31 अक्टूबर 2024

"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:" नारी सम्मान पर गहन विश्लेषण

प्रस्तावना:

भारतीय संस्कृति में नारियों का विशेष स्थान रहा है। नारी का दर्जा देवी-देवताओं से भी बढ़कर है क्योंकि भगवान राम या भगवान कृष्ण को भी जन्म देने वाली कोई और नहीं बल्कि नारी ही हैं। नारी के बिना समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। कहते हैं कि हर एक महान पुरुषों की महानता के पीछे महिलाओं का महत्वपूर्ण योगदान होता है। भारतीय परंपरा और संस्कृति में नारी को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। इस लेख में हम इस श्लोक के विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण करेंगे और समझने का प्रयास करेंगे कि क्यों और कैसे नारी का सम्मान भारतीय समाज का एक मूलभूत अंग रहा है और वर्तमान समय में इसे कैसे प्रासंगिक बनाया जा सकता है।

नारी-सम्मान में संस्कृत के श्लोक:

भगवान मनु ने नारियों की महत्ता का मुक्त कंठ से उजागर करते हुए लिखा है-

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः। 

यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।। 

(मनुस्मृति, अध्याय ३, श्लोक-५६)

अर्थात, "जहाँ नारियों को आदर-सत्कार एवं उचित सम्मान दिया जाता है, वहाँ देवता निवास करते हैं और जहाँ नारी का सम्मान नहीं होता वहाँ पर किये गए समस्त शुभ-कर्म भी निष्फल हो जाते हैं। 

Source: Blitz India Media

हमारे वेदों और शास्त्रों में "मां" का दर्जा ईश्वर से भी बढ़कर बताया गया है, जैसा कि निम्न श्लोकांश के भाव से स्पष्ट होता है-

"जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी" अर्थात् जननी और जन्मभूमि, स्वर्ग से भी बढ़ कर हैं। 

निम्न श्लोक में तो पुत्री को पुत्रों से भी बढ़कर सम्मान दिया गया है;

दशपुत्रसमा कन्या दशपुत्रान्प्रवर्धयन्।

यत्फलं लभते मर्त्यस्तल्लभ्यं कन्ययैकया ॥

अर्थात् अकेली एक पुत्री दस पुत्रों के समान होती है। दस पुत्रों के पालन-पोषण से जो पुण्य-फल प्राप्त होता है वह अकेले एक कन्या के पालन-पोषण से ही प्राप्त हो जाता है।

भारतीय संस्कृति में नारी का सम्मान:

भारतीय संस्कृति में नारी को माँ, लक्ष्मी, शक्ति, देवी और दुर्गा के रूप में पूजा जाता है। यहाँ नारी को सृजन, पालन और विनाश, तीनों कार्यों का प्रतीक माना गया है। नारी को केवल एक घरेलू भूमिका में नहीं, बल्कि समाज के प्रत्येक क्षेत्र में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकारा गया है। वेदों, उपनिषदों, और पुराणों में नारी की महत्ता को कई स्थानों पर वर्णित किया गया है, जैसा कि संस्कृत के निम्न श्लोक से स्पष्ट होता है-

पूजनीया महाभागाः पुण्याश्च गृहदीप्तयः।

स्त्रियः श्रियो गृहस्योक्ताः तस्माद्रक्ष्या विशेषतः॥ 

अर्थात् नारी को गृहलक्ष्मी, परम सौभाग्यवती, पुण्यमयी और घर की शोभा माना गया है। अतः इनकी रक्षा, विशेष रूप से करनी चाहिए। 

भारतीय संस्कृति में सीता, सावित्री, द्रौपदी और अनुसूया जैसी नारियों के आदर्शों को प्रेरणा-स्रोत माना गया है।

नारी सम्मान की आवश्यकता और महत्व:

श्लोक- "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते" इस बात का प्रमाण है कि समाज में महिलाओं का सम्मान करना कितना महत्वपूर्ण है। यह श्लोक केवल धार्मिक आस्थाओं का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह समाज की समृद्धि और विकास के लिए एक आवश्यक शर्त भी है। नारी के बिना समाज की कल्पना अधूरी है। भारतीय समाज ने नारी को केवल एक भूमिका तक सीमित नहीं किया, बल्कि उसे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सम्मानित किया। इस प्रकार, नारी का सम्मान समाज की समृद्धि, शांति और स्थिरता का आधार है।

भारतीय पुराणों और महाकाव्यों में ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं जहाँ नारी का पूजन और सम्मान किया गया है। रामायण में भगवान राम ने सीता का सम्मान करते हुए उनके लिए लंका पर विजय प्राप्त की। इसके अलावा, देवी दुर्गा और देवी लक्ष्मी की पूजा भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रहा है, जो नारी-शक्ति के महत्व को दर्शाता है।

समाज में नारी के सम्मान की परंपरा:

भारत में नारी को देवी का स्वरूप माना जाता है। नवरात्रि, दुर्गा-पूजा, और लक्ष्मी-पूजा जैसे त्योहारों के माध्यम से नारी-शक्ति का सम्मान किया जाता है। यह परंपरा हमें यह याद दिलाती है कि नारी केवल जन्म देने वाली ही नहीं, बल्कि समाज को दिशा देने वाली शक्ति भी है। भारतीय समाज ने नारी को हमेशा विशेष सम्मान दिया है। यहाँ यह विश्वास किया जाता है कि जहाँ नारी का सम्मान होता है, वहाँ देवता निवास करते हैं, जिससे वह स्थान पवित्र और समृद्ध होता है। इस संदर्भ में, "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:" श्लोक समाज को यह सिखाता है कि नारी का सम्मान केवल एक सामाजिक कर्तव्य नहीं, बल्कि एक धार्मिक आस्था भी है।

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस: महिलाओं की समाज में आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक समानता और नारी सशक्तिकरण के लिए प्रति वर्ष ८ मार्च को "अंतरराष्ट्रीय महिला-दिवस" के रूप में मनाया जाता है। 

नारी सम्मान और समृद्धि:

इस श्लोक का सीधा संबंध समाज की समृद्धि से है। यह श्लोक केवल एक धार्मिक उपदेश नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक नियम भी है। समाज की उन्नति और समृद्धि नारी के सम्मान के बिना असंभव है। जब नारी को उसका उचित स्थान मिलता है, तो वह अपने परिवार, समाज और देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है। नारी के सम्मान का समाज पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। 

जब नारी को सम्मान और अधिकार मिलते हैं, तो वह आत्मनिर्भर और सशक्त बनती है। इससे समाज में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, और आर्थिक क्षेत्रों में नारी का योगदान समाज को समृद्धि की ओर ले जाता है। इसके विपरीत, जहाँ नारी का अपमान और शोषण होता है, वहाँ समाज में अस्थिरता, अपराध, और गरीबी का प्रसार होता है।

शिक्षा और नारी सम्मान:

नारी के सम्मान और उसके अधिकारों की रक्षा के लिए शिक्षा का महत्वपूर्ण योगदान है। शिक्षा से नारी अपनी पहचान और अधिकारों के प्रति जागरूक होती है। वह समाज में अपनी भूमिका को समझती है और अपने अधिकारों के लिए लड़ सकती है। शिक्षा, नारी को सशक्त बनाती है, जिससे वह समाज में अपनी स्थिति को मजबूत कर सकती है। एक शिक्षित नारी न केवल अपने परिवार को सही दिशा में ले जाती है, बल्कि वह समाज और देश के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

आर्थिक स्वतंत्रता और नारी सम्मान:

आर्थिक स्वतंत्रता नारी के सम्मान के लिए एक महत्वपूर्ण कारक है। जब नारी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होती है, तो वह अपने जीवन के महत्वपूर्ण निर्णय स्वतंत्र रूप से ले सकती है। इससे उसकी समाज में स्थिति मजबूत होती है और वह सम्मान प्राप्त करती है। आर्थिक स्वतंत्रता से नारी अपने परिवार और समाज के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है। वह अपने बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य, और भविष्य के लिए सही निर्णय ले सकती है। इसके अलावा, आर्थिक रूप से सशक्त नारी समाज में लैंगिक समानता के लिए भी संघर्ष कर सकती है।

कानूनी अधिकार:

नारी के सम्मान और अधिकारों की रक्षा के लिए कानूनी व्यवस्था का होना आवश्यक है। भारत में नारी के अधिकारों की रक्षा के लिए कई कानून बनाए गए हैं, जैसे कि दहेज-प्रथा उन्मूलन कानून, घरेलू हिंसा से संरक्षण कानून, और महिलाओं के लिए आरक्षण का कानून। किसी देश में नारी-सशक्तिकरण कानून, उस देश में नारी को सामाजिक रूप से सुरक्षित और सशक्त महसूस कराते हैं। इसके अलावा, कानून नारी के अधिकारों की रक्षा करता है और उसे न्याय प्राप्त करने का अधिकार देता है।

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में नारी सम्मान:

भारतवर्ष एक सांस्कृतिक मूल्यों से समृद्ध देश है, जहां महिलाओं का समाज में प्रमुख स्थान रहा है। दुर्भाग्यवश विदेशी शासनकाल में समाज में अनेक कुरीतियां व विकृृतियां पैदा हुई, जिससे महिलाओं का उत्पीड़न हुआ। बदलते समय के साथ समाज में भी कई तरह के बदलाव आए हैं, और नारी की भूमिका भी बदली है। आज की नारी केवल घर के चूल्हा-चाकी तक सीमित नहीं है, बल्कि वह शिक्षा, राजनीति, विज्ञान, कला, खेलकूद, व्यावसायिक आदि सभी क्षेत्रों में पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं और अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। हालांकि, नारी के प्रति समाज का दृष्टिकोण अभी भी पूरी तरह से नहीं बदला है। आज भी कई स्थानों पर नारी को समान अधिकार नहीं मिलते और उन्हें सामाजिक, आर्थिक, और मानसिक शोषण का सामना करना पड़ता है। यह दुखद स्थिति है और इसमें सुधार लाना अतिआवश्यक है। इस श्लोक का महत्व आज के समय में और भी बढ़ जाता है, क्योंकि यह हमें यह अहसास दिलाता है कि समाज की समृद्धि और प्रगति तभी संभव है जब नारी को उचित सम्मान और अधिकार दिए जाएँ।

आजाद भारत में नारी सम्मान:

आजादी के बाद समाज में महिलाओं की स्थिति और उनका सम्मान, बढ़ा है। वे विभिन्न क्षेत्रों में अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन से देश-विदेश में अपना नाम रोशन किया है; जैसे-

  • १५ अगस्त सन् १९४७ ई. को सरोजिनी नायडू संयुक्त प्रदेशों की प्रथम महिला राज्यपाल बनीं।
  •  १९५१ ई. प्रेम माथुर दक्कन एयरवेज की प्रथम भारतीय महिला पायलट बनीं।
  • विजय लक्ष्मी पंडित, सन् १९५३ ई. को संयुक्त राष्ट्र-संघ जनरल एसेम्बली की प्रथम महिला भारतीय अध्यक्ष बनीं।
  • अन्ना चान्डी, सन् १९५९ ई. में केरल उच्च न्यायालय की पहली भारतीय महिला जज बनीं।
  • सुचेता कृपलानी, सन् १९६३ ई. में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं। 
  • श्रीमती इंदिरा गाँधी, सन् १९६६ ई. में भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं।
  • कमलजीत संधू सन् १९७० ई. के एशियन गेम्स में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला थीं।
  • किरण बेदी, सन् १९७२ ई. में प्रथम आइपीएस अधिकारी बनीं। 
  • सन् १९७९ ई. में मदर टेरेसा, नोबेल शान्ति पुरस्कार प्राप्त करने वाली प्रथम भारतीय महिला नागरिक बनीं।
  • बछेंद्री पाल, सन् १९४८ ई. में माउंट-एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला बनीं।
  • सन् १९८९ ई. में फातिमा बीबी भारत के उच्चतम न्यायालय की पहली महिला जज बनीं। 
  • भारत में ही जन्मी कल्पना चावला, सन् १९९७ ई. में प्रथम अंतरिक्षयात्री बनीं। 
  • प्रिया झिंगन, सन् १९९२ ई. में भारतीय थलसेना में भर्ती होने वाली पहली महिला सैनिक। 
  • कर्णम मल्लेश्वरी; सन् २००० ई. के ओलिंपिक खेलों में में कांस्य पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी। 
  • पुनीता अरोड़ा; भारतीय थलसेना में सन् २००४ ई. में लेफ्टिनेंट जनरल के पद को सुशोभित करने वाली प्रथम भारतीय महिला बनीं।
  • श्रीमती प्रतिभा पाटिल; सन् २००७ ई. में भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति बनीं।
  • सन् २००९ ई. में मीरा कुमार, प्रथम महिला लोक सभाध्यक्ष बनीं। 
  • पी वी सिंधु, सन् २०१६ के रियो-ओलंपिक खेलों के बैडमिंटन में रजत पदक विजेता।
  • मैरी कॉम, ‍विश्व मुक्केबाजी प्रतियोगिता की आठ बार विजेता रह चुकी हैं।
  • द्रौपदी मुर्मू, २१ जुलाई सन् २०२२ से भारत की १५वीं राष्ट्रपति हैं। 

निष्कर्ष:

"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:" का शाब्दिक अर्थ भले ही धार्मिक हो, लेकिन इसका सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व भी उतना ही महत्वपूर्ण है। यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि नारी का सम्मान करना केवल एक धार्मिक कर्तव्य ही नहीं, बल्कि एक सामाजिक जिम्मेदारी भी है। नारी के सम्मान से समाज में सुख-शांति, समृद्धि, और स्थिरता का विकास होता है। 

वर्तमान समय में, जब समाज में नारी के अधिकारों और सम्मान की बात की जा रही है, यह श्लोक और भी प्रासंगिक हो जाता है। नारी का सम्मान और उसकी स्वतंत्रता, समाज की प्रगति के लिए आवश्यक है।इसलिए, हमें इस श्लोक के महत्वपूर्ण संदेश को समझकर उसे अपने जीवन में उतारना चाहिए और नारी के सम्मान को समाज की प्राथमिकता बनाना चाहिए। तभी हम एक समृद्ध, शांतिपूर्ण, और उन्नत समाज की कल्पना कर सकते हैं।

Source: AI & Google

*****


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

सबसे ज़्यादा पढ़ा हुआ (Most read)

फ़ॉलो

लोकप्रिय पोस्ट

विशिष्ट (Featured)

मानसिक तनाव (MENTAL TENSION) I स्ट्रेस (STRESS)

प्रायः सभी लोग अपने जीवन में कमोबेश मानसिक तनाव   से गुजरते ही हैं। शायद ही ऐसा कोई मनुष्य होगा जो कभी न कभी मानसिक त...