16 जून 2024

जीवनशक्ति प्राण का विवेचन और प्राणायाम

जीवन शक्ति का आधार- प्राण: 

"प्राण" एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ "जीवन" या "जीवनशक्ति" होता है। "प्राण" शब्द सिर्फ श्वास की गतिविधि का संकेत नहीं करता, बल्कि यह शरीर, मन, और आत्मा की संपूर्ण जीवनशक्ति का प्रतीक है। सूक्ष्म दृष्टि से प्राण का अर्थ पूरे ब्रह्माण्ड में संव्याप्त ऐसी ऊर्जा जो जड़ और चेतन दोनों का समन्वित रूप है। सृष्टि में जो चैतन्यता दिखाई पड़ रही है, उसका मूल कारण प्राण है। यही संसार की उत्पत्ति का कारण है। यह ब्रह्माण्ड-व्यापी सूक्ष्म प्राणशक्ति ही है जिसे खींचकर योगीजन, अपने विकसित सूक्ष्म शरीर को धारण कर दिव्य क्षमता से संपन्न बनते हैं। प्राण-तत्व समस्त भौतिक एवं आध्यात्मिक संपदाओं का उद्गम केन्द्र है और सर्वत्र संव्याप्त है। उसमें से जो जितनी अंजलि भरने और पीने में समर्थ होता है, वह उसी स्तर का महामानव बनता चला जाता है। विचारों की प्रखरता एवं वाणी की तेजस्विता, प्राण-तत्व की बहुलता का परिचायक है। विचार इसी से सशक्त बनते तथा दूसरों पर प्रभाव छोड़ते हैं। प्राण-शक्ति की गरिमा सर्वोपरि होने और उसी के आधार पर निर्वाह करने के कारण, जीवधारियों को प्राणी कहते हैं। 


Source: You Tube

यौगिक शरीर-विज्ञान के अनुसार, मनुष्य का शरीर पंचकोषों (अन्मय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानीय तथा आनंदमय) से मिलकर बना है जो मनुष्य के विविध आयामों के लिए उत्तरदायी हैं। प्राणमय कोश, प्रमुख प्राणों से मिलकर बना है जिन्हें संयुक्त रूप से पंच-प्राण (प्राण, अपान, समान, उदान और व्यान) कहा जाता है। 

प्रकृति के अनुदान के रूप में हर प्राणी को मात्र उतनी ही प्राण-ऊर्जा मिलती है जिससे वह जीवित रहने के लिए आवश्यक साधन प्राप्त कर सकें। इसके अतिरिक्त प्राण-ऊर्जा यदि किसी को चाहिए तो उसके लिए उसे विशेष पुरुषार्थ करना होता है। उसे अपने संकल्प के बल से ब्रह्माण्ड-चेतना में से प्राण-ऊर्जा की अभीष्ट मात्रा प्रयत्न पूर्वक खींचनी पड़ती है और सांस के सहारे जिस तरह आक्सीजन समस्त शरीर में पहुँचायी जाती है ठीक उसी प्रकार प्राण-ऊर्जा की अतिरिक्त मात्रा भी पहुँचानी पड़ती है। इस प्रकार योग-शास्त्र के अनुसार विशेष क्रिया-प्रक्रियाओं के द्वारा उस अतिरिक्त प्राण को शरीर के विभिन्न अवयवों एवं संस्थानों तक पहुँचाना पड़ता है। इस प्रकार प्राण का आयाम बन पड़ता है और प्राणायाम का आध्यात्मिक प्रयोजन पूरा होता है। प्राणशक्ति की प्रक्रियाएं मात्र श्वास-प्रश्वासजन्य ऊर्जा उत्पादन, रासायनिक परिवर्तनों तक ही सीमित नहीं है। प्राणशक्ति के सामर्थ्य को परमाणु की नाभिकीय-विखंडन जैसा शक्तिशाली माना जाना चाहिए।  

जब प्राण शरीर से बाहर चला जाता है, तो शरीर मृत हो जाता है। इसलिए प्राण को जीवन की बुनियादी शक्ति माना जाता है।आयुर्वेद में प्राण वात, पित्त, और कफ के तीन दोषों के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्राण का संचारण शरीर में विशेष नलिकाओं के माध्यम से होता है। इन्हें 'नाड़ी' कहा जाता है, और ये प्राण को शरीर के विभिन्न हिस्सों में पहुंचाती हैं। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार प्राण, कुंडलिनी-शक्ति के रूप में शरीर के निम्नलिखित सात चक्रों या ऊर्जा केन्द्रों में चलकर जीवन देता है;  

Source: Quora

१. मूलाधार चक्र (Root Chakra):

स्थान: रीढ़ की हड्डी के नीचे और गुप्तांग के बीच
विशेषता: आत्म-सुरक्षा, भौतिकता, और जीवन की मूल जरूरतों से संबंधित।       
                         
२. स्वाधिष्ठान चक्र (Sacral Chakra):
स्थान: नाभि के नीचे
विशेषता: भावनात्मक तालमेल, जीवन में आनंद और सेक्सुअलिटी।      
                                                       
३. मणिपुर चक्र (Solar Plexus Chakra):
स्थान: नाभि के ऊपर
विशेषता: आत्म-विश्वास, शक्ति, और आत्म-मूल्य।    

४. अनाहत चक्र (Heart Chakra):
स्थान: हृदय क्षेत्र
विशेषता: प्रेम, क्षमा, और दया।     
                                 
५. विशुद्ध चक्र (Throat Chakra):
स्थान: कंठ क्षेत्र
विशेषता: सत्य और आवाज़ की अभिव्यक्ति।      
                  
६. आज्ञा चक्र (Third Eye Chakra):
स्थान: भौंहों के बीच
विशेषता: अंतर्दृष्टि, आध्यात्मिक जागरूकता और ज्ञान।   
     
७. सहस्रार चक्र (Crown Chakra):
स्थान: सिर के शिखर पर
विशेषता: आध्यात्मिक जागरूकता, एकता की अनुभूति, और ब्रह्म से जुड़ाव।

हर चक्र के उन्मुक्त होने या संतुलित होने से व्यक्ति के जीवन में संतुलन और सुख-शांति आती है, जबकि उनके अवरुद्ध रहने पर विभिन्न शारीरिक और मानसिक समस्याएं उत्पन्न होती हैं।

अध्यात्मिक उद्देश्य: प्राण को सही तरीके से संचारित और प्रबंधित करने से व्यक्ति अध्यात्मिक रूप से उन्नति प्राप्त कर सकता है। प्राणायाम और ध्यान से प्राण को संचालित किया जाता है, जिससे व्यक्ति की सोच में स्पष्टता और ध्यान में गहराई आती है।

प्राण का महत्व: बिना प्राण के, जीवन संभव नहीं होता। यह जीवन की वायुमंडलीय ऊर्जा है, जिसे हम श्वास के माध्यम से ग्रहण करते हैं। प्राण ही शरीर के सभी अंगों को स्वस्थ और ऊर्जावान बनाता है। प्राण से ही देह और ब्रह्माण्ड की सत्ता है और प्राण ही अदृश्य शक्ति से संपूर्ण सृष्टि का संचालन कर रहा है।                                                               

नियंत्रित-प्राण इतनी बड़ी सम्पदा है जिसके समक्ष संसार की सभी भौतिक संपदाएं छोड़ी जा सकती हैं। उस महाशक्ति से प्रकृति को भी वशीभूत किया जा सकता है। प्रकृति की अन्य शक्तियाँ, प्राण-संपन्न व्यक्ति की अनुगामी होती हैं। 

प्राणायाम: 

प्राणायाम दो शब्दों, प्राण + आयाम से मिलकर बना है। प्राण का शाब्दिक अर्थ है- "जीवन-शक्ति" और आयाम का अर्थ है- "विस्तार" सरल शब्दों में कहें तो, "प्राणायाम, सांस लेने और छोड़ने की एक तकनीक है जिसके प्रयोग से मन शांत, शुद्ध और संतुलित होता है।" 

स्वामी विवेकानंद की पुस्तक "राजयोग" के अनुसार, प्राण के यथार्थ तत्व को जानना और उसको संयत करने की चेष्टा ही प्राणायाम है। प्राणायाम का यथार्थ अर्थ है- फेफड़े की गति का रोध करना।                                                    देह के सारे अंगों को प्राण अर्थात् जीवनशक्ति से भरा जा सकता है। और जब तुम इसमें कृतकार्य होगे तो संपूर्ण शरीर तुम्हारे वश में हो जायेगा, देह की समस्त व्याधियाँ, सारे दुख, तुम्हारी इच्छा के अधीन हो जायेंगे। 

प्राणायाम के दौरान नाक से वायु को अंदर खींचकर फेफड़ों में भरना तथा आक्सीजन अंश को रक्त के द्वारा पूरे शरीर में पहुँचाना होता है। यह एक यौगिक अभ्यास है जिसमें श्वास को नियंत्रित किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य प्राण-शक्ति को संचारित करना और बढ़ावा देना है। यह सांस लेने और छोड़ने के विभिन्न तरीकों को शामिल करता है जिससे शरीर और मन को शुद्ध और संतुलित बनाया जाता है। प्राणायाम का अभ्यास शरीर, मन और आत्मा के बीच संतुलन स्थापित करने में मदद करता है।

प्राणायाम, प्राणधारण व प्राण-विनियोग की प्रक्रिया है, मात्र सांस खींचना और सांस छोड़ना नहीं। तालबद्ध प्राणायाम व प्राण-प्रयोग के आध्यात्मिक प्राणायामों में वाह्य कुंभक करना अनिवार्य है। पूरक (श्वास खींचकर फेफड़े में भरने की क्रिया), कुंभक (श्वास को अंदर रोकने की क्रिया) और रेचक (श्वास को बाहर छोड़ने की क्रिया) का सुगम समयानुपात 1:2:1 का है। 

प्राणायाम-साधना का लक्ष्य, प्राण-तत्व को जानना तथा उस पर नियंत्रण प्राप्त करना है। आज के वैज्ञानिक युग में मनुष्य बहुत सारी भौतिक सुख-सुविधाएं एवं विलासिता के साधन से संपन्न तो है परन्तु मन में शांति और सुकून नहीं है। वह विभिन्न प्रकार के शारीरिक रोगों और मानसिक तनाव से ग्रस्त रह रहा है। क्या बाहरी सुख-सुविधाएं मनुष्य के मन को स्थिरता और शांति प्रदान कर सकती हैं? अगर मनुष्य भीतर से शान्त नहीं होगा तो बाहर शांति को स्थापित नहीं कर पायेगा। मनुष्य के अंदर के नकारात्मक विचार, उसके अंतर्मन को अत्यंत व्यथित और विचलित कर देता है जिससे श्वास-प्रश्वास की गति भी तेज हो जाती है और शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता का ह्रास होता जाता है। इसके संपूर्ण समाधान के लिए चिकित्सा-शास्त्र के अलावा शरीर के भीतर निहित प्राण-शक्ति का सहारा लेना आवश्यक है क्योंकि प्राण-शक्ति ही हमारी जीवनशक्ति और रोग प्रतिरोधक शक्ति का आधार है। प्राणशक्ति को साधने और उसमें वृद्धि का उपाय प्राणायाम है। 

प्राणायाम के प्रकार:  

प्राणायाम के बहुत से प्रकार हैं, जिसमें सभी की अपनी विशेषताएं और लाभ हैं। यहाँ पर कुछ प्रमुख और सुगम प्राणायामों का विवरण संक्षिप्त रूप से दिया जा रहा है, जो निम्न है;

नाड़ी शोधन: इस अभ्यास से नाड़ियों की शुद्धि होती है। यह प्राणायाम, मस्तिष्क और भावनाओं को सही रखता है, चिंता, तनाव और अनिद्रा की समस्या से राहत मिलती है। इसे करने के लिए दाहिने हाथ की तर्जनी और मध्यमा अंगुली को ललाट के बीच में रखें। अंगुठे को दाहिनी नासिका के उपर और अनामिका को बायीं नासिका के उपर रखें। अब अंगुठे और तर्जनी अंगुली से दोनों नासिका को बारी-बारी से दबाते हुए गहरी सांस लें और छोड़ें। 

भास्त्रिका: इस प्राणायाम में तेजी से श्वास अंदर लिया जाता है और बाहर छोड़ा जाता है। यह ऊर्जा को बढ़ावा देने और मानसिक जागरूकता को बढ़ाने में सहायक है।

कपालभाति: इसमें तेजी से श्वास को बाहर किया जाता है और सांसों को बाहर फेकते समय पेट की मांसपेशियों को अंदर की तरफ धक्का देना होता है। इस क्रिया में आवश्यक सांस स्वत: अंदर जाती रहती है, जानबूझकर सांस अंदर लेने की आवश्यकता नहीं होती है। इससे चेहरे की कांति बढ़ती है। यह पाचन-तंत्र को मजबूती प्रदान करता है, वजन को कम करने में मदद करता है और विषैले पदार्थों को शरीर से बाहर निकालता है।

अनुलोम-विलोम: अनुलोम-विलोम प्राणायाम लोकप्रिय और लाभदायक प्राणायामों में से एक है। इस प्राणायाम में बायीं नासिका से गहरी सांस लेकर दायीं नासिका से छोड़ा जाता है फिर दायीं नासिका से गहरी सांस लेकर बायीं नासिका से छोड़ा जाता है। और यह क्रिया बार-बार दोहरायी जाती है। यह मन को शांत करने और तनाव को दूर करने में सहायक है।

भ्रामरी: इस प्राणायाम में दोनों हथेलियों से दोनों आंख और कान को बंद करके श्वास को नाक से अंदर भरते हैं। इसके उपरांत मुंह को बंद करके नासिका के उपरी हिस्से में भौंरे की गुंजन जैसी ध्वनि करते हुए श्वास को छोड़ते हैं। भ्रामरी प्राणायाम, मानसिक तनाव और चिंता को कम करने में मदद करता है। 

ओम का उच्चारण: यह सरल परंतु शक्तिशाली है। यह हृदय के स्वास्थ्य में मदद करता है। 

सीतली: यह प्राणायाम शरीर और मस्तिष्क को ठंडा करने के लिए किए जाते हैं। इसमें जीभ को थोड़ा बाहर निकाल कर उसे किनारों से उपर की तरफ एक नलिका के आकार में मोड़ना होता है। फिर उस नलिका के सहारे सांस अंदर खीचने के बाद मुंह बंद करके नाक से सांस छोड़ते हैं।

सूर्यभेदी प्राणायाम: इसमें श्वास को दाहिनी नाक से लिया जाता है और बायीं नाक से छोड़ा जाता है। इससे शरीर की गर्मी, मानसिक शांति और स्थिरता बढ़ती है। पाचन-तंत्र में सुधार होता है। 

प्राणायाम की विधि:

प्राणायाम योग का एक महत्वपूर्ण अंग है जिसमें श्वास-प्रश्वास के नियंत्रण की विधि बतायी जाती है। प्राणायाम की प्रक्रिया सीखने के लिए निम्नलिखित स्टेप्स का पालन करना चाहिए;

आसन: समतल और स्थिर जगह पर सुखासन, पद्मासन, सिद्धासन या बज्रासन में से अपनी सुविधानुसार किसी एक आसन पर बैठें। यदि आसन में बैठने में असुविधा हो तो आप कुर्सी पर बैठें परंतु आपकी पीठ और गर्दन सीधा होना चाहिए।

नासिका और मुख की सफाई: नाक को अच्छे से साफ करें ताकि श्वास आसानी से चल सके।

ध्यान और संकल्प: मन को शांत करें और पूरा ध्यान अपने श्वास-प्रश्वास की क्रिया पर केन्द्रित करें। श्वास अंदर लेते समय ध्यान करें कि प्रत्येक श्वास के साथ आपके भीतर सकारात्मकता, सद्गुण, अच्छाई, प्राण-ऊर्जा, आरोग्यता का समावेश हो रहा है। श्वास बाहर छोड़ते समय मन में ध्यान करें कि संपूर्ण शरीर से रोग-व्याधि, नकारात्मकता, बुराईयां दूर हो रही हैं।

अभ्यास की अवधि: प्रारंभ में, प्रत्येक प्राणायाम को केवल कुछ ही समय के लिए करें और धीरे-धीरे उसे बढ़ाएं। 

समाप्ति: प्राणायाम के अभ्यास के बाद, कुछ समय तक शांत बैठकर या शवासन में लेटकर, शरीर और मन के अंदर हो रहे बदलावों को महसूस करें।

प्राणायाम कब करना चाहिए? 

अधिक लाभ पाने के लिए प्राणायाम को निम्नलिखित समय में करना अच्छा माना जाता है:

सुबह का समय, विशेष रूप से सूर्योदय से पहले, प्राणायाम के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है। इस समय का वायुमंडल शुद्ध और ताजगी से भरा होता है, जिससे प्राणायाम के अभ्यास से अधिक लाभ मिलता है। सूर्यास्त के समय पर भी प्राणायाम किया जा सकता है।

खाने के बाद कम से कम २-३ घंटे का अंतराल होना चाहिए। भोजन के तुरंत बाद प्राणायाम नहीं करना चाहिए।

जब आप आराम महसूस करते हैं और आपका मन शांत है, उस समय प्राणायाम करना अधिक फायदेमंद है।

प्राणायाम किसे नहीं करना चाहिए:

  • जिनका अभी हाल ही में कोई सर्जरी हुआ हो।
  • गर्भवती महिलाओं को बिना डॉक्टर या प्रशिक्षित योग-गुरु की सलाह के कुछ विशेष प्राणायाम नहीं करने चाहिए।
  • उच्च रक्तचाप, हृदयरोग या किसी अन्य गंभीर बीमारी से पीड़ित व्यक्तियों को भी प्राणायाम करने से पहले डॉक्टर से सलाह अवश्य लेनी चाहिए।
  • जो लोग बहुत अधिक उम्र के हों या किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित हों, उन्हें भी प्राणायाम नहीं करना चाहिए या फिर चिकित्सक या योग-प्रशिक्षक के परामर्श से करना चाहिए। 
  • अगर प्राणायाम करते समय असहजता या परेशानी महसूस होती है, तो उस समय प्राणायाम का अभ्यास तुरंत रोक देना चाहिए। 

प्राणायाम से जुड़ी सावधानियाँ:

प्राणायाम से जुड़ी सावधानियां बहुत महत्वपूर्ण हैं। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण सावधानियां दी गई हैं;

  • प्राणायाम के अभ्यास को शुरू करते समय, किसी अनुभवी गुरु या प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में करें।
  • प्राणायाम की तकनीक, सही होनी चाहिए। गलत तकनीक से हानि हो सकती है। 
  • शुद्ध, शांत और हवा का आवागमन निर्बाध रूप से होने वाले जगह पर प्राणायाम करें। प्रदूषित और शोर-शराबे वाली जगह पर प्राणायाम न करें।
  • प्राणायाम करने से पहले भारी भोजन नहीं करना चाहिए। आदर्श रूप से, प्राणायाम सुबह खाली पेट करना चाहिए।
  • अधिक समय तक प्राणायाम करने का प्रयास न करें। धीरे-धीरे प्राणायाम के समय और उसकी गहराई में बढ़ोतरी करें।
  • किसी भी प्रकार की शारीरिक असहजता या दर्द की स्थिति में प्राणायाम करना तुरंत रोक दें।

इन सावधानियों का पालन करते हुए प्राणायाम से अधिकतम लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

प्राणायाम के स्वास्थ्य लाभ:

प्राणायाम रक्तचाप और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में मदद करता है। हृदय के स्वास्थ्य के लिए प्राणायाम बेहतर और सुरक्षित उपाय है। इसके अलावा और कई तरह से भी स्वास्थ्य-लाभ प्राप्त होते हैं। 

  • शांति और संतुलन स्थापित होता है तथा मानसिक तनाव दूर होता है।
  • संवेदनशीलता और समझदारी में वृद्धि होती है।
  • फेफड़ों की कार्यक्षमता बढ़ती है और श्वसन संचारण में सुधार होता है।
  • स्वास्थ्य में सुधार होता है। यह हृदय को मजबूती प्रदान करता है और उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने में मदद करता है।
  • पाचनशक्ति बढ़ती है। 
  • तनाव, चिंता और अवसाद  कम होता है।
  • शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता में भी वृद्धि होती है।
  • यह हार्मोनल संतुलन को बनाए रखने में भी सहायक होता है।
  • शरीर में ऊर्जा-स्तर बढ़ता है, जिससे दिनभर की थकान कम होती है।
  • इससे नींद की गुणवत्ता में सुधार होता है। 
  • प्राणायाम के अभ्यास से सांस लेने की गहराई में वृद्धि होती है, जिससे अधिक मात्रा में ऑक्सीजन शरीर के विभिन्न अंगों तक पहुंचती है।
  • प्राणायाम, ध्यान की प्रक्रिया में सहायक है, जिससे मन एकाग्र और स्थिर रहता है।
  • यह मस्तिष्क की सक्रियता को बढ़ाने में मदद करता है और यादाश्त में सुधार करता है।
  • शरीर से अनावश्यक तत्वों और विषैले पदार्थों को बाहर निकालने में मदद होती है।
  • मनुष्य मनोबल-संपन्न, स्वस्थ एवं दीर्घायु होता है। 

प्राणायाम का अभ्यास करने से जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि इसे सही तरीके से और नियमित रूप से किया जाय।

संबंधित पोस्ट:

सौजन्य: 
१. युग निर्माण योजना प्रेस, गायत्री तपोभूमि, मथुरा द्वारा प्रकाशित पुस्तक "प्राणायाम से आधि-व्याधि निवारण" 
२. गूगल

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