प्रस्तावना
मन की शांति, मन में सन्तोष और सुख की अवधारणा है। मन की ऐसी स्थिति जिससे संतुष्टि, आराम, सहजता और निश्चिंतता का वातावरण बने। एक ऐसी उपलब्धि, जिसे प्राप्त करके और कुछ भी पाने की इच्छा न रहे, उसे मानसिक शांति कहते हैं।
चाणक्य के अनुसार, “शांति से बढ़कर कोई तप नहीं, संतोष से बढ़कर कोई सुख नहीं, तृष्णा से बढ़कर कोई रोग नहीं, और दया से बढ़कर कोई धर्म नहीं”।
शांति की चाह तो हम सभी रखते हैं पर
शांति की प्राप्ति का उपाय बहुत कम लोग ही करते हैं। ज्यादातर लोग अनावश्यक
इच्छाओं को लेकर अशांत रहते हैं। शांति के लिए अनावश्यक इच्छाओं का त्याग करना
चाहिए। इस विषय पर एक छोटी सी कहानी प्रस्तुत की जा रही है।
मन की अशांति के प्रमुख कारण
असंतोष:
आज के समय में अधिकांश लोगों के पास, सुख के बहुत से संसाधन जैसे- धन-दौलत, बंगला, गाड़ी, नौकर-चाकर इत्यादि सब कुछ है पर शांति नहीं है। अब सवाल ये है कि शांति से जीने के लिए क्या चाहिए? और कितना चाहिए? माना कि कुछ लोगों के जीवन में जरूरी संसाधनों की कमी है, अभाव है। जिसके कारण, उनका अशांत होना लाजिमी है। परंतु जिनके पास सब-कुछ है, फिर भी अशांत हैं। शांति, किसी बाजार-हटिया में नहीं बिकती है कि पैसे लेकर गये और खरीद लाये।
शांति बाहर नहीं, हम-सबके भीतर ही है फिर भी हम सब शांति की खोज में बाहर उस हिरन की तरह भटकते-फिरते हैं, जिसकी नाभि में ही कस्तूरी होती है परन्तु वह उसकी खूशबू की तलाश में इधर-उधर भटकता है।
जैसा कि कबीर दास जी ने कहा है-
कस्तूरी कुंडल बसै, मृग ढूंढ़त बन मांहि। ऐसे घटि-घटि राम हैं, दुनियाँ देखत नाहिं।।
अनावश्यक इच्छाएँ :
शांति का शुभारंभ वहीं से होता है, जहाँ से महत्वाकांक्षा का अंत होता है। मन में चल रहे अनवरत विचार-प्रवाह और व्यर्थ की इच्छाओं को लेकर मन के उपर दबाव पड़ता है। जिसके कारण मानसिक तनाव होता है फलस्वरूप मन अशांत होता है।
मानसिक विकार:
ईर्ष्या, घृणा, द्वेष, लोभ, क्रोध जैसे न जाने कितने मानसिक विकार, कांटों की तरह मन के भीतर हर वक़्त चुभते हैं। ऐसी स्थिति में मन कैसे शांत हो सकता है? यदि मन की शांति चाहिए तो पहले हमें इन भीतरी कांटों को दूर करना होगा।
दूसरों से तुलना करना :
दूसरों के धन दौलत, शोहरत से अपने आप को दुखी और अशांत नहीं होना चाहिए।
- कम परिश्रम में अधिकाधिक पाने की आशा करना।
- मानसिक तनाव और आलस्य
मानसिक शांति के उपाय
- जो भी परिस्थिति है, उसे अपने लिए सर्वथा अनुकूल समझकर संतुष्ट रहें। मन में ऐसा भाव आते ही शांति का अनुभव होने लगेगा।
- मन की चिरस्थायी शांति के लिए अच्छा स्वास्थ्य रखें और प्राकृतिक जीवनशैली अपनाएँ।
- समस्याओं से डरकर भागने के बजाय उनका डटकर मुकाबला करें। हर समस्या, अपने आप में एक समाधान लेकर आती है, जीवन में एक सीख देती है।
- गलत विचारों से राग, द्वेष, ईर्ष्या, क्रोध, अहंकार आदि अनेक बुराइयों का जन्म होता है जो कि मानसिक तनाव और अशांति को जन्म देते हैं। अत: हमेशा अपने विचार उन्नत रखना चाहिए।
- शांति-अशांति, हमारे नजरिये पर भी निर्भर करती है। अतः शांति के लिए हमारे सकारात्मक नजरिये का होना आवश्यक है।
- जब भी मन अशांत हो तो प्रकृति की सुंदर वादियों में घूमने के लिए जाना चाहिए। वहाँ पर विद्यमान प्रकृति के खूबसूरत नजारों को निहारते हुए कुछ देर के लिए ही सही, उसी में खो जाना चाहिए। इससे असीम-शांति की अनुभूति होती है।
- दिनचर्या का जीवन की सुख-शांति पर गहरा प्रभाव पड़ता है। अतः सुखी जीवन और मन की शांति के लिए आदर्श दिनचर्या का पालन करें।
- गहरी नींद लेना चाहिए। इससे थकान मिट जाती है, मन शांत होता है और एक ताजगीभरे दिन की शुरुआत होती है।
- मन की चंचलता अशांति का एक प्रमुख कारण है। अतः मन की चंचलता पर लगाम लगाना चाहिए।
- सबसे प्रेम, सौहार्द्र और मित्रता का भाव रखना चाहिए।
- मनपसंद गीत-संगीत सुनना चाहिए।
मन की शांति के महत्व
- व्यक्ति का सर्वांगीण विकास होता है।
- सुख समृद्धि में बृद्धि होती है।
- रचनात्मक कार्य संपन्न होते हैं।
- प्रगति की संभवना बढ़ती है।
- सोच-विचार अच्छे और सकारात्मक होते हैं।
- स्वस्थ और सौहार्दपूर्ण वातावरण का सृजन होता
है।
- स्वास्थ्य अच्छा होता है।
- समाज में मान-मर्यादा बढ़ती है।
- शांति के बिना, कोई भी व्यक्ति, समाज या देश, उन्नति नहीं कर सकता है।
- जीने का मकशद पूरा होता है।
जीवन का असली मकशद शांतिपूर्ण ढंग से जीना है। शांति, हमारी संस्कृति एवं मानवीय संबंधों की व्याख्या है। मन की शांति, जब भी भंग होती है, आपसी संबंधों का संतुलन बिगड़ता है। अत: हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम खुद शांतिपूर्ण जीवन जीयेंगे और सभी के शांतिपूर्ण जीवन की मंगल कामना करेंगे। आज, लोगों के पास सुख-संसाधन तो बहुत हैं, परंतु शांति ही नहीं है। जो कि स्वस्थ जीवन के लिए परमावश्यक है। अशांत रहने की कोई खास वजह या परिस्थिति नहीं होती है और न ही जीवन में शांत होने का कोई शुभ दिन-मुहुर्त होता है। यह हमारे उपर निर्भर करता है कि हम कब और कैसे शांत हों? हम जिस हाल में, जिस परिस्थिति में हैं, वही हमें शांतिपूर्ण जीवन जीने के लिए सर्वथा अनुकूल है।
संबंधित पोस्ट; अवश्य पढ़ें-
*****
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें