क्रोध एक भावना है। क्रोध, इंसानी फितरत का वो हिस्सा है, जो बुद्धि के दीपक को बुझा देता है। डा. जे. एस्टर का कथन है कि पन्द्रह मिनट क्रोध करने से ही शरीर की इतनी शक्ति खर्च हो जाती है कि उतनी शक्ति से कोई भी व्यक्ति साढ़े नौ घंटे परिश्रम कर सकता है। बाइबिल कहती है कि क्रोध को लेकर सोना, अपनी बगल में सांप को लेकर सोना है। इस महाव्याधि से ग्रसित व्यक्ति के शरीर और मन पर जो दूषित असर होता है वह उसके जीवन को पूरी तरह असफल बना देता है।
याज्ञवल्क्य जी कहते हैं कि तुम्हें यदि कोई
सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है तो वह तुम्हारा क्रोध है।
गीता में कहा गया है
कि क्रोध इंसान के विवेक को वैसे ही ढक लेता है जैसे कि धूल, दर्पण को ढक लेती है।
क्रोध की स्थिति में आदमी विवेक-शून्य हो जाता है उसे अपने उचित-अनुचित
कर्तव्यों का बोध नहीं रह जाता है।
Contents:
क्रोध पर विस्तृत विचार
क्रोध की भयंकरता पर आधारित कहानी
क्रोध उत्पन्न होने के कारण
क्रोध से हानि
क्रोध पर नियंत्रण पाने के उपाय
क्रोध पर विस्तृत विचार:
क्रोध को मनुष्य के स्वभाविक भावों में से एक माना जाता है। यह वह भाव है जिसे हम किसी चीज़ के अनुपालन में विफलता, अन्याय, असम्मान या निराशा की स्थिति में अनुभव करते हैं। यद्यपि क्रोध की प्रकृति अस्थायी होती है तथापि यह एक व्यक्ति के व्यवहार और सोच पर गहरा प्रभाव डालता है।
क्रोध की मूल भावना के बिना जीवन संभव नहीं है, यह हमें अन्याय के खिलाफ लड़ने का साहस देता है, और यह हमें अपने अधिकारों के लिए खड़ा होने की प्रेरणा देता है।
इसका अर्थ यह नहीं है कि क्रोध हमेशा सकारात्मक है। असंयत और अनियंत्रित क्रोध स्वास्थ्य, मानसिक स्थिति, संबंधों और समाज पर हानिकारक प्रभाव डालता है। यह संबंधों को तोड़ सकता है, व्यक्तिगत स्वास्थ्य पर नकरात्मक प्रभाव डाल सकता है, और कभी-कभी तो उल्लंघन और हिंसा की ओर ले जाता है। यह मानसिक विकारों के साथ भी जुड़ा हुआ हो सकता है।
स्वस्थ क्रोध-प्रबंधन के तरीकों में से एक है क्रोध के कारणों को समझना और इसे नियंत्रित करने के लिए उपाय खोजना।
क्रोध की भयंकरता पर आधारित कहानी:
यह कहानी राजेश नामक एक व्यक्ति की है, जो पेशे से एक अच्छे विद्यालय में अध्यापक थे। राजेश विद्यार्थियों के प्रति अपनी सख्ती और क्रोध के लिए मशहूर थे। जिन्हें बाद में अपने क्रोध को लेकर बहुत पछताना पड़ा और उसे नियंत्रित करने में उन्हें बहुत सारी कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ा था।
राजेश का क्रोध उन्हें और उनके विद्यार्थियों, दोनों को ही तकलीफ देता था। परिणाम यह हुआ कि विद्यार्थियों का डर धीरे-धीरे बढ़ता गया और उनके अंदर शिक्षा ग्रहण करने की क्षमता में कमी आती गयी। बहुत सारे विद्यार्थी उनके डर के मारे उनसे दूर ही रहना चाहते थे।
एक दिन राजेश के एक विद्यार्थी ने साहस जुटाकर, उन्हें एक पत्र लिखा, जिसमें उसने सारे विद्यार्थियों के डर और चिंता का विस्तार से वर्णन किया था। उसने उस पत्र को राजेश की अनुपस्थिति में कक्षा की मेज पर दबा दिया। कुछ देर में राजेश कक्षा में आये और उस कागज में लिखी सारी बातों को वे ध्यान से पढ़े। उस पत्र को पढ़ने के बाद राजेश को एक बड़ा झटका सा लगा और उन्हें अपने गलत आचरण पर बहुत पछतावा हुआ। उन्होंने अपने आचरण पर गंभीरतापूर्वक विचार किया तब उन्हें समझ में आया कि उनके क्रोध का प्रभाव इतना भयानक हो सकता है।
राजेश ने अपने क्रोध को नियंत्रित करने के लिए एक मनोविज्ञानी की मदद ली। वे क्रोध-प्रबंधन सेमिनार में शामिल हुए और ध्यान-योग का अभ्यास शुरू किया।
धीरे-धीरे, राजेश का क्रोध कम होने लगा और उनका आचरण भी बदलने लगा। उनके विद्यार्थी अब उनके प्रति डर के बजाय सम्मान महसूस करने लगे थे। राजेश को अब समझ में आ चुका था कि क्रोध एक भयावह स्थिति होती है जो न केवल उन्हें ही नहीं, बल्कि उनके चारों तरफ के लोगों को भी नुकसान पहुंचाती है।
क्रोध उत्पन्न होने के कारण:
ध्यायतो विषयान पुंस:
संगस्तेषूपजायते।
संगात् संजायते काम:
कामात् क्रोधोभिजायते।।
Ø अर्थात् विषयों का ध्यान करने से उनमें आसक्ति होती है। आसक्ति के कारण इच्छाएं उत्पन्न होती हैं और इच्छाओं के कारण क्रोध उत्पन्न होता है।
Ø जो अपने को मालिक मानता है, कर्ता बनता है, अहंकार करता है, उसे ही जल्दी क्रोध आता है। इसी तरह, जब हम मानने लगते हैं कि जो कुछ हम जानते हैं, वही ठीक है, तब संघर्ष और क्रोध करने के अवसर आते हैं।
Ø भय, अपमान, नुकसान और अहंकार की स्थिति होना।
Ø इच्छा के विपरीत कार्य होना या मतभेद होना।
Ø जानबूझकर या आदतन क्रोध करना।
क्रोध से हानि:
- क्रोध आने पर हमारे शरीर में तनाव वाले हार्मोन जैसे- कार्टिसोल और एड्रेनालाइन, पैदा होते हैं। जिससे रक्तचाप, हृदयगति, श्वास और शरीर का तापमान बढ़ जाता है।
- क्रोध मनुष्य को विचारशून्य दुर्बल एवं लकवे की तरह शक्तिहीन कर देता है। दुर्भाग्य की तरह जिसके पीछे पड़ता है और उसका सर्वनाश करके ही छोड़ता है।
- डा. पूरनचंद खत्री का कथन है- कुछ ही दिनों में क्रोधी के शरीर में कई प्रकार के विष उत्पन्न हो जाते हैं। जिसकी तीक्ष्णता से शरीर के आंतरिक अवयव गलने लगते हैं। न्यूयार्क के वैज्ञानिकों ने परीक्षण के तौर पर क्रोध से भरे हुए मनुष्य का कुछ बूंद खून लेकर इंजेक्शन से खरगोश के शरीर में पहुँचा दिया। नतीजा यह हुआ कि बाईस मिनट बाद वह खरगोश आदमियों को काटने दौड़ने लगा। पैंतीसवें मिनट पर उसने अपने को काटना शुरू कर दिया और एक घंटे के अंदर पैर पटककर मर गया।
- कर्तव्य-बोध का लोप हो जाता है।
- नींद न आना।
- इम्यून सिस्टम का कमजोर होना।
- मानसिक तनाव।
- स्मरण शक्ति का ह्रास।
- रिश्तों में दरार पड़ना।
- गृह कलह होता है, जिससे कितने घर उजड़ जाते हैं।
- क्रोधी, पास-पड़ोस की नजर में घृणा का पात्र बन जाना।
- क्रोध में एक गलत कदम उठाने से जेल जाने की नौबत आ जाती है।
क्रोध पर नियंत्रण पाने के उपाय:
- प्रतिदिन एकांत में बैठकर कुछ देर शांतिपूर्वक अपनी वास्तविक स्थिति के बारे में सोचना चाहिए।
- हमें समझना चाहिए कि मैं किसी से बड़ा या किसी का स्वामी न होकर बराबर की स्थिति का हूँ।
- संकल्प लें कि मैं अपने दुश्मन क्रोध को कभी पास नहीं फटकने दूंगा।
- क्रोध की स्थिति में गहरी सांस लें। मेडिटेशन करें। संगीत सुनें। चुप रहने की कोशिश करें। अच्छी नींद लें। एक गिलास ठंडा पानी पीना अच्छा होता है।
- आपको जिस स्थान पर क्रोध आवे, वहाँ से हटकर कहीं चले जाना या खुद को किसी और काम में लगाना श्रेयस्कर होता है।
- आदर्श दिनचर्या का पालन करें।
- स्वस्थ एवं संतुलित आहार लें और नियमित व्यायाम करें।
- गुस्सा शांत होने तक कोई प्रतिक्रिया न करें।
- सकारात्मक नजरिया रखें।
- जब क्रोध संबंधी समस्याएं गहरी हो जाएं तब मनोवैज्ञानिक सहायता लेनी चाहिए।
सारांश
क्रोध एक भयंकर विषधर है। जिसने अपनी आस्तीन
में इस सांप को पाल रखा है,
उसका तो भगवान ही मालिक है। "जिसने क्रोध
की अग्नि को अपने हृदय में प्रज्ज्वलित कर रखी है, उसे चिता से
क्या प्रयोजन?" अर्थात् वह तो बिना चिता के ही जल
जायेगा। ऐसी महाव्याधि से दूर रहना ही कल्याणकारी है।
क्रोध की जड़ अज्ञान है। आदमी जब अपनी और
दूसरों की स्थिति के बारे में गलत धारणा बना लेता है। तब बात जो कुछ और ही होती है, परन्तु
उसे कुछ और दिखाई देने लगती है। लोगों को मेरी इच्छानुसार ही चलना चाहिए। जब यह
भावना गुप्त रूप से मन में घर कर लेती है तब क्रोध का बीजारोपण होता है और
मौके-बेमौके उग्र रूप धारण करके क्रोध की शकल में प्रकट होता है।
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साभार:
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा लिखित पुस्तक, "स्वस्थ
एवं सुन्दर बनने की विद्या"।
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