मन में अतीत का बोझ:
मनुष्य की तरफ देखने पर एक बहुत ही आश्चर्यजनक तथ्य दिखाई पड़ता है, वह यह है कि मनुष्य का पूरा व्यक्तित्व एक मानसिक तनाव, एक खिंचाव, एक बोझ है। प्रकृति की तरफ देखें, वृक्षों की तरफ या आकाश की तरफ देखें तो कहीं कोई बोझ या तनाव दिखाई नहीं देता। चित्त के बोझ यदि हमारी समझ में आ जाएं तो उन्हें उतार कर नीचे रख देने में जरा भी कठिनाई नहीं होगी।
हमारे चित्त पर बोझ है बीते हुए समय का। जो बीत चुका है वो
कहीं भी नहीं है लेकिन हम उसे इकट्ठा किये हुए हैं। वह हमारी स्मृति में संचित है
और वह बीता हुआ समय एक भारी पत्थर की तरह हमारे सिर पर रखा हुआ है। जैसे पानी पर
पड़ी हुई रेखाएँ बन भी नहीं पाती और मिट भी जाती हैं वैसे ही इस जीवन में घटने
वाली घटनाएं घट भी नहीं पाती हैं और मिट जाती हैं। इस पूरी कायनात में मनुष्य के
अतिरिक्त किसी को कुछ भी पता नहीं रहता कि कल कुछ हुआ था। कल किसी ने गाली दी थी
या प्रेम किया था। कल किसी ने सम्मान दिया था या किसी ने अपमान किया था। भीतर ये
सारे कल एकत्रित हो जाते हैं। यह अतीत का बोझ पत्थर बन कर हमारे उपर बैठ जाता है।
इसीलिए हम निर्भार नहीं हो पाते। मुर्दा चीजें सदा बोझ की तरह होती हैं।
सिर्फ
अतीत नहीं बदलता है,
वर्तमान तो प्रतिक्षण बदलता चला जाता है, उसी
का नाम जीवन है। जीवन आगे की तरफ भागता रहता है और स्मृति पीछे की तरफ भागती रहती
है। इन दोनों में मेल नहीं हो पाता है। जैसे एक ही बैलगाड़ी में दोनों तरफ बैल जोत
दिए गए हों। पीछे के बैल मजबूत हैं क्योंकि जीवन भर का बल उन्हें मिला है।
जीवनधारा कोमल है इसलिए जिन्दगी ठहर जाती है। धारा में स्मृति का बांध प्रवाह को
रोक देता है और सड़ांध उत्पन्न होने लगती है। जो अतीत
की जकड़ में हो वह वर्तमान के साथ न्याय कैसे कर सकता है। जो अतीत के प्रति मरता
है वही वर्तमान में जीता है। जब तक मनुष्य की चेतना स्मृति के पत्थर के बोझ से दबी
रहती है वह परेशान, और तनावपूर्ण जीवन जीता है।
मन में भविष्य का तनाव:
मनुष्य के मन पर अतीत का बोझ है तो भविष्य का तनाव भी है। अतीत
के बोझ से मुक्त होने के साथ साथ भविष्य के तनाव से भी मुक्त होना आवश्यक है।
हमारी मूलभूत समस्या भी यही है कि हम आज (वर्तमान) में जीते ही नहीं। हम या तो
बीते हुए कल (अतीत) में जीते हैं या आने वाले कल (भविष्य) में जीते हैं और जीवन
सदा आज में है,
अभी में है। जो भी अभी हो सकता है हम उसे कल पर छोड़ते जाते हैं। इस
तरह हम भविष्य और अतीत को खींच कर वर्तमान में ले आते हैं और वर्तमान से वंचित रह
जाते हैं।
अतीत और भविष्य के इन बोझों का हमें अहसास नहीं होता है क्योंकि हम इनके
आदी हो जाते हैं। यदि हम अपने जीवन पर पीछे दृष्टि डालें तो पायेंगे कि न जाने
कितनी बार हमने सोचा होता है कि कल यह कर लेंगे, कल वह कर
लेंगे परन्तु वो आज तक नहीं कर पाए हैं। दरअसल यह तथ्यों से भागने का तरीका है। हम
जानते हैं कि सिगरेट, शराब, क्रोध घृणा
आदि गलत हैं। पर इन्हें त्यागने के लिए हम अभी तैयार न होते हुए भविष्य पर टाल
देते हैं।
यदि भीतर क्रोध है, घृणा है तो उसे अभी देखें,
पहचाने, यह निर्णय न लें कि क्रोध या घृणा कल
त्याग दूंगा। जैसे रास्ते में सांप फन फैलाये खड़ा हो तो आप उसी वक्त छलांग लगा
देते हैं। यह नहीं कहते कि कल सांप से बचेंगे। यदि अभी घर में आग लग जाये तो उस घर
से आप कल नहीं अभी बाहर निकल जाते हैं।
दरअसल जीवन में जो भी बदलाहट है, क्रांति है, रूपांतरण है। वह इस क्षण ही होगा,
अभी ही होगा, कल कभी नहीं होगा। फिर क्रोध,
घृणा, हिंसा या जो भी हमारे भीतर गलत है उसको
हम धीरे धीरे दूर नहीं कर सकते, क्योंकि आज से कल ये सब और
मजबूत हो जायेंगे। क्रोध या घृणा ने एक दिन और यात्रा कर ली होगी और आपको और कमजोर
कर दिया होगा। यही बात व्यसनों पर लागू होती है।
वर्तमान में जाग जाना ही मुक्ति
का मार्ग है। जो स्थिति है उसके प्रति पूरी तरह जागते ही तत्क्षण आप उससे मुक्त हो
जाते हैं किन्तु स्वयं को देखना जानना बहुत कष्टपूर्ण है। क्योंकि वह बहुत कुरूप
है तभी तो हम भविष्य पर टालते हैं। स्वयं की जो स्थिति है उसको देखने और जानने से
बड़ी कोई तपश्चर्या नहीं है। जो करना है उसे अभी करना, उसे
कल पर मत छोड़ना। हां जो न करने योग्य है उसे जरूर कल पर छोड़ देना चाहिए। जैसे
सिगरेट या शराब पीना हो, क्रोध या घृणा करनी हो तो इन्हें
अवश्य कल पर टाल दें।
इसे भी अवश्य पढ़ें-
श्रोत: "निरोगधाम" हिन्दी पत्रिका, ग्रीष्म ऋतु अंक २०११
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें