18 अक्टूबर 2024

सर्वे भवन्तु सुखिनः (शान्ति-मंत्र)

"सर्वे भवन्तु सुखिनः" संस्कृत में सर्व-मंगल कामना-मंत्र है, एक महान शांति-प्रार्थना है, जो विश्व के हर व्यक्ति के सुख, शांति, संतुष्टि, आरोग्यता और समृद्धि की कामना करता है। इस मंत्र का अर्थ है, "सब सुखी हों।" शरीर का हर एक अंग शान्ति का अनुभव करे। यह मंत्र सामूहिक सुख और शांति की कामना का संदेश देता है। 

स्रोत: फेसबुक

भारतीय संस्कृति में "सर्वे भवन्तु सुखिनः" के संदेश का आशय केवल व्यक्तिगत सुख-शांति और संतोष से नहीं है, बल्कि इसमें सार्वभौमिक सुख, शांति, आरोग्यता, समानता और एकता की भावना नीहित है। यह श्लोक भारतीय अध्यात्मवाद और दर्शन का मूल है, जो मानव समाज को सह-अस्तित्व, करुणा और एकता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। इस श्लोक के स्रोत के विषय में अलग-अलग धारणाएँ है। कुछ सोशल साइट्स में इसका स्रोत "श्री गरुड़ पुराण"  तो कहीं पर "अथर्ववेद" बताया गया है। कहीं पर "तैतिरियोपनिषद" बताया गया है तो सोशल मीडिया के ही प्लेटफॉर्म "कोरा" में एक प्रश्न के उत्तर में बताया गया है कि यह श्लोक "वृहदारण्यक उपनिषद" से लिया गया है। खैर! यह कहीं से भी लिया गया हो, मतलब ये है कि इसका भाव बहुत गहरा है 

इस लेख के माध्यम से हम "सर्वे भवन्तु सुखिनः (शांति-मंत्र)" के अर्थ और समाज में इसकी महत्ता को उजागर करेंगे। 

१. "सर्वे भवन्तु सुखिनः, पूरा श्लोक और उसका आध्यात्मिक अर्थ:

ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। 

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत्।। 

।।ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥

श्लोक का अर्थ:

सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी सर्व-मंगलकारी घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।

।।ॐ शांति शांति शांति॥

आध्यात्मिक अर्थ:

प्राचीन भारतीय वेदों और उपनिषदों में इस तरह की प्रार्थनाओं का विशेष स्थान है, जिसमें विश्वभर के लोगों की सुख-शांति और समृद्धि की कामना की जाती है। यह मंत्र दर्शाता है कि किसी व्यक्ति या समूह का सच्चा सुख तभी संभव है जब हर व्यक्ति अपने आस-पास हो रही घटनाओं के प्रति अपना दृष्टिकोण सकारात्मक रखे। इसके अलावा, यह मंत्र यह भी संदेश देता है कि हमें अपने जीवन में स्वार्थ की भावना को त्याग कर परमार्थ-भाव से कार्य करना चाहिए। जब हम सबके कल्याण की कामना करते हैं, तब हमारे अंदर एक स्वाभाविक करुणा और प्रेम की भावना जागृत होती है, जो हमारे जीवन में भी अक्षुण्ण सुख-शांति और संतोष प्रदान करती है।

२. "सर्वे भवन्तु सुखिनः" मंत्र का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व:

सांस्कृतिक दृष्टिकोण से देखें तो भारतीय समाज में "सर्वे भवन्तु सुखिनः" एक बहुत ही शक्तिशाली शान्ति प्रदान करने वाला मंत्र है जिसका महत्व अत्यंत गहरा है। भारतीय संस्कृति सदा से ही "वसुधैव कुटुंबकम" की भावना पर आधारित रही है, जिसका अर्थ है कि संपूर्ण पृथ्वी एक परिवार है। इसी संदर्भ में "सर्वे भवन्तु सुखिनः" की भावना आती है, जहां हम केवल अपने परिवार और समाज की ही नहीं, बल्कि पूरी तरह से मानव-जाति के सुख-शांति, समृद्धि और कल्याण की कामना करते हैं। यह सिद्धांत आज के सामाजिक परिवेश में अत्यंत अव्यवस्थित है, जहां विश्व स्तर पर अन्य सभी चीजें जुड़ी हुई हैं।  इसलिए, अगर हम सर्वजन-हिताय की इच्छा रखते हैं, तो हमारे कर्म व्यक्तिगत हितों से उपर उठकर विश्व कल्याण हेतु होने चाहिए। 

३. वर्तमान समय में "सर्वे भवन्तु सुखिनः" की प्रासंगिकता:

आधुनिक समाज में जहां आत्मचिंतन और भौतिकवाद का प्रभाव बढ़ रहा है, वहाँ "सर्वे भवन्तु सुखिनः" का मंत्र और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। वर्तमान युग में लोग व्यक्तिगत सुख-सुविधा में इतने लीन हो गए हैं कि वे जनकल्याण की बात भूलते जा रहे हैं। ऐसे में यह प्रार्थना हमें याद दिलाती है कि समाज में हर व्यक्ति का सुखी होना जरूरी है और इसी से वसुधैव-कुटुंबकम और जगत-कल्याण का उद्देश्य पूर्ण हो सकेगा। दुनियाँ भर में बढ़ रहे संघर्ष, निराशा और अशांति के माहौल में यह शान्ति-मंत्र एक नई आशा की किरण के रूप में दिखाई देता है। कहने का तात्पर्य यह है कि अगर हम वास्तव में शांति और स्थिरता चाहते हैं, तो हमें सामूहिक रूप से प्रयास करना होगा और एक-दूसरे के कल्याण के लिए कार्य भी करना होगा। 

४. व्यक्तिगत एवं सामूहिक संतुलन:

आज के समय में जब हर व्यक्ति अपने निजी हितों और लक्ष्यों को साधने में लगा है, "सर्वे भवन्तु सुखिनः" हमें व्यक्तिगत और सामूहिक कल्याण के बीच एक संतुलन की आवश्यकता का संदेश देता है। यह मंत्र हमें सिखाता है कि व्यक्तिगत सुख में मग्न होकर हमें केवल मूक-दर्शक नहीं बनना होगा बल्कि इसे आत्मसात कर जीवन में बखूबी उतारना होगा। जब हम एक सामूहिक दृष्टिकोण से विचार करते हैं और सभी व्यक्तियों के लिए कल्याण की काम करते हैं, तो हमारे अंदर एक संतोष और पूर्णता की भावना उत्पन्न होती है। यही वह वास्तविक सुख है जिसकी प्राप्ति के लिए यह मंत्र हमें प्रेरित करता है।

५. शांति-मंत्र और पर्यावरण संतुलन:

"सर्वे भवन्तु सुखिनः" का संदेश केवल मानव-जाति के लिए ही नहीं है, बल्कि यह पृथ्वी और इसके संपूर्ण जीव-जंतुओं के लिए भी है। इस मंत्र की भावना के मूल में यह भी निहित है कि हमें प्रकृति और पर्यावरण का संतुलन बनाए रखना चाहिए। जब तक हम पर्यावरण का सम्मान नहीं करेंगे और इसकी सुरक्षा नहीं करेंगे, तब तक वास्तविक सुख और समृद्धि प्राप्त नहीं कर सकेंगे। वर्तमान समय में जब पर्यावरण का असंतुलन बढ़ रहा है, प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बढ़ रहा है, तो यह शांति-प्रार्थना हमें याद दिलाती है कि हमें अपने पर्यावरण के प्रति भी उदार बनना चाहिए। जब हम पृथ्वी और उसके ढाँचे का संरक्षण करेंगे, तभी हम सच्चे अर्थों में सुख-शांति को प्राप्त कर सकेंगे। 

६. "सर्वे भवन्तु सुखिनः" का राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव:

राजनीतिक और आर्थिक संदर्भ में भी यह शांति-मंत्र अत्यंत प्रभावकारी है। एक आदर्श राष्ट्र और समाज का निर्माण तभी संभव है जब उसकी नीतियाँ और व्यवस्थाएँ सार्वजनिक कल्याण को ध्यान में रखकर बनाई जाएंगी। एक ऐसा समाज, जहां केवल कुछ लोग  धनकुबेर हों और बाकी अधिकांश लोग अत्यंत गरीब हों और अपनी पूरी जिंदगी अभाव में ही गुजार देते हों, वहाँ सुख-शांति और स्थिरता की कल्पना हम कैसे कर सकते हैं? यह मंत्र हमें यह संदेश देता है कि राजनीतिक और आर्थिक मुद्दों पर भी सामूहिक विचार होना चाहिए। एक राष्ट्र स्थिर, सुदृढ़ और समृद्ध तभी बन सकता है जब वहां के सभी नागरिक सुखी, समृद्ध और स्थिर हों।

७. नैतिक एवं सैद्धान्तिक दृष्टिकोण:

नैतिक एवं सैद्धान्तिक दृष्टिकोण से भी यह मंत्र अत्यंत महत्वपूर्ण है। हमें यह सिखाया जाता है कि चरित्र और करुणा का स्थान हर मानव जीवन में अनिवार्य रूप से होना चाहिए। यदि हम नैतिक दृष्टि से सही हैं और हमारे कार्य करुणा और प्रेम पर आधारित हैं, तो हम खुद तो सुखी होंगे ही साथ ही समाज और विश्व में भी अमन-चैन और शांति की स्थापना होगी। सैद्धांतिक दृष्टि से इस मंत्र में यह भी बताया गया है कि हम सभी एक-दूसरे से परस्पर जुड़े हुए हैं, और किसी एक का विरोध, पूरे समाज पर प्रभाव डालता है। इसलिए, हमें अपनी व्यक्तिगत रचनाओं को मजबूती से सामूहिक कल्याण की दिशा में लगाना चाहिए। 

उपसंहार:

"सर्वे भवन्तु सुखिनः" अर्थात् "सभी सुखी हों," यह श्लोकांश केवल एक शांति-मंत्र नहीं है, बल्कि एक आदर्श समाज और विश्वशान्ति एवं कल्याण की परिकल्पना है। इस प्रार्थना में यह निहित है कि सुख-शांति का अनुभव केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामूहिक होना चाहिए। इसमें मंत्र में सामाजिक संतुलन और सबके के लिए समान अवसर की बात की गई है, जहां हर व्यक्ति अपने जीवन में समान रूप से सुख-शांति और समृद्धि पा सके। "सर्वे भवन्तु सुखिनः" का आदर्श तभी साकार हो सकता है, जब हम सहयोग, प्रेम और सहानुभूति से परिपूर्ण समाज का निर्माण करेंगे। इसके लिए हमें अपने नीहित स्वार्थों से ऊपर के उठकर समग्र समाज की भलाई और पर्यावरण संतुलन के लिए काम करना होगा। यही सच्चे सुख का प्रतीक है और यही हमारे समाज के विकास और शांति का आधार भी है।

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