19 सितंबर 2025

दिनोंदिन बढ़ता प्राकृतिक कहर: जिम्मेदार कौन और समाधान के उपाय

प्रस्तावना:-

आज के दौर में प्राकृतिक आपदाएँ दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं। कभी बाढ़ तो कभी सूखा, कहीं भूकंप तो कहीं जंगल की आग, कहीं बादल फटने और भूस्खलन का कहर तो कहीं आकाशीय बिजली का तांडव– इन सबने मानव-जीवन को हिला कर रख दिया है। पहले लोग मानते थे कि इस तरह की आपदाएँ केवल “प्रकृति का क्रोध” हैं, लेकिन आज वैज्ञानिक मानते हैं कि इन आपदाओं के पीछे मानव गतिविधियों की भी अहम् भूमिका है।

अब सवाल ये उठता है – इस तरह की प्राकृतिक आपदाओं के लिए जिम्मेदार कौन? क्या यह केवल प्रकृति की देन है या फिर इंसानी लापरवाही भी इसका कारण है?

प्राकृतिक आपदाओं के बढ़ते कारण, मानव जिम्मेदारी और बचाव के उपाय जानें। ग्लोबल वार्मिंग व पर्यावरण असंतुलन से बचने के समाधान भी पढ़ें।

१. प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती घटनाएँ:-

> बीते कुछ दशकों में प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति और तीव्रता में तेजी से इज़ाफा हुआ है।

> सन् २०२३ ई. में भारत के कई हिस्सों में असामान्य बाढ़ आयी। 

> कैलिफोर्निया, ऑस्ट्रेलिया और ग्रीस जैसे देशों में जंगल की आग ने लाखों हेक्टेयर क्षेत्र को जलाकर खाक कर दिया।

> हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियर पिघलने से बाढ़ और भूस्खलन की घटनाएँ बढ़ रही हैं।

> अभी इसी साल २०२५ की इस बारिश में भारत के अधिकांश हिस्सों में आयी बाढ़ की विभिषिका, बादल फटने और आकाशीय बिजली गिरने की जितनी घटनाएं हुयी हैं और जानमाल की जितनी क्षति हुयी है, उतना तो शायद हमने पहले कभी नहीं सुना। 

ये सब घटनाएं गंभीर है और इन्हें देखते हुए यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिरकार इस तरह की प्राकृतिक आपदाओं के लिए जिम्मेदार कौन है? 

२. जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग:-

> आज वैश्विक तापमान औसतन १.२°C बढ़ चुका है। सुनने में यह संख्या छोटी लगती है, लेकिन इसके प्रभाव विनाशकारी हैं।

> हिमालय और आर्कटिक क्षेत्र में ग्लेशियर पिघल रहे हैं।

> महासागरों का जल-स्तर निरंतर बढ़ रहा है, जिससे उनके तट पर बसे शहर, खतरे में हैं।

> वर्षा का पैटर्न अब बदल गया है – कहीं बेमौसम बारिश, कहीं लम्बा सूखा। विगत कई वर्षों से यह देखा जा रहा है कि अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में कम वारिश हो रही है वहीं रेगिस्तानी इलाके में बाढ़ जैसे हालात होते जा रहे हैं। 

यानी ग्लोबल वार्मिंग और बढ़ता प्राकृतिक संकट केवल वैज्ञानिक आंकड़ा नहीं, बल्कि हमारी रोजमर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा बन गया है।

३. दिनोंदिन बढ़ते प्राकृतिक कहर में मानव गतिविधियों की भूमिका:-

प्रकृति का संतुलन बिगाड़ने में इंसानी लापरवाही सबसे बड़ी वजह है।

(क) वनों की कटाई और शहरीकरण:

  • हर साल लाखों-करोड़ों की संख्या में पेड़ काटे जाते हैं ताकि शहरों का विस्तार हो सके।
  • जंगल खत्म होने से बारिश का संतुलन बिगड़ता है और भूस्खलन की घटनाएँ बढ़ती हैं।

(ख) औद्योगिक प्रदूषण:

  • फैक्ट्रियों से निकलने वाला धुआँ और जहरीली गैसें, पानी और मिट्टी को जहरीला बना रहे हैं।
  • कार्बन डाइऑक्साइड और ग्रीनहाउस गैसें, ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ा रही हैं।

(ग) प्राकृतिक संसाधनों का गैरजिम्मेदराना उपभोग:

  • प्लास्टिक का अंधाधुंध उपयोग, भूजल का अत्यधिक दोहन और पेट्रोल-डीज़ल का अधिक प्रयोग भी प्राकृतिक आपदाओं को न्योता दे रहे हैं।
  • यानी इंसानी लापरवाही से उत्पन्न प्राकृतिक कहर एक सच्चाई है जिसे अब नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता।

४. बढ़ती आपदाओं के लिए जिम्मेदार कौन है?

अब सवाल उठता है कि इन बढ़ती आपदाओं के लिए जिम्मेदार कौन है।

(क) सरकार:

  • विकास परियोजनाओं के क्रियान्वयन में पर्यावरणीय प्रभाव को नज़रअंदाज किया जाता है।
  • खनन, बांध-निर्माण और अवैध पेड़ कटाई को रोकने में ढिलाई बरती जाती है।

(ख) समाज:

  • आम लोग कचरा फैलाने, पानी और बिजली की बर्बादी करने, प्लास्टिक का इस्तेमाल बढ़ाने में योगदान देते हैं।
  • जागरूकता की कमी के कारण लोग पर्यावरण को बचाने के लिए पहल नहीं करते।

(ग) अंतरराष्ट्रीय स्तर:

विकसित देश सबसे ज्यादा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जित करते हैं लेकिन इसका सबसे ज्यादा नुकसान गरीब और विकासशील देशों को झेलना पड़ता है।

यानी पर्यावरण असंतुलन में मानव जिम्मेदारी की महत्वपूर्ण भूमिका है। दोष केवल सरकार या उद्योगों का ही नहीं, बल्कि समाज और हर नागरिक का भी है।

५. प्राकृतिक कहर का समाधान और बचाव के उपाय:-

(क) नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग:

  • सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और जल ऊर्जा का इस्तेमाल बढ़ाया जाए।
  • कोयला और पेट्रोलियम पर निर्भरता घटाई जाए।

(ख) पर्यावरण संरक्षण:

  • वृक्षारोपण को जनआंदोलन बनाया जाए।
  • प्लास्टिक और प्रदूषण पर सख्त नियंत्रण लगे।

(ग) आपदा प्रबंधन:

  • बाढ़, सूखा और भूकंप जैसी आपदाओं से बचाव की तैयारी पहले से हो।
  • गांव-गांव में जागरूकता अभियान चलाए जाएँ।

(घ) व्यक्तिगत जिम्मेदारी:

  • बिजली और पानी की बचत करें।
  • कार-पूलिंग और पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग करें। 
  • कचरा पृथक्करण और रिसाइक्लिंग की आदत डालें।

इन प्रयासों के फलस्वरूप, प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के उपाय और रणनीतियाँ मजबूत होंगी और भविष्य सुरक्षित बनेगा।👌

निष्कर्ष:-

प्रकृति हमें चेतावनी देती है – कभी बाढ़ के रूप में, कभी सूखे के रूप में, कभी आग या भूकंप के रूप में। सवाल यह नहीं कि “प्राकृतिक कहर क्यों बढ़ रहा है?”, बल्कि यह है कि “हम इसे रोकने के लिए क्या कर रहे हैं?”

आज आवश्यकता है कि हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी को बखूबी समझे। सरकार, समाज और अंतरराष्ट्रीय समुदाय – सब मिलकर इसपर काम करें। तभी हम लगातार बढ़ते प्राकृतिक कहर का समाधान खोज पाएँगे और आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित और हरा-भरा भविष्य बना पाएँगे।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs):-

Q1. दिनोदिन बढ़ते प्राकृतिक कहर का मुख्य कारण क्या है?

👉 इसका मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई और मानव की लापरवाह गतिविधियाँ हैं।

Q2. प्राकृतिक आपदाओं के लिए जिम्मेदार कौन है – प्रकृति या इंसान?

👉 आपदाएँ प्राकृतिक होती हैं, लेकिन उनकी तीव्रता और आवृत्ति बढ़ाने में इंसान की भूमिका सबसे अधिक है।

Q3. ग्लोबल वार्मिंग का प्राकृतिक आपदाओं से क्या संबंध है?

👉 ग्लोबल वार्मिंग से तापमान बढ़ता है, जिससे बर्फ पिघलती है, समुद्र स्तर बढ़ता है और असामान्य मौसम पैटर्न बनते हैं।

Q4. प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के उपाय क्या हैं?

👉 नवीकरणीय ऊर्जा का प्रयोग, वृक्षारोपण, प्रदूषण-नियंत्रण और आपदा-प्रबंधन की तैयारी सबसे प्रभावी उपाय हैं।

Q5. क्या आम लोग भी पर्यावरण असंतुलन को रोकने में योगदान दे सकते हैं?

👉 हाँ, बिजली-पानी बचाकर, प्लास्टिक का कम उपयोग करके और वृक्षारोपण में भाग लेकर हर नागरिक योगदान दे सकता है।

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