22 फ़रवरी 2025

पर्यावरण प्रदूषण और बढ़ती स्वास्थ्य समस्याएं

जिधर देखिए, हर तरफ बीमार। घर-परिवार, मुहल्ले से लेकर आफिस तक मायूस चेहरे। कष्ट झेलते परिजन। बीमार और बिमारी के साथ ही डाक्टरों की भरमार नज़र आती है। लेकिन बीमारी का कारण हमेशा की तरह पृष्ठभूमि में ढका-छिपा रह जाता है। मीडिया में भी बीमारी की चर्चा तो खूब होती है लेकिन कारणों पर हो रहे शोध बोरिंग लगते हैं। 

पहले जब अधिकांश लोगों को भरपेट खाना नहीं मिलता था तब बीमारियां कम हुआ करतीं थीं। लेकिन आज जब लोगों का पेट भरने लगा है तब अधिकतर लोग बीमार ही नजर आते हैं। अब संपूर्ण रूप से स्वस्थ लोग खोजने से मिलेंगे। आज खाने से ज्यादा पैसा बिमारियों के इलाज में खर्च हो रहा है। जानते हैं क्यों? 

इन सबके पीछे पर्यावरण-प्रदूषण नाम का राक्षस है जो हमें दिन प्रतिदिन बीमार बनाता जा रहा है और हमारी खुशियों पर ग्रहण लगाता जा रहा है। पर्यावरण प्रदूषण वह साइलेंट किलर है जो आज कमोबेश सबके स्वास्थ्य को हानि पहुंचा रहा है। आज वायु प्रदूषित है, जल प्रदूषित है, आहार प्रदूषित है। अब जरा सोचिये! आज जब सब कुछ प्रदूषित है तो हम-आप भला स्वस्थ कैसे रह सकते हैं? विडम्बना यह है कि जन-स्वास्थ्य से जुड़ा इतना बड़ा मुद्दा न तो चुनावी घोषणापत्रों में नजर आता है  और न ही नीति-नियंता ही इस विषय पर संवेदनशील नजर आते हैं। जनसमुदाय में भी इस दिशा में जागरूकता नहीं है। 

पर्यावरण प्रदूषण, इक्कीसवीं सदी की सबसे गंभीर समस्याओं में से एक है। निश्चित रूप से दुनियाँ भर में पर्यावरण प्रदूषण के संकट पर हमेशा कवायद होती है, वायदे किये जाते हैं लेकिन देश विदेश की सरकारें इस पर सख्ती से कदम उठाने में उदासीन होती दिखती हैं। हमारे देश में वायु प्रदूषण से संबंधित कानून सन् १९८१ से बना है परन्तु आज भी यह दुनियाँ के सबसे प्रदूषित देशों में शुमार है। देश की राजधानी दिल्ली और दिल्ली एनसीआर समेत देश के बड़े शहरों में वायु प्रदूषण के चिंताजनक आंकड़े अक्सर सामने आते रहते हैं। 

बढ़ती आबादी के कारण परिवहन के लिए गाड़ियों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है। यह अपने आप में पर्यावरण प्रदूषण का बहुत बड़ा कारण है। बढ़ते औद्योगीकरण, शहरीकरण, और मानवजनित गतिविधियों के कारण पर्यावरण प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है जिसका दुष्प्रभाव प्रकृति के साथ मानव स्वास्थ्य पर गंभीर रूप से पड़ रहा है। इस लेख में हम पर्यावरण प्रदूषण और उससे होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं को विस्तार से जानेंगे। 

पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार और उनके कारण होने वाली स्वास्थ्य समस्याएँ:

१. वायु प्रदूषण और उससे होने वाली स्वास्थ्य समस्याएँ

एक आंकड़े के अनुसार वर्ष २०२२ में दुनियाँ भर में कभी धूम्रपान न करने वाले लोगों के फेफड़ों के कैंसर के ५३ से ७० प्रतिशत मामले सामने आये हैं, जिनका कारण वायु प्रदूषण है। पिछले साल सन् २०२४ में "स्टेट आफ ग्लोबल एयर" की रिपोर्ट आयी थी जिसके अनुसार दुनियाँ भर में वायु प्रदूषण से मरने वालों की संख्या ८१ लाख बताई गयी थी। रिपोर्ट में दावा किया गया था कि सिर्फ भारत में ही इक्कीस लाख मौतें, वायु-प्रदूषण जनित कारणों से हुई। 

वायु प्रदूषण मुख्य रूप से वाहनों, औद्योगिक इकाइयों, निर्माण कार्यों, पराली जलाने और घरेलू ईंधन के जलने से उत्पन्न होता है। इसमें कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂), नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx), और पार्टिकुलेट मैटर (PM2.5, PM10) जैसे हानिकारक तत्व होते हैं जो बहुत सी स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनते हैं; जैसे-

(i) श्वसन संबंधी रोग:

  • प्रदूषित हवा में मौजूद धूल, धुआँ और रसायन, अस्थमा (Asthma) को बढ़ा सकते हैं।
  • ब्रोंकाइटिस (सांस लेने वाली नलियों में सूजन) जिससे खांसी, बलगम और सांस लेने में समस्या होती है।
  • लंबे समय तक वायु प्रदूषण के संपर्क में रहने से    क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (फेफड़े से संबंधित बीमारी) हो सकती है।

(ii) हृदय और रक्त-संचार संबंधी रोग:

  • वायु प्रदूषण, रक्त धमनियों को संकीर्ण कर सकता है, जिससे हृदयाघात (Heart Attack) का खतरा बढ़ता है।
  • लगातार प्रदूषित हवा में रहने से उच्च रक्तचाप (Hyper Tension) की समस्या हो सकती है।
  • प्रदूषकों के कारण दिल की अनियमित धड़कन (Arrhythmia) हो सकती है।

(iii) कैंसर

  • वायु प्रदूषण में मौजूद कार्सिनोजेनिक (कैंसर उत्पन्न करने वाले तत्व) फेफड़ों के कैंसर का कारण बन सकते हैं।
  • बेंजीन और डाइऑक्सिन जैसी गैसें रक्त कैंसर (ल्यूकेमिया) को बढ़ा सकती हैं।

(iv) तंत्रिका तंत्र पर प्रभाव:

  • लंबे समय तक प्रदूषित हवा में रहने से मस्तिष्क की कोशिकाओं को नुकसान पहुँच सकता है।
  • यह अल्जाइमर और पार्किंसंस जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ा सकता है।
  • बच्चों में मानसिक विकास बाधित हो सकता है।

२. जल प्रदूषण और उससे होने वाली स्वास्थ्य समस्याएँ

जल प्रदूषण, मुख्य रूप से औद्योगिक कचरे, कृषि में उपयोग होने वाले रासायनिक उर्वरकों और प्लास्टिक-कचरे के कारण होता है। संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के अनुसार, विश्व के ८० फिसदी से अधिक दूषित जल, बिना उपचार के ही नदियों और जलाशयों में प्रवाहित कर दिया जाता है। दूषित जल के सेवन से कई घातक बीमारियाँ हो सकती हैं, जैसे;

(i) पेट और पाचन-तंत्र से जुड़ी बीमारियाँ:

  • टाइफाइड (Typhoid), साल्मोनेला बैक्टीरिया से फैलने वाला यह रोग दूषित पानी के सेवन से होता है।
  • दूषित पानी में मौजूद विब्रियो कॉलेरी बैक्टीरिया से डायरिया और हैजा (Cholera) जैसे गंभीर रोग हो सकते हैं। 
  • दूषित जल से लीवर प्रभावित होता है, जिससे पीलिया (Jaundice) हो सकता है।
  • अमेबियासिस, जो कि आंतों की बीमारी है, दूषित जल में मौजूद परजीवियों से होती है।

(ii) त्वचा रोग: 

  • दूषित पानी के संपर्क में आने से खुजली, एक्जिमा और एलर्जी हो सकती है।
  • लंबे समय तक आर्सेनिक युक्त पानी पीने से त्वचा कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।

(ii) मस्तिष्क और स्नायविक विकार: 

  • जल में मौजूद सीसा (Lead) और पारा (Mercury) जैसे जहरीले तत्व दूषित पानी के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर सकते हैं, जिससे मानसिक विकास से संबंधित समस्याएँ हो सकती हैं। 
  • इससे न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर और याददाश्त की समस्याएँ पैदा हो सकती हैं।

३. मृदा प्रदूषण और उससे होने वाली स्वास्थ्य समस्याएँ

मृदा प्रदूषण मुख्य रूप से रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, प्लास्टिक कचरे और औद्योगिक कचरे के कारण होता है। प्रदूषित मिट्टी से उपजे खाद्य पदार्थों का सेवन करने से कई तरह की दीर्घकालिक बीमारियाँ हो सकती हैं, जैसे;

  • खाद्य-पदार्थों में भारी धातुओं और विषाक्त रसायनों (जैसे गैसोलीन, बेंजीन) की मात्रा बढ़ने से कैंसर, हार्मोनल असंतुलन और पाचन-तंत्र संबंधी रोग हो सकते हैं।
  • मृदा में मिले जहरीले तत्व, फसलों में समाहित होकर आहार के माध्यम से शरीर में प्रवेश करके पुरुषों और महिलाओं की प्रजनन-क्षमता को प्रभावित कर सकते हैं।
  • मिट्टी में मौजूद विषाक्त तत्वों के संपर्क में आने से जलन, खुजली और आँखों में जलन हो सकती है।
  • मिट्टी की उर्वरता घटने से पोषक तत्वों की कमी वाले खाद्य पदार्थों का सेवन होता है, जिससे शरीर में विटामिन और मिनरल्स की कमी हो जाती है।
  • पारा (Hg) जैसे रसायन के कारण गुर्दे और यकृत की क्षति हो सकती है। 

४. ध्वनि प्रदूषण और उससे होने वाली स्वास्थ्य समस्याएँ

ध्वनि प्रदूषण को "पर्यावरणीय शोर" भी कहा जाता है। यह कोई भी अवांछित या परेशान करने वाली ध्वनि है जो मनुष्यों और अन्य जीवों के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है तथा शांति में खलल डालती है। 

ध्वनि प्रदूषण मुख्य रूप से यातायात, कारखानों, लाउडस्पीकर, पटाखों और अन्य भारी मशीनों से उत्पन्न होता है। यह कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म देता है, जैसे-

  • 85 डेसीबल से अधिक की ध्वनि लंबे समय तक सुनने से श्रवण-शक्ति प्रभावित होती है जिससे स्थायी रूप से बहरापन की समस्या हो सकती है। 
  • लगातार ऊँची आवाजों के संपर्क में रहने से तनाव, अनिद्रा, सिरदर्द और उच्च रक्तचाप जैसी समस्याएँ हो सकती हैं।
  • ध्वनि प्रदूषण से एड्रेनालिन हार्मोन का स्तर बढ़ता है, जिससे दिल की धड़कन तेज होती है और हृदयाघात का खतरा बढ़ता है।

५. रेडियोधर्मी प्रदूषण और उससे होने वाली स्वास्थ्य समस्याएँ:

रेडियोधर्मी प्रदूषण परमाणु संयंत्रों, रेडियोधर्मी अपशिष्ट और परमाणु हथियारों के परीक्षण के कारण होता है। यह सबसे खतरनाक प्रदूषणों में से एक है, जो निम्नलिखित बीमारियाँ उत्पन्न कर सकता है;

  • रेडिएशन के संपर्क में आने से कोशिकाएँ नष्ट हो जाती हैं, जिससे कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है।
  • यह डीएनए को क्षति पहुँचा सकता है, जिससे जन्मजात विकार उत्पन्न हो सकते हैं।
  •  रेडिएशन की अधिक मात्रा, प्रजनन-तंत्र को नुकसान पहुँचा सकती है जिससे बांझपन हो सकता है।

निष्कर्ष:

पर्यावरण-प्रदूषण आज प्रकृति के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर खतरा बन चुका है। अगर समय रहते आवश्यक कदम नहीं उठाया गया, तो आने वाले समय में स्वास्थ्य समस्याएँ और प्राकृतिक आपदाएँ, विकराल रूप ले सकती हैं।  सतत-विकास की ओर बढ़ते हुए हमें पर्यावरण प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए आवश्यक सभी उपाय अपनाने होंगे जो पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों को सुरक्षित रख सकें। स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण के लिए सरकार के साथ प्रत्येक व्यक्ति को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी।

"याद रखें! अगर हमें स्वस्थ रहना है, तो हमें अपने पर्यावरण को भी स्वस्थ रखना ही होगा!"

संबंधित लेख, अवश्य पढ़ें:

स्रोत:

१. दैनिक समाचार-पत्र "वर्तमान पत्रिका" में प्रकाशित लेख, "हमारी खुशियों को लीलता प्रदूषण"। 

२. ए आई और गूगल




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