24 जून 2023

संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए प्राकृतिक जीवनशैली अपनायें | Adopt Natural Lifestyle

प्राकृतिक जीवनशैली (Natural Lifestyle) का मतलब होता है, स्वाभाविक तरीके से जीवन जीना, जहां पर हम प्रकृति के साथ संगठित रूप से रहते हैं तथा स्वस्थ एवं सुखी जीवन जीते हैं।" प्राकृतिक जीवनशैली, एक ऐसी जीवनशैली है जिसमें व्यक्ति प्रकृति के साथ मेल खते हुए अपने दैनिक क्रियाकलापों को करता है। 

यह जीवनशैली विविधता, प्राकृतिक संतुलन और स्वस्थ रहने के मूल्यों पर आधारित होती है। प्राकृतिक जीवनशैली हमारे स्वास्थ्य और कल्याण के लिए महत्वपूर्ण है। प्राकृतिक जीवनशैली अपनाकर हम अपने शरीर और मन को स्वस्थ बना सकते हैं एवं पर्यावरण को संतुलित रख सकते हैं। प्राकृतिक जीवनशैली में शामिल होते हैं- स्वास्थ्यप्रद भोजन की आदत, नियमित शारीरिक गतिविधियाँ, ध्यान, योग, प्राकृतिक चिकित्सा तकनीकों का उपयोग, अप्रदूषण, वन्य-जीवन संरक्षण, और प्रकृति के साथ संवाद को महत्व देना। 

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नेचुरल लाइफस्टाइल का उद्देश्य व्यक्ति को स्वस्थ, स्थिर, आत्मनिर्भर और प्रकृति के साथ संवाद में रखने के लिए प्रेरित करना है। इससे अधिकांश लोग विश्राम, खुशहाली, सुख, उत्थान और सामर्थ्य की अनुभूति करते हैं। विश्वास रखें, प्रकृति के नियमका पालन करने से, जीर्ण रोगी भी पुनः स्वस्थ और निरोगी हो सकता है। जो कार्य दवाईयां भी नहीं कर सकतीं, प्रकृति के नियमानुसार रहने से अनायास ही प्राप्त हो सकता है। यदि हम स्वाभाविक रीति से जीते चलें, प्रकृति के नियमों का पालन करते चलें तो निश्चित रूप से हमारी आयु लंबी होगी। 

प्राकृतिक जीवनशैली के मुख्य क्षेत्र

आहार: प्राकृतिक आहार लेना शुरू करें। यह मुख्य रूप से अप्रासंगिक खाद्य-पदार्थों, सफेद चीनी और प्रसंस्कृत अनाज से बनी प्रोसेस्ड खाद्य-पदार्थों को छोड़ना है। प्राकृतिक खाद्य-पदार्थ जैसे- फल, सब्जियां, अनाज, दालें, दूध, और फलों को अपने आहार में शामिल करें।


व्यायाम: नियमित व्यायाम करना, आपके शरीर के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। आप प्राणायाम, साँस-लेने की व्यायाम-तकनीकों को अपना सकते हैं। इसके अलावा, नियमित चलना, दौड़ना, तैराकी जैसे शारीरिक गतिविधियों को अपनाने का प्रयास करें।

योग और ध्यान: योग और ध्यान भी प्राकृतिक जीवनशैली का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। योग और ध्यान के माध्यम से मन को शांति, स्थिरता और स्वस्थ मनोवैज्ञानिक स्थिति में लाने का प्रयास किया जाता है। योगाभ्यास, शारीरिक और मानसिक सुगमता को बढ़ाने में मदद करता है तथा ध्यान मानसिक शांति, स्वयं-संयम और सचेतता की प्राप्ति में सहायक होता है। प्राकृतिक स्थलों में ध्यान करना विशेष रूप से प्रभावी होता है, जहां आप वातावरण की शांति और प्राकृतिक सुंदरता का आनंद ले सकते हैं।

प्राकृतिक उपचार: आप प्राकृतिक उपचारों का उपयोग करके अपनी स्वास्थ्य-सुरक्षा में सहायता प्राप्त कर सकते हैं। यह आयुर्वेदिक दवाओं, जड़ी-बूटियों, औषधि, पौधों, तेलों, आरोमा-थेरेपी और होमियोपैथी जैसे प्राकृतिक उपचारों को शामिल करता है।

प्राकृतिक उत्पादों का उपयोग: प्राकृतिक उत्पादों जैसे- प्राकृतिक साबुन, शैम्पू, तेल, लोशन, स्क्रब, औषधि, मसाले और घरेलू स्वच्छता-उत्पाद का उपयोग करके, अपने शरीर और वातावरण को हानिकारक केमिकल्स से बचा सकते हैं। इसके अलावा, आप बायोडीग्रेडेबल उत्पादों का उपयोग कर सकते हैं, जैसे कि पानी की बोतलें, बायोडिग्रेडेबल टूथब्रश, और रीसाइक्ल किए गए कागज़, कपड़े, गिलास, बर्तन और स्टेशनरी पदार्थ, जो प्राकृतिक सामग्री से बने होते हैं। 

नैचुरल होम केयर: अपने घर को प्राकृतिक और स्वस्थ रखने के लिए नैचुरल होम-केयर उपयोग करें। इसमें घरेलू सफाई के लिए प्राकृतिक सामग्री, जैसे- विनेगर, नींबू, बेकिंग सोडा आदि का उपयोग शामिल हो सकता है। यह पर्यावरण को बचाने में मदद करता है और आपके घर में हानिकारक केमिकल्स की मात्रा को कम करता है।

प्राकृतिक वस्त्र: प्राकृतिक फाइबर्स से बने वस्त्रों का उपयोग करें; जैसे कि ऑर्गेनिक कॉटन, लिननजूट, सिल्क आदि। इनमें केमिकल्स की कम मात्रा होती है और ये आपके त्वचा और पर्यावरण को हानि पहुंचाने से बचाते हैं।

प्रकृति के साहचर्य में रहें: अपने समय का एक हिस्सा प्रकृति में बिताने का प्रयास करें। पार्क या बगीचे में सैर करना, जंगल की यात्रा करना, नदी तट पर वक्त बिताना या गाँव की यात्रा करना, आपको प्रकृति के साथ जुड़ने और आपके मन को शांति तथा प्रसन्नता का अनुभव करने का अवसर देता है।


अवकाश योजना: आप अवकाश के दौरान प्राकृतिक स्थलों पर यात्रा कर सकते हैं, जंगलों में ट्रेकिंग कर सकते हैं, पहाड़ों पर हाइकिंग कर सकते हैं। इससे आप प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद ले सकते हैं और प्रकृति के साथ साहचर्य में आने का मौका प्राप्त कर सकते हैं।

आदर्श दिनचर्या: आदर्श दिनचर्या को अपनाने का प्रयास करें। नियत समय पर सोना और उठना, नियमित भोजन करना, विश्राम आदि। 

प्राकृतिक जीवन; स्वास्थ्य का मूल मंत्र है


पृथ्वी पर रहने वाले विभिन्न जीव-जंतुओं का यदि अध्ययन करें तो आप पायेंगे कि वे अधिकतर प्राणी, प्रकृति के साहचर्य में रहते हैं। उनका भोजन सरल और स्वाभाविक रहता है। उनके खान-पान में संयम रहता है। वे अपने ऋतुकाल में ही विहार करते हैं। इसके लिए प्रकृति स्वयं उन्हें काल और ऋतु के अनुसार कुछ गुप्त संदेश दिया करती है। उनकी स्वयं की वृत्तियाँ उन्हें आरोग्य की ओर अग्रसर करती हैं। उन्हें सही राह दिखाने वाली प्रकृति ही है। यदि किसी कारण से वे अस्वस्थ हो भी जायें तो प्रकृति स्वयं अपने-आप उनका उपचार भी करने लगती है। कभी पेट के विश्राम के द्वारा, कभी धूप, मालिश, रगड़, मिट्टी के प्रयोग, किसी न किसी प्रकार जीव-जंतु स्वयं ही स्वास्थ्य की ओर जाया करते हैं। प्रकृति उनके शरीर की रक्षा खुद करती हैं। वही उनका डाक्टर, हकीम या वैद्य है। 


प्रकृति में हर प्रकार की प्रचुरता है। आनंद, आरोग्य, स्वास्थ्य की इतनी प्रचुरता है कि उसकी सीमा नहीं। प्रकृति में स्वास्थ्य की इसी अधिकता के कारण ही अनेक पशु-पक्षी, जीव-जन्तु, जीवन का आनंद लेते हैं। जल, वायु, प्रकाश, भोजन से जीवन-तत्व खींचकर वे दीर्घ जीवन का सुख लूटते हैं। प्रकृति के कण-कण में, पत्तियों, फलों तथा जल की प्रत्येक बूंद में आरोग्य भरा हुआ है। वायु के प्रत्येक अंश को जिसे हम अंदर खींचते हैं, जल के प्रत्येक घूंट, जिसे हम पीते हैं, फल और तरकारियों के कण-कण में, स्वास्थ्य और बल हमारे लिए संचित है। प्रकृति के पास, जीवन को सर्वांग रूप से स्वस्थ रखने के लिए सब तरह के उपाय हैं। 
प्रकृति के भंडार में सब कुछ है। सब तरह के पदार्थ हैं।मधुमक्खी शहद जुटाती है, नीबू खट्टापन, गन्ना मीठापन तो करेला कड़वाहट का तत्व पृथ्वी से खींचता है। प्रकृति में षट्-रसों का विधान है। इनमें से जिनको जो रुचे, उसी से अपना स्वास्थ्य स्थिर रखता है। प्रकृति में सभी तरह के लक्ष्यों की पूर्ति के लिए साधन विद्यमान हैं। तरह-तरह की जड़ी-बूटियां, पौष्टिक पदार्थ, अमृत तुल्य दिव्य पदार्थ, हमारे लिए संचित हैं। मिट्टी, जल, वायु, धूप इत्यादि में यह शक्तियां नीहित हैं जो कि हमें स्वस्थ और सबल बना सकें। 

मनुष्य की प्राकृतिक सुंदरता क्या है


वास्तविक सौन्दर्य तो पूर्ण रूप से सुविकसित, परिपुष्ट और स्वस्थ शरीर में है। प्रत्येक पुट्ठे और मांसपेशी में स्वाभाविक सौन्दर्य है। जिस युवक या युवती के शरीर में स्वाभाविक लालिमा है, जिसका डीलडौल संतुलित है, नेत्र सुंदर व चमकदार हैं, त्वचा कोमल है, फेफड़े परिश्रम सहन कर लेते हैं और गहरी नींद और आराम देते हैं, स्वभाव में चिड़चिड़ापन नहीं है, क्रोधी नहीं है, खिले हुए चेहरे वाले स्वस्थ मनुष्य को ही पूर्ण सुंदर कहना युक्तिसंगत है। चेहरे पर लाल रंग, पाउडर, क्रीम आदि पोतने से क्या लाभ? यदि उत्तम स्वास्थ्य और आरोग्य नहीं होगा तो शरीर को फैशनेबल रेशमी कपड़ों को पहनने या महंगे आभूषणों से अलंकृत करने से क्या वास्तविक सौन्दर्य प्राप्त हो सकेगा? वास्तविक सौन्दर्य तो चिरस्थायी है और वही प्राकृतिक सौंदर्य है। यदि कोई मनुष्य पूर्ण स्वस्थ और सुंदर बना रहना चाहता है तो उसे प्राकृतिक जीवनशैली का आश्रय ग्रहण करना होगा।

प्राकृतिक रूप से स्वस्थ मनुष्य की पहचान


प्रकृति ने मनुष्य को, पृथ्वी पर विराजमान सभी प्राणियों से अधिक सुंदर, शारीरिक, मानसिक आध्यात्मिक शक्तियों से संपन्न, स्वस्थ, सशक्त, सुडौल प्राणी बनाया है। आरोग्य और अच्छा स्वास्थ्य का मार्ग, उसने बड़ा सीधा और सरल रखा है। तो आइये हम जानते हैं कि प्राकृतिक रूप से स्वस्थ जीवन की आधारशिला क्या है

१. वाह्य संरचना-

स्वस्थ मनुष्य का आकार संतुलित होना चाहिए। ऊंचा कद, शरीर अधिक दुबला न हो और न ही भारी भरकम मांस से लटकता हुआ, थुलथुला हो। शरीर का प्रत्येक अंग संतुलित रूप से विकसित हो और ठीक से काम करता हो। उन्नत ललाट, चमकदार नेत्र, माथे व गालों पर स्वाभाविक रक्त की लालिमा हो। हाथ-पैर मजबूत हों।

२. शरीर की आंतरिक अवस्था-

पाचन-क्रिया दुरूस्त हो, मल-मूत्र के विसर्जन का कार्य अपनी स्वाभाविक गति से होता रहे। खाया हुआ भोजन, शरीर को पुष्ट और स्वस्थ रखे। भोजन करते समय, रुचि एवं स्वाद, स्वास्थ्य के सूचक हैं। 

३. हृदय तथा फेफड़े-

हृदय एवं फेफड़े, दोनों ही मजबूत होने अनिवार्य है। तेज चलने या दौड़ने की अवस्था में सांस, मुंह से न लेना पड़े। 

४. मानसिक स्थिति-

स्वस्थ मनुष्य, मधुर स्वभाव वाला, तृप्त और उत्साही होता है।अशांत चित्तअशुद्ध विचारों से युक्त मनचिंता, चिड़चिड़ापन, क्रोध, उतावलापन, उदासी, निरुत्साह आदि सब मानसिक विकारों के द्योतक हैं। 

प्रकृति तत्व से अनभिज्ञता के दुष्परिणाम


आज के परिवेश में, रोग और रोग से पीड़ितों की संख्या इस प्रकार बढ़ती दिख रही है कि अब पूर्ण रूप से स्वस्थ होना ही मुश्किल लग रहा है। आज की जीवन-शैली ही कुछ ऐसी है कि आज जीवनयापन से अधिक पैसे, दवाईयों में खर्च हो रहे हैं। कारण, हमारा भोजन प्राकृतिक नहीं रह गया है, हमारी जीवन शैली, अप्राकृतिक हो गयी है। हम दिन में सोते हैं और रातें, सिनेमाघरों, बड़ी-बड़ी पार्टियों में बिताते हैं। आज नब्बे प्रतिशत के लगभग युवा, दंत और नेत्र रोगों से पीड़ित हैं। अस्वाभाविक मैथुन, वीर्यपात और व्याभिचार के चक्कर में फंसे नवयुवकों की संख्या का पता गुप्त रोगों के बढ़ते विज्ञापनों और चिकित्सकों की संख्या से लगता है। अप्राकृतिक क्रियाकलापों का दुष्परिणाम बड़ा भयंकर होता है।

प्राकृतिक तत्वों का हमारे जीवन पर प्रभाव  

   
प्राकृतिक तत्वों की नयूनाधिकता से रोगों की उत्पत्ति होती है। हमारा शरीर प्रकृति के पंच तत्वों (पृथ्वी, आकाश, जल, वायुअग्नि) से बना है। हमारे आहार-विहार की असावधानी से जब इन तत्वों का संतुलन बिगड़ता है तब शरीर रोगी होता है। जैसे-
अग्नि की मात्रा कम होने से, शीत, जुकाम, नपुंसकता, मंदाग्नि, शिथिलता जैसे रोग होते हैं।
वायु की मात्रा में अंतर से गठिया, लकवा, कंपन, अकड़न, नाड़ी-विक्षेप आदि रोग होते हैं।
आकाश तत्व के विकार से मुर्छा, मिर्गी, उन्माद, पागलपन, सनक, अनिद्रा, वहम, घबराहट, गूंगापन, बहरापन, विस्मृति आदि रोगों का आक्रमण होता है।
जल तत्व के असंतुलन से जलोदर, पेचिश, बहुमूत्र, प्रमेह, स्वप्नदोष, संग्रहणी, प्रदर आदि रोग पैदा होते हैं।
पृथ्वी तत्व के बढ़ने से रसौली, तिल्लीजिगर, फीलपांव, मोटापा, मेदवृद्धि आदि रोग होते हैं। 

तत्व-चिकित्सा या आयुर्वेदिक-चिकित्सा का यही आधार है। जिसके अंतर्गत शरीर के रोगों का उपचार, पंच-तत्वों के द्वारा किया जाता है। 

प्राकृतिक जीवनशैली का उद्देश्य


प्राकृतिक जीवनशैली का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति को स्वस्थ, स्थिर और संतुलित रखने के लिए प्रेरित करना है। यह एक संतुलित और प्राकृतिक जीवनशैली को प्रोत्साहित करता हैजिसमें व्यक्ति, प्रकृति के साथ मेल रखते हुए जीने का प्रयास करता है। प्राकृतिक जीवनशैली के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  • स्वस्थ शारीरिक और मानसिक अवस्था में रहना होता है। यह स्वस्थ आहार, नियमित शारीरिक गतिविधि, योग और मेधावी तकनीकों का उपयोग शामिल करके किया जाता है।
  • प्रकृति के संतुलन को स्थापित रखना है। इसमें प्राकृतिक औषधियों, उपयोगिता के अनुकूल कृषि तकनीकों, प्रकृतिक सौंदर्य-उत्पादों के उपयोग, और पर्यावरणीय जीवनशैली के लिए सतत संवर्धन शामिल होता है। 
  • व्यक्ति को मानसिक शांति, स्थिरता और आत्मिक उत्थान की प्राप्ति में मदद करना है। 
  • पर्यावरण की संरक्षा और संवेदनशीलता को प्रोत्साहित करना है। इसमें प्रकृति के साथ सहयोग करने, जल संरक्षण, वन्य जीवन की संरक्षा, अनावश्यक प्लास्टिक उपयोग से बचना, स्थानीय उत्पादों का प्रयोग करना और पर्यावरण संबंधी संगठनों का समर्थन शामिल होता है।
  • व्यक्ति को अपने आसपास की प्रकृति को समझने और प्रेम करने के लिए प्रेरित करना है। इसमें प्रकृति के साथ संवाद, अन्य लोगों के साथ सहयोग और समुदाय में योगदान करना शामिल होता है।

  • उपयोगी और प्राकृतिक संसाधनों का संवेदनशीलता से उपयोग करना है। इसमें संयमित खर्च, अप्रदूषण और पर्यावरण से सहयोग करना, बाहरी संसाधनों के उपयोग की कमी करना आदि।  

प्राकृतिक जीवनशैली के फायदे: 

प्राकृतिक जीवनशैली के अनुसार जीने से कई लाभ हैं जो नीचे विस्तार से दिये गये हैं। 

  • हमारे शरीरमन और आत्मा को स्वस्थ रखने में मदद मिलती है। यह स्वस्थ आहारयोगध्यान और नियमित शारीरिक गतिविधियों को शामिल करता है जो हमें रोगों से बचाने में मदद करता है।

Source: Online Sanskrit Books
  • मानसिक स्थिरता के लिए एक शांत और प्राकृतिक वातावरण सृजित करता है। 
  • प्राकृतिक जीवनशैली के पक्ष में स्वास्थ्यप्रद आहार, जैविक खाद्य, औषधीय पौधे और उत्पादों का उपयोग होता है। यह आपको पोषण में सुधार कर, शारीरिक ऊर्जा को बढ़ाने, रोगों से बचाने और प्राकृतिक तत्वों के नकारात्मक प्रभावों से बचाने में मदद कर सकता है।
  • पर्यावरण की सुरक्षा में मदद मिलती है। यह प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम करने, बायोडिग्रेडेबल उत्पादों का उपयोग करने, जल और पर्यावरणीय संरक्षण में मदद करता है। 
  • आप प्राकृतिक संसाधनों का सही तरीके से उपयोग करके अपने वित्तीय और सामाजिक प्रगति को समर्थन कर सकते हैं।
  • प्राकृतिक जीवनशैली के अंतर्गत अपनी जरूरतों को कम करने, संयमित खर्च करने, और उचित व्यय के माध्यम से आपकी आर्थिक स्थिरता और सुरक्षा को बढ़ावा मिलता है।
  • यह आपको संतुलित जीवन जीने में मदद करता है। 
  • यह आपको नियमित निद्रा, स्वस्थ संबंध, परिवार के साथ समय बिताने, और आत्म समर्पण को प्रोत्साहित करता है।
  • नेचुरल लाइफस्टाइल अपनाने से आप प्रकृति की संपूर्णता का आनंद ले सकते हैं।

स्वास्थ्य रक्षा का प्राकृतिक उपाय

  • प्रातः काल में शौच जाने से पूर्व एक गिलास पानी पीना, कुछ देर की धूप लेना अच्छा होता है। 
  • सुबह इतना टहलें कि शरीर से पसीना निकलने लगे। यदि सुबह समय न मिले तो शाम को टहला जा सकता है। 
  • कुशल प्रशिक्षक के परामर्श से उचित योग, व्यायामप्राणायाम करना हितकर होता है। 
  • तेल से मालिश करके स्नान करना अच्छा माना जाता है। स्नान करने के बाद, बदन को तौलिये या गमछे से रगड़ना चाहिए ताकि रोमकूप खुल जायें।  
  • सुपाच्य और ताजा भोजन लेना चाहिए। ज्यादा तेलमिर्चमसालानमकचीनी वाले भोजन तथा बासी भोजन से परहेज करना चाहिए। खाद्य पदार्थ न तो बहुत अधिक गर्म हो और न ही बहुत ठंडा। 
  • मादक या उत्तेजक पदार्थों के सेवन से यथासंभव दूर रहना श्रेयस्कर है। 
  • रात में जल्दी सोयें और प्रातःकाल जल्दी जगें। भरपूर गहरी नींद लें। 
  • सप्ताह में एक दिन उपवासस्वास्थ्य के लिए अच्छा माना गया है। उपवास में हल्के खाद्य-पदार्थ जैसे दूधछाछफल आदि लिया जा सकता है। 
  • घर में हवा और प्रकाश प्रचुर मात्रा में पहु़चना चाहिए। 
  • वस्त्र, भोजन-पात्र, घर, बिस्तर के साथ-साथ शरीर और मन की भी सफाई जरूरी है।
  • आलस्य और अत्यधिक परिश्रम न करें। 
  • चित्त को शांत, चेहरे को हंसमुखमन को स्थिर रखने का लगातार प्रयत्न करना चाहिए। 
  • अपनी बुरी आदतों को दृढ़तापूर्वक छोड़ने का अभ्यास जरूरी है।

अस्वीकरण: इस लेख का उद्देश्य पाठकों को जागरूक करना है। यह किसी चिकित्सीय परामर्श का विकल्प नहीं है।

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सौजन्य: पं. श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा लिखित पुस्तक प्रकृति का अनुसरण

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