब होते हैं। यह सामाजिक असमानता को बढ़ावा देता है, जिससे समाज मेँ असंतोष फैलता है।
५. क्रय-शक्ति में कमी:
महंगाई से लोग आवश्यक सामान अपेक्षाकृत कम खरीदते हैं जिससे क्रय-शक्ति कम होती है।
महंगाई से निपटने के उपाय:-
महंगाई पर काबू पाने के लिए सरकार की नीतिगत जिम्मेदारी आवश्यक तो होती ही है लेकिन इसके लिए सामूहिक प्रयास की भी जरूरत होती है। इसमें सरकार, समाज और आम नागरिक, सबको ही अपनी-अपनी भूमिका निभानी होगी।
१. सरकारी नीतियों में सुधार:
सरकार को महंगाई पर काबू पाने के लिए सही और प्रभावी नीतियाँ बनानी होंगी। इसमें सब्सिडी का सही उपयोग, कर-प्रणाली में पारदर्शिता, और सार्वजनिक वितरण-प्रणाली आदि को दुरूस्त एवं मजबूत करना शामिल है।
२. स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देना:
भारत को अपनी जरूरतों के लिए आयात पर से निर्भरता कम से कम करना होगा और स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देना होगा, तभी महंगाई पर नियंत्रण पाया जा सकता है। ‘मेक इन इंडिया’ जैसी योजनाओं से देश का आर्थिक विकास हो रहा है और यह इस दिशा में मददगार हो सकती हैं।
४. कृषि-क्षेत्र में सुधार:
भारत एक कृषि-प्रधान देश है। अतः यहाँ कृषि-क्षेत्र को मजबूत करना बेहद जरूरी है। किसानों को उन्नत तकनीक, उचित समर्थन-मूल्य, और बुनियादी सुविधाएँ देकर उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। इससे खाद्य-वस्तुओं की कीमतों में स्थिरता आएगी।
४. ऊर्जा-स्रोतों में विविधता:
भारत को कच्चे तेल पर निर्भरता कम करने के लिए वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों, जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, और जैव ईंधन को और अधिक बढ़ावा देना चाहिए।
५. भ्रष्टाचार पर लगाम:
देश में भ्रष्टाचार सबसे बड़ा मुद्दा है और इसमें सरकारी-तंत्र और राजनेता नेता तक शामिल हैं जहाँ सुधार की बड़ी गुंजाइश है। भ्रष्टाचार और काला धन, अर्थव्यवस्था को कमजोर और खोखला करते हैं। इन पर सख्त कार्रवाई करने से महंगाई को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है। इसमें जनता को भी अपनी सोच और दृष्टिकोण बदलना होगा क्योंकि चाहे वो सरकारी तंत्र हो या राजनेता हों, इनमें हम जनता की भी भागीदारी होती है। क्योंकि यहाँ तो राजनेता या सरकार दोनों को बनाने वाली, जनता ही तो है।
६. आम जनता की भूमिका:
आम नागरिकों को भी महंगाई के प्रति जागरूक होना चाहिए। अनावश्यक खर्चों से बचना, बचत को प्रोत्साहित करना, और स्थानीय उत्पादों का उपयोग करना कुछ ऐसे कदम हैं, जो हर व्यक्ति उठा सकता है।
७. शिक्षा और जागरूकता:
महंगाई के प्रभावों को कम करने के लिए शिक्षा और जागरूकता बहुत जरूरी है। लोगों को वित्तीय-प्रबंधन, बचत, और निवेश के सही तरीकों की जानकारी होनी चाहिए।
महंगाई को नियंत्रित करने हेतु सरकार की कुछ नीतिगत पहल:
- किसानों को आधुनिक तकनीक, उन्नतिशील बीज और सिंचाई की बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराना।
- किसान और उपभोक्ता के बीच बिचौलियों की संख्या को कम से कम करना।
- आवश्यक वस्तुओं पर जीएसटी की दरें कम करना।
- पेट्रोल और डीजल पर कर कम करना।
- बाजार में मांग के अनुरूप, आयात बढ़ाकर आपूर्ति संतुलित करना।
- आवश्यक वस्तुओं का निर्यात सीमित करना।
- ब्याज दरों में संतुलन बनाना।
- काले धन को रोकने के लिए सख्त कदम उठाना।
- सामाजिक योजनाओं को प्रभावी ढंग से क्रियान्वित करना।
- जन-जागरूकता अभियान चलाना।
निष्कर्ष:-
भारत में महंगाई, एक जटिल समस्या है, जिसका समाधान बहुत आसान नहीं है। महंगाई, केवल आंकड़ों का खेल नहीं, बल्कि यह उन लाखों-करोड़ों लोगों की जिंदगियों का सवाल है, जो हर दिन इससे जूझ रहे हैं। इसके लिए सरकार और आम जनता को मिलकर काम करना होगा। सही नीतियों, जागरूकता, और सामूहिक प्रयास से महंगाई पर काबू पाया जा सकता है।
महंगाई के प्रति एक सकारात्मक दृष्टिकोण एवं दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ, भारत इस चुनौती का सामना करके एक मजबूत और स्थिर अर्थव्यवस्था का निर्माण कर सकता है और महंगाई को भी नियंत्रित कर सकता है।
महंगाई से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न-१: महंगाई-दर और मुद्रास्फीति (Inflation) से क्या तात्पर्य है?
उत्तर: एक निश्चित अवधि में कुछ विशिष्ट वस्तुओं या सेवाओं के मूल्य में जो वृद्धि या गिरावट आती है, उसे मुद्रास्फीति कहते हैं। इसे जब प्रतिशत में व्यक्त करते हैं तो यह महंगाई-दर कहलाती है।
प्रश्न-२: क्रय-शक्ति (Purchasing Power) का क्या अर्थ है?
उत्तर: व्यक्ति के द्वारा अपने पैसे से वस्तुओं को क्रय करने की क्षमता अर्थात् एक व्यक्ति अपनी आय से वह कितनी वस्तुएँ और सेवाएं खरीद सकता है, उसे क्रय-शक्ति कहते हैं। उदाहरण: १०० रुपये में पहले ४ किलो तक आटा आता था परंतु अब १०० रूपये में २ से २.५ किलो ही आता है। इसका मतलब क्रयशक्ति घट गई।
प्रश्न-३: मुद्रा-अवमूल्यन (Currency Depreciation) से क्या तात्पर्य है?
उत्तर: जब किसी देश की सरकार अपनी मुद्रा का मूल्य किसी अन्य मुद्रा या मानक के सापेक्ष कम कर देती है तो उसे मुद्रा अवमूल्यन कहा जाता है। उदाहरण: भारत में १ डॉलर का मूल्य पहले ७० रुपये था और अब ८५ रुपये के लगभग हो गया।
प्रश्न-४: मूल्य-सूचकांक (Price Index) किसे कहते हैं?
उत्तर: एक ऐसा संकेतक, जो वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में समय-समय पर होने वाले बदलाव को मापता है। यह दो तरह का होता है-
अ) उपभोक्ता मूल्य सूचकांक या सी. पी. आई. (Consumer Price Index): यह आम जनता द्वारा उपयोग की जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में बदलाव को मापता है। उदाहरण: राशन, कपड़े, और परिवहन आदि की कीमतें।
ब) थोक मूल्य सूचकांक या डबल्यू. पी. आई. (Wholesale Price Index): यह थोक बाजार में वस्तुओं की कीमतों में बदलाव को मापता है।
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