भूमिका:
सुकून, जीवन की वह अवस्था है जो हर इंसान के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण और आवश्यक है। यह वह शांतिपूर्ण अनुभव है जिसमें मन और आत्मा एक विशेष संतुलन और आनंद की अनुभूति करते हैं। आधुनिक युग में जहाँ तकनीकी उन्नति और जीवन की तेज रफ्तार ने लोगों को मानसिक तनाव और अशांति की ओर धकेल दिया है, सुकून एक दुर्लभ धरोहर बन गया है। सुकून भरी जिंदगी की चाहत स्वाभाविक रूप से हर व्यक्ति में होती है। लोग हर संभव प्रयास करते हैं ताकि वे इस मूल्यवान धरोहर को अपने जीवन में बनाए रख सकें। सुकून न केवल शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को मजबूत करता है, बल्कि यह व्यक्ति के आंतरिक संतुलन और उसकी खुशहाली का भी आधार है। इस लेख में, हम प्रयास करेंगे कि कैसे इसे हासिल किया जा सकता है और क्यों यह हमारे जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा है।
इस संदर्भ में डा. संगीता शर्मा कुंद्रा "गीत" की कुछ पंक्तियाँ पेश की जाती हैं-
जिंदगी तो चलती ही रहनी है,
कोई बात नहीं, रुकेगी भी ,चलेगी भी।
तू कुछ पल गुजार, सुकून के।
सुकून का अर्थ एवं अवस्था:
सुकून उर्दू शब्द है। इसका अर्थ है अमन-चैन, पूर्ण रूप से शांति। अर्थात् मानसिक शांति एवं आराम तथा संतोष की स्थिति। यह वह अवस्था है जब व्यक्ति के मन में कोई अशांति, चिंता या तनाव नहीं होता और वह अपनी जिंदगी से पूरी तरह से संतुष्ट और खुशी महसूस करता है। सुकून का अनुभव अक्सर तब होता है जब व्यक्ति के अंदर न कुछ पाने की लालसा होती है और न ही कुछ खोने का डर। सुकून की अवस्था में मन शांत होता है, किसी भी प्रकार की बेचैनी नहीं होती है।
सुकून की खोज:
आज की तेज़ रफ्तार से भाग रही जिंदगी में, सुकून की तलाश सबको ही है। सुकून को सभी लोग अपने-अपने नजरिये से देखते हैं और उसी के अनुसार तलाश भी करते हैं। अक्सर लोग बाहरी वस्तुओं, संपत्ति, या भौतिक सुख-सुविधाओं में उसे खोजते हैं। लेकिन वास्तव में, सुकून तो एक ऐसी अवस्था है जिसका मुख्य श्रोत हमारे भीतर है। इस स्थिति में इसे केवल बाहरी संसाधनों से प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
सुकून एक जटिल और बहुआयामी अनुभव है जिसे केवल एक ही दृष्टिकोण से समझा जाना कठिन है। हर व्यक्ति की सोच-समझ, उनका जीवनस्तर, जिंदगी के प्रति उनका दृष्टिकोण, जीवन जीने के तरीके, प्राय: अलग होते हैं। ऐसी स्थिति में सुकून की अवस्था का दायरा भी अलग हो सकता है। तो सुकून को प्राप्त करने के लिए सबसे पहले जरूरी है कि हम अपनी वास्तविकता, प्राथमिकताओं एवं आवश्यकताओं को गहराई से समझें। हमें यह तय करना होगा कि ऐसी कौन सी चीज है जिसके मिल जाने से या हासिल कर लेने से हमें सुकून मिल जायेगा? यह जानना होगा कि वास्तव में हमें किस चीज़ में खुशी मिलती है? जब हम दूसरों की देखादेखी या स्पर्धा में वो सब काम करने लगते हैं जिनसे न तो हमारी वास्तविकता का नाता होता है और न ही आवश्यकता का। तब हमारा सुकून, हमसे दूर हो जाता है। कई बार, हम बाहरी दुनियाँ की चकाचौंध में ऐसे खो जाते हैं कि अपनी असली खुशी को भूल जाते हैं और फिर जीवन में बेचैनी महसूस करने लगते हैं।
सुकून का हमारी जिन्दगी से दूर होने के कारण:
तेज रफ्तारभरी जीवनशैली; आधुनिक समाज में लोगों के जीवन की रफ्तार इतनी तेज हो गई है कि उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से थका रही है। नतीजतन, सुकून की कमी महसूस होती है।
काम का बोझ: काम के अधिक बोझ से तनाव और थकान बढ़ता है तथा सुकून दूर होता है।
रिश्तों में असंतुलन: सुकूनभरी जिन्दगी में मधुर-संबंधों का बहुत मूल्य होता है। आपसी समझदारी और संवाद की कमी से रिश्तों में दरार पैदा होता है, जिससे घर-परिवार, यार-दोस्तों, सगे-संबंधियों से व्यक्ति की दूरियां बढ़ने लगती है जो मानसिक शांति और सुकून को विचलित करने का एक प्रमुख कारण होती है।
स्वास्थ्य का अनदेखी: अनियमित दिनचर्या, अस्वास्थ्यकर आहार और व्यायाम की कमी से स्वास्थ्य बिगड़ता है जिससे स्वास्थ्य और सुकून पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
डिजिटल दुनिया का असर: लैपटॉप और स्मार्टफोन जैसे डिजिटल उपकरणों के अत्यधिक प्रयोग से स्वास्थ्य और सुकून पर बुरा असर पड़ता है।
रोजगार की समस्या: नौकरी और रोजगार की समस्या और उसकी चिंता, सुकून को हमसे दूर करती है।
अधिकता की चाह: अधिक धन-संपत्ति, और आरामदायक जीवन के पीछे लगातार भागने की इच्छा ने लोगों को उनके जीवन से सुकून से दूर कर रहा है।
समाज में बढ़ती प्रतिस्पर्धा: सामाजिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में चाहे करियर हो, रिश्ते हों, या समाजिक प्रतिष्ठा हो, प्रतिस्पर्धा का बढ़ता प्रभाव, सुकून से वंचित करता है।
नकारात्मक समाचार और घटनाएँ: समाचार-पत्रों में और सोशल-मीडिया प्लेटफार्म पर लगातार हिंसा, अपराध, और अन्य नकारात्मक घटनाओं के बारे में जान-सुनकर मन अस्थिर होता है जिससे सुकून में खलल पड़ता है।
आध्यात्मिकता और जीवन की वास्तविकता से बढ़ती दूरी: आजकल लोग भौतिक सुख-सुविधाओं के पीछे बेतहाशा भागते हुए आध्यात्मिकता और जीवन की वास्तविकता से दूर होते जा रहे हैं। जिससे मानसिक-तनाव और अशांति बढ़ती है।
सामुदायिक अस्थिरता: सामाजिक संघर्ष, असमानता, और अपराधों की बढ़ती घटनाएं भी हमारे सुकून को भंग करती हैं।
सुकून प्राप्त करने के तरीके:-
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