परिचय:-
मनुष्य का जीवन एक लंबी यात्रा की तरह है। इस यात्रा में हम आजीवन धन-दौलत, मकान, गाड़ियाँ, नाम, शोहरत, रिश्ते आदि बहुत कुछ जोड़ने में लगे रहते हैं। लेकिन जब अंत समय आता है, तब एक सवाल सामने खड़ा होता है—"सोचो! साथ क्या जायेगा?"
यह सवाल न केवल जीवन का सार समझाता है बल्कि हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि हम किस दिशा में जी रहे हैं। क्या हम केवल भौतिक भोग-सामग्री को इकट्ठा करने में लगे हैं, या फिर जीवन के असली अर्थ को समझकर, आत्मा की असली पूँजी इकट्ठा कर रहे हैं?
असली दौलत, बैंक-बैलेंस नहीं बल्कि आपके अच्छे कर्म और मानवीय सेवा है। तो आइये जानते हैं कि जीवन को सार्थक और सफल बनाने के लिए हमें क्या अपनाना चाहिए।
जीवन की सच्चाई:-
जब कोई इंसान जन्म लेता है तो खाली हाथ आता है और जब मरता है तब भी खाली हाथ ही जाता है। इस बीच का समय ही असली जीवन है। हम अपने लिए तमाम तरह सुख-सुविधाएँ जुटाते हैं, लेकिन मृत्यु के बाद कुछ भी हमारे साथ नहीं जाता।
- धन-दौलत: कितना भी कमा लो, वह बैंक अकाउंट और लॉकर में ही रह जाएगा।
- शोहरत: लोग कुछ दिन याद करेंगे, फिर नए चेहरे आ जाएंगे और आपको भुला देंगे।
- मकान और गाड़ियाँ: मरने के बाद इनको इस्तेमाल करने वाले दूसरे होंगे।
- सगे-संबंधी: जीवन के साथ चलते तो हैं, पर अंत में हमें अकेले जाना पड़ता है।
याद रखें! साथ में केवल हमारे कर्म और संस्कार जाते हैं। यही असली जमा-पूँजी है।
क्यों जरूरी है यह सोचना – "साथ क्या जायेगा?"
जीवन का उद्देश्य स्पष्ट होता है – जब हमें यह पता चल जाता है कि जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है, तो हम सही चीज़ों में निवेश करने लग जाते हैं।
अहंकार कम होता है – जब हमें इस बात का ज्ञान हो जाता है कि अंत में सबको खाली हाथ ही जाना है, तब अहंकार और घमंड का कोई अर्थ नहीं रह जाता है।
मानवता की ओर झुकाव बढ़ता है – दूसरों की सेवा करना, अच्छे काम करना ही, जीवन की असली जमापूँजी है।
शांति मिलती है – जब-तक भोग सामग्री से चिपके रहते हैं, चिंता खत्म नहीं होती बल्कि बढ़ती ही जाती है लेकिन जैसे ही हम आत्मिक-सोच की तरफ अपना पग बढ़ाते हैं उसी समय से शांति स्थापित हो जाती है।
व्यवहारिक दृष्टिकोण: हमें क्या करना चाहिए?
१. अच्छे कर्मों की कमाई करें: कर्म ही एकमात्र पूँजी है जो जीवन के बाद भी आत्मा के साथ रहती है। इसलिए-
- सच बोलें।
- जरूरतमंदों की मदद करें।
- ईमानदारी से काम करें।
- दूसरों को आशीर्वाद दें, न कि श्राप।
२. रिश्तों में निवेश करें: धन-दौलत तो यहीं रह जाएगा, लेकिन अच्छे रिश्ते आपको जीवनभर सुकून देंगे। अतः
- परिवार को समय दें।
- बुजुर्गों का सम्मान करें।
- बच्चों को अच्छे संस्कार दें।
- मित्रता में सच्चाई रखें।
३. आत्म-विकास पर ध्यान दें: मन और आत्मा को मजबूत बनाना ही सबसे बड़ा निवेश है, इसलिए-
- ध्यान और प्रार्थना करें।
- अच्छे ग्रंथ पढ़ें।
- सकारात्मक सोच रखें।
- हर दिन कुछ नया सीखें।
४. समाज-सेवा को प्राथमिकता दें: समाज से हमें सब कुछ मिलता है, इसलिए हमें भी लौटाना चाहिए।
- गरीब बच्चों की शिक्षा में मदद करें।
- पर्यावरण की रक्षा करें।
- दान-पुण्य, जैसे नेक कार्य करें।
- समाज में प्रेम और भाईचारा का प्रसार करें।
प्रेरक कहानी:-
प्राचीन काल में, एक धनी व्यापारी जीवनभर धन कमाने और इकट्ठा करने में ही लगा रहा। मरने के बाद, जब उसकी आत्मा यमलोक पहुँची तो चित्रगुप्त ने उससे पूछा—"तुम साथ में क्या लाए हो?" व्यापारी ने बड़े गर्व से जवाब दिया—"मेरे पास करोड़ों का धन, सोना-चाँदी और महल हैं।"
उस व्यापारी का जबाब सुनकर, चित्रगुप्त मुस्कुराए और बोले—"तुम्हारी ये सब चीजें तो वहीं पृथ्वी पर रह गयीं। यहाँ तुम्हारे साथ केवल तुम्हारे कर्म ही आए हैं।" व्यापारी को यह पता नहीं था, इसलिए वह घबराकर पूछा—"तो क्या मैं यहाँ खाली हाथ हूँ?" चित्रगुप्त बोले—"हाँ! क्योंकि तुमने दूसरों की मदद नहीं की, पुण्य का काम नहीं किया। सिर्फ अपने लिए जिया और कोई सत्कर्म नहीं किया।"
यह सुनकर व्यापारी की आत्मा रो पड़ी। उसे एहसास हुआ कि असली दौलत तो नेकी के काम थे, जो उसने कभी किए ही नहीं।
यह कहानी हमें यही सिखाती है कि धन-दौलत या दुनियाँ की कोई भी भोग-सामग्री साथ नहीं जाती, केवल कर्म और संस्कार ही साथ जाते हैं।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण:-
गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कर्म को प्रधान बताते हुए कहा है—"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।"
बौद्ध धर्म भी यही सिखाता है कि "लोभ और मोह ही सारे दुखों की जड़ हैं।"
संत कबीर ने जीवन में भोग-संग्रह के बजाय संतोष को प्राथमिकता देते हुए कहा है— "साईं इतना दीजिए, जामे कुटुंब समाय।" अर्थात् हे प्रभो! मुझे इतना ही दिजिये कि मैं अपने परिवार का भरणपोषण के साथ द्वार पर आये मेहमान का भी उचित सत्कार कर सकूँ।
आधुनिक जीवन से जुड़ी सीख:-
आज के समय में लोग भौतिक सुख-सुविधाओं के पीछे भाग रहे हैं। नौकरी, बिज़नेस, सोशल मीडिया की शोहरत—सबका मकसद यही है कि लोग हमें पहचानें और हम अमीर दिखें। लेकिन जब जीवन का अंत आता है तो ये सब बेकार हो जाता है।
- बड़े से बड़े बंगले, महंगी गाड़ियाँ, साथ नहीं जाएगीं।
- मोबाइल, लैपटॉप सब यहीं रह जाएंगे।
- बैंक-बैलेंस किसी और के काम आएगा।
इसलिए जरूरी है कि हम अपने भौतिक और आध्यात्मिक जीवन, दोनों को संतुलित करें।
जीवन में अपनाने योग्य बातें:-
- जरूरत से ज्यादा इकट्ठा न करें।
- कमाई का एक हिस्सा दान, परोपकार में लगायें।
- समय का महत्व समझें और इसे परिवार और आत्म-विकास में समय लगाएँ।
- माफ करना सीखें, क्योंकि नफरत और क्रोध साथ नहीं जाएंगे।
- सादा जीवन, उच्च विचार का आदर्श जीवन में उतारें।
- दीन-दुखियों की सेवा करें।
निष्कर्ष:-
जीवन अनमोल है और समय तेजी से निकलता जा रहा है।इसलिए, जरा सोचिए! आपके साथ क्या जाने वाला है? धन, शोहरत और संपत्ति तो बिल्कुल नहीं, जायेगा तो केवल आपकी नेकी, दया, प्रेम और सेवा।
आपके विचार से जीवन की असली पूँजी क्या है? कृपया नीचे कमेंट सेक्शन में अपनी राय जरूर साझा करें।🙏
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs):-
प्रश्न-१: मृत्यु के बाद हमारे साथ क्या जाता है?
उत्तर: मृत्यु के बाद साथ केवल हमारे सत्कर्म और सद्विचार ही जाते हैं।
प्रश्न-२: जीवन का असली धन क्या है?
उत्तर: अच्छे कर्म, सेवा-भाव, प्रेम और संस्कार ही असली धन हैं जो मृत्यु के बाद भी आत्मा के साथ रहते हैं।
प्रश्न-३: अच्छे कर्म क्यों जरूरी हैं?
उत्तर: चूंकि अच्छे कर्म ही हमारी आत्मा की असली पूँजी हैं और इन्हीं से हमें समाज में सम्मान, मानसिक शांति एवं सद्गति मिलती है।
प्रश्न-४: जीवन को सार्थक कैसे बनाया जा सकता है?
उत्तर: मानव सेवा, दान, सकारात्मक सोच, रिश्तों और आत्म-विकास पर ध्यान देकर जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है।
प्रश्न-५: क्या पैसा जीवन में जरूरी नहीं है?
उत्तर: पैसा जीवनयापन के लिए जरूरी है, लेकिन इनका उपयोग जीवन को सुधारने और समाज की भलाई के लिए भी होना चाहिए।
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