मानव-समाज रिश्तों, भावनाओं और व्यवहार के गहरे तानों-बानों से मिलकर बना है। इंसान भावनात्मक प्राणी है और आपसी संबंध उसके जीवन की नींव माने जाते हैं। लेकिन इन्हीं संबंधों के भीतर एक कड़वा सच भी छिपा होता है, और वो है- स्वार्थ। यह मानवीय स्वभाव का हिस्सा है, और इसे समझना जीवन को संतुलित बनाने में मदद करता है।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस के किष्किन्धा कांड में यह चौपाई लिखा है- "सुर नर मुनि सबकै यह रीती। स्वारथ लागि करहिं सब प्रीति।।" इसका अर्थ है—दुनियाँ में सभी लोग प्रेम, मित्रता या किसी भी तरह के संबंध अपने नीहित स्वार्थ के कारण ही निभाते हैं। यह एक कठोर सत्य है, लेकिन जीवन की वास्तविकता को सबसे स्पष्ट रूप में दर्शाता है।
तुलसीदास जी के कथन- "स्वारथ लागि करहिं सब प्रीति" के भावार्थ को यहाँ सरल भाषा में समझें। मानव-व्यवहार पर आधारित यह ब्लॉग जीवन की कड़वी सच्चाई से आपको रूबरू कराता है।
१. गोस्वामी तुलसीदास जी की चौपाई और अर्थ:
उमा राम सम हत जग माहीं। गुरु पितु मातु बंधु प्रभु नाहीं॥सुर नर मुनि सब कै यह रीती। स्वारथ लागि करहिं सब प्रीति॥
चौपाई का अर्थ: हे पार्वती! इस संसार में प्रभु श्रीराम के समान हित करने वाला गुरु, पिता, माता, बंधु और स्वामी कोई नहीं है। देवता, मनुष्य और मुनि सबकी यह रीति है कि सभी अपने स्वार्थ के वशीभूत ही एक दूसरे से प्रेम करते हैं।
व्यवहारिक व्याख्या: कोई सहारे के लिए प्रेम करता है तो भावनात्मक समर्थन के लिए दोस्ती करता है। कोई सामाजिक सुरक्षा के लिए रिश्तेदारी निभाता है तो व्यापारिक लाभ के लिए संबंध बनाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि दुनियाँ में ज्यादातर संबंध किसी न किसी स्वार्थ पर आधारित होते हैं।
भावार्थ: गोस्वामी तुलसीदास जी ने इस चौपाई के माध्यम से मानव समाज के लिए यह संदेश दिया है- केवल परमात्मा ही हमसे नि:स्वार्थ प्रेम करता है एवं अपनी कृपा की बरसात करता है। बाकी सभी किसी न किसी स्वार्थ-वश एक दूसरे से प्रेम करते हैं। यदि हम सब एक दूसरे से नि:स्वार्थ भाव से प्रेम करें तो हमारा घर-परिवार भी स्वर्ग बन जाय और वहीं परमात्मा की प्राप्ति हो जाय।
२. क्या हर रिश्ता स्वार्थ से भरा होता है?
इसका उत्तर काफी हद तक “हाँ” है। स्वार्थ शब्द दो अक्षरों, स्व + अर्थ से मिलकर बना है, जिसका तात्पर्य है- "अपना हित।" लेकिन यह जरूरी नहीं कि वह स्वार्थ हमेशा बुरा या नुकसानदायक ही हो।
रिश्तों में स्वार्थ होना पूरी तरह गलत नहीं है, और न ही इसका मतलब हमेशा नकारात्मक होता है। इसे बेहतर समझने के लिए कुछ पहलुओं को देखना ज़रूरी है। जैसे—
- बच्चे, माता-पिता के प्यार और सुरक्षा पर निर्भर होते हैं।
- माता-पिता अपने बच्चों से यह उम्मीद रखते हैं कि वे बुढ़ापे में उनका सहारा बनेंगे।
- दोस्तों से हमें भावनात्मक-साथ, समझ और हौसला चाहिए होता है।
- जीवनसाथी में हम भरोसा, प्रेम और सहयोग ढूँढते हैं।
इन सबमें स्वार्थ तो है, पर यह स्वस्थ स्वार्थ है। पूरी तरह निःस्वार्थ होना, कहने के लिए हो सकता है पर वास्तविक नहीं। लेकिन हर रिश्ता “केवल स्वार्थ” से चल भी नहीं सकता। सच्चा और संतुलित रिश्ता वही है जहाँ स्वार्थ के साथ-साथ समझ, समर्पण और देने की भावना मौजूद हो।
३. आज के समय में इस चौपाई की प्रासंगिकता:
आज का दौर तेजी से बदल रहा है। जहाँ सभी लोग व्यस्त हैं, लक्ष्य-उन्मुख हैं, और प्रतिस्पर्धी वातावरण में जी रहे हैं। ऐसे समय में स्वार्थ की भूमिका और भी स्पष्ट दिखाई देती है।
📌 रिश्तों में दूरियाँ बढ़ रही हैं। लोग भावनाओं से अधिक अपने स्वार्थ और लाभ को प्राथमिकता दे रहे हैं।
📌 सोशल मीडिया ने वास्तविकता से हटकर बनावटीपन और दिखावे को बढ़ावा बढ़ा दिया है। इसलिए रिश्तों में भावनाएँ कम और 'इमेज' की जरूरत ज्यादा दिखती है।
📌 आज रिश्तों में व्यवसायिकता आ गयी है। यहाँ संबंध पूरी तरह से “म्यूचुअल बेनिफिट” पर आधारित होते हैं।
📌 नौकरी और करियर में किसी की मदद इसलिए की जाती है ताकि भविष्य में उसे भी मदद मिल सके।
४. स्वार्थ की पहचान कैसे करें?
यह समझना महत्वपूर्ण है कि सामने वाला व्यक्ति हमसे किस भावना से जुड़ा है—सच्ची भावना से या केवल अपने लाभ के लिए। इसकी पहचान के लिए निम्न बातों को समझना जरुरी है-
१. यदि कोई व्यक्ति आपसे सिर्फ तब ही संपर्क करता है जब उसका आपसे कोई काम होता है, तो यह स्वार्थ का संकेत है।
२. यदि रिश्ते में संतुलन न हो, और एकतरफा हो यानी सिर्फ एक ही व्यक्ति प्रयास करे—तो यह रिश्ता स्वार्थपूर्ण है।
३. क्या वह रिश्ता, "मतलब निकलते ही न पहचानने वाला है?"
४. क्या व्यक्ति आपकी भावनाओं को समझने से ज्यादा अपनी सुविधा और लाभ को प्राथमिकता देता है?
ये सभी पहलू इस बात के प्रमाण हैं कि रिश्ता भावनात्मक नहीं, बल्कि स्वार्थ के आधार पर चल रहा है।
५. स्वार्थ को समझना जरूरी क्यों है? जब हम स्वार्थ को गहराई से समझने लगते हैं तब-
- अपेक्षाएँ कम होती हैं।
- मानसिक तनाव घटता है।
- हम जीवन में सही लोगों का चयन कर पाते हैं।
- हम खुद पर अधिक ध्यान देना सीखते हैं।
- हम भावुकता के नाम पर ठगे जाने से बचते हैं।
- हम अधिक संतुलित और परिपक्व बनते हैं।
६. क्या 'स्वार्थ' हर हाल में बुरा है?—एक व्यवहारिक नजरिया
स्वार्थ तब बुरा नहीं होता, जब आप-
- किसी को दुख पहुँचाए बिना अपनी भलाई चाहते हैं।
- अपने लक्ष्य, स्वास्थ्य, करियर और मानसिक शांति को प्राथमिकता देते हैं।
- किसी से सहायता तो चाहते हैं परंतु बदले में उन्हें भी कुछ देते हैं।
समस्या तब पैदा होती है जब-
- स्वार्थपन की अति हो जाए।
- लालच बन जाए।
- किसी को नुकसान पहुंचाकर अपना हित साधा जाए।
- भावनाओं का उपयोग सिर्फ अपने लाभ के लिए ही किया जाए।
७. जीवनोपयोगी सीख:
- रिश्तों में आँख मूँदकर विश्वास न करें। भावनाओं के साथ बुद्धि भी लगाए।
- “अपेक्षाओं में संतुलन” रखें। अत्यधिक उम्मीदें दुख का कारण बनती हैं।
- स्वार्थी व्यक्तियों को पहचानें और अपनी ऊर्जा उन पर खर्च न करें।
- सच्चे और नि:स्वार्थ लोगों की कद्र करें। वे जीवन की सबसे कीमती संपत्ति होते हैं।
- स्वयं भी संतुलित स्वार्थ रखें। अपनी सीमाएँ तय करें, ताकि कोई आपको भावनात्मक रूप से उपयोग न करे।
- संबंधों में पारदर्शिता रखें। स्पष्टता, संबंधों को मजबूत बनाती है।
८. स्वार्थ को संभालते समय किन बातों का ध्यान रखें?
- भावनाओं को नियंत्रण में रखें।
- किसी भी संबंध को अति-महत्व न दें।
- दुनियाँ के व्यवहार को व्यावहारिक नजरिए से देखें।
- अपना मन साफ रखें और बदले में ईमानदारी की ही अपेक्षा रखें।
- जो लोग सच्चे हैं, उन्हें सम्मान दें।
हम स्वार्थ को जितना गहराई से समझेंगे, जीवन उतना ही सरल और शांत होगा।
९. रिश्तों को स्वस्थ कैसे रखें?
भले ही दुनियाँ स्वार्थपरता से भरी हो, लेकिन हम-आपको इसी दुनियाँ और समाज में रहना है, इसलिए अपने रिश्तों को निम्न तरीके से बेहतर बना सकते हैं:
✔ सच्चाई रखें।
✔ दूसरे की जरूरतों का सम्मान करें।
✔ बदले में कुछ पाने की अपेक्षा न रखें।
✔ विश्वास बनाए रखें।
✔ जहां संबंध विषाक्त हो रहे हों, वहाँ सीमाएँ तय करें।
जीवन में संतुलन ही सफलता का मूलमंत्र है।
१२. निष्कर्ष:
दुनियाँ स्वार्थ से जरूर चलती है, पर प्रेम का महत्व कभी खत्म नहीं होता। तुलसीदास जी की यह चौपाई हमारी आँखें खोलती है, हमें यथार्थ से परिचय कराती है, और जीवन के प्रति हमें परिपक्व नजरिया प्रदान करती है। स्वार्थ हमें यह नहीं सिखाता कि प्रेम या संबंध व्यर्थ हैं। बल्कि यह बताता है कि—"दुनियाँ कैसे चलती है? लोग कैसे व्यवहार करते हैं? और हमें खुद को कैसे संभालना चाहिए?"
यदि हम मानवीय-स्वभाव को गहराई से समझ लें, तो हम अधिक संतुलित, शांत और बेहतर जीवन जी सकते हैं।
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जवाब देंहटाएंThanks for reading article & putting comment.
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