संसार में आकर यह चेष्टा करना कि सब लोग एक सा ही जीवन व्यतीत करें, एक निरर्थक सी बात है। जीवन जीने के जो विभिन्न स्वरूप हैं, वे महत्व की दृष्टि से भले ही न्यूनाधिक हों पर समाज में सभी तरह के व्यक्तियों के लिए स्थान होता है। न तो सबके भोगी बन जाने से काम चल सकता है और न तो त्यागी बन जाने से। पर मनुष्य किसी भी लौकिक प्रवृत्ति को ग्रहण करे, उसे आत्मोन्नति का ध्यान अवश्य करना चाहिए। जो लोग जीवन का उद्देश्य केवल खाना, पीना और सांस लेना ही समझते हैं, वे भूल करते हैं।
अपने आदर्श और लक्ष्य तक पहुंचने के लिए, संग्राम करते रहना ही जिंदगी है। इस संग्राम में विजय प्राप्त करना ही जीवन है। अनेक प्रकार की जागृतियों को ही जीवन कहते हैं। मन और इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करिये। ये ही आपके असली शत्रु हैं। अपनी वाह्य और आंतरिक प्रकृति पर विजय प्राप्त करिये। अपनी पुरानी बुरी आदतों तथा कुविचारों को, कुसंस्कारों और कुवासनाओं को अवश्य जीतना होगा। इन पैशाचिक शक्तियों से युद्ध करना होगा।
आपका जन्म ही आत्मसाक्षात्कार के लिए हुआ है। आत्मिक रूप से
नियमित भजन करिये और आत्मिक सुख का अनुभव करिये। निष्काम कर्म के द्वारा अपने मन
और बुद्धि को शुद्ध करिये। इन्द्रिय-निग्रह से अपने ही स्वरूप में स्थिर होइए।
जीवन संग्राम में जब आप पर प्रतिदिन चोटें पड़ती हैं, जब आप धक्के खाते हैं तभी मन
आध्यात्मिक पथ की ओर झुकता है। तब सांसारिक विषयों से अन्यमनस्कता उत्पन्न होती है,
अरुचि होती है और इस प्रपंच से उद्धार पाने की उत्कंठा जाग्रत होती
है, विवेक और वैराग्य होता है।
इस शरीर को ही आत्मा समझ लेना बड़ा पाप है। इस भ्रमात्मक भाव को त्याग दिजिए। सांसारिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति करना, तरकीबों का सोचना, विचारधारा, झूठे मंसूबे बांधना, ख्याली पुलाव छोड़िये, चिरपालित मायावी आशावों को तिलांजलि दिजिए। वासनाओं और इच्छाओं का दमन कर उपर उठिए, बुद्धि से काम लीजिए। उपनिषदों का मनपूर्वक अध्ययन करिये। नियमित निदिध्यासन करिये। अविद्या और अज्ञान के गहन अंधकूप से बाहर निकलिए और ज्ञान रूपी सूर्य की जगमगाती ज्योति में स्नान करिये। इस ज्ञान में दूसरों को भी साथी बनाइये। अपवित्र इच्छाएँ और अविद्या आपको बहका लेती हैं। अत: इसे कभी न भूलिए कि मानव जीवन का मुख्य लक्ष्य और अंतिम उद्देश्य आत्म साक्षात्कार करना ही है। झूठे वाह्य आडम्बरों और माया के मिथ्या प्रपंचों में मत फंसिये। कल्पना के मिथ्या स्वप्नों से जागिए और थोथे, सारहीन प्रलोभनों के जाल में न फंसकर ठोस और जीती-जागती असलियत को ही पढ़िये। अपनी आत्मा से प्रेम करिये क्योंकि आत्मा ही परमात्मा या ब्रह्म है। यही सजीव मूर्तिमान सत्य है।
अपने हृदय में प्रेम की ज्योति जगाइए, सबको प्यार करिये, अपनी प्रगाढ़ प्रेम की बाहुओं से प्राणिमात्र का आलिंगन करिये। प्रेम एक ऐसा रहस्यमय सूत्र है जो सबके हृदयों को, "वसुधैव कुटुंबकम" समझकर एक में बांध लेता है। प्रेम एक ऐसी पीड़ानाशक स्वर्गीय महाऔषधि है जिसमें जादू की सी सामर्थ्य है। अपने प्रत्येक काम को विशुद्ध प्रेममय बनाइये। लोभ, धूर्तता, छल, कपट और स्वार्थपरता का हनन किजिए। अनवरत दयालुता के कार्यों से ही लक्ष्य की प्राप्ति हो सकती है। प्रेम में सने हुए हृदय से सतत सेवा करने से आपको अधिक बल, अधिक आनंद, और अधिक संतोष की प्राप्ति होगी। सब आपसे प्रेम करेंगे। दया दान और सेवा से हृदय पवित्र और कोमल हो जाता है और साधक का जीवन प्रस्फुटित और उर्ध्वमुखी होकर ईश्वरीय प्रकाश को ग्रहण करने के योग्य बन जाता है।
साभार: श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा लिखित पुस्तक, "जीवन और मृत्यु'
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