परिचय
भारतीय संस्कृति और दर्शन में "ब्रह्मचर्य" को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया गया है। ब्रह्मचर्य का अर्थ है, ब्रह्म के अनुरूप आचरण करना अर्थात् परम-सत्य की प्राप्ति के लिए अपनाई गई जीवनशैली। यह आत्म-नियंत्रण का प्रतीक है। यह एक ऐसा मार्ग है जो आत्मा की उन्नति और जीवन के उच्चतम लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक होता है। संसार में प्रत्येक व्यक्ति आरोग्य और दीर्घ जीवन की इच्छा रखता है। किसी भी व्यक्ति के पास कितना भी संसार के वैभव और सुख-सामग्रियां क्यों न हों, परंतु यदि वह स्वस्थ न हो तो उसके लिए सब साधन-सामग्री व्यर्थ हैं। इस संदर्भ में एक विद्वान का कथन है, "स्वास्थ्य, धन से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है।" लेकिन संपूर्ण स्वास्थ्य के मूल में ब्रह्मचर्य है।
आरोग्य-शास्त्र के आचार्यों ने स्वास्थ्य-साधन की मूल चार बातें बतलाई हैं- आहार, श्रम, विश्राम एवं संयम। आहार द्वारा प्राणियों की देह का निर्माण एवं पोषण होता है। अतः उसका उपयुक्त होना सबसे पहली आवश्यकता है। दूसरा स्थान श्रम का है, क्योंकि उसके बिना न तो आहार प्राप्त हो सकता है और न ही वह खाने के बाद शरीर में आत्मसात हो सकता है। विश्राम भी स्वास्थ्य-रक्षा का आवश्यक अंग है। चौथी बात संयम है जो अन्य प्राणियों में तो प्राकृतिक रूप से पाया जाता है पर अपनी बुद्धि द्वारा प्रकृति पर विजय प्राप्त कर लेने का अभिमान रखने वाले मनुष्य के लिए ब्रह्मचर्य के उपदेश की नितांत आवश्यकता है।
पठन-सामग्री:
१. ब्रह्मचर्य का अर्थ एवं उद्देश्य
२. ब्रह्मचर्य और योग
३. ब्रह्मचर्य का महत्व
४. ब्रह्मचर्य पालन करने के नियम
५. आधुनिक विद्वानों द्वारा ब्रह्मचर्य का समर्थन
६. आधुनिक जीवन और ब्रह्मचर्य
७. ब्रह्मचर्य का ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक संदर्भ
८. ब्रह्मचर्य और विज्ञान
९. ब्रह्मचर्य की महिमा
१. ब्रह्मचर्य का अर्थ और परिभाषा
ब्रह्मचर्य का शाब्दिक अर्थ है "ब्रह्म के प्रति आचरण," अर्थात वह जीवनशैली जो आत्म-संयम, सादगी और उच्च आदर्शों पर आधारित हो। यह केवल यौन-संयम तक सीमित नहीं है; बल्कि यह मन, वाणी और कर्म में संयम, ध्यान, और एकाग्रता को प्रोत्साहित करता है। ब्रह्मचर्य का उद्देश्य व्यक्ति के भीतर मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक ऊर्जा को संरक्षित करना और उसका उपयोग आत्म-विकास के लिए करना है।
श्री किशोरीलाल मशरूवाला के अनुसार, "ब्रह्मचर्य का अर्थ है, ईश्वर के मार्ग पर चलना। इसे एक ऐसा जीवन-पथ माना गया है, जो व्यक्ति को मानसिक शांति, उच्च चरित्र और आत्मिक उन्नति की ओर ले जाता है। यह आत्म-नियंत्रण, इंद्रिय-निग्रह, और इच्छाओं पर काबू पाने की प्रक्रिया है। ब्रह्मचर्य, इंद्रियों को नियंत्रित करने का एक अनुशासन है, जिसे मुक्ति का मार्ग माना जाता है। वेदों और उपनिषदों में ब्रह्मचर्य को जीवन के चार प्रमुख आश्रमों (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, बाणप्रस्थ और सन्यास) में प्रथम आश्रम के रूप में वर्णित किया गया है। यह युवा अवस्था में अनुशासन और शिक्षा प्राप्त करने का समय होता है।
२. ब्रह्मचर्य और योग
अष्टांग योग में ब्रह्मचर्य:
पतंजलि के अष्टांग योग में ब्रह्मचर्य को यमों में से एक बताया गया है। यह योग-साधना का एक प्रमुख अंग है जो हमें जीवन में संतुलन और स्थिरता प्रदान करता है।
पतंजलि योग-सूत्र के अनुसार ब्रह्मचर्य:
पतंजलि के योग-सूत्र में ब्रह्मचर्य को इच्छाओं और वासनाओं से ऊपर उठने का माध्यम बताया गया है। यह आत्मा को स्थिर और मन को शांत करने का मार्ग है।
ध्यान और प्राणायाम में ब्रह्मचर्य का योगदान:
ध्यान और प्राणायाम के अभ्यास में ब्रह्मचर्य का पालन करने से मन की एकाग्रता बढ़ती है। यह साधक को ध्यान के उच्च स्तर तक पहुंचने में सहायता करता है।
३. ब्रह्मचर्य का महत्व
आत्मसंयम पर आधारित ब्रह्मचर्य, भारतीय संस्कृति और धर्म का एक प्रमुख आदर्श है। यह शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास के लिए अत्यंत आवश्यक माना गया है।
- ब्रह्मचर्य का पालन करने से शरीर की ऊर्जा संरक्षित रहती है और शक्ति में वृद्धि होती है।
- यह मन को शांति और स्थिरता प्रदान करता है, जिससे निर्णय लेने की क्षमता में सुधार होता है।
- ब्रह्मचर्य, आत्मा को उच्च आध्यात्मिक स्तर तक ले जाने में सहायक है। यह हमें परम सत्य और शाश्वत आनंद की प्राप्ति में मदद करता है।
- यह हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में सहायक है तथा शरीर की ऊर्जा को सकारात्मक दिशा में उपयोग करने की शिक्षा देता है।
- यह आत्मनियंत्रण का एक उत्कृष्ट माध्यम है। यह हमारे मन को इच्छाओं और वासनाओं से मुक्त कर, शांति और स्थिरता प्रदान करता है।
- यह ऊर्जा, शारीरिक शक्ति, मानसिक एकाग्रता, और आध्यात्मिक प्रगति में सहायक होती है।
- आध्यात्मिक साधनाओं में सफलता प्राप्त करने के लिए ब्रह्मचर्य का पालन अत्यंत आवश्यक है। यह आत्मा को शुद्ध करता है और ध्यान एवं योग में गहराई लाने में सहायक होता है।
- ब्रह्मचर्य का पालन व्यक्ति के चरित्र को मजबूत बनाता है। यह उसे नैतिक और सच्चा इंसान बनने में सहायता करता है, जिससे समाज में उसकी प्रतिष्ठा बढ़ती है।
- प्राचीन ग्रंथों में ब्रह्मचर्य को सफलता का मूल-मंत्र बताया गया है। इससे व्यक्ति अपने उद्देश्य पर ध्यान केंद्रित कर सकता है और अपने जीवन को उच्च आदर्शों के अनुरूप बना सकता है।
४. ब्रह्मचर्य पालन के नियम
ब्रह्मचर्य का पालन जीवन में संयम, अनुशासन और आत्म-नियंत्रण के माध्यम से किया जाता है। इसके लिए कुछ महत्वपूर्ण नियम हैं, जो व्यक्ति को इस मार्ग पर चलने में मदद करते हैं।
i) मन और विचारों का शुद्धिकरण:
- विचारों को शुद्ध और सकारात्मक बनाए रखना एवं नकारात्मक और वासनात्मक विचारों से बचना।
- सत्संग, ध्यान, और अध्ययन के माध्यम से मन को शुद्ध करना।
ii) इंद्रियों का नियंत्रण:
- आंख, कान, और अन्य इंद्रियों के माध्यम से आने वाले प्रलोभनों से बचना।
- संयमित दृष्टि और श्रवण का अभ्यास करना।
- टीवी, इंटरनेट एवं सोशल मीडिया पर अश्लील और अनुचित सामग्री से दूर रहना।
iii) शारीरिक संयम:
- शरीर की ऊर्जा को व्यर्थ के कार्यों में नष्ट होने से बचाना।
- संतुलित और सात्त्विक आहार ग्रहण करना।
iv) मानसिक अनुशासन:
- इच्छाओं और लालसाओं पर नियंत्रण रखना।
- ध्यान और आत्मचिंतन के द्वारा मानसिक स्थिरता प्राप्त करना।
- अनावश्यक विचारों से बचने के लिए मानसिक एकाग्रता का अभ्यास करना।
- उपवास करना।
v) आध्यात्मिक अभ्यास:
- ईश्वर की कृपा पर भरोसा रखना एवं उनका ध्यान करना।
- नियमित रूप से धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करना।
- सत्संग और गुरु के मार्गदर्शन में आध्यात्मिक मार्ग पर चलना।
vi) दिनचर्या का पालन:
- नियत समय पर उठना, दैनिक कार्यों को करना एवं सोना।
- अपनी दिनचर्या में अनुशासन बनाए रखना।
- नियमित रूप से योग, ध्यान, और प्राणायाम का अभ्यास।
vii) सुसंगति में रहना:
- अच्छी संगति करना और सकारात्मक लोगों के साथ समय बिताना।
- नकारात्मक और वासनात्मक संगति से बचना।
- प्रेरणादायक और ज्ञानवर्धक पुस्तकों का अध्ययन करना।
viii) शुद्ध एवं सात्त्विक आहार:
- शुद्ध, संयमित और पौष्टिक भोजन करना।
- स्वादेंद्रियों पर नियंत्रण रखना।
- तामसिक और राजसिक भोजन से बचना।
- अधिक और अनियमित खानपान से भी बचाव।
ix) आत्मनिरीक्षण:
- नियमित रूप से अपने कर्मों और विचारों का मूल्यांकन करना।
- अपनी गलतियों को पहचानकर उन्हें सुधारने का निरंतर प्रयास करना।
- आत्म-संयम को बढ़ाने के लिए दैनिक प्रयास करना।
x) सकारात्मक उद्देश्यों पर ध्यान केंद्रित करना:
- अपने जीवन के लक्ष्य और उद्देश्य पर ध्यान केंद्रित करना।
- अपनी ऊर्जा और समय को रचनात्मक और उपयोगी कार्यों में लगाना।
- समाज और मानवता के कल्याण के लिए सतत् प्रयत्नशील रहना।
५. आधुनिक विद्वानों द्वारा ब्रह्मचर्य का समर्थन
ब्रह्मचर्य की रक्षा और विकास का नियम ऐसा शाश्वत है कि प्राचीन ही नहीं, आधुनिक मनीषियों और विद्वानों ने भी उसका पूर्णतः समर्थन किया है और उसके लाभों को बतलाकर ठीक ढंग से पालन करने पर जोर दिया है।
"जैसे दीपक का तेल, बत्ती के द्वारा उपर चढ़कर प्रकाश के रूप में परिणत होता है वैसे ही ब्रह्मचारी के अंदर का वीर्य सुषुम्ना नाड़ी द्वारा उपर चढ़ता हुआ ज्ञान दीप्ति में परिणत हो जाता है।" - आत्मलीन स्वामी रामतीर्थ
"अगर आप ब्रह्मचर्य का पालन करेंगे तो आप में अतुल बल आयेगा"- स्वामी शिवानंद
"जितने अंशों तक जो मनुष्य ब्रह्मचर्य की विशेष रूप से रक्षा करता है, उतने अंशों तक वह मनुष्य विशेष महत्व का कार्य कर सकता है।"- प्रसिद्ध प्राकृतिक चिकित्सक डा. बेनीडिक्ट लुस्टा
"अचिन्त्य और अद्भुत पराक्रम करने के लिए तमाम अनुपम मानसिक तथा शारीरिक शक्तियाँ, प्रशंसनीय सद्गुण और दीर्घायु, केवल ब्रह्मचर्य के प्रताप से ही प्राप्त कर सकते हैं।"- प्रो. कृष्णराव
"ब्रह्मचारी की बुद्धि कुशाग्र, वाणी मोहक, स्मरण शक्ति तीव्र और उसका स्वभाव आनंदी एवं उत्साही होता है।"- प्रो. रौवसन
६. आधुनिक जीवन और ब्रह्मचर्य
आधुनिक समय में शिक्षित और अशिक्षित, दोनों प्रकार के व्यक्तियों की गति इस संबंध में विपरीत दिखाई पड़ती है। आजकल शिक्षित लोग भी नयी रोशनी से चकाचौंध होकर अपने प्राचीन आदर्शों से दूर हटते जा रहे हैं और उपरी चमक-दमक पर लट्टू होकर संयम तथा चरित्र दोनों के महत्व को भूलते जा रहे हैं। वे अब कहने लगे हैं कि ब्रह्मचर्य और आदर्श की बातें, केवल कहने और सुनने की बातें हैं, व्यवहार में ऐसे ब्रह्मचर्य का पालन कठिन ही नहीं, असंभव है। खाने-पीने और मलमूत्र के त्याग की ही तरह संभोगवृत्ति भी स्वाभाविक है। इस पर किसी भी प्रकार का अंकुश या बंदिश लगाना व्यर्थ है।
आधुनिक जीवन की चुनौतियाँ:
आधुनिक जीवन तीव्र गति, प्रतिस्पर्धा, और भौतिक सुखों की तलाश से परिभाषित होता है। तकनीकी प्रगति और सूचनाओं की बाढ़ ने जीवन को सहज तो बनाया है, लेकिन साथ ही तनाव, विकर्षण और मानसिक अस्थिरता को भी बढ़ाया है।
- सोशल मीडिया, इंटरनेट और २४/७ कनेक्टिविटी ने ध्यान भटकाने और अनावश्यक इच्छाएँ उत्पन्न करने के लिए आग में घी का काम किया है।
- आधुनिक समाज में ब्रह्मचर्य का पालन करना कठिन हो सकता है लेकिन असंभव नहीं। परिवार और समाज की अपेक्षाएं व्यक्ति को भ्रमित कर सकती हैं।
- भौतिक सुख-सुविधाओं के प्रति आकर्षण ने लोगों को बाहरी सुखों पर निर्भर बना दिया है, जिससे आंतरिक शांति प्रभावित होती है।
- व्यस्त जीवनशैली और उच्च प्रतिस्पर्धा के कारण लोग आत्म-निरीक्षण और संयम के लिए समय नहीं निकाल पाते।
आधुनिक जीवन में ब्रह्मचर्य का अभ्यास कैसे करें?
- समय-समय पर डिजिटल उपकरणों से दूरी बनाकर।
- मानसिक और शारीरिक शांति के लिए नियमित ध्यान और योग का अभ्यास।
- सकारात्मक और प्रेरणादायक संगति में रहना।
- जीवन के उच्च उद्देश्य को समझकर उसके अनुसार आचरण करना।
- अनुशासन और संयमित जीवनशैली अपनाना।
७. ब्रह्मचर्य का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भ
- गुरुकुल शिक्षा-प्रणाली में ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य था। यह शिक्षा और नैतिकता का आधार था।
- वेदों, उपनिषदों, और महाभारत जैसे धर्मग्रंथों में ब्रह्मचर्य का महत्व विस्तार से बताया गया है।
- महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानंद, और अन्य महापुरुषों ने ब्रह्मचर्य का पालन कर अपने जीवन को प्रेरणादायक बनाया।
८. ब्रह्मचर्य और विज्ञान:
- न्यूरोसाइंस के अनुसार, ब्रह्मचर्य का पालन मस्तिष्क के न्यूरोट्रांसमीटर को संतुलित करता है और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार करता है।
- ब्रह्मचर्य, शरीर की ऊर्जा-प्रणाली को स्थिर और सशक्त बनाता है।
- आधुनिक चिकित्सा-विज्ञान भी ब्रह्मचर्य को मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी मानता है।
९. ब्रह्मचर्य की महिमा
चरकसंहिता में, "ब्रह्मचर्य को सांसारिक सुख का साधन ही नहीं, मोक्ष-दाता बतलाया गया है।"
भगवान बुद्ध ने कहा था, "भोग और रोग साथी हैं और ब्रह्मचर्य आरोग्य का मूल-मंत्र है।"
गुरु गोविंद सिंह जी ने कहा है, "इंद्रिय संयम करो, ब्रह्मचर्य पालो। इससे तुम बलवान और वीर्यवान बनोगे।"
आयुर्वेद के आचार्य वाग्भट्ट का कथन है, "संसार में जितना सुख है, वह आयु के अधीन है और आयु ब्रह्मचर्य के अधीन है।"
'हठयोग प्रदीपिका' में लिखा है, "मनुष्य जब-तक ब्रह्मचारी रहता है तबतक उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं होता।"
भीष्म पितामह का कथन है, "तीनों लोकों के साम्राज्य का त्याग करना, स्वर्ग का अधिकार छोड़ देना, परंतु ब्रह्मचर्य को भंग मत करना।"
भगवान धनवंतरि ने उपदेश दिया था, "जो मनुष्य शांति, कांति, स्मृति, ज्ञान, आरोग्य और उत्तम संतान चाहता हो, उसे संसार के सर्वोत्तम-धर्म ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।"
निष्कर्ष
ब्रह्मचर्य, केवल आत्म-नियंत्रण और संयम का ही प्रतीक नहीं है, बल्कि यह मानसिक शांति, शारीरिक स्वास्थ्य, और आध्यात्मिक उन्नति का आधार भी है। यह भारतीय संस्कृति का एक अमूल्य तत्व है, जो आज भी अपनी प्रासंगिकता बनाए हुए है। ब्रह्मचर्य के मार्ग पर चलकर व्यक्ति अपने जीवन को संतुलित, सफल, और सार्थक बना सकता है। ब्रह्मचर्य एक ऐसा साधन है, जो व्यक्ति को परम आनंद और शाश्वत शांति की ओर ले जाता है।
ब्रह्मचर्य के पालन से व्यक्ति का संपूर्ण जीवन समृद्ध और संतुलित हो सकता है। आधुनिक जीवन की आपाधापी में ब्रह्मचर्य का पालन करना चुनौतीपूर्ण तो है, लेकिन असंभव नहीं। ब्रह्मचर्य का अभ्यास करने वाला व्यक्ति अपने जीवन के हर क्षेत्र में सकारात्मक परिवर्तन का अनुभव करता है।
संबंधित पोस्ट, जिन्हें आपको अवश्य पढ़ना चाहिए;
- जीवनशक्ति प्राण का विवेचन एवं प्राणायाम
- संयम, आत्म-संयम एवं इन्द्रियसंयम के उपाय एवं महत्व
- सात्विक का अर्थ एवं सात्विक भोजन
- मानव शरीर असीमित शक्तियों का भंडार है
- मन की शांति । शांति की खोज
- अपने जीवन को दिव्य बनाना ही मानवजीवन का उद्देश्य है
*****
.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें