20 अगस्त 2022

जल ही जीवन है । जल नहीं तो कल नहीं

पृथ्वी पर जल और वायु, दो ऐसे महत्वपूर्ण पदार्थ हैं जो जीवन के लिए परम आवश्यक हैं। जल के बिना हम कल की जिंदगी के बारे में सोच भी नहीं सकते। पृथ्वी का तीन चौथाई हिस्सा जल है। समूचे जल का लगभग ३% भाग मीठे जल का है जो कि पीने के योग्य है और वह नदियों, तालाबों, सरोवरों, हिमनदों पहाड़ों पर जमी बर्फ और भूमिगत जल के रूप में विद्यमान है। बाकी ९७% जल खारा है जो पृथ्वी के ७५% भाग में फैले महासागरों में अवस्थित है। वह पीने योग्य नहीं है। हमारे शरीर में जल की मात्रा ७०% के लगभग होती है। दुनियाँ में अमूमन ८५% बिमारियों की जड़, अशुद्ध पेय-जल है। 

मनुष्य खाने के बिना तो कुछ दिन गुजार सकता है किन्तु जल के बिना संभव नहीं। धरती पर उपलब्ध बहुमूल्य पदार्थों में जल प्रमुख हैं। जल सभी जीवधारियों के जीने का आधार है। पृथ्वी पर जितने जीव रहते हैं उससे कहीं ज्यादा जल में रहते हैं। सबसे बड़ा जीव, ह्वेल भी जल में ही रहती है। अगर जल नहीं तो जल में रहने वाले वो सभी जीव भी नहीं रहेंगे। 

जल से ही खेती की जाती है और अनाज उगाया जाता है जिससे हम सभी की उदरपूर्ति होती है। जल की महत्ता दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है क्योंकि सदियों पहले पृथ्वी पर जल की जितनी मात्रा थी, वो आज भी उतनी ही है। उसमें लेशमात्र भी बढ़ोत्तरी नहीं हुई है। अलबत्ता जनसंख्या में विस्फोटक वृद्धि होने के कारण जल की खपत में कई गुना वृद्धि हुई है। इसीलिए कहा जाता है कि जल ही जीवन है। जितना हो सके, इसे सम्हाल कर खर्च करें अन्यथा जल नहीं तो कल नहीं। 

Contents:-

जल चक्र

जल के गुण
जल का महत्व
जल संकट
जल संकट के प्रमुख कारण
जल संकट को दूर करने के उपाय
जल प्रदूषण
"जल ही जीवन है" से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ):

जल चक्र (Water cycle)

पृथ्वी पर जल के एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तन तथा एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने की चक्रीय (cyclic) प्रक्रिया को जल चक्र कहते हैं। इसमें जल की कुल मात्रा अपरिवर्तित रहती है। केवल जल के रूप और स्थान परिवर्तित होते हैं। जल चक्र की प्रक्रिया प्राकृतिक रूप से होती है जो निम्नलिखित है-
वाष्पन (Evaporation),
वाष्पोत्सर्जन (Transpiration)
द्रवण (Condensation), 
वर्षण (Precipitation)
अंतःस्पंदन (Infilteration)
अपवाह (Drainage)
संग्रहण (Storage) 

जल के गुण

जल रंगहीन, गंधहीन, स्वादहीन पदार्थ है। यह ठोस, द्रव और गैस, तीनों ही अवस्थाओं में पाया जाता है। जल का एक अणु हाइड्रोजन के दो परमाणु और आक्सीजन के एक परमाणु के संयोग से बनता है। इसका रासायनिक सूत्र H2O है। इसका हिमांक 0°C और पृथ्वी के सतह पर क्वथनांक 100°C होता है। इसका घनत्व एक ग्राम प्रति घन सेन्टीमीटर होता है। यह एक महत्वपूर्ण विलायक है। 

जल का महत्व: 
   जल का महत्व अत्यधिक है और यह हमारे जीवन के लिए अनिवार्य है। यहाँ जल की महत्ता से संबंधित कुछ मुख्य बिंदु निम्न हैं;

  •       जीवन का आधार: जल, सभी जीवों के जीवन का मूल आधार है। हम भोजन के बिना कुछ दिन तक जी सकते हैं, लेकिन जल के बिना बिल्कुल नहीं।
  •       कृषि में योगदान: जल, कृषि में फसलों के उगाने के लिए जरूरी है।
  •       उद्योग में प्रयोग: अधिकांश उद्योगों में जल की आवश्यकता होती है, चाहे वह उत्पादन, शोधन या शीतलन के लिए हो।
  •       विद्युत उत्पादन: जल से हाइड्रो-पावर स्टेशनों में विद्युत उत्पादित होती है।
  •       घरेलू उपयोग: हम जल का उपयोग पीने, नहाने, खाना पकाने, सफाई आदि के लिए करते हैं।
  •       जैव विविधता: जल नदियों, झीलों, समुद्रों और महासागरों में रहने वाले अनगिनत प्राणियों और वनस्पतियों के जीवन का आधार है। 
  •       जलवायु परिवर्तन: जल वातावरणीय पारिस्थितिकी तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 
  •       पर्यटन: झीलें, नदियाँ और समुद्र-तट, पर्यटन स्थलों के रूप में लोकप्रिय हैं जिससे आर्थिक लाभ प्राप्त होता है। 
  •       यातायात और परिवहन: नदियों और समुद्रों का उपयोग माल की ढुलाई और यातायात के लिए किया जाता है।  

जल संकट:

एक आंकड़े के अनुसार विश्व के १७ देश जिनकी आबादी विश्व की कुल आबादी का एक चौथाई है, अति गंभीर जल संकट से गुजर रहे हैं। उनमें भारत का १३वां स्थान है। भारत की १२% जनसंख्या पहले से ही "डे-जीरो" में है। डे जीरो का मतलब उस विशेष दिन से है जिस दिन से पानी की टोंटियों से जल आना बंद हो जाता है। आज विश्व के लगभग २०० शहर और बेंगलुरु सहित १० महानगर डे-जीरो की तरफ बढ़ रहे हैं। भारत के कई राज्य जैसे जम्मू कश्मीर, पंजाब, चंडीगढ़, राजस्थान, हरियाणा, गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और पांडिचेरी आदि जल संकट से गुजर रहे हैं। 


भारत में जल संकट लगातार बढ़ रहा है। हर साल गर्मी का मौसम आता है तो बहुत सारे क्षेत्रों में जल की विकट समस्या खड़ी हो जाती है। समस्या का निदान कैसे हो? इसका स्थायी समाधान कैसे होगा? इसके बारे में कोई नहीं सोचता। सब यही सोचते हैं कि ये गर्मी का मौसम कब बीत जाये, बरसात आये और जल संकट दूर हो जाए। वर्षा ऋतु आती है, कमोबेश बारिश भी होता है। जल का संकट कुछ समय के लिए टल जाता है। इसलिए जल संकट की समस्या को भूला दिया जाता है। और बारिश के जल का उचित संग्रहण नहीं होता। सभी यह सोचते हैं जल की समस्या अभी तो टल गयी। जब समस्या फिर होगी, तब देखा जायेगा और इस तरह जल-संकट जैसी विकट समस्या, अनदेखी हो जाती है। गर्मी पुनः वापस आती है। फिर वही समस्या आ खड़ी होती है। फिर वही किल्लत शुरू हो जाती है। 

हमारे देश में ही कुछ क्षेत्रों में तो गर्मी के दिनों में पेय जल संकट इतना गहरा जाता है कि उसके लिए लोग मीलों तक पैदल चल कर जाते हैं। यही क्रम साल दर साल चलता है और जलसंकट का दंश लोग झेलते रहते हैं। यह आशा लगाये बैठे रहते हैं कि सरकार इस संकट को कभी तो दूर करेगी। यह नहीं सोचते कि हमारा भी कुछ फर्ज है। हमारा भी कोई दायित्व है। 

सौजन्य: Live Today

जल संकट के प्रमुख कारण:

  • जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश का औसत रूप से कम होना। 
  • पेड़ों की अंधाधुंध कटाई। 
  • वर्षा के जल का उचित संरक्षण और संभरण न होना। 
  • कल-कारखानों से निकले हुए जहरीले एवं प्रदूषित जल को नदियों में सीधे प्रवाहित कर उसे भी प्रदूषित करना।
  •  भूमिगत जल का बहुत बड़ा हिस्सा खेती में फसलों की पारंपरिक सिंचाई के रूप में खर्च होना।
  • जनसंख्या में हो रही बेतहाशा वृद्धि से पानी की खपत में निरंतर बढ़ोतरी। 
  • लोगों में जगरूकता की भारी कमी। 
  • जल संकट के प्रति लोगों की उदासीनता और अनावश्यक खर्च, एक प्रमुख कारण है। शहरों में बहुमंजिली इमारतों, फ्लैटों के शौचालयों में लगे फ्लश-सिस्टम से एक बार में १० से १५ लीटर जल खर्च होता है। जबकि दो-चार मग पानी से भी ये काम हो सकता है। लेकिन ऐसा नहीं होता है। सभी यही सोचते हैं कि अकेले मेरे ही बचत कर लेने से आखिर, क्या होने वाला है? नतीजतन, जल का बेहिसाब अपव्यय होता रहता है।
  • देश-प्रदेश की सरकारों का भी जलसंकट के प्रति गंभीर न होना और स्थाई समाधान न ढूंढ़ना।

 जल संकट को दूर करने के उपाय:


1.  किसानों को अपने-अपने खेतों की मेढ़ को एक निश्चित ऊंचाई तक करने से वर्षा का जल खेतों में ही संरक्षित होने लगेगा। 


2.  रोजमर्रा की जिंदगी में जल के खर्च करने के तरीकों में बदलाव करके। 


3.  वर्षा के जल को पोखरों, तालाबों तथा सरोवरों में अधिक से अधिक संभरण (storage) करके। भारत में बर्षा के कुल जल का केवल १५% ही उपयोग में लाया जाता है और बाकी ८५% जल, नदियों के द्वारा बहकर महासागरों में चला जाता है। 


4.   बेकार जल को रिसाइक्लिंग करके-

शहरों में जल की कुल खपत का ६५% हिस्सा, सीवर नालों में बहा दिया जाता है। इसमें से वो जल जो नहाने, कपड़े धोने, बर्तन साफ करने के काम में लिया हुआ रहता है, उसे "ग्रे वाटर" कहते हैं। शौचालयों से निकले हुए जल को "ब्लैक वाटर" कहते हैं। ग्रे वाटर की रिसाइक्लिंग के लिए जल को एक टैंक में विभिन्न सतहों में बिछाये गये पत्थर, कंकड़ और रेत से गुजार कर निथारा जाता है और साफ किया जाता है। वहीं ब्लैक वाटर को अमोनिया और दूसरे रासायनिक पदार्थों से शोधित किया जाता है। 

इजराइल जैसे छोटे से देश में, जहाँ औसत वर्षा बहुत कम होते हुए भी वहाँ जल की कोई समस्या नहीं है। कारण है, वहाँ जल की अति विकसित प्रबंधन तकनीक। जिससे जल की एक बूंद को भी व्यर्थ नहीं जाने दिया जाता है। इजराइल में जल की कुल खपत का ६०% आपूर्ति, संशोधित जल से की जाती है। 


5.   अधिक से अधिक संख्या में वृक्षारोपण करना। 


6. कल कारखानों से निकले हुए दूषित पदार्थों को नदियों, लाशयों में जाने से रोकना, ताकि नदियों और जलाशयों का जल प्रदूषित होने से बच सके। 


7.   कृषि वयवस्था में परिवर्तन करके-

गेहूं, चावल, गन्ने की फसल में जल की खपत बहुत अधिक होती है। पंजाब जैसे राज्य से धान की फसल को बिहार, पश्चिम बंगाल में स्थानांतरित करके भारी मात्रा में भूमिगत जल बचाया जा सकता है। क्योंकि पश्चिम बंगाल, बिहार में धान की खेती करने में जितना जल लगता है उससे तीन गुना जल पंजाब में धान उगाने में लगता है। उसी तरह महाराष्ट्र में गन्ने की जगह अपेक्षाकृत कम जल में होने वाली फसल उगाना। 
कृषि में सिंचाई के आधुनिक साधनों जैसे टपक या बूंद-बूंद करके सिंचाई, माइक्रोस्प्रिंकलर, माइक्रोजेट आदि साधनों को उपयोग में लाकर, जल का यथासंभव बचत करना। 


8.  लोगों को जल के सही उपयोग और बचत के लिए जागरूक करना और प्रोत्साहित करना। इसी हेतु हर साल २२ मार्च को "विश्व जल-दिवस" मनाया जाता है। 

जल प्रदूषण:

गाँवों में ८५% लोग पीने के पानी के लिए भूमिगत जल के उपर निर्भर हैं। कुल भूमिगत जल के ८०% भाग का उपयोग सिचाई में किया जाता है। कृषि में प्रयोग किये जाने वाले उर्वरकों, कीटनाशकों से भूमिगत जल प्रदूषित होता है। प्रदूषित जल में लौह पदार्थ, आर्सेनिक, फ्लोराइड आदि मिले होते हैं जो स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकर होते हैं। बहुत सारी बिमारियाँ अशुद्ध जल के पीने से होती हैं। जल प्रदूषण रोकने के प्रमुख उपाय निम्न हैं-

1.   कृषि क्षेत्र में बदलाव:

खाद्यान्न को लेकर हमारे देश में लायी गयी हरित-क्रांति योजना के तहत रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग बहुतायत से हुआ है। जिसके कारण भूमिगत जल ज्यादा दूषित हुआ है। अतः कृषि व्यवस्था में परिवर्तन की अत्यंत आवश्यकता है। रासायनिक खाद की जगह जैविक खाद का उपयोग करना हितकर है।


2.   शहरों में सीवर नालियों से बहते हुए गंदे जल और                  कारखानों से निकले हुए दूषित एवं जहरीले जल को बिना         शोधन किये नदियों तथा तालाबों में न छोड़ना।     

सार:

जल सभी जीवधारियों के जीवन का आधार है। आज दुनियाँ के अनेक विकासशील देश, जल-संकट से जूझ रहे हैं। दुनियाँ मंगल ग्रह पर जल की तलाश तो कर रही है पर यहाँ धरती पर, भारत समेत विश्व के अनेक देशों में ग्रामीणों को पीने के लिए साफ जल तक नहीं मिल पाता है। विश्व में आर्थिक विकास और औद्योगीकरण से जल-चक्र बिगड़ रहा है। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से जलवायु परिवर्तन भी देखने को मिल रहा है। कहीं सूखे से लोग मरते हैं तो कहीं बाढ़ से धन-जन की अपार क्षति होती है। इसलिए सरकार को कुछ ऐसी तकनीक के बारे में सोचना चाहिए कि बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों के जल को सूखाग्रस्त क्षेत्रों में उपयोग करके प्रकृति के दोहरे मार से जनता को बचाया जा सके। हम सभी को मिलकर जल का उचित संरक्षण और यथासंभव संभरण करना चाहिए। 

                                 सौजन्य: You Tube

जल के महत्व को समझना चाहिए और बहुत ही समझदारी के साथ इसका उपयोग करना चाहिए। लोगों को जलसंकट के प्रति बहुत सजग और जागरूक होने की जरूरत है तथा खर्च के प्रति बहुत संवेदनशील होना चाहिए। दुनियाँ के सभी मुल्कों को इमानदारी से अपने-अपने स्तर पर ठोस कदम उठाने चाहिए। विश्व में ६० करोड़ लोग जल संकट से गुजर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र के एक आंकड़े के मुताबिक विश्व में करीब २ अरब लोगों को स्वच्छ पेयजल नहीं मिलता। इसलिए समय रहते प्रभावशाली कदम नहीं उठाये गये तो ईश्वर न करे, यदि अगला विश्वयुद्ध हुआ तो वह पेयजल को लेकर होगा।    

संबंधित लेख, अवश्य पढ़ें-

"जल ही जीवन है" से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ):

प्रश्न: "जल ही जीवन है" वाक्य क्या संकेत करता है?

उत्तर: यह वाक्य जल के महत्व को बताता है, जो प्रकृति में विद्यमान सभी जीवधारियों के लिए आवश्यक है। हमारे जीवन के लिए अपरिहार्य है। बिना पानी के, जीवन संभव नहीं है। 

प्रश्न: जल संरक्षण क्यों महत्वपूर्ण है?

उत्तर: जल संरक्षण महत्वपूर्ण है क्योंकि जल संसाधन सीमित हैं और प्राकृतिक जल की अपूर्णता बढ़ रही है। इसके अलावा, जल प्रदूषण और बढ़ती हुई जनसंख्या ने इसे और भी ज्यादा अहम बना दिया है।

प्रश्न: हम जल संरक्षण में अपना योगदान कैसे दे सकते हैं?

उत्तर: हम पानी की बर्बादी को रोकने, अनावश्यक तौर पर पानी का उपयोग न करने, पानी के रिसाव को कम करने, और पानी की पुनः प्राप्ति तथा पुनर्चक्रण के तरीकों को अपनाकर अपना योगदान दे सकते हैं।

प्रश्न: जल प्रदूषण के क्या प्रमुख कारण हैं?

उत्तर: जल प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं: औद्योगिक अपशिष्ट, खेती से आने वाले रसायन, घरेलू कचरा, तेल रिसाव, और सीवेज का असंगठित निपटारा।

प्रश्न: जलवायु परिवर्तन से जल संसाधनों पर कैसा प्रभाव पड़ता है?

उत्तर: जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा के पैटर्न में परिवर्तन होते हैं, जो सीधे जल संसाधनों को प्रभावित करते हैं। अतिवृष्टि और सूखा, दोनों ही जल संसाधनों को चुनौती पेश करते हैं। यह हमारे पानी की आपूर्ति पर बुरा प्रभाव डालता है और पानी संरक्षण की आवश्यकता को और अधिक महत्वपूर्ण बनाता है।

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