19 सितंबर 2024

कामयाबी के लिए क्या धूर्त होना जरूरी है?

धूर्तता एक ऐसी प्रवृत्ति है, जिसे आमतौर पर नकारात्मक रूप से देखा जाता है। यह एक प्रकार की चालाकी है, जिसमें व्यक्ति अपनी सफलता के लिए दूसरों को धोखा देने या अनुचित साधनों का उपयोग करने की प्रवृत्ति रखता है। लेकिन क्या कामयाबी के लिए धूर्त होना जरूरी है? यह सवाल न केवल व्यावसायिक जीवन में बल्कि सामाजिक, नैतिक, और व्यक्तिगत जीवन में भी महत्वपूर्ण है। 

अक्सर आप सुनते होंगे, "जमाना बेदर्द है", "अब तो नेकी का जमाना ही नहीं रहा"....इत्यादि। आपके इर्द-गिर्द भी ऐसे लोग ही कामयाब नज़र आते होंगे जो संवेदनहीन, निर्दयी और बेदिल हों। फिल्मों में भी विलेन के पास ही दौलत और शोहरत का खजाना होता है। 

ये सब देख-सुनकर कहीं ऐसा तो नहीं लगता कि जिंदगी में कामयाबी के लिए निर्दयी और अहंकारी होना जरूरी है? तो चलिए, इस सवाल का जबाब तलाशने की कोशिश करते हैं। पहले तो आपको यह बता दें कि निर्दयी लोग कितने तरह के होते हैं। मनोवैज्ञानिकों ने ढेर सारे शोध के बाद पाया है कि ऐसे लोग तीन तरह के होते हैं। 

पहला, अहंकारी जिसे अंग्रेजी में 'नार्सिसिस्ट' कहते हैं। ऐसे लोग खुद में खोये रहते हैं। अपने-आप को ही सबसे बेहतर समझते हैं। किसी और को कुछ नहीं मानते। 

दूसरे हैं मनोरोगी। ऐसे लोग दूसरों की भावनाओं का जरा भी ख्याल नहीं करते, अक्सर बिना सोचे-समझे आवेग में फैसले लेते हैं। लोगों से बेअदबी, बेरहमी से पेश आते हैं।

बेदर्द लोगों की सबसे खतरनाक किस्म होती है, धूर्त। मनोवैज्ञानिक उसे अंग्रेजी में 'मैकियावेलियन' कहते हैं। ये अपनी कामयाबी के लिए कुछ भी करेंगे, किसी भी हद तक जा सकते हैं। 

वैसे वैज्ञानिकों ने इन तीनों गुणों को 'डार्क ट्रायड' का नाम दिया है। कई बार ऐसा होता है कि ये तीनों ही ऐब एक इंसान में देखे जाते हैं। ऐसा शख्स जो अहंकारी होता है, खोखला होता है, बेदर्द होता है। वह हमेशा साजिश रचने में मशगूल रहता है। दूसरों की उसे कोई फिक्र नहीं होती है। अब इतने दुर्गुण होंगे तो वो मनोरोगी ही कहा जायेगा। 

लेकिन सवाल ये है कि इनमें से किस किस्म का निर्दयी होना आपके लिए सबसे ज्यादा फायदेमंद होगा।  स्विट्जरलैंड की बर्न यूनिवर्सिटी के डेनियल स्पर्क ने इस सवाल का जबाब तलाश करने के लिए जर्मनी के लगभग आठ सौ लोगों की आनलाइन सर्वे की, जिसमें हर क्षेत्र में काम करने वाले लोग शामिल थे। इस सर्वे के नतीजे चौंकाने वाले थे। 

डेनियल स्पर्क कहते हैं कि मनोरोगियों का अपने बर्ताव पर कोई कन्ट्रोल नहीं होता। इनकी रिस्क लेने की काबिलियत, कई जगह भले ही काम आ सकती है। स्पर्क यह भी कहते हैं कि बिना सोचे-समझे कुछ करने की इनकी यह आदत आगे चलकर नुकसानदेह भी साबित होती है। ये अमूमन अपने मूड के उतार-चढ़ाव के शिकार होते हैं और काम में इनका मन नहीं लगता। 

निर्दयी लोगों के डार्क ट्रायड में मैकियावेलियन्स यानी धूर्त किस्म के लोग ज्यादा कामयाब होते हैं। तेजी से तरक्की की सीढ़ियां चढ़ते हैं। अब अगर आप दूसरों के काम का क्रेडिट लेंगे, उन पर अपना नियंत्रण रखेंगे तो जाहिर है, आप उनसे आगे निकल जायेंगे। लेकिन अगर कामयाबी को पैसे से मापा जाये तो इस पैमाने पर आत्ममुग्ध यानी खुद को सबसे अच्छा मानने वाले नार्सिसिस्ट यानी अपने आप में खोये रहने वाले लोग सब पर बाजी मार ले गए। डेनियल स्पर्क कहते हैं कि इस तरह के लोग दूसरों पर अपना प्रभाव जमाने में और मोलतोल करने में ज्यादा कामयाब होते हैं। 

लेकिन, अगर आप इन लोगों की कामयाबी को देखकर अपने अंदर बेदर्दी का भाव पैदा करना चाहते हों, तो ठहर जाइए, जरा सोच विचार कर लिजिए। क्योंकि डेनियल स्पर्क के सर्वे में एक और बात सामने आयी है। करियर में कामयाबी हासिल करने वाले, पैसे कमाने में आगे निकलने वाले, ये मनोरोगी या आत्ममुग्ध लोग जिंदगी के दूसरे क्षेत्रों में अक्सर पिछड़ जाते हैं। इनकी शुरुआत भले ही असरदार और शानदार लगती हो लेकिन बाद में इनका यही गुण लोगों को ऐब लगने लगते हैं। खुद में खोये रहने की इनकी आदत से दूसरे लोग इनसे दूर होने लगते हैं। ये अकेले पड़ जाते हैं। 

नेकी की आदत से आप भले ही बहुत आगे न जा सकें, भले ही आप तरक्की की सीढ़ियां तेजी से न चढ़ सकें लेकिन इतना तो तय है कि नेकी करने वाले जिंदगी में ज्यादा खुश रहते हैं, उनकी सेहत भी बेहतर रहती है। धूर्तता से आप कामयाबी तो हासिल कर लेंगे परंतु इसमें स्थायित्व नहीं होगा। असल कामयाबी के लिए आपके भीतर हुनर और बुद्धिमानी होना ज्यादा जरूरी है। 

कामयाबी के लिए धूर्तता का रास्ता अपनाने के पीछे कुछ प्रमुख कारण:

  • जल्दी परिणाम पाने की इच्छा। 
  • कामयाबी का शार्टकट का रास्ता देखना। 
  • समाज में प्रतिस्पर्धा का बढ़ता दबाव। 
  • समाज में सफलता का मापदंड केवल पैसा, ताकत और प्रतिष्ठा तक सीमित होना। 
  • भौतिक सुख-सुविधा और चकाचौंध के प्रति लोगों का गहराता आकर्षण
  • सिस्टम की खामियां
  • लोगों की कमजोरियों का लाभ उठाना
  • धैर्य और आत्मविश्वास की कमी

धूर्तता बनाम ईमानदारी (लघु कहानी):

रमेश और सुरेश एक ही गाँव के रहने वाले थे। दोनों का सपना था कि वे बड़े होकर सफल व्यापारी बनें और अपने गाँव का नाम रोशन करें। दोनों बचपन के दोस्त थे, लेकिन उनकी सोच और काम करने के तरीके पूरी तरह अलग थे। रमेश को हमेशा लगता था, "धूर्तता और चालाकी के बिना सफलता पाना असंभव है" जबकि सुरेश का मानना था कि "असली कामयाबी, मेहनत, ईमानदारी और धैर्य से काम करने पर मिलती है।"

समय बीतता गया, और एक दिन दोनों ने मिलकर व्यापार शुरू करने का निश्चय किया और गाँव में ही एक मिठाई की दुकान खोल ली। शुरुआती दिनों में दोनों ने मिलकर कड़ी मेहनत की और धीरे-धीरे दुकान चल पड़ी। लेकिन जल्द ही रमेश और सुरेश के बीच मतभेद उभरने लगे।

रमेश अक्सर सोचता था कि अधिक मुनाफा कमाने और ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए सस्ती सामग्री का उपयोग करके लागत कम करना चाहिए, भले है मिठाई की गुणवत्ता ठीक न हो। दूसरी ओर, सुरेश ने हमेशा उच्च गुणवत्ता का ध्यान रखा और ग्राहकों के साथ ईमानदारी से व्यवहार किया। वह चाहता था कि ग्राहक उनके उत्पाद से खुश रहें और उनके ऊपर विश्वास बनाए रखें। 

कुछ समय बाद, रमेश ने सुरेश से अलग होने का फैसला किया और अपनी एक नई दुकान खोल ली। उसने अपनी योजना के मुताबिक सुरेश की तुलना में लागत कम करके सस्ती मिठाइयाँ बेंचना शुरू किया, और उसकी चालाकी के कारण उसका मुनाफा भी जल्दी बढ़ने लगा। गाँव के लोग भी उसकी दुकान की ओर आकर्षित हुए क्योंकि वहाँ मिठाइयाँ सस्ती मिल रही थीं। रमेश ने सोचा कि अब तो उसकी कामयाबी पक्की है।

दूसरी ओर, सुरेश की दुकान में ग्राहक कम आ रहे थे क्योंकि उसकी मिठाइयाँ थोड़ी महंगी थीं। लेकिन जो भी ग्राहक आता, वह सुरेश की ईमानदारी और मिठाइयों की गुणवत्ता से संतुष्ट होकर जाता। धीरे-धीरे सुरेश के पास वही ग्राहक बार-बार आने लगे, और उन्होंने गाँव में सुरेश की ईमानदारी की चर्चा शुरू कर दी।

समय बीता, और रमेश की दुकान की सच्चाई सामने आने लगी। उसकी मिठाइयों की गुणवत्ता गिरती गई, और ग्राहक उसकी धूर्तता को पहचानने लगे। धीरे-धीरे गाँव के लोगों ने रमेश की दुकान में जाना बंद कर दिया। उसकी अस्थायी सफलता उसके ही धूर्त तरीकों की वजह से खत्म हो गई। वहीं, सुरेश की ईमानदारी और मेहनत का फल मिलने लगा। उसके ग्राहकों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ती गई। गाँव के लोग उसकी तारीफ करने लगे और उसके प्रति विश्वास और सम्मान बढ़ता गया। सुरेश की दुकान अब पूरे गाँव में प्रसिद्ध हो गई, और वह एक सफल व्यापारी के रूप में जाना जाने लगा। रमेश, जिसने सोचा था कि धूर्तता से वह तेजी से सफल हो जाएगा, अब पछता रहा था, क्योंकि उसका व्यापार ठप्प हो गया। 

सीख: धूर्तता से अस्थायी सफलता तो मिल सकती है, लेकिन दीर्घकालिक और स्थायी कामयाबी के लिए ईमानदारी, धैर्य, और परिश्रम की आवश्यकता होती है।

कामयाबी के महत्वपूर्ण सूत्र:

  • स्पष्ट लक्ष्य का निर्धारण
  • नियमित कड़ी मेहनत और दृढ़ता
  • निरंतर सीखने की इच्छा
  • समय प्रबंधन और अनुशासन की आदत
  • सकारात्मक मानसिकता और आत्मविश्वास
  • संबंध और आपसी सहयोग
  • स्वास्थ्य और मानसिक संतुलन
  • आलोचनाओं से सीख लेना
  • नैतिकता और ईमानदारी
  • हार्ड-वर्क की जगह स्मार्ट-वर्क करना
  • योजना बनाना
  • सपने देखना
  • धैर्य रखना
सौजन्य: "यैस ओशो" मासिक पत्रिका, अप्रैल २०१६ के अंक के "सोचें जरा" स्तंभ में छपा लेख, "कामयाब होने के लिए क्या धूर्त होना जरूरी है?"

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