यह लेख, "यैस औशो" नामक मासिक पत्रिका के अप्रैल-२०१६ के अंक से लिया गया है। पाठकगण की सुविधा के लिए उस लेख को यहाँ ज्यों का त्यों, प्रस्तुत किया गया है।
इस सदी में जैसा जीवन हम जी रहे हैं, नब्बे प्रतिशत से भी अधिक ऊर्जा बायें मस्तिष्क में अटकी हुई है जबकि मनोशारीरिक स्वास्थ्य के लिए दायें व बायें मस्तिष्क में ऊर्जा का अनुपात पचास-पचास (Fifty-Fifty) प्रतिशत होना चाहिए।
आधुनिक जीवन की नब्बे प्रतिशत समस्याएं बायें, मस्तिष्क के असंतुलित विकास से जन्म ले रही है। दायें मस्तिष्क के विकास को हमने पूरी तरह दबा दिया है। हमारा दायाँ मस्तिष्क अतार्किक है। वह कला और सृजन से संबंधित है। वह ऐसे कार्यों से संबंधित है, जिसका देश, समाज और परिवार से सीधा कोई लेना-देना नहीं है। मिनोसोना युनिवर्सिटी ने दायें मस्तिष्क के उपयोग पर अद्भुत रिसर्च की। जिसके परिणाम इस सदी के मानसिक असंतुलन को संतुलन करने में सक्षम हैं। इस युनिवर्सिटी के खोजकर्ताओं ने ऐसे २०० लोगों को चुना जो महत्वाकांक्षी थे और साथ ही किसी व्यसन के भी आदी थे। ऐसे व्यक्तियों को उन्होंने उनकी रुचि के अनुसार संगीत, गायन और वादन सीखाना शुरू किया। पूरे एक वर्ष उन्हें कम से कम एक घंटा संगीत के लिए निकालना ही था। साल निकलते ही जो निष्कर्ष सामने आए, डॉ. हर्बर्ट के लिए चौंकाने वाले थे। ग्रुप में से दो प्रतिशत लोग अपने व्यसन छोड़ पूरी तरह संगीत में उतर गये। अस्सी प्रतिशत लोगों में व्यसन के प्रति पकड़ ढीली हो गयी। उनके पारिवारिक और व्यावसायिक संबंध खुशनुमा हो गये। पांच प्रतिशत लोगों ने व्यसन को पूरी तरह त्याग दिया। दो सौ में से दस प्रतिशत लोगों को ग्रुप शुरू होने से पहले तनाव के अटैक आते थे जो कि पूरी तरह चले गए। यह खोज एक इशारा है हम सभी के लिए।
सदी में स्वास्थ्य और संतुलन बनाए रखने के लिए यह परम आवश्यक है कि हम अपने दायें मस्तिष्क की जरूरतों को समझें। पूरे दिन में कुछ ऐसा करें जो सिर्फ हमारे लिए हो, कुछ ऐसा जो लेन-देन के परे हो, कुछ ऐसा जिसे करना ही आनंद हो। ओशो ने अपने कार्य में संगीत, नृत्य और हास्य का जो इतना समावेश किया है, उसका कारण वे अक्सर समझाते हैं कि हमारी ऊर्जा को दायें मस्तिष्क की ओर ले जाने के लिए हैं। इस सदी में जैसा जीवन हम जी रहे हैं, नब्बे प्रतिशत से भी अधिक ऊर्जा बायें मस्तिष्क में अटकी हुई है। जबकि एक संपूर्ण मनोशारीरिक स्वास्थ्य के लिए दायें व बायें मस्तिष्क में ऊर्जा का अनुपात पचास-पचास प्रतिशत होना चाहिए।
ओशो कहते हैं: समाज हर तरह से कोशिश करता है कि तुम्हारी मस्तिष्क की ऊर्जा को बायें उत्तरार्द्ध में ले जाये। वह वहाँ अटकी है, जड़ हो चुकी है। और मस्तिष्क का बायाँ उत्तरार्द्ध बहुत सांसारिक है, उपयोगिता से भरा है, बाजार की बात है। यह जोड़-तोड़ करता है, तर्क करता है, चतुर होता है, चालाक होता है, प्रतिस्पर्धा से भरा होता है, हिंसक होता है। लगभग समूची ऊर्जा, बायें उत्तरार्द्ध में बंधी हुई है। आधी ऊर्जा को दायें हिस्से में होना चाहिए--और यही हम करने की कोशिश कर रहे हैं। सिर्फ पचास प्रतिशत ऊर्जा इधर आयेगी और संतुलन स्थापित हो जायेगा, लयबद्धता आ जायेगी।
संगीत मदद करता है। संगीत, काव्य, मूर्तिकला, सारी कलाएँ, दायें
उत्तरार्द्ध से आती हैं। इसी कारण संगीतकार तुम्हारी मदद के लिए हैं। और यदि तुम
इसके साथ भीतरी नृत्य में लीन होने लगते हो तो ऐसा होना शुरू हो जायेगा। यदि तुम
स्वयं पर नियंत्रण छोड़ दो और इसके साथ बहने लगो तो यह आसान हो जायेगा। क्योंकि
अहंकार, अलग होना, "मैं दूसरों से
अलग हूँ", यह फिर से बायें उत्तरार्द्ध की तरफ जड़ें
जमाने लगता है। जब कभी तुम दूसरे के साथ स्वयं पर से नियंत्रण छोड़ने लगते हो-- दो
प्रेमी एक दूसरे में घुलने-मिलते लगते हैं--तत्काल बायाँ उत्तरार्द्ध मालिक नहीं
रह जाता। आनंद की अवस्था में दायाँ उत्तरार्द्ध मालिक हो जाता है। इसी कारण जो लोग
हमेशा जोड़-तोड़ में लगे रहते हैं, वे मस्तिष्क के बायें
हिस्से से ही जुड़े रह जाते हैं। वे सेक्स के विरोधी हो जाते हैं, प्रेम के विरोधी हो जाते हैं, काव्य के विरोधी हो
जाते हैं।
अंधेरा भी बांये उत्तरार्द्ध से दायें उत्तरार्द्ध में
ऊर्जा को ले जाने में मददगार होता है। इसी कारण रात के उजाले में तुम ठीक से सो
नहीं पाते। ठीक से नींद के लिए अंधेरे की जरूरत होती है क्योंकि नींद, दायें उत्तरार्द्ध का हिस्सा
है। इसी कारण तुम अंधेरे से डरते हो क्योंकि मस्तिष्क का बायाँ हिस्सा, दायें हिस्से को शत्रु की तरह देखता है।
इसी बदलाव के कारण मैं तुम्हें कहता हूँ आंखें बंद कर लो, क्योंकि खुली आँखों में
बायाँ उत्तरार्द्ध काम करता रहता है। तुम बाहर देखते हो; तुम
दुनियाँ को देखते हो, चीजों को देखते हो। बंद आंखों के साथ
बदलाव संभव हो जाता है, दायाँ हिस्सा काम करना शुरू कर देता
है। इसी कारण सदियों से सभी ध्यान बंद आंखों के साथ किये जाते हैं। सिर्फ जब तुम्हारे मस्तिष्क का दायाँ उत्तरार्द्ध और बायाँ उत्तरार्द्ध
संतुलन में आ जाते हैं, तब तुम पूर्ण और स्वस्थ हो जाते हो।
अभी तुम बहुत अधिक बायें उत्तरार्द्ध की तरफ हो। संतुलन पैदा करने के लिए, ऊर्जा को दाईं तरफ मुड़ना आवश्यक है।
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