4 जुलाई 2023

जलवायु परिवर्तन I Climate Change

जलवायु-परिवर्तन, एक प्रकार का पर्यावरणीय-परिवर्तन है जिसमें पृथ्वी की जलवायु या मौसम में स्थायी बदलाव होता है। यह प्रकृति द्वारा स्वतः होने वाले परिवर्तनों के अलावा मानवीय कारणों से अधिक होता है। 

जलवायु परिवर्तन एक महत्वपूर्ण और चिंता का विषय है, जिसने विश्वभर में मानव समुदाय के बीच बहुत सारी चर्चाएं और विवादों को उठाया है। जलवायु परिवर्तन चर्चा के पीछे मुख्यतः अंतर्राष्ट्रीय समझौतों और नीतियों, वैज्ञानिक तथा तकनीकी अद्यतनों, संयुक्त-राष्ट्र के द्वारा स्थापित मंडलों, और सामाजिक चेतना में वृद्धि के कारणों की वजह से यह चर्चा विस्तार से हो रही है। 

Source: Hari Bhoomi

जलवायु परिवर्तन का तात्पर्य पृथ्वी की जलवायु-सिस्टम में हो रहे दृष्टिगत परिवर्तनों से है, जिनमें मुख्य तौर पर मानवीय क्रियाओं का प्रमुख योगदान है। वैज्ञानिकों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण आधुनिक औद्योगिक-वृद्धि है, जिसने जलवायु-नियंत्रण को प्रभावित किया है। यह वृद्धि, जलवायु-परिवर्तन के प्रमुख कारकों में से एक कहलाती है।


पृथ्वी के तापमान में निरंतर वृद्धि हो रही है। इस साल की गर्मी और लू ने तो हमारे देश भारत के बड़े हिस्से को काफी प्रभावित किया है। भूमिगत जलस्तर में लगातार गिरावट आ रही है जिससे पेय जल-संकट खड़ा हो गया है। संयुक्त राष्ट्र-संघ ने अपने रिपोर्ट में बताया है कि पर्यावरण के सभी क्षेत्रों के साथ वैश्विक-आबादी के अच्छा स्वास्थ्य और कल्याण पर जलवायु परिवर्तन का व्यापक-प्रभाव पड़ रहा है। उसने अपने रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के भौतिक लक्षणों जैसे- भूमि और महासागरीय जल के तापमान तथा जलस्तर में वृद्धि, ध्रुवों के बर्फ पिघलने के अलावा सामाजिक, आर्थिक विकास, मानव स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा, प्रवास और विस्थापन, भूमि तथा समुद्र के पारिस्थितिक तंत्र पर पड़ने वाले प्रभाव का विशेष रूप से उल्लेख किया है।

Contents:


जलवायु परिवर्तन क्या है
जलवायु परिवर्तन के प्रमुख कारण
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव
जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के उपाय
जलवायु परिवर्तन पर भारत सरकार की मुख्य योजनाएँ एवं नीतियां

जलवायु परिवर्तन क्या है? 


पृथ्वी के बड़े भू-भाग में दीर्घकालिक मौसम की औसत स्थिति को जलवायु कहते हैं और किसी भौगोलिक क्षेत्र-विशेष में सदियों से चले आ रहे मौसम में होने वाले परिवर्तन को जलवायु परिवर्तन कहते हैं। जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण मानव गतिविधियों से उत्पन्न धरातलीय ग्रीनहाउस-गैसों के उत्सर्जन हैं। इसके परिणामस्वरूप बहुत सारे प्रभाव होते हैं, जिनमें तापमान की वृद्धि, मौसमी पदार्थों के बदलते अनुपात, वर्षा-परिवर्तन, तापीय-तूफान, बाढ़ और सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाएं शामिल हैं। इसके नतीजे में पृथ्वी की ऊपरी वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते स्तरों से जुड़ी तापमान में वृद्धि होती है, जिसे ग्लोबल वार्मिंग के रूप में जाना जाता है।

जलवायु परिवर्तन के प्रमुख कारण:-


जलवायु परिवर्तन, कई कारणों के संयोजन के वजह से होता है। जलवायु परिवर्तन के कारणों को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है। पहला प्राकृतिक कारण और दूसरा मानवीय कारण। 

1.     १. प्राकृतिक कारण:

ज्वालामुखी

ज्वालामुखी जब सक्रिय रहता है तो ज्वालामुखी से बड़ी मात्रा में से निकली विभिन्न गैसें (सल्फर डाई-ऑक्साइड, सल्फर ट्राई-आक्साइड, क्लोरीन, कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, हाइड्रोजन-आक्साइड, जलवाष्प) और राख वायुमंडल में फैलकर जलवायु परिवर्तन का एक प्रमुख कारण बनती हैं। जिससे वायुमंडल लंबे समय तक प्रदूषित होता है।

महासागरीय धाराएं


पृथ्वी का दो तिहाई के लगभग हिस्सा सागरों और महासागरों से घिरा हुआ है। अतः महासागरीय धाराएं भी जलवायु परिवर्तन का महत्वपूर्ण कारण होती हैं।

2.     २. मानवजनित कारण:


ग्रीनहाउस गैसों का उत्पादन और ग्लोबल वार्मिंग

इसका मुख्य कारण मानवीय गतिविधियों से उत्पन्न ग्रीनहाउस गैसों का बढ़ता स्तर है, जो मुख्य रूप से ग्रीनहाउस गैसों में मेथेन (विषैली गैस) और कार्बन डाइऑक्साइड की वृद्धि से होता है। जब ग्रीनहाउस गैसें पृथ्वी के वातावरण में बढ़ती हैं, तो वे सूर्य के विकिरण के एक भाग को अवशोषित कर लेती हैं और इससे पृथ्वी के तापमान में वृद्धि होती है। जिससे जल-तापमान बढ़ता है और ध्रुवों पर जमी हुयी बर्फ पिघलती है। फलस्वरूप महासागरों का जलस्तर बढ़ता है और महासागरों में वृद्धि के कारण समुद्री जीवन में परिवर्तन और जैव-विविधता में परिवर्तन आदि कई तरह के परिवर्तन होते हैं।


प्रमुख ग्रीनहाउस गैसें -

कार्बन डाइऑक्साइड (CO2- कोयले को ईंधन के रूप में इस्तेमाल करने से)  - ५७%
कार्बन डाइऑक्साइड (CO2- जैव-ईंधन की कमी और जंगलों की कटाई से)  - १७%
मीथेन (CH4) - १४%
नाइट्रस ऑक्साइड (N2O)  - ६%                                     
कार्बन डाइऑक्साइड (CO2- अन्य कारणों से)   - ३%
फ्लोरिनेटेड गैसें   - २%                                                  
अन्य गैसें  - १%

उपरोक्त आंकड़े बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण, कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा का बढ़ना है। औद्योगिक क्रान्ति के बाद कार्बन डाइऑक्साइड गैस की मात्रा ३०% से अधिक बढ़ी है और मीथेन गैस का स्तर १४०% बढ़ा है।

ग्रीन हाउस गैसों के बढ़ने में हमारी भूमिका:

  • जमीन के लालच में, पेड़ों को अधिक से अधिक काटना।
  • खेतों में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का बहुतायत से उपयोग करना।
  • कोयला, पेट्रोल, डीजल आदि जीवाश्म-ईंधन का उपयोग करना।
  • अपघटित न हो सकने वाले पदार्थ, जैसे- प्लास्टिक को अधिक उपयोग में लाना।

वनों की कटाई: 

वनों को काटने से वनस्पतियों द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड को श्वसन करने की क्षमता में कमी होती है और कार्बन डाइऑक्साइड के स्तरों को बढ़ाने में सहायता मिलती है। इसके अलावा, जंगलों की कटाई से पूरी दुनिया में वायुमंडलीय नियमन और वर्षा प्रणाली पर भी असर पड़ता है।

औद्योगीकरण: 

औद्योगिक गतिविधियों के लिए ऊर्जा-स्रोतों के रूप में जीवाष्म-ईंधन, जैसे- कोयला, पेट्रोल, डीजल आदि का उपयोग करने के कारण अधिकतर औद्योगिक क्षेत्रों से ग्रीनहाउस गैसें मुक्त होती हैं, जो तापमान में वृद्धि करके जलवायु परिवर्तन को बढ़ाती हैं।

आधुनिक जीवनशैली और व्यापारिक गतिविधियाँ: 

रेफ्रिजरेटर, एयर-कंडीशनर जैसे, आधुनिक घरेलू संसाधनों का बढ़ता उपयोग, आधुनिक जीवनशैली और व्यापारिक गतिविधियों के लिए अतिरिक्त परिवहन, उत्पादन और उपभोग के प्रकारों में वृद्धि से उच्च ऊर्जा-खपत, पेयजल उपयोग, और उत्पादन प्रक्रियाओं के लिए अधिक ऊर्जा और उपयोग की मांग को बढ़ाती है। यह जलवायु परिवर्तन को प्रेरित करता है। 

जनसंख्या-वृद्धि: 

जनसंख्या में बेतहाशा वृद्धि, अतिरिक्त खाद्य, पानी, ऊर्जा और अन्य संसाधनों की मांग को बढ़ाती है, जिससे उत्पन्न होने वाले अनावश्यक ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा बढ़ती है।

कृषि-क्षेत्रों का विस्तार: 

कृषि-विस्तार के लिए जंगलों की कटाई करके खेती-क्षेत्रों का विस्तार किया जाता है जिससे वनस्पतियों की संख्या में कमी होती है और वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों के स्तर को बढ़ाने में मदद मिलती है।

ऊर्जा उत्पादन और उपयोग के लिए जीवाश्म-ईंधनों का उपयोग: 

पेट्रोलियम-उत्पादों, जैसे कि कोयला और प्राकृतिक गैसों के इस्तेमाल से उत्पन्न होने वाली ग्रीनहाउस गैसेंवायुमंडल में बढ़ती हैं और जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा देती हैं।

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव:- 

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव विभिन्न तरह के होते हैं, जो निम्नलिखित हैं:

समुद्री जल-स्तर में वृद्धि: 

महासागरों के जलस्तर में लगातार वृद्धि हो रही है। अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड में जमी बर्फ अपेक्षाकृत तेजी से पिघल रही है जिससे समुद्रों का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है। परिणामस्वरूप, तटवर्तीय इलाकों के डूबने का खतरा बढ़ता जा रहा है।           

विश्व मौसम विज्ञान संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, सन्, १९७१-२००६ के बीच प्रतिवर्ष १.९ मिलीमीटर, २००६-२०१८ के बीच औसत वृद्धि ३.७ मिलीमीटर प्रतिवर्ष और २०१३-२०२२ के बीच महासागरों का जलस्तर औसतन ४.५ मिलीमीटर प्रतिवर्ष बढ़ा है। और यह दर सन् १९०१-१९७१के बीच हुई औसत बढ़ोतरी के तीन गुने से भी अधिक है। रिपोर्ट के अनुसार, इससे विश्व के बड़े शहरों, जैसे- लंदन, मुंबई, ढाका, न्यूयॉर्क, लास एंजेलिस, ब्यूनस आयर्स, जाकार्ता, सेंटियागो, कोपेनहेगन, बैंकाक, मापुटो को खतरा है।

तापमान में वृद्धि: 

अधिकतर वैज्ञानिकों के मुताबिक, ग्रीनहाउस गैसों की बढ़ती मात्रा और अन्य कारकों के कारण पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है। इससे हवा, जल और भूमि के तापमान में बदलाव हो रहा है, जिससे अतिरिक्त तापमान की गंभीर समस्याएं, जैसे ग्लेशियरों के पिघलने, जीव-जंतुओं की मृत्यु, जल संकट और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी अन्य समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। 

स्वास्थ्य प्रभाव: 

जलवायु परिवर्तन, मानव स्वास्थ्य पर सीधा प्रभाव डालता है। अत्यधिक तापमान, वायु प्रदूषण, जलवायु-संक्रमण और बाढ़ जैसी घटनाओं के कारण रोगों (हीट-स्ट्रोक, दमा, हृदय रोग, चिकनगुनिया, मलेरिया और विषाणु संक्रमण) का प्रसार बढ़ता है।

जल संकट:


जलवायु परिवर्तन और जल संकट, आधुनिक विश्व के सबसे बड़े वातावरणीय चुनौतियों में से हैं। इन दोनों मुद्दों के बीच गहरा संबंध है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन, जल संकट को बढ़ाता है और जल संकट भी, जलवायु परिवर्तन को प्रभावित करता है।

कृषि पर प्रभाव: 

जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम-पैटर्न, वर्षा, तापमान, और मौसमी तत्वों में बदलाव होता है, जिससे कृषि क्षेत्रों में विपरीत प्रभाव पड़ता है। उच्च तापमान, सूखा, बाढ़, आदि के कारण फसल प्रभावित होती है, जिससे खाद्य उत्पादन में कमी होती है। 

वन और वन्यजीवों पर प्रभाव

जलवायु परिवर्तन, वनों और वन्यजीवों पर प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से प्रभाव डालता है। यह वन्यजीवों के लिए भोजन, आवास और संजीवनी का स्रोत होता है, इसलिए जीवाश्म श्रृंखला के परिवर्तन, उनके लिए महत्वपूर्ण होते हैं। उच्च तापमान और विपरीत मौसमी शर्तों के कारण वन्यजीवों की प्रजनन दक्षता प्रभावित होती है।

वर्षा और मौसम में बदलाव: 

जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप अकाल, बाढ़, सूखा, तूफान और अनुपातिक वर्षा आदि बढ़ जाते हैं। 

आर्थिक प्रभाव: 

जलवायु परिवर्तन से विपणन, पर्यटन, कृषि सेक्टर में उत्पादन और रोजगार में बदलाव हो सकता है। 

सामाजिक प्रभाव: 

उच्च जलस्तर, बाढ़, भूस्खलन, अवसादीय-वर्षा और तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाएं लोगों को अपने निवास स्थानों को छोड़कर अन्य सुरक्षित स्थानों में जाने के लिए मजबूर करती हैं।

जीविका संबंधी उद्योगों पर प्रभाव: 

कृषि, मत्स्य-पालन, वन्यजीव संरक्षण और अन्य जीविका संबंधी उद्योगों में अनियमितता, प्रदूषण, खाद्य-सुरक्षा की समस्याएं और अन्य समस्याएं उत्पन्न होती हैं। 

जैव-विविधता पर प्रभाव: 

जलवायु परिवर्तन, सभी प्राणियों के जीवन-तंत्र पर प्रभाव डालता है। इससे वनस्पतियों, पक्षियों, जीव-जंतुओं, अवासीय-प्राणियों और समुद्री-जीवों के लिए स्थानीय और संगठनात्मक परिवर्तन होते हैं। 

जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के उपाय:- 

जलवायु परिवर्तन को रोकने और संभालने के लिए कई उपाय हैं। यहां कुछ महत्वपूर्ण उपाय दिए गए हैं, जो निम्न हैं-

  • नवीकरणीय ऊर्जा का अधिक से अधिक उपयोग करके।
स्रोत: Myenergy

  • वन-संरक्षण को बढ़ावा देना। 
  • इंटरनल कंबस्टन-इंजन से संचालित वाहनों के उपयोग के स्थान पर विद्युत-चालित गाड़ियों का उपयोग करके।
  • प्रदूषण नियंत्रण हेतु नवीनतम प्रदूषण नियंत्रण तकनीकों का उपयोग करके।
  • जनसंख्या-नियंत्रण को बढ़ावा देने के लिए, समुचित शिक्षा, स्वास्थ्य-सुविधाएं प्रदान करके एवं गर्भ निरोधक तकनीकों का उपयोग करके।
  • पर्यावरण-संरक्षण के लिए, पर्यावरणीय-संवेदनशीलता, शिक्षा और जागरूकता बढ़ाकर।
  • प्राकृतिक-संसाधनों का संरक्षण करना।
  • उर्जा-बचत, को बढ़ावा देना।
  • वैश्विक सहयोग करके।
  • विभिन्न देशों को तकनीकी-अनुभव, विज्ञान, वित्तीय संसाधनों और नीतिगत मामलों को आपस में साझा करके। 
  • अवकाशीय-यात्रा और विमान-यात्रा को यथासंभव कम करके। 
  • वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग और दूरसंचार के माध्यम से व्यापारिक और पर्यटन संबंधित मीटिंग का उपयोग करके।
  • पेरिस समझौता 2015 जैसे, विभिन्न देशों के बीच संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के माध्यम से।
  • रेफ्रिजरेटर और वातानुकूलन का उपयोग, यथासंभव कम करके। 
  • जलवायु परिवर्तन की दिशा में आगे बढ़ने के लिए सामुदायिक सहयोग करना। 
  • जलवायु-परिवर्तन को मद्देनजर रखते हुए शहरी निर्माण-कार्य होने चाहिए। 
  • सरकारी, गैर-सरकारी संगठनों को एक ठोस रणनीति के तहत करना होगा।
जलवायु परिवर्तन पर भारत सरकार की मुख्य योजनाएँ एवं नीतियां:-

भारत उन कुछ चुनिंदा देशों में से एक था, जिसने २००१ में ऊर्जा-संरक्षण अधिनियम पारित किया था। जिसमें अगस्त २०२२ में संशोधन किया गया। भारत सरकार की तरफ से जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में तीन प्रमुख कदम उठाये गये थे। 

1.   भारत २००५ के स्तर के मुक़ाबले अपने कुल सकल घरेलू उत्पाद से होने वाले उत्सर्जन को २०३० तक ४५% तक कम करेगा

2.     साल २०३० तक भारत, अपने कुल बिजली उत्पादन का ५०% तक नवीकरणीय ऊर्जा से हासिल करेगा

3.     पेड़ और जंगल लगाकर, २.५ से ३ अरब टन, अतिरिक्त कार्बन-डाइऑक्साइड को अवशोषित करेगा

जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना, ३० जून, २००८ में प्रधानमंत्री की जलवायु-परिवर्तन परिषद द्वारा शुरू की गई थी।इसका उद्देश्य जनता के प्रतिनिधियों, सरकार की विभिन्न एजेंसियों, वैज्ञानिकों, उद्योग और समुदायों के बीच जलवायु-परिवर्तन से उत्पन्न खतरे और इसका मुकाबला करने के बारे में जागरूकता पैदा करना है।

जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य-योजना के मूल में ८ राष्ट्रीय मिशन हैं -


1.     १. राष्ट्रीय सौर-मिशन
2.     २. उन्नत ऊर्जा-दक्षता के लिए राष्ट्रीय मिशन
3.     ३. सतत-आवास पर राष्ट्रीय मिशन
4.     ४. सतत कृषि के लिए राष्ट्रीय मिशन
5.     ५. हरित-भारत के लिए राष्ट्रीय मिशन
6.     ६. राष्ट्रीय जल-मिशन
7.    ७. हिमालयी पारिस्थितिकी-तंत्र को बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय मिशन
8.     ८. जलवायु-परिवर्तन के लिए रणनीतिक ज्ञान पर राष्ट्रीय मिशन

सारांश


आधुनिक औद्योगिक-क्रियाओं के परिणामस्वरूप विश्वभर में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव देखने को मिल रहे हैं। इसमें हुई औद्योगिक-वृद्धि के अलावा अन्य कारकों की भी बड़ी भूमिकाएं हैं। जलवायु का मानव जीवन के उपर बड़ा प्रभाव पड़ता है। इसे, हम इस तरह समझ सकते हैं कि जीवन का अस्तित्व, अनुकूल जलवायु से है और इसकी प्रतिकूलता से जीवन खतरे में पड़ता है। जलवायु परिवर्तन का प्रभाव पूरे संसार में देखने को मिल रहा है। जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिए सरकारों को ठोस नीतिगत उपाय करने होंगे। जनता को भी जागरूक होना पड़ेगा। पृथ्वी पर जीवन-रक्षण के लिए ग्लोबल-वार्मिंग के खतरों से निपटने के लिए विश्व के सभी देशों को एकजुट होकर ईमानदारी के साथ, एक ठोस रणनीति के तहत काम करना होगा। ग्लोबल वार्मिंग से निपटना अकेले किसी देश या प्रदेश के वश की बात नहीं है।

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