1 अगस्त 2021

सकारात्मक नज़रिया कैसे विकसित करें । How to Develop Positive Attitude

"नजरिया" या "एटीट्यूड" का अर्थ होता है किसी व्यक्ति का दृष्टिकोण या सोचने की दिशा। यह किसी भी व्यक्ति की भावनाओं, मान्यताओं, या विचारधारा को दर्शाता है। यह हमें देखने, समझने, और विश्लेषण करने के तरीके देता है। नजरिया दो तरह का होता है। पहला सकारात्मक नजरिया और दूसरा नकारात्मक नजरिया। सकारात्मक नजरिया एक विशेष प्रकार की मानसिकता है जिसमें व्यक्ति, जीवन की घटनाओं, परिस्थितियों और चुनौतियों को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखता है।  

जब हम किसी भी चीज के प्रति सकारात्मक नजरिया रखते हैं, तो हम आमतौर पर उससे अधिक संतुष्टि प्राप्त करते हैं और उसे बेहतर समझते हैं। इसके विपरीत, नकारात्मक नजरिया हमें निराशा और संघर्ष की ओर ले जाता है। यही कारण है कि हमारे नजरिये को हमारी खुशी और सफलता के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। सकारात्मक नजरिया, हर व्यक्ति के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 

                                      सौजन्य: Quora

अगर हम नकारात्मक और सकारात्मक दोनों शब्दों पर नजर डालें तो हम देखते हैं कि दोनों में केवल शुरू के अक्षर  और  का ही अंतर है। यहां  अक्षर का अभिप्राय ना” शब्द से है और  अक्षर का अभिप्राय हां” से है। जैसे नकारात्मक शब्द के  अक्षर को हटाकर,  अक्षर जोड़ने से ही सकारात्मक शब्द बन जाता है, और पूरा भाव ही बदल जाता है। 
ठीक वैसे ही अपने सोच और विचारों में से नकारात्मकता के भाव को दूर कर सकारात्मकता के भाव को स्थापित करने से ही, पूरा नज़रिया बदल जायेगा।

आइये अब हम सकारात्मक नजरिया विकसित करने के विभिन्न तरीकों के बारे में विस्तार से जानते हैं-

 आदर्श दिनचर्या का पालन करना

दैनिक जीवन के सभी कार्य, सही समय पर, सही तरीके से करना ही अनुशासित जीवनशैली या आदर्श दिनचर्या कहलाती है। 

सकरात्मक सोच रखना

हमारे मष्तिष्क में सोच-विचार, हमेशा एक के बाद एक जल तरंगों की भांति आते-जाते रहते हैं। वे अच्छे भी होते हैं और बुरे भी होते हैं। उनके परिणाम भी उसी के अनुरूप अच्छे या बुरे होते हैं। इसलिए सकारात्मक परिणाम के लिए हमें अपनी सोच को हमेशा सकारात्मक रखना चाहिए।  

अपनी गलतियों को स्वीकार करना


अपनी गलतियों को सहर्ष स्वीकार करें तथा उनसे सीख लें। 

अहसानमंद बनें


अहसानमंद होने का गुण, सकारात्मक नज़रिये के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। जब आप अहसानमंद होते हैं तो आप अच्छाई को अधिक से अधिक ग्रहण करने में सक्षम होते हैं। 

लगातार ज्ञानवर्धन करें


कहा जाता है कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती। ज्ञान से ही हम भले-बुरे, गुण-दोष में फर्क जान पाते हैं। हमारे शास्त्रों का कथन है,

विद्वत्वं नृपत्वं नैव तुल्यं कदाचन्।

स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान सर्वत्र पूज्यते।।

अर्थात्, एक राजा की पूजा उसके राज्य में ही होती है, जबकि विद्वान की पूजा सर्वत्र होती है। 

निराश हों


मुश्किलों से उत्पन्न निराशा को अपने उपर हावी होने दें बल्कि दुगुने उत्साह के साथ सामना करें। मुश्किल के वक़्त ही धैर्य और सहनशीलता की परीक्षा होती है। 

सम्मान दें


सम्मान सभी को चाहिए, इसलिए दूसरों को सम्मान दें और उनसे मधुर व्यवहार करें। सम्मान देने से ही सम्मान मिलता है। 

दिन की शुरुआत अच्छे ढंग से करें 


प्रातःकाल जल्दी उठें। मुस्कराते हुए ईश्वर का आभार व्यक्त करें कि उन्होंने हमें जीने के लिए एक और दिन प्रदान किया। ईश वन्दना करें। उचित व्यायाम तथा योगाभ्यास करें। तत्पश्चात् दिनभर के पूरे कामों की सूची बनाएं। 

काम को जल्दी निपटायें


किसी भी काम को जल्दी से जल्दी पूरा करें। कल पर टालें। कल पर टाला गया काम, कभी पूरा नहीं होता है। इसीलिए तो महान संत कबीर दास जी ने कहा है

काल्ह करै सो आज कर, आज करै सो अब।

पल में परलय होएगी, बहुरि करैगो कब।।

१० नकारात्मक सोच से दूर रहें


नकारात्मक विचार, मन को व्यथित तथा दूषित करते हैं। अतः नकारात्मक विचारों को मस्तिष्क में बिल्कुल ही लाएं। और नकारात्मक सोच-विचार वाले लोगों से भी कोसों दूर रहें। 

११ बनावटीपन ढोंग से परहेज करें


ढोंग बनावटीपन की आदत मनुष्य को अंदर से कमजोर और खोखला बनाती है। इसलिए नकली जिन्दगी को छोड़ असल जिंदगी जिएं, सुखी रहेंगे। 

१२ अच्छी पुस्तकें पढ़ने की आदत डालें 


जिस तरह खेत में अनावश्यक उगे हुए खर-पतवार को दूर करने के लिए निराई करना आवश्यक होता है, ठीक उसी तरह मन में उपजे हुए दूषित विचारों को भी दूर करने के लिए अच्छी पुस्तकों का अध्ययन जरुरी होता है। 

१३ अपनी कमजोरियों को ताकत में बदलें


अपनी कमजोरियों को ताकत में कैसे बदलें, विल्मा रुडोल्फ की जीवनी इसके लिए एक अच्छा उदाहरण है।

विल्मा रुडोल्फ, प्रसिद्ध धाविका थी। विल्मा को बचपन में ही पोलियो हो गया था। डाक्टरों ने घोषित किया कि अब वह अपने पैरों पर कभी नहीं चल पाएगी। परन्तु विल्मा की माँ ने उसकी कमजोरियों पर रोने के बजाय उसे ताकत में बदलने की सीख दी। माँ की सीख का उसके अंतर्मन पर गहरा प्रभाव पड़ा। वही विल्मा जो अपने पैरों पर चल-फिर नहीं सकती थी उसने धाविका बनने की ठानी। अपनी मेहनत और मजबूत इरादों के बल पर सन् १९६० के ओलंपिक खेलों में १०० मीटर, २०० मीटर और ४०० मीटर की तीनों ही दौड़ में, उस समय की प्रसिद्ध धाविका जूता हेन को पराजित किया और तीन-तीन स्वर्ण पदक जीतकर, इतिहास रच दिया। 

१४ अच्छी संगति करें


अच्छी संगति यानी सत्संगति (सत्पुरुषों की संगति)। सत्संगति की महिमा का वर्णन हमारे शास्त्रों में बहुत अच्छे से किया गया है। 

जाड्यं धियो हरति सिंचति वाचि सत्यं

मानोन्नति दिशति पापमपाकरोति।
चेतः प्रसादयति दिक्षु तनोति किर्तिं
सत्संगतिः कथय किं करोति पुषांम्।।

अर्थात्, सत्संगति बुद्धि की जड़ता को दूर करती है। वाणी में सत्यता का संचार करती है। पापों से दूर रखती है। यश का प्रसार करती है और चित्त को प्रसन्न रखती है। कहाँ तक कहें? सत्संगति, पुरुषों के लिए क्या नहीं कर सकती है? 

१५ आत्म सम्मान का भाव विकसित करें 


खुद के बारे में अच्छी सोच रखना, आत्मसम्मान कहलाता है। यह आत्मविश्वास से पैदा होता है। आत्मसम्मान करने वाले व्यक्ति, मुसीबत में भी अपने नैतिक मूल्यों से समझौता नहीं करते। 

१६ आशावादी बनें


अनुकूल परिणाम की आशा करना ही आशावादी होना है। आशावादी लोग प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपने अनुकूल अवसर की तलाश करते हैं और विषम परिस्थितियों को भी अपने अनुकूल बनाने में सफल हो जाते हैं। 

१७ वर्तमान में जीएं, 

वर्तमान में जीएं क्योंकि बीता हुआ समय कभी वापस नहीं आता और भविष्य का निर्माण तो वर्तमान से ही होता है। 

१८ असफलता से निराश हों 

असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो। असफलता, सफलता की सीढ़ी का पहला पायदान होता है।

१९ दैनिक अभिकथन (Daily Affirmation) 


अपनी उन सभी इच्छाओं को जो दिल की गहराई से चाहते हैं, एक कागज पर लिख लें। और उन्हें भावनाओं के साथ यानी फिलिंग (Feeling) के साथ रात को सोते समय और सुबह जागने के बाद बोलें। बोलते समय आप उसे अपने साथ होते हुए महसूस भी करें। जैसे आप बोलते हैं कि मैं स्वस्थ हो रहा हूँ” तो बोलने के साथ यह महसूस करें कि आपके शरीर के अंदर से रोग दूर हो रहा है और आप आराम महसूस कर रहे हैं।

२० ईश्वर पर भरोसा रख, हमेशा प्रसन्न रहें। मन में लोगों के प्रति सेवा-भाव रखें और खुशियों बांटें।

सकारात्मक नज़रिया से लाभ:-

  • जिन्दगी में खुशहाली बढ़ती है।
  • जीने का अंदाज बदल जाता है। 
  • काम में सफलता मिलती है। 
  • आपसी सौहार्द्र बढ़ता है। 
  • अच्छे और महत्वपूर्ण कार्यों का संपादन होता है। 
  • टीम भावना जागृत होती है। 
  • उत्पादकता बढ़ती है और गुणवत्ता में सुधार होता है। 
  • नुकसान कम होता है। 
  • काम करने का अनुकूल वातावरण तैयार होता है। 
  • स्वास्थ्य अच्छा होता है। 
  • नैतिक गुणों में वृद्धि होती है। 
  • आत्मविश्वास बढ़ता है। 
  • रिश्तों में सुधार होता है। 
  • दुनियाँ हसीन लगती है।
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"सकारात्मक नजरिया कैसे विकसित करें" पर अधिकतर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ):

सवाल-1: सकारात्मक नजरिया क्या होता है?

जवाब: सकारात्मक नजरिया से मतलब है अच्छे पहलू को देखना और आशावादी रहना, चाहे जो हो जाए। इसे आमतौर पर आपके सोचने और समस्याओं का सामना करने के तरीके के रूप में परिभाषित किया जाता है।

सवाल-2: सकारात्मक नजरिया कैसे विकसित करें?

जवाब: सकारात्मक नजरिया के विकास के लिए आपको अच्छी आदतों को अपनाना होगा, जैसे की सकारात्मक सोच-विचार रखना, सकारात्मक लोगों के साथ समय बिताना, अच्छी पुस्तकों का अध्ययन करना, ध्यान-योग एवं व्यायाम करना, स्वस्थ आहार लेना, और नियमित नींद प्राप्त करना।

सवाल-3: सकारात्मक सोच से क्या लाभ होते हैं?

जवाब: सकारात्मक सोच से मानसिक स्वास्थ्य, शारीरिक स्वास्थ्य, और जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है। इससे स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को नियंत्रित करने में भी मदद मिलती है और स्थायी लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायता मिलती है।

सवाल-4: क्या सकारात्मक नजरिये से अधिकांश समस्याओं का हल हो सकता है?

जवाब: हां! सकारात्मक नजरिया, समस्याओं के सामने एक नई दृष्टि प्रदान करता है, जिससे हम अनुकूल समाधान खोज सकते हैं। हालांकि, यह सभी समस्याओं का हल नहीं है, लेकिन यह हमें उनके सामने अधिक प्रभावी रूप से सामना करने में जरूर मदद करता है।

साभार: शिव खेड़ा की पुस्तक, "जीत आपकी"
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