मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्रीराम हम सबके आदर्श हैं। हमारे शास्त्रों और संतों ने बार-बार यही संदेश दिया है कि राम-नाम का जप जीवन की सबसे बड़ी साधना है। यह केवल धार्मिक आस्था का ही विषय नहीं, बल्कि मानसिक शांति, सकारात्मक ऊर्जा और आध्यात्मिक विकास का आसान उपाय भी है।
आज की भागदौड़ और तनाव भरी दुनियाँ में जब हर कोई मानसिक संतुलन और आत्मिक शांति की तलाश में है, तब राम-नाम का स्मरण एक जीवनदायी उपाय बनकर सामने आता है।
राम-नाम जप, जीवन में सुख-शांति और सकारात्मकता हासिल करने का सबसे सरल मार्ग है। जानें राम-नाम जप की महिमा, लाभ, एक प्रेरक कहानी के साथ।
राम-नाम का अर्थ और महत्व:-
"राम" शब्द केवल भगवान श्रीराम का नाम नहीं है, बल्कि यह एक दिव्य शक्ति का प्रतीक है। संस्कृत में "राम" उसे कहते हैं जो आनंद प्रदान करे। जब हम राम-नाम का जप करते हैं, तो हमारी चेतना आनंद और शांति से भर जाती है। संत तुलसीदास जी ने भी कहा है – "राम-नाम बिनु सुख नाहीं।" अर्थात्, बिना राम-नाम के जीवन में सच्चा सुख संभव नहीं है।
राम-नाम की महिमा का अंदाजा इसी बात लगाया जा सकता है कि रत्नाकर नाम का डाकू "मरा-मरा" शब्द का जाप करके, आदिकवि बाल्मीकि के नाम से मशहूर हुए और रामायण नामक महान ग्रंथ की रचना संस्कृत में कर सके।
पद्मपुराण में राम-नाम की महिमा का वर्णन मिलता है- राम नाम सदा पुण्यं नित्यं पठति यो नरः। अपुत्रो लभते पुत्रं सर्वकामफलप्रदम्॥
अर्थ: राम-नाम जप सदा पुण्य प्रदान करने वाला है। जो मनुष्य इसका नित्य पाठ करता है उसे पुत्र लाभ मिलता है और उसके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं।
क्यों है राम-नाम का जप विशेष?
- राम-नाम जप करने से मन की चंचलता शांत होती है।
- नियमित स्मरण से तनाव और चिंता कम होती है।
- मनुष्य के विचार, पवित्र और सकारात्मक बनते हैं।
- यह आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का सरल मार्ग है।
- इसके लिए किसी विशेष स्थान, समय या साधन की आवश्यकता नहीं, इसे कोई भी, कभी भी कर सकता है।
राम-नाम की महिमा (एक रोचक कहानी):-
एक नगर में दो भाई रहते थे परंतु दोनों का स्वभाव बिल्कुल विपरीत था। बड़ा भाई सत्संगी, संत महात्माओं की सेवा-भाव रखने वाला, धर्म के अनुकूल आचरण करने वाला था जबकि छोटा व्याभिचारी, दुर्व्यसनी एवं पापाचारी था। उसे संत-महात्मा फूटी आँख भी नहीं सुहाते थे। बड़ा भाई, छोटे भाई के कुकर्मों से दुखी रहता था।
एक बार उस नगर में संत मंडली पधारी। बड़ा भाई उन्हें घर ले जाकर उनकी भलीभाँति सेवा-सत्कार एवं पूजन करके छोटे भाई के सद्गति का उपाय पूछा। उस समय उसका छोटा भाई कहीं बाहर से आया और महात्माओं को वहाँ देखकर खुद को एक कमरे में बंद कर लिया। महात्मा लोग भी ठान लिये कि उसकी सद्गति का मार्ग देकर ही जायेंगे। अत: वे लोग उसके कमरे के बाहर बैठ गये। बहुत देर के बाद जब छोटे भाई को लघुशंका लगी तो कमरे का दरवाजा खोलकर भागना चाहा। परंतु एक महात्मा उसकी बांह पकड़ लिए। वह बहुत कोशिश किया परंतु अपनी बांह छुड़ा नहीं सका।
तब महात्मा बोले कि हमारी दो शर्तें मान लो तो हम बांह छोड़ देंगे। छोटा भाई महात्माओं से अपना पिण्ड छुड़ाने के लिए के लिए शर्त मानने को तैयार हो गया। महात्मा बोले कि, "एक बार राम-नाम बोलो"। वह राम का नाम लिया। फिर महात्मा बोले कि अब तुम वादा करो कि इस राम-नाम को किसी भी कीमत पर नहीं बेंचोगे। वह बेबसी में बोला कि ठीक है। तब महात्मा उसका हाथ छोड़ दिये।
समय बीता और बड़ा भाई परलोक सिधार गया। छोटा भाई अब और भी निरंकुश हो गया। वेश्यावृत्ति में जब उसका पूरा धन-दौलत समाप्त हो गया तब वेश्याएँ उसका गला दबाकर मार डालीं। मरणोपरांत यमदूत उसको लेखाधिकारी के यहाँ उसके कर्मों का लेखाजोखा करने के लिए ले गये। उसके कर्मों के बहीखाते की जांच होने लगी। जांचकर्ताओं को उसके बहीखाता के तमाम पन्ने पलटे जाने पर वे बिल्कुल काले नजर आये क्योंकि वह तो आजीवन कुकर्म ही किया था।
पन्ने पलटते वक्त जांचकर्ता चौंक उठे। बहीखाते के सारे काले पन्नों के बीच में से एक पन्ना चमक रहा था और उस पर सुनहरे अक्षरों में राम-नाम लिखा हुआ था। इसकी सूचना लेखाधिकारी को दी गयी क्योंकि उन्हें उसके कर्मों का हिसाब जो करना था। अत: लेखाधिकारी उससे बोले किसी समय पर तुमने राम का पवित्र नाम लिया है इसलिए बोल- "इसके बदले तुम्हें क्या चाहिए"।
तब उस पापी को ध्यान में आया कि यह राम का नाम तो उस महात्मा के कहने पर मैंने बेबसी में लिया था और महात्मा को दिया गया दूसरा वचन भी याद आया कि इसे किसी भी कीमत पर बेंचना नहीं है। फिर भी जानने के लिए उसने लेखाधिकारी से उस राम-नाम की कीमत पूछा।
लेखाधिकारी राम-नाम की अपरंपार महिमा तो सुने थे लेकिन उसके वास्तविक कीमत का उल्लेख उनके रूलबुक में नहीं था। लेखाधिकारी उससे बोले कि अब तुम धर्माधिकारी जी के पास चलो, वही तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर देंगे। तब उस पापी को समझ में आया कि "राम-नाम" कीमती है, इसलिए इस कीमत का क्षणभर के लिए ही सही, फायदा उठाया जाय।
अतः वह लेखाधिकारी से बोला कि आप पालकी मंगाओ और उसमें कंधा दो, तभी जाऊँगा। अतः लेखाधिकारी ने अपनी लाज बचाने के लिए पालकी मंगाई और कंधा देकर उसे धर्माधिकारी के दरबार में ले गए और उनसे अपनी समस्या विस्तार से बतायी। धर्माधिकारी भी सन्नाटे में आ गए क्योंकि राम-नाम की वास्तविक कीमत तो उन्हें भी नहीं पता था। फिर क्या था, लेखाधिकारी, धर्माधिकारी अपने दो सेवकों के साथ उसकी पालकी को कंधा देकर ब्रह्मलोक में ब्रह्मा जी के यहाँ ले गए। ब्रह्मा जी की स्तुति करके धर्माधिकारी जी राम-नाम की कीमत पूछे। पर राम-नाम की वास्तविक कीमत ब्रह्मा जी भी नहीं बता सके और वे सबको शिवलोक चलने का सुझाव दिये।
उस अधर्मी के हठ पर पालकी को ब्रह्मा जी, धर्माधिकारी जी, लेखाधिकारी, एक सेवक के साथ कंधा देकर शिवलोक पहुंचे। सभी को पालकी ढोते देखकर शिवजी बड़े आश्चर्यचकित हो पूछे कि आखिर इस पालकी में कौन बड़भागी है जिसे आप सभी महानुभाव उसे लेकर यहाँ आये हैं और माजरा क्या है? साफ-साफ बतायें। तब ब्रह्मा जी ने सारा वृत्तांत शिवजी से कह सुनाया और राम-नाम की कीमत बताने को कहा। परंतु शिवजी भी इसमें अपनी असमर्थता जताई और बोले कि राम-नाम की महिमा के अलावा वास्तविक कीमत तो मुझे भी नहीं मालूम है।
अब वास्तविक कीमत जानने के लिए हमें गोलोक में विष्णु भगवान् के पास चलना चाहिए। अब तक वह पापी भी जान चुका था कि राम-नाम की कीमत, बहुत बड़ी है। इसलिए वह और तनकर बैठ गया और शिवजी, ब्रह्मा जी, धर्माधिकारी जी और लेखाधिकारी सभी को पालकी में कंधा देने को कहा।
सभी देवताओं को अपने-अपने पद की लाज को बचाना था कि कहीं यह पापी यह न जान ले कि राम-नाम की कीमत इतने बड़े देवताओं को भी नहीं मालूम है। इसलिए मजबूरन सभी पालकी में कंधा देकर उसे गोलोक में विष्णु भगवान् के पास ले गए। वहाँ पहुँच कर सभी देवता विष्णु भगवान् की स्तुति किये तदोपरांत भगवान् शिवजी और ब्रह्मा जी ने विष्णु भगवान् से सारी बात बतायी और राम-नाम की कीमत जानना चाहा।
विष्णु भगवान् बोले कि आपलोग उसे पालकी में से ले आकर मेरी गोद में रख दिजिए। यह सुनकर सभी देवताओं ने उस अधम को उठाकर भगवान् विष्णु की गोद में रखे। और उनसे राम-नाम की कीमत जानने का इंतजार करने लगे ताकि उचित कीमत के अनुसार पापी को यहाँ से ले जाकर उसके कर्मों का उचित फल दिया जा सके।
सभी देवताओं को इंतजार करते देख, भगवान् विष्णु मुस्कुराते हुए बोले कि आप सभी लोग जरा विचार करिये कि जिस पापी को एक बार राम-नाम लेने से आप लोग उसे ढोकर यहाँ तक ले आये और मेरी गोद में बिठा दिये। अब क्या वह यहाँ से वापस जायेगा? बिल्कुल नहीं। आप लोग अपनी-अपनी बुद्धि और विवेक से राम-नाम की कीमत का अंदाजा खुद ही लगा सकते हैं, और इससे अधिक आपलोगों से क्या बताया जाय?
वैज्ञानिक दृष्टि से राम-नाम जप:-
आज विज्ञान भी मानता है कि जप और ध्यान से मस्तिष्क में सकारात्मक तरंगें उत्पन्न होती हैं। जब हम "राम-राम" बोलते हैं तो इसकी ध्वनि-तरंगें नकारात्मक विचारों को दूर कर देती हैं। धीरे-धीरे यह हमारे अवचेतन मन को भी शुद्ध कर देती है। यही कारण है कि राम-नाम जपने वाले लोग अधिक शांत, धैर्यवान और प्रसन्नचित्त रहते हैं।
व्यवहारिक जीवन में राम-नाम का महत्व
- सुबह उठते ही राम-नाम जप से दिन की शुरुआत सकारात्मकता से होती है।
- काम के बीच स्मरण करने से थकान भी नहीं लगती और किसी तरह का तनाव भी पास नहीं फटकता।
- सोने से पहले राम-नाम लेने से नींद, गहरी और सुकूनभरी होती है।
- मुश्किल की घड़ी में राम-नाम आशा और हिम्मत देता है।
- जनमानस के मुख से प्रायः यह कहते हुए सुना जाता है- "राम-नाम की लूट है, लूट सके जो लूट। अंतकाल पछताओगे तब तन जईहें छूट।।"
निष्कर्ष:-
राम-नाम जप केवल धार्मिक परंपरा ही नहीं है बल्कि सार्थक जीवन जीने की एक शक्तिशाली साधना और समाधान भी है। यह मन को शांति देता है, शरीर को स्वस्थ बनाता है, रिश्तों में मधुरता लाता है और आत्मा को परमात्मा से जोड़ता है।
इसलिए, चाहे आप किसी भी उम्र, स्थिति या परिस्थिति में हों – यदि रोज़ाना कुछ समय राम-नाम जप में लगाएँगे तो जीवन में अद्भुत अवश्य बदलाव देखेंगे।
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Nice
जवाब देंहटाएंNice 👌
जवाब देंहटाएंआप सभी को धन्यवाद!!!
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