सात्विकता, भारतीय संस्कृति और दर्शन में एक महत्वपूर्ण अवधारणा है, जो मानव-जीवन के हर पहलू से जुड़ी हुई है। सात्विक शब्द, संस्कृत के ‘सत्त्व’ से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है- सत्व-गुण वाला, शुद्ध, पवित्र। भारतीय धर्मग्रंथों में मनुष्य के तीन गुणों का वर्णन किया गया है जिनमें सत्त्व (सतोगुण), रजस (रजोगुण), और तमस (तमोगुण)। ये तीन गुण हमारे जीवन की प्रवृत्तियों को दर्शाते हैं और उन्हीं के अनुरूप हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालते हैं। इन तीनों गुणों में सात्विक गुण, सर्वश्रेष्ठ और कल्याणकारी होता है। सात्विक-गुण का संबंध सद्गुण, शांति, पवित्रता और आत्मसंयम से होता है, और इसका सीधा असर व्यक्ति की मानसिक और शारीरिक स्थिति पर होता है। सात्विक गुण से संपन्न व्यक्ति ही प्रकृति और परमेश्वर का सानिध्य प्राप्त कर सकता है।
हमारे आहार, व्यवहार, विचार आदि की पवित्रता से सत्विक गुणों की वृद्धि होती है जिससे हमारा चित्त शांत और बुद्धि निर्मल होती है।
सात्विक का अर्थ:-
सात्विक का अर्थ केवल शारीरिक शुद्धता से नहीं, बल्कि मानसिक और भावनात्मक शुद्धता से भी है। यह ऐसी अवस्था है जिसमें मनुष्य एक संतुलित और शुद्ध मनोदशा में रहता है। सात्विक जीवनशैली में संयम, नैतिकता, और आत्म-नियंत्रण का विशेष महत्व है। इसका उद्देश्य है, सभी प्राणियों के प्रति मन में सद्विचार रखते एक शुद्ध और संतुलित जीवन जीना, जो न केवल व्यक्तिगत-सुख बल्कि सामाजिक और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग भी प्रशस्त करे।
सात्विक व्यक्ति: सात्विक प्रवृत्ति वाला व्यक्ति, जिसका आहार, व्यवहार और विचार सात्विक हों, जो मन, वाणी और कर्म से सबके कल्याण की बारे में सोचता हो, जो अनावश्यक क्रोध न करता हो, सात्विक व्यक्ति कहलाता है।
सात्विक-जीवनशैली: यह हमारे जीवनयापन का एक प्राकृतिक और संतुलित तरीका है जो ताजे व पौष्टिक शाकाहार का समर्थन करता है, योग-ध्यान और आध्यात्म की ओर प्रेरित करता है तथा स्वस्थ मानसिकता में मददगार होता है।
सात्विक विचार: ऐसे विचार जिनके अंदर निम्नलिखित भाव हों-
सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चित् दु:खभाग्भवेत्।।
अर्थ: सभी लोग सुखी रहें, सभी लोग रोगमुक्त रहें, सभी लोग मंगलकारी घटनाओं के साक्षी बनें, किसी को भी दुख का भागी न बनना पड़े।
सात्विक-प्रेम: सात्विक-प्रेम नैसर्गिक होता है। इसमें समर्पण और त्याग का भाव होता है तथा बदले में कुछ भी पाने की चाहत नहीं होती है।
सात्विक-भक्ति: निष्काम-भक्ति अर्थात् कामना से रहित भक्ति।
सात्विक आचरण: मनुष्य के वे आचरण जिनमें, सत्व-गुण, सदाचार, परोपकार, सत्य और मृदुभाषिता, दया, क्षमा, क्रोध न करना, आदि सद्गुणों का समावेश हो, सात्विक आचरण कहलाता है।
भारतीय योग और आध्यात्मिक परंपराओं में सात्विकता का महत्व विशेष रूप से बताया गया है। ध्यान-योग और प्राणायाम जैसी क्रियाएं, सात्विकता को बढ़ावा देती हैं। ये गतिविधियाँ मानसिक शांति, आत्म-ज्ञान और आध्यात्मिक शक्ति की प्राप्ति में भी सहायक होती हैं।
सात्विक भोजन:-
ऐसा भोजन जो शरीर को स्वस्थ रखता है, मन को शुद्ध, शांत और प्रफुल्लित बनाता है तथा जिसमें सत्व-गुण की प्रधानता हो, सात्विक भोजन कहलाता है। यह भोजन प्रकृति के अनुकूल और स्वाभाविक होता है। यह हल्का, सुपाच्य और पौष्टिक होता है। इसमें मादक पदार्थों का समावेश नहीं होता है। सात्विक-भोजन, लहसुन-प्याज के इस्तेमाल के बिना, ताजे, प्राकृतिक और शाकाहारी पदार्थों से बनते हैं। इन्हें शुद्धता और सरलता के साथ तैयार किया जाता है। सात्विक भोजन का मुख्य उद्देश्य शरीर को स्वास्थ्य तथा ऊर्जा प्रदान करना तथा और मन को शांत एवं स्थिर रखना है।
भोजन का शरीर और मन के उपर गहरा प्रभाव पड़ता है। आहार के विषय में एक कहावत बहुत प्रचलित है, "जैसा अन्न, वैसा मन"। सात्विक-आहार से ही सात्विक विचार आते हैं। सात्विक-भोजन में वे सभी प्रकार के खाद्य-पदार्थ शामिल होते हैं जो शरीर और मन के उपर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। इनमें फल, सब्जियां, अनाज, दालें, नट्स, बीज, गुड़, शहद, दूध और दूध से बने उत्पाद शामिल होते हैं। यह भोजन प्रकृति के नियमों के अनुसार होता है। इसे सही समय पर, सही मात्रा में ग्रहण करना भी महत्वपूर्ण माना जाता है।
सात्विक भोजन और भारतीय संस्कृति:
भारतीय संस्कृति में भोजन को केवल पेट भरने का साधन नहीं माना जाता, बल्कि इसे आत्मा की शुद्धि और उन्नति का एक उत्तम मार्ग समझा जाता है। यही कारण है कि सात्विक भोजन का भारतीय समाज और धर्म में विशेष महत्व है। पुराने ग्रंथों में भोजन को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है—सात्विक, राजसिक, और तामसिक। इनमें से सात्विक भोजन को सर्वोत्तम माना जाता है, क्योंकि यह व्यक्ति को शुद्ध, सरल और शांत रखता है और आत्म-नियंत्रण में सहायक होता है।
भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं में भोजन को ‘प्रसाद’ के रूप में देखा जाता है, जो भगवान का आशीर्वाद होता है। यही कारण है कि धार्मिक स्थलों और त्योहारों पर सात्विक-भोजन, प्रसाद के तौर पर खिलाया जाता है। यह न केवल भक्तों को शारीरिक रूप से पोषण प्रदान करता है, बल्कि उन्हें मानसिक और आध्यात्मिक संतुलन भी प्रदान करता है।
सात्विक भोजन और आयुर्वेद:
आयुर्वेद, जो प्राचीन भारतीय चिकित्सा-प्रणाली है, उसमें भी सात्विक भोजन का उल्लेख विशेष रूप से किया गया है। आयुर्वेद के अनुसार, हमारा भोजन, हमारे शरीर के साथ-साथ मन और आत्मा पर भी गहरा असर डालता है। सात्विक भोजन न केवल शरीर की प्रकृति के अनुकूल होता है, बल्कि यह मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य को संजीवनी भी प्रदान करता है।
आयुर्वेद में इस बात पर जोर दिया गया है कि हमें मौसम, भौगोलिक स्थिति और अपनी शारीरिक प्रकृति के अनुसार भोजन का चयन करना चाहिए। सात्विक भोजन का आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि यह त्रिदोषों, "वात, पित्त, और कफ" को संतुलित रखने में मदद करता है। आयुर्वेद में कहा गया है कि जब ये तीनों दोष संतुलित अवस्था रहते हैं, तब व्यक्ति का शरीर और मन, दोनों स्वस्थ रहते हैं।
सात्विक-भोजन पर कविता:
हमारे यहाँ कहते वेद-पुराण और ज्ञानी,
भारत की बात पूरे विश्व ने अब मानी।
हम खाते जैसा अन्न, वैसा बने तन और मन,
शुद्ध-सात्विक भोजन ही करता संपन्न।।
घर का बना भोजन होता सबसे न्यारा,
प्रेम-परवाह के संग बनाया जाता सारा।
अच्छा भोजन, जीवन सुरक्षित बनाता,
बल, बुद्धि, आरोग्य, आयु को बढ़ाता।।
सौजन्य: सपना सी. पी. साहू "स्वप्निल", इंदौर म. प्र. द्वारा रचित
सात्विक भोजन के प्रकार:-
सात्विक भोजन, विशेष रूप से शाकाहारी होता है। इसमें ताजगी, पोषण और पवित्रता पर विशेष ध्यान दिया जाता है। कुछ प्रमुख सात्विक खाद्य-पदार्थ इस प्रकार हैं;
मौसमी-फल और सब्जियां: सभी प्रकार के ताजे मौसमी फल और सब्जियां, सात्विक मानी जाती हैं। इन्हें बिना किसी रासायनिक खाद या कीटनाशक के उपयोग से उगाया जाना चाहिए। फलों में, सेब, केला, संतरा, पपीता, अंगूर, अनार आदि। सब्जियां- आलू, गोभी, टमाटर, मूली, गाजर, चुकंदर, परवल, तोरई, भिन्डी, करेला, लौकी, टिण्डा, सहजन आदि और पालक, चौलाई जैसे साग। इन्हें कच्चा या उबालकर खाना अधिक फायदेमंद होता है।
अनाज और दालें: जौ, गेहूँ, चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का, रागी (मड़ुआ), चना, मटर, मूंग, मसूर, दलिया, अंकुरित अनाज और सभी प्रकार की दालों को सात्विक भोजन में शामिल किया जाता है।
दूध और दुग्ध-उत्पाद: दूध, दही, चीज़, मक्खन, पनीर आदि सात्विक खाद्य-पदार्थों में शामिल होते हैं।
सूखे मेवे और बीज: बादाम, काजू, किशमिश, अखरोट के अलावा कद्दू, सूरजमुखी, तिल, अलसी आदि के बीज।
तेल और मसाले: सात्विक भोजन में तेल-मसालों का कम मात्रा में प्रयोग होता है। तेल-वसा में- घी, सरसों, अलसी, सूरजमुखी आदि का तेल और मसालों में, हल्दी, अदरक, इलायची, धनियाँ, सौंफ़, दालचीनी, जीरा, मेथी आदि शामिल हैं।
पेय पदार्थ: स्वच्छ पानी के अलावा नारियल का पानी, फलों का रस, गन्ने का रस, गाय का दूध, छाछ आदि।
सात्विक भोजन के गुण:
- यह आसानी से हजम होता है।
- शरीर में स्फूर्ति और ताजगी रहती है।
- इसमें पोषक तत्व भरपूर मात्रा में होता है।
- यह मन में शांति, स्थिरता, और विचारों में शुद्धता एवं दृढ़ता लाता है।
- यह स्वास्थ्य, बुद्धि और ओजवर्धक होता है।
- ध्यान में एकाग्रता बढ़ती है।
- आत्मिक संतुष्टि प्रदान करता है।
- उन्नति में सहायक होता है।
- इसे पकाना सरल होता है।
सात्विक भोजन के फायदे:-
भारत में सात्विक भोजन का सेवन केवल पूजा-पाठ के दौरान ही नहीं बल्कि आजकल लोग उसके फायदों को बखूबी जानकर, उसका अनुशरण भी बड़ी तेजी से कर रहे हैं। सात्विक भोजन के अनेक लाभ होते हैं, जैसे-
शारीरिक स्वास्थ्य:
- आवश्यक पोषक-तत्व प्रदान करता है।
- पाचन-तंत्र को मजबूत करता है।
- रोग-प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है।
मानसिक शांति: सात्विक भोजन का सेवन करने से-
- मन शांत, एकाग्र और स्थिर रहता है।
- तनाव और चिंता कम होती है।
- मानसिक संतुलन बना रहता है।
- यह ध्यान और योग के अभ्यास में भी सहायक होता है।
आध्यात्मिक उन्नति: सात्विक भोजन का सीधा संबंध आध्यात्मिकता से है। यह व्यक्ति को-
- आत्म-ज्ञान की दिशा में प्रेरित करता है।
- उच्च-आध्यात्मिक स्तर तक पहुँचने में भी मदद करता है।
ऊर्जा में वृद्धि: सात्विक भोजन से-
- शरीर को ऊर्जा मिलती है।
- यह शारीरिक और मानसिक रूप से सक्रिय और ताजगी महसूस कराता है।
- इससे थकान दूर होता है।
विषाक्तता से मुक्ति: सात्विक भोजन विषाक्त पदार्थों से मुक्त होता है और यह शरीर को प्राकृतिक रूप से डिटॉक्स करने में मदद करता है।
सरल पाचन-क्रिया:
- यह पाचन को सरल और सहज बनाता है।
- सुपाच्य होने से शरीर में भारीपन और अस्वस्थता का अनुभव नहीं होता।
बिमारियों से रक्षा: सात्विक भोजन से रक्तचाप, मधुमेह, थायरॉयड जैसी बिमारियों से बचाव होता है।
वजन नियंत्रण में सहायक:
- वजन नियंत्रण में सहायक होता है।
- इससे क्राॅनिक बिमारियों का खतरा भी अपेक्षाकृत कम होता है।
निष्कर्ष:
सात्विक का अर्थ शुद्ध, पवित्र, और संतुलित होता है, जो मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक विकास के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। सात्विक भोजन सिर्फ हमारे शरीर को पोषण देने का साधन ही नहीं है, बल्कि यह हमारे शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य को संतुलित और शुद्ध रखने का एक प्रमुख स्रोत भी है।
यह भोजन प्राकृतिक होता है, इसमें कोई भी अप्राकृतिक या रासायनिक पदार्थ का मिलावट नहीं होता है। इसके नियमित सेवन से हमारा शरीर स्वस्थ, मन शुद्ध और शांति की अवस्था में रहता है। योग और ध्यान के अभ्यास में भी सात्विक आहार की महत्ता बताई गई है। हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृति और योग-दर्शन में सात्विकता का जो महत्व बताया गया है, वह आज भी उतना ही प्रासंगिक है।
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