स्वामीवेकानंद एक ऐसे प्रभावशाली व्यक्तित्व का नाम है जो किसी परिचय का मुहताज नहीं है। वे महान विचारक, विख्यात वक्ता और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे जो सन् १८९३ ई. के शिकागो विश्व धर्म संसद में हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व किया और पश्चिमी दुनियाँ में हिन्दू धर्म का लोहा मनवाया। स्वामी विवेकानंद का जीवन-वृत्त, एक प्रेरणादायक कथा है जिसमें भारत के इस महान संत और समाज सुधारक की उपलब्धियों एवं विचारधारा का विस्तृत विवरण मिलता है। उनका जीवन न केवल उनके समय के लोगों के लिए बल्कि आज के समाज के लिए भी एक मार्गदर्शक के रूप में है।
संक्षिप्त जीवन परिचय:
जन्म: १२ जनवरी सन् १८६३ ई. कोलकाता, भारत
बचपन का नाम: नरेन्द्रनाथ दत्त
पिता का नाम: विश्वनाथ दत्त, हाइकोर्ट के प्रसिद्ध वकील
माता का नाम: भुवनेश्वरी देवी
दादा का नाम: दुर्गाचरण दत्त, संस्कृत और फारसी के विद्वान, जो बाद में साधु बन गए।
शिक्षा: प्रेसीडेंसी कालेज, कोलकाता
धर्म: हिन्दू धर्म
आध्यात्मिक गुरु: रामकृष्ण परमहंस
दर्शन: अद्वैत वेदांत
साहित्यिक रचनायें: बहुत सी रचनाएं है, जिनमें प्रमुख- राजयोग, कर्मयोग, भक्तियोग, ज्ञानयोग, मेरा गुरु तथा कोलंबो से अल्मोड़ा तक व्याख्यान, हैं।
मृत्यु: ४ जुलाई सन् १९०२ ई. बेलूर मठ (उनके शिष्यों के अनुसार, उनकी मृत्यु ध्यान करते समय मस्तिष्क में रक्त वाहिका के फटने से हुई)
संस्थापक: रामकृष्ण मिशन, रामकृष्ण मठ, वेदांत सोसाइटी आफ न्यूयॉर्क।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा-दीक्षा:
स्वामी विवेकानंद का जन्म १२ जनवरी सन् १८६३ ई. में कोलकाता के एक बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ था। उनका जन्मदिन भारत में "राष्ट्रीय युवा दिवस" के रूप में मनाया जाता है। उनका बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। उनके पिता, विश्वनाथ दत्त, कलकत्ता हाई कोर्ट के एक प्रसिद्ध वकील थे, और उनकी माता, भुवनेश्वरी देवी, एक बहुत ही धार्मिक महिला थीं। नरेंद्रनाथ के जीवन में उनके माता-पिता का गहरा प्रभाव था, जिसने उनके व्यक्तित्व को वृहद् आकार दिया। विवेकानंद के माता-पिता की दस संतानें हुईं, जिसमें केवल चार ही जीवित बच पाईं। विवेकानंद, छठे नंबर की संतान थे। उन्होंने शादी नहीं की।
नरेंद्रनाथ बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे। उनका आत्मचिंतन और आध्यात्मिकता की ओर झुकाव शुरू से ही था। उनकी शिक्षा महानगर के स्कूलों में हुई। वे एक मेधावी छात्र थे। सन् १८८१ ई. में उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया, जहाँ उन्होंने पाश्चात्य दर्शन, इतिहास और विज्ञान का अध्ययन किया। नरेंद्रनाथ का मन जिज्ञासु था। वे सदा ही सत्य की खोज में लगे रहते थे, और उनकी यही खोज उन्हें उनके आध्यात्मिक गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस के पास खींच ले आई।
रामकृष्ण परमहंस से भेंट:
सन् १८८१ ई. में ही नरेंद्रनाथ की रामकृष्ण परमहंस से पहली बार मुलाकात सुरेन्द्र नाथ मित्रा के घर पर हुई। नरेंद्रनाथ उनके सरल और व्यावहारिक ज्ञान से बहुत प्रभावित हुए। रामकृष्ण के साथ उनकी यह मुलाकात, उनके जीवन का एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ, जिसने उनके जीवन की दिशा को बदल दिया।
रामकृष्ण परमहंस के संपर्क में आने के बाद नरेंद्रनाथ ने अपने जीवन का असली उद्देश्य पहचान लिया। रामकृष्ण परमहंस का शिष्य बनने के बाद उन्होंने ध्यान और साधना के गहरे अनुभव किए, जो उनके जीवन के मूलभूत सिद्धांत बने। नरेन्द्रनाथ का विवेकानंद नाम, राजस्थान के शेखावाटी अंचल स्थित खेतड़ी के राजा अजित सिंह ने दिया था। रामकृष्ण की मृत्यु के बाद विवेकानंद ने अपने गुरु के संदेश को फैलाने का संकल्प लिया और इसके लिए उन्होंने अपने जीवन को पूर्ण रूप से समर्पित कर दिया।
भारत भ्रमण और आध्यात्मिक यात्रा:
स्वामी विवेकानंद ने सन् १८८८ ई. में एक सन्यासी के रूप में भारत भ्रमण पर निकल पड़े। उन्होंने देश के विभिन्न भागों का भ्रमण किया। उन्होंने भारतीय संस्कृति, धर्म के साथ-साथ सामाजिक समस्याओं और कुरीतियों को भी गहराई से समझा। उन्होंने देखा कि भारत में गरीबी, अशिक्षा और धार्मिक कट्टरता जैसी समस्याएं व्याप्त थीं। इन यात्राओं ने उनके विचारों को और अधिक परिपक्व किया और उन्हें एक मजबूत राष्ट्रवादी और समाज सुधारक के रूप में स्थापित किया।
शिकागो विश्व धर्म-महासभा में भाग लेना:
सन् १८९३ ई. में स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में विश्व धर्म महासभा में भाग लिया, जहां उन्होंने भारतीय संस्कृति और हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व किया। ११ सितंबर सन् १८९३ ई. को शिकागो में दिए गए उनके उद्घाटन भाषण ने उन्हें रातोंरात विश्व प्रसिद्ध बना दिया। उन्होंने "अमेरिका के भाइयों और बहनों" के साथ अपना भाषण शुरू किया, जिसने उन्हें तुरंत श्रोताओं के बीच लोकप्रिय बना दिया। उन्होंने अमेरिका वासियों को हिन्दू धर्म से परिचित करवाया। उन्होंने धर्म महासभा में अपने व्याख्यान से वहाँ ऐसा प्रभाव छोड़ा कि एक अमेरिकी अखबार ने उन्हें उस विश्व धर्म संसद में "सबसे महान व्यक्ति" के रूप में व्यक्त किया।
विवेकानंद ने अपने भाषणों के माध्यम से वेदांत और भारतीय आध्यात्मिकता के सिद्धांतों को पश्चिमी देशों के सामने रखा और उनकी प्राचीनता और सार्वभौमिकता को प्रमाणित किया। उनका संदेश था कि सभी धर्म सच्चे हैं और मानवता की सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है। वे विश्व धर्म महासभा के माध्यम से हिन्दू धर्म और भारतीय संस्कृति की महत्ता को समझाने में सफल हुए।
रामकृष्ण मिशन की स्थापना:
स्वदेश लौटने के बाद, स्वामी विवेकानंद ने १ मई सन् १८९७ ई. में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जिसका उद्देश्य धार्मिक और सामाजिक सुधारों को बढ़ावा देना था। इस मिशन का मुख्यालय कोलकाता के बेलूर में है। इसका उद्देश्य सेवा, शिक्षा और धर्म का प्रचार-प्रसार करना था। इस मिशन के माध्यम से उन्होंने समाज की सेवा के साथ-साथ भारत के युवाओं को प्रेरित करने का काम किया। रामकृष्ण मिशन ने शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण और समाज सेवा के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण कार्य किए। स्वामी विवेकानंद के अनुसार, धर्म केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि इसका उद्देश्य मानवता की सेवा होना चाहिए।
दर्शन और विचारधारा:
स्वामी विवेकानंद का दर्शन वेदांत पर आधारित था, जिसमें अद्वैतवाद की प्रमुख भूमिका थी। उन्होंने मानवता को ईश्वर का प्रतिरूप माना और यह विश्वास किया कि हर इंसान में ईश्वर का निवास है। उनके विचारों में कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग और राजयोग की संपूर्णता थी। विवेकानंद ने कर्म को विशेष महत्व दिया और कहा कि व्यक्ति को अपने कर्मों के माध्यम से समाज और राष्ट्र की सेवा करनी चाहिए। उन्होंने सच्चे धार्मिकता को परिभाषित करते हुए कहा कि वह व्यक्ति ही सच्चा धार्मिक है जो दूसरों के दुःख और समस्याओं को समझता है और उन्हें दूर करने का प्रयास करता है।
विवेकानंद के विचारों में शिक्षा का भी विशेष महत्व था। उन्होंने कहा कि "शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति के भीतर की पूर्णता को प्रकट करना है।" उनका मानना था कि शिक्षा केवल जानकारी प्रदान करना नहीं है, बल्कि इससे व्यक्ति के चरित्र, आत्म-संयम और आत्म-सम्मान का विकास होना चाहिए। उन्होंने भारतीय शिक्षा प्रणाली में सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया और इसे समाज और देश के विकास के लिए आवश्यक बताया।
समाज सुधारक के रूप में उनकी भूमिका:
स्वामी विवेकानंद ने भारतीय समाज में व्याप्त अनेक बुराइयों को समाप्त करने के लिए आवाज उठाई। उन्होंने जाति प्रथा, बाल विवाह, महिलाओं की स्थिति, और धार्मिक अंधविश्वासों के खिलाफ संघर्ष किया। उनका मानना था कि जब तक समाज में सुधार नहीं होगा, तब तक देश का विकास संभव नहीं है। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा और सशक्तिकरण पर भी जोर दिया और कहा कि "महिलाओं के बिना कोई भी देश उन्नति नहीं कर सकता।" उन्होंने नारी को शक्ति स्वरूपा माना और उनके अधिकारों के लिए संघर्ष किया। स्वामी विवेकानंद का यह दृढ़ विश्वास था कि सामाजिक न्याय और समानता ही राष्ट्र की सच्ची उन्नति के मार्ग हैं।
अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव और यात्राएं:
शिकागो धर्म महासभा के बाद, स्वामी विवेकानंद ने पश्चिमी देशों में भारतीय धर्म और संस्कृति का प्रचार किया। उन्होंने अमेरिका और यूरोप में वेदांत समाज की स्थापना की और वहां के लोगों को भारतीय योग, ध्यान और आध्यात्मिकता से परिचित कराया। उन्होंने पश्चिमी समाज में भारतीय आध्यात्मिकता और दर्शन के महत्व को समझाया। उनका मानना था कि पश्चिमी समाज विज्ञान और प्रौद्योगिकी में आगे है, जबकि भारतीय समाज आध्यात्मिकता में समृद्ध है। इसलिए, दोनों समाजों को एक दूसरे से सीखने की जरूरत है। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में भी विदेश यात्राएं कीं और भारतीय संस्कृति का प्रसार किया।
जीवन के अंतिम दिन और योगदान:
स्वामी विवेकानंद का जीवन बहुत छोटा था, लेकिन उनके विचार और कार्य आज भी जीवंत हैं। ४ जुलाई सन् १९०२ ई. में मात्र ३९ वर्ष की आयु में उन्होंने बेलूर मठ, कोलकाता में महासमाधि ले ली। उनकी मृत्यु के बाद भी, उनके विचारों और कार्यों का प्रभाव भारतीय समाज और विश्व स्तर पर बना हुआ है। उनके द्वारा स्थापित रामकृष्ण मिशन आज भी उनके आदर्शों को आगे बढ़ा रहा है और समाज सेवा के कार्यों में संलग्न है। विवेकानंद के विचार और शिक्षाएं न केवल भारत बल्कि विश्व भर में लोगों को प्रेरित करती हैं। उन्होंने मानवता की सेवा, धार्मिक सहिष्णुता, और शिक्षा के महत्व पर जोर दिया और समाज को यह सिखाया कि धर्म का उद्देश्य केवल व्यक्तिगत मोक्ष नहीं, बल्कि समाज और मानवता की सेवा है।
स्वामी विवेकानंद के विचारों की महत्ता:
स्वामी विवेकानंद के विचार और शिक्षाएं भारत के युवाओं के लिए आज भी महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने भारतीय समाज में आत्म-सम्मान और आत्म-विश्वास का संचार किया और कहा कि हर व्यक्ति में असीम शक्ति है, जिसे पहचानने और विकसित करने की आवश्यकता है। आज के समय में, जब भारतीय समाज और विश्व कई चुनौतियों का सामना कर रहा है, विवेकानंद के विचार हमें सही दिशा दिखा सकते हैं। उनके विचारों में एकता, भाईचारा, और वैश्विक शांति का संदेश है, जो आज के वैश्विक समाज के लिए अत्यंत आवश्यक है। स्वामी विवेकानंद का जीवन और उनकी शिक्षाएं हमें यह सिखाती हैं कि कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य और आत्म-विश्वास के साथ आगे बढ़ना चाहिए और समाज की सेवा के प्रति समर्पित रहना चाहिए।
स्वामी विवेकानंद के अनमोल वचन:
उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।
तुम जो सोचते हो, वही हो जाते हो। अगर तुम खुद को कमजोर सोचते हो, तो तुम कमजोर हो जाओगे, अगर तुम खुद को ताकतवर सोचते हो, तो तुम ताकतवर हो जाओगे।
एक समय में एक काम करो, और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उस काम में डाल दो।
हम वही हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है, इसलिए इस बात का ध्यान रखें कि आप क्या सोचते हैं। शब्द गौण हैं, विचार रहते हैं, वे दूर तक यात्रा करते हैं।
जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते, तब तक आप भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते।
जो सत्य है, उसे साहसपूर्वक बोलो, उसके परिणाम की चिंता मत करो।
सफलता का रहस्य यह है कि आप उस बात के प्रति सच्चे रहो, जिसमें आप विश्वास करते हो।
आपके सामने दो विकल्प हैं: पहला, एक पत्थर की तरह पड़े रहो, दूसरा, कुछ कर दिखाओ।
ज्ञान का प्रकाश अज्ञानता के अंधकार को दूर करता है।
निष्कर्ष:
स्वामी विवेकानंद का जीवन एक उत्कृष्ट प्रेरणा का स्रोत है, जिसमें धर्म, सेवा, और राष्ट्र निर्माण के गहन संदेश निहित हैं। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि असंभव कुछ भी नहीं है, और आत्म-विश्वास, धैर्य, तथा सेवा की भावना से हम किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। वे भारतीय संस्कृति और धर्म के महान दूत थे, जिन्होंने अपने विचारों से न केवल भारत को बल्कि पूरे विश्व को प्रभावित किया। उनके विचार आज भी हमें प्रेरित करते हैं और समाज, राष्ट्र, और मानवता के प्रति हमारे कर्तव्यों की याद दिलाते हैं। स्वामी विवेकानंद का जीवन इस बात का प्रमाण है कि सच्चा धर्म वही है, जो मानवता की सेवा में निहित है, और उनका जीवन हमें अपने भीतर की शक्ति को पहचानने और उसे समाज एवं राष्ट्र की भलाई के लिए उपयोग करने का संदेश देता है। उनके विचार और शिक्षाएं आने वाली पीढ़ियों को मार्गदर्शन प्रदान करती रहेंगी।
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