नज़रिया यानी एटीट्यूड का मतलब होता है हमारा दृष्टिकोण, हमारे देखने का अंदाज़। चीज़ एक ही होती है किन्तु लोगों के देखने का नज़रिया अलग होता है।
जैसे पानी से आधी भरी गिलास को कुछ लोग बोलते हैं कि गिलास आधी भरी है तो कुछ लोग बोलते हैं कि गिलास आधी खाली है। चीज़ एक ही है किन्तु देखने के नज़रिये अलग हैं। कोई गिलास के भरे हुए हिस्से को देखता है तो कोई खाली वाले हिस्से को। दोस्तों! हर चीज़ के दो पहलू होते हैं, अच्छा और बुरा। जब हम अच्छाई देखते हैं तो हमारा नज़रिया अच्छा होता है यानी सकारात्मक होता है। उसी तरह जब हम बुराई देखते हैं तो हमारा नज़रिया नकारात्मक होता है।
सकारात्मक नजरिया का मतलब है कि हम हर स्थिति को एक उत्साहवर्धक और प्रगतिशील दृष्टिकोण से देखें।
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(सौजन्य: अल्टिमेटेज्ञान.कॉम) |
हर व्यक्ति के जीवन में उतार-चढ़ाव आते हैं, लेकिन सकारात्मक नजरिया वाले व्यक्ति इन उतार-चढ़ावों को अनुभव करने का तरीका बदल देते हैं। वे इन स्थितियों को अपने अवरोध के रूप में देखने के बजाय अपने विकास के अवसर के रूप में देखते हैं। सकारात्मक नजरिया के व्यक्ति दूसरों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण और सहयोगी होते हैं। यह सकारात्मक नजरिया उन्हें व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन में सफलता दिलाता है।
यदि हम अपने नकरात्मक विचारों को सकारात्मक विचारों से बदलने का प्रयास करें, तो हमारा जीवन संपूर्ण रूप से बदल सकता है। सकारात्मकता एक ऐसी शक्ति है जो हमें बेहतर आत्म-सम्मान, स्वस्थ जीवन और निरंतर सुख-शांति प्रदान करती है तथा यह हमें विश्वास दिलाती है कि हर समस्या का समाधान मौजूद है और हम इसे खोज सकते हैं।
सकारात्मक नजरिया को अपनाने के लिए, हमें आत्मविश्वास, स्वीकार्यता, उत्साह, धैर्य और निरंतर आशावाद की आवश्यकता होती है। यह सभी गुण हमें जीवन की चुनौतियों को स्वीकार करने, उन्हें समझने और उनका सामना करने की क्षमता प्रदान करते हैं।
कहा जाता है कि “यथा दृष्टि तथा सृष्टि” अर्थात् जो हम देखना चाहते हैं, हमें वही दिखाई देता है। संसार में सब तरह के लोग हैं। अच्छे भी हैं और बुरे भी हैं। सभी के अंदर कमोबेश, गुण-अवगुण, अच्छाई-बुराई विद्यमान होती है। अब यह हमारे उपर निर्भर करता है कि हम क्या देखते हैं, अच्छाई देखते हैं या बुराई देखते हैं। हम गुण देखते हैं या दोष देखते हैं। हमें चाहिए कि हम हमेशा अच्छाई और गुण को देखें। हमेशा उज्जवल पहलू को ही देखें और उसे ही अपने भीतर उतारें। जैसा कि कबीरदास जी ने कहा है
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साधू ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहे, थोथा देइ उड़ाय।।
अर्थात् हमारा स्वभाव उस सूप के जैसा होना चाहिए जो अच्छे अन्न (ग्राह्य) को अपने भीतर समेटता है और खराब अन्न (त्याज्य) को बाहर फेंक देता है।
हमारा नज़रिया एक दिन में न तो बनता है और ना ही एक दिन में बिगड़ता है। यह हमारे रोजमर्रा के सोच, विचार और क्रिया कलापों से निर्मित होता है। जब हम लगातार एक ही क्रिया को बार-बार दोहराते हैं तो वह हमारी आदत बन जाती है। हमारी अच्छी आदतें, हमें अच्छा आदमी बनाती हैं और बुरी आदतें, हमें बुरा इंसान बनाती हैं।
अपने नज़रिये के लिए हम खुद जिम्मेदार हैं। हमारे अन्दर सकारात्मक नज़रिये का निर्माण, हमारे अच्छे सोच-विचारों के निरन्तर अभ्यास से होता है। जिस तरह कुएँ के अंदर से पानी खींचने के लिए प्रयोग में आने वाली रस्सी के निरंतर घर्षण से पत्थर पर भी निशान बन जाता है, उसी तरह निरंतर अभ्यास से अत्यंत मूर्ख भी विद्वान बन जाता है। जैसा कि प्रसिद्ध कवि वृन्द ने अपने निम्नलिखित दोहे में कहा है,
करत - करत अभ्यास से, जड़मति हो सुजान।
रसरी आवत जात ते, सिल पर परत निसान।।
मिसाल के तौर पर, हम यहाँ एक ऐसे वयक्ति की कहानी प्रस्तुत कर रहे हैं, जो पहले बज्र मूर्ख था। परन्तु अपनी लगन, निरंतर अभ्यास और दृढ संकल्प से आगे चलकर संस्कृत भाषा का महान कवि हुआ।
बहुत समय पहले एक राजा थे। उनकी एक लड़की थी, जिसका नाम विद्योत्तमा था। वह महान विदुषी, शास्त्रों में पारंगत थी। उसने घोषित किया कि शास्त्रार्थ में उसे जो भी परास्त करेगा, उसी के साथ वह विवाह करेगी। शास्त्रार्थ में सभी विद्वान एक-एक कर उससे परास्त हो गये थे। जिसके कारण समस्त विद्वान मंडली उससे ईर्ष्या करने लगी थी। अतएव, वे लोग विद्योत्तमा को नीचा दिखाने के लिए उसका विवाह किसी मूर्ख से कराने को सोचे।
जब वे एक मूर्ख की खोज में जंगल से गुजर रहे थे कि सहसा उनकी नजर पेड़ पर लकड़ी काटते हुए एक युवक पर पड़ी। उन्होंने देखा कि वह युवक पेड़ की जिस डाल पर बैठा है, उसी डाल को काट रहा है। विद्वानों ने सोचा कि अब इससे बड़ा मूर्ख कहाँ मिलेगा? अतः उस युवक को आवाज देकर नीचे उतारा। उसे शादी का लालच देकर नहलाया, धुलाया और साफ-सुथरा वस्त्र पहनाया। तत्पश्चात, उसे विद्योत्तमा के समक्ष महाज्ञानी बताकर शास्त्रार्थ हेतु पेश किया।
विद्योत्तमा से विद्वानों ने कहा कि इस समय ये महाशय मौन व्रत धारण किये हुए हैं,
इसलिए आपके प्रश्नों के उत्तर सांकेतिक भाषा में ही देंगे। विद्योत्तमा से पूछे गए सांकेतिक प्रश्नों के जवाब में वह मूर्ख उटपटांग संकेत करता, क्योंकि वो तो बज्र मूर्ख था। पर विद्वानों ने अपने कुतर्कों से उसे ही सही ठहराते हुए आखिरकार, उसका विवाह विद्योत्तमा के साथ करवा ही दिया।
एक दिन जब विद्योत्तमा को पता चला कि उसका पति महामूर्ख है, तो उसने क्रोधित हो अपने उस मूर्ख पति को घर से बाहर निकाल दिया। पत्नी से अपमानित होने से उस मूर्ख का अंतःकरण उद्विग्न हो उठा। उसका आत्मसम्मान जाग गया और उसके जीने का नज़रिया बदल गया था। उसने विद्या का गहन अभ्यास किया और ज्ञान अर्जित किया। फलस्वरूप, वही मूर्ख आदमी, कालिदास के नाम से मशहूर हुआ और विश्वप्रसिद्ध नाटक "अभिज्ञान शाकुंतलम्" की रचना संस्कृत भाषा में की।
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(सौजन्य प्योरवाओ.काॅम) |
सकारात्मक नजरिया विकसित करने के लिए उपाय:
सकारात्मक नजरिया विकसित करने के निम्नलिखित उपाय हैं;
- अच्छी संगति करें।
- सकारात्मक सोच रखें।
- चुनौतियों से भागने की बजाय, उन्हें सीखने के अवसर के रूप में देखने की कोशिश करें।
- अपने प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखें।
- नियमित ध्यान, योग एवं व्यायाम करें।
- सकारात्मक व्यक्तियों से प्रेरणा लें।
- अच्छा स्वास्थ्य रखें। संतुलित और पोषणयुक्त आहार लें
- आदर्श दिनचर्या का पालन करें।
- अपने काम में स्वतंत्रता का महसूस करें।
- आत्मसम्मान करें।
- नकारात्मकता से दूर रहें।
- समय-प्रबंधन का अभ्यास करें।
- अच्छी और ज्ञानवर्धक पुस्तकें पढ़ें।
- जीवन के छोटी-छोटी खुशी के पलों को उत्सव के रूप में मनायें।
- बड़े सपने देखें।
- नित नयी चीज़ें सीखें।
- परिवार और दोस्तों के साथ समय व्यतीत करें।
हमारे सोच, हमारे
विचार और हमारे दृष्टिकोण से ही हमारा नज़रिया बनता है। हमारे नज़रिये से हमारे भविष्य का निर्माण होता है। हमारा नज़रिया हमारी सफलता और असफलता का एक प्रमुख कारण होता है। जब हमारे विचार उन्नत होते हैं तो हमारा नज़रिया सकारात्मक होता है और उस समय हम ब्रह्माण्ड से अधिक से अधिक सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित कर रहे होते हैं। आकर्षण के सिद्धांत के अनुसार, हमें वही चीज़ मिलती है जो हम दिल से चाहते हैं और ब्रह्माण्ड से आकर्षित करते हैं।
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सौजन्य: बिज़नेसब्लॉग्सहब.कॉम
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सकारात्मक नजरिया, हमारे जीवन को खुशियों, शांति और संतुष्टि से भर देता है। यह हमें हमारी सीमाओं को तोड़ने, नए आयामों की खोज करने, और अपने सपनों को साकार करने की प्रेरणा देता है। इसलिए, हमें हमेशा अपने दृष्टिकोण को सकारात्मक बनाए रखना चाहिए। हमारा भविष्य, हमारा सौभाग्य, हमारे सकारात्मक नजरिये का ही परिणाम होता है। अर्थात्
अपने जीवन की दिशा और दशा तय करने वाले हम खुद हैं।
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सकारात्मक नजरिया से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ):
प्रश्न: सकारात्मक सोच क्या है?
उत्तर: सकारात्मक सोच का मतलब होता है सिर्फ अच्छी बातों की उम्मीद रखना। इसका मतलब होता है स्थितियों, घटनाओं, और लोगों को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखना।
प्रश्न: सकारात्मक नजरिया कैसे विकसित किया जा सकता है?
उत्तर: सकारात्मक सोच विकसित करने के लिए, आपको अपने विचारों पर नियंत्रण करना होगा। जब भी नकारात्मक विचार आते हैं, उन्हें सकारात्मक विचारों से बदलें।
प्रश्न: सकारात्मक सोच के क्या लाभ हैं?
उत्तर: सकारात्मक सोच के कई लाभ हो सकते हैं। यह तनाव को कम कर सकता है, रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ा सकता है, और सामान्य जीवन की गुणवत्ता को सुधारता है तथा जीवन की सफलता में मददगार साबित होता है।
प्रश्न: सकारात्मक और नकारात्मक सोच में क्या अंतर होता है?
उत्तर: सकारात्मक सोच उम्मीद, अच्छाई, और सफलता पर केंद्रित होती है। वहीं, नकारात्मक सोच निराशा, विफलता, और नकारात्मक परिणामों पर केंद्रित होती है।
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जवाब देंहटाएंThanks. 🙏 Your encouragement much appreciated. Please do follow and share!!
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जवाब देंहटाएंबहुत ही ज्ञानवर्धक है 🙏🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंप्रोत्साहन के लिए धन्यवाद🙏 पेज को फॉलो ज़रूर करें
हटाएंNice lines , waiting for more
जवाब देंहटाएंप्रोत्साहन के लिए धन्यवाद🙏 पेज को फॉलो ज़रूर करें
हटाएंNice blog,
जवाब देंहटाएंDifferent topics pe v content daliye
ठीक है।
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