7 सितंबर 2025

"ढाई अक्षर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय"– जीवन का वास्तविक ज्ञान

भूमिका:-

भारतीय संत परंपरा में कबीर दास जी का नाम सबसे ऊँचा माना जाता है। उनकी वाणी में गहरा सत्य, सरलता और जीवन का सार छिपा होता है। उनका प्रसिद्ध कथन– पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय। ढाई अक्षर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।" का तात्पर्य है, "सच्चा ज्ञानी वही है जो  प्रेम के वास्तविक अर्थ को जान ले और उसे अपने जीवन में उतार ले।"

प्रेम, नैसर्गिक शब्द है। यह शब्द जितना छोटा है, उसका भाव उतना ही गहरा और व्यापक है। प्रेम की भाषा मनुष्य ही नहीं वरन् पशु, पक्षी यहाँ तक कि वनस्पति-जगत तक समझती हैं और उसे भलीभाँति महसूस भी करती हैं। प्रेम के वश में तो भगवान् भी हो जाते हैं। इसीलिए संत कबीर दास जी के "ढाई अक्षर प्रेम का", कथन आज भी जनमानस को गंभीरता से सोचने और समझने पर मजबूर कर देता है।

संत कबीर दास जी के संदेश “ढाई अक्षर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय” का सरल अर्थ, महत्व और आधुनिक जीवन में इसकी प्रासंगिकता को आप यहाँ आसान भाषा में जानें। 

“ढाई अक्षर प्रेम का” का अर्थ क्या है?

“ढाई अक्षर” का आशय "प्रेम" शब्द से है, जो ढाई अक्षरों से मिलकर बना है। इसका-

  • शाब्दिक अर्थ– अपनापन, आत्मीयता और स्नेह से है। 
  • सामाजिक अर्थ– इंसान से इंसान का भाईचारे का संबंध।
  • आध्यात्मिक अर्थ– आत्मा और परमात्मा का मिलन है। 

कबीर साहेब का संदेश बिल्कुल साफ है– जिसने प्रेम की भाषा को समझ लिया और अपने जीवन में उतार लिया, वही सच्चा ज्ञानी और पंडित है।

केवल किताबी ज्ञान अधूरा क्यों?

१. सिद्धांत और व्यवहार का फर्क:- किताबें पढ़ना तो आसान है, लेकिन वास्तविक प्रेम को जीवन में उतारना कठिन है।

२. किताबी ज्ञान और अहंकार:- किताबी ज्ञान, अहंकार ला सकता है, परंतु सच्चा प्रेम मनुष्य को विनम्र बनाता है।

३. ज्ञान का असली उद्देश्य:- दुनियाँ के हर धर्म और शास्त्र अंततः प्रेम, करुणा और भाईचारे का संदेश देते हैं।

👉 इसीलिए संत कबीर दास ने कहा कि, "केवल पोथियाँ पढ़ने से कोई पंडित नहीं बनता।"

प्रेम को ही सच्चा ज्ञान क्यों बताया गया है?

 प्रेम को ही सच्चा ज्ञान इसलिए बताया गया है क्योंकि प्रेम से-

  • ईश्वर की प्राप्ति होती है अर्थात् भक्ति का सार प्रेम है।
  • इसमें सामाजिक एकता का संदेश छिपा है। प्रेम जाति, धर्म और आपसी भेदभाव को मिटा देता है।
  • प्रेम से जीवन, आनंदमय और शांतिपूर्ण बनता है।
  • प्रेम, आत्मज्ञान का मूल है अर्थात् जब हम दूसरों में भी उसी शाश्वत आत्मा का दर्शन करते हैं, तभी असली ज्ञान मिलता है।

व्यवहारिक जीवन में प्रेम का महत्व:-

१. परिवार में: प्रेम से रिश्ते मजबूत होते हैं। आपस के छोटे-मोटे झगड़े भी प्रेम से खत्म हो जाते हैं।

२. समाज में: प्रेम, समाज में सहयोग, सौहार्द्र और भाईचारा की भावना को बढ़ाता है।

३. कार्यस्थल पर: प्रेम और सम्मान, कार्यस्थल का माहौल खुशनुमा बना देता है जिससे कर्मचारियों की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है और उत्पादकता में भी सुधार होता है।

४. राष्ट्रहित में: किसी भी राष्ट्र की एकता, वहाँ के नागरिकों के आपसी प्रेम और भाईचारा पर टिकी होती है।

५. आध्यात्मिक जीवन में: प्रेम से भक्ति का मार्ग आसान होता है।

संतों और महापुरुषों की दृष्टि में प्रेम:-

१. संत कबीर: कबीर दास जी ने प्रेम को ही साधना और ज्ञान का मूल बताया – "प्रेम न बारी उपजै, प्रेम न हाट बिकाय। राजा प्रजा जोही रुचे, सिस देही ले जाय।।"

👉 इसका आशय है कि प्रेम न तो खेत में बोया जा सकता है, न बाजार में खरीदा जा सकता है। इसे पाने के लिए व्यक्ति को अपना अहंकार और स्वार्थ त्यागना पड़ता है।

२. संत रैदास: संत रैदास ने प्रेम को ही ईश्वर तक पहुँचने का माध्यम माना। उन्होंने कहा, “मन चंगा तो कठौती में गंगा।”

👉 अर्थात यदि आपका मन प्रेम और भक्ति से भरा है, तो साधारण जल भी गंगाजल बन जाता है।

३. गुरु नानक देव: गुरु नानक जी ने प्रेम को भक्ति का सर्वोच्च मार्ग माना– “जो तु प्रेम खेलण का चाव। सिर धरि तली गली मेरी आओ।।"

👉 उनका कहना था कि सच्चा प्रेम, त्याग और समर्पण मांगता है।

४. मीरा बाई: मीरा का जीवन, प्रेम-भक्ति का जीता-जागता उदाहरण है। उन्होंने कहा – “मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई।”

👉 यहाँ उनका प्रेम सांसारिक न होकर, ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण और भक्ति का है।

५. महात्मा गाँधी: गाँधीजी कहते थे – “जहाँ प्रेम है, वहाँ जीवन है।”

👉 उनका मानना था कि नफरत से नफरत कभी नहीं मिट सकती; केवल प्रेम से ही द्वेष का अंत होता है।

६. स्वामी विवेकानंद: विवेकानंद जी ने भी प्रेम को सबसे बड़ी शक्ति माना। उनका कथन है – “ईश्वर की ओर बढ़ने का एक ही मार्ग है– मानवता की निःस्वार्थ सेवा” और यह सेवा तभी संभव है जब मनुष्य के भीतर सच्चा प्रेम हो।

प्रेम से जुड़ी प्रेरक कहानियाँ:-

१. संत कबीर और शिष्य: एक बार संत कबीर के शिष्य ने उनसे पूछा– “गुरुजी! हम इतने बड़े-बड़े शास्त्रों का अध्ययन क्यों करें? जबकि आप हमेशा प्रेम की ही बात करते हैं।” कबीरदास जी मुस्कुराए और बोले – “बेटा, यदि प्रेम का अर्थ समझ में आ गया, तो हजारों ग्रंथ अपने आप समझ में आ जाते हैं। और यदि प्रेम समझ में नहीं आया, तो सारी विद्या व्यर्थ है।

२. महात्मा बुद्ध और क्रोधित व्यक्ति: एक बार भगवान बुद्ध से एक व्यक्ति आकर बहुत बुरा-भला कहने लगा। फिर भी बुद्ध शांत रहे। जब वह व्यक्ति चला गया, तो शिष्यों ने पूछा– “गुरुजी! वह व्यक्ति आपको भलाबुरा कहा और आपने उत्तर क्यों नहीं दिया?” बुद्ध ने कहा– “जब कोई हमें उपहार देता है और हम उसे स्वीकार नहीं करते, तो वह किसके पास रह जाता है? उसी के पास न? उसी तरह मैंने उसकी नफरत स्वीकार नहीं की। मैंने केवल प्रेम को चुना।” 

यह प्रसंग सिखाता है कि, "प्रेम ही सबसे बड़ी प्रतिक्रिया है।"

३. महात्मा गाँधी और दक्षिण अफ्रीका की घटना: दक्षिण अफ्रीका में जब गाँधीजी को ट्रेन से धक्का देकर बाहर फेंक दिया गया, तब वे प्रतिशोध और हिंसा की जगह अहिंसा और प्रेम का मार्ग अपनाया। और अंततः पूरे विश्व को यह संदेश दिया कि, "प्रेम से ही अन्याय का अंत संभव है।"

आधुनिक समय में प्रेम की प्रासंगिकता:-

आज की दुनियाँ में शिक्षा तो बढ रही है, लेकिन संवेदनाएँ कम हो रही हैं। धर्म के नाम पर विभाजन, रिश्तों में औपचारिकता और जीवन में प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है। ऐसे समय में संत कबीर दास जी का "ढाई अक्षर प्रेम" का संदेश और भी जरूरी हो जाता है।

👉 यदि समाज में शांति और एकता चाहिए, तो हमें “ढाई अक्षर प्रेम का” संदेश को अपने व्यवहार में उतारना होगा।

प्रेम से मिलने वाले जीवन के उपहार:-

  • प्रेम, मन को शांति देता है।
  • प्रेम से रिश्ते मजबूत होते हैं।
  • समाज में सहयोग और एकता, प्रेम से ही आती है।
  • प्रेम ही भक्ति का मूल है और ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग भी।
  • जहाँ प्रेम है, वहाँ जीवन में आनंद और उत्साह है।

जीवन के लिए सीख:-

  • प्रेम का असली उद्देश्य, मानवता की सेवा है।
  • प्रेम, सबसे बड़ा धर्म है।
  • प्रेम, अहंकार और आपसी नफरत को मिटा देता है।
  • प्रेम में ही शांति, आनंद और ईश्वर की प्राप्ति है।
  • प्रेम को अपनाने वाला ही सच्चा पंडित है।

निष्कर्ष:-

संत कबीर दास जी का यह संदेश, “ढाई अक्षर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय”– केवल एक कविता की पंक्ति नहीं, बल्कि संपूर्ण जीवन-दर्शन है। असली ज्ञान, केवल किताबों को पढ़ने से नहीं, बल्कि प्रेम से मिलता है। विद्या, धर्म, पूजा और साधना, सबका सार यही है कि मनुष्य के भीतर सच्चा प्रेम हो। कबीर दास जी का यह संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उनके समय में था। 

संबंधित पोस्ट, अवश्य पढ़ें:

*****


2 टिप्‍पणियां:

सबसे ज़्यादा पढ़ा हुआ (Most read)

फ़ॉलो

लोकप्रिय पोस्ट

विशिष्ट (Featured)

मानसिक तनाव (MENTAL TENSION) I स्ट्रेस (STRESS)

प्रायः सभी लोग अपने जीवन में कमोबेश मानसिक तनाव   से गुजरते ही हैं। शायद ही ऐसा कोई मनुष्य होगा जो कभी न कभी मानसिक त...