परिचय:-
हम सभी ने बचपन से ही यह कहावत सुनी होगी – “सुख के सब साथी, दुख में न कोय।" इसका अर्थ बड़ा ही गहरा है। जब इंसान के जीवन में सुख और समृद्धि होती है, तो उसके आसपास लोग मित्रता और संबंध निभाने के लिए उमड़ते चले आते हैं। लेकिन जैसे ही कठिनाइयाँ, परेशानियाँ या दुख सामने आते हैं, वही लोग धीरे-धीरे दूर होते जाते हैं। यह मानवीय स्वभाव है कि लोग सुख में साथ निभाना आसान समझते हैं, लेकिन दुख में खड़ा होना सबके बस की बात नहीं।
"सुख के सब साथी, दुख में न कोय" कहावत का गहरा अर्थ जानें। यह ब्लॉग जीवन की सच्चाई, सच्चे रिश्तों की पहचान, प्रेरक कहानियाँ और व्यवहारिक सीख को सरल भाषा में प्रस्तुत करता है।
१. कहावत का मूल भाव:-
“सुख के सब साथी” का सीधा अर्थ है – जब व्यक्ति के पास धन, स्वास्थ्य, शोहरत, और खुशियाँ होती हैं तो लोग उसके आस-पास रहना, उससे संबंध बनाना पसंद करते हैं।
“दुख में न कोय” का तात्पर्य है – जब वही व्यक्ति कठिनाइयों से गुजरता है, तो बहुत से लोग धीरे-धीरे उससे दूर हो जाते हैं।
👉 यह कहावत हमें जीवन की वास्तविकता दिखाती है कि दुनियाँ अक्सर स्वार्थ के आधार पर रिश्ते निभाती है।
२. क्यों होते हैं सुख में अधिक साथी?
लाभ की संभावना – सुखी व्यक्ति से लोगों को लाभ मिलने की संभावना रहती है, जैसे आर्थिक मदद, मान-सम्मान या सुविधाएँ। सच ही कहा गया है- "स्वारथ लागि करहिं सब प्रीति"
आकर्षण और प्रभाव – समृद्ध और खुशहाल व्यक्ति की ओर लोग स्वाभाविक रूप से आकर्षित होते हैं।
सामाजिक प्रतिष्ठा – सुखी और सफल व्यक्ति से जुड़कर लोग खुद को भी सम्मानित महसूस करते हैं।
ईर्ष्या और दिखावा – कई बार लोग सिर्फ़ समाज में दिखावा करने के लिए भी सुखी व्यक्ति का साथ निभाते हैं।
३. दुख में क्यों छूट जाते हैं साथी?
स्वार्थ की पूर्ति न होना – जब दुख आता है तो लोग सोचते हैं कि अब यहाँ से कुछ लाभ नहीं मिलेगा।
जिम्मेदारी से दूर भागना – दुख में साथ देना जिम्मेदारी और त्याग की मांग करता है, जिसे हर कोई निभाना नहीं चाहता।
भय और संकोच – कभी-कभी लोग यह सोचकर भी दूर हो जाते हैं कि कहीं वे भी समस्या में न फँस जाएँ।
मानव स्वभाव – स्वार्थ, सुविधा और अपने आराम को प्राथमिकता देना इंसान की आदत है।
४. “सुख के सब साथी, दुख में न कोय......" मशहूर गायक मोहम्मद रफी के द्वारा फिल्म "गोपी" के लिए गाया गया मर्मस्पर्शी भजन: यहाँ लिंक पर क्लिक करके आप सुन सकते हैं- https://youtu.be/xpH5zFWvg1s?si=eEE5DXSjv1kHfWIJ
सुख के सब साथी, दुःख में ना कोई।
मेरे राम, तेरा नाम एक साँचा दूजा ना कोई॥
जीवन आनी जानी छाया, झूठी माया, झूठी काया।
फिर काहे को सारी उमरियाँ, पाप की गठड़ी ढोई॥
सुख के सब साथी…
ना कुछ तेरा, ना कुछ मेरा, ये जग जोगीवाला फेरा।
राजा हो या रंक सभी का, अंत एक सा होई॥
सुख के सब साथी…
बाहर की तू माटी फाँके, मन के भीतर क्यों ना झाँके।
उजले तन पर मान किया, और मन की मैल ना धोई॥
सुख के सब साथी, दुःख में ना कोई॥
मेरे राम, तेरा नाम एक साँचा दूजा ना कोई॥
५. जीवंत उदाहरण
(क) महाभारत का उदाहरण
महाभारत काल में जब पांडवों का राजपाट, वैभव था, तब बहुत से लोग उनके साथ थे। लेकिन जब उन्हें वनवास मिला और कठिनाइयाँ आईं, तब केवल कुछ ही लोग जैसे महात्मा विदुर और भगवान श्रीकृष्ण – सच्चे साथी बने।
(ख) सामान्य जनमानस का उदाहरण
आज भी जब किसी के पास धन और प्रतिष्ठा होती है, तो उसके घर मेहमानों की भीड़ लगी रहती है। लेकिन जैसे ही उसका व्यवसाय डूबता है या कठिनाई आती है, तो वही लोग मिलने से भी कतराने लगते हैं।
६. असली साथी कौन?
माता-पिता– चाहे सुख हो या दुख, माता-पिता का स्नेह हमेशा साथ रहता है।
सच्चा मित्र– दोस्ती वही असली है जो मुश्किल समय में साथ निभाए। जैसे श्रीकृष्ण भगवान अपने बचपन के दोस्त सुदामा के साथ दोस्ती उस समय निभायी थी जब वे दरिद्र एवं विपन्न हाल में थे।
समर्पित जीवनसाथी–
एक दूसरे के प्रति समर्पण का भाव रखने वाले पति-पत्नी का रिश्ता सुख-दुख में बराबरी का साथी बनने का प्रतीक है।
भगवान के प्रति गहरी आस्था– जब संसार के सारे साथी छूट जाते हैं, तब ईश्वर ही सबसे बड़ा सहारा बनते हैं।
७. दुख की घड़ी – एक दूसरे को पहचानने का सही समय
- यह कहावत हमें यह भी सिखाती है कि दुख का समय ही संबंधों की असली पहचान कराता है।
- जो कठिनाइयों में भी साथ रहे, सच में वही अपना है।
- दुख की घड़ी हमें यह भी सिखाती है कि हम पराए लोगों से बहुत अपेक्षाएँ न रखें।
- यही समय हमें आत्मनिर्भर और मजबूत बनाता है।
८. व्यवहारिक जीवन के सबक
अत्यधिक अपेक्षाएँ न रखें – रिश्ते प्रायः स्वार्थपरक होते हैं इसलिए हमेशा निःस्वार्थ साथ की उम्मीद करना व्यर्थ है।
सच्चे रिश्तों को पहचानें – जो दुख में साथ दें, उन्हें जीवनभर संभालकर रखें।
स्वयं भी दूसरों के दुख में साथ दें – यही इंसानियत की असली पहचान है और हम जैसे देंगे, वही पायेंगे, शाश्वत नियम भी है।
आत्मनिर्भर बनें – ताकि दुख की घड़ी में खुद को संभाल सकें और दूसरे का मोहताज न होना पड़े।
भगवान के प्रति आस्था और आत्म-विश्वास बनाये रखें – क्योंकि दुख की घड़ी में आपको यही मानसिक बल प्रदान करते हैं।
९. आधुनिक जीवन में प्रासंगिकता
- आज की तेज़-तर्रार और मतलबी दुनियाँ में यह कहावत और भी सही बैठती है।
- सोशल-मीडिया पर हजारों दोस्त और फॉलोअर्स होते हैं, लेकिन मुश्किल समय में गिनती के लोग ही मदद को आते हैं।
- नौकरी, व्यापार और रिश्तों में भी लोग स्वार्थ से प्रेरित होकर साथ रहते हैं।
- इसलिए आज भी हमें यह सच्चाई याद रखनी चाहिए कि असली साथी वही है जो कठिन समय में आपके साथ खड़ा हो।
निष्कर्ष
'सुख के सब साथी, दुख में न कोय' केवल एक कहावत नहीं बल्कि जीवन की गहरी सच्चाई है। यह हमें सिखाती है कि –
- हर रिश्ता स्वार्थ पर आधारित नहीं होना चाहिए।
- मुश्किल की घड़ी में ही अपने-पराये की पहचान होती है।
- जो लोग दुख में साथ देते हैं, वही आपके सच्चे साथी हैं।
- हमें भी प्रयास करना चाहिए कि हम भी दूसरों के सुख-दुख में समान रूप से खड़े रहें।
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जीवन की कड़वी सच्चाई।
जवाब देंहटाएंलेख पढ़ने के लिए धन्यवाद!
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