महाकुंभ-मेला भारतीय संस्कृति और परंपरा का ऐसा पर्व है जो धर्म, अध्यात्म और मानवता के उच्चतम मूल्यों का प्रतीक है। हर बारह वर्षों में आयोजित होने वाला कुंभ देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनियाँ से श्रद्धालुओं और साधु-संतों को आकर्षित करता है। २०२५ में होने वाला प्रयागराज महाकुंभ भी इसी परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह महाकुंभ मेला १३ जनवरी से शुरू होकर २६ फरवरी (महाशिवरात्रि) तक ४५ दिन चलेगा।
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कुंभ का यह पर्व प्रत्येक १२ वर्षों में लगता है। यह विशेष रूप से बृहस्पति के कुंभ-राशि में प्रवेश पर होता है। प्रयागराज में इस कुंभ मेले का आयोजन सन् १८८१ ई से शुरू होकर सन् २०२५ तक १४४ वर्षों के अंतराल में यह १२वाॅं कुंभ है। इसीलिये प्रयागराज में आयोजित २०२५ का यह कुंभ पर्व, महाकुंभ कहा गया है और इसका धार्मिक महत्व बहुत अधिक बढ़ गया है। अगर ज्योतिष की मानें तो १४४ वर्षों बाद आने वाले इस पावन अवसर पर संगम का जल अमृत तुल्य हो गया है।
इस लेख में हम महाकुंभ के धार्मिक महत्व, पौराणिक कथा, आधुनिक व्यवस्थाओं के अलावा आवश्यक अन्य बिन्दुओं पर भी विस्तार से चर्चा करेंगे।
अर्ध-कुंभ, कुंभ और महाकुंभ में अंतर:-
१. अर्ध-कुंभ मेला: यह हर ६ साल में हरिद्वार और प्रयागराज में लगता है। इसमें कुंभ की तुलना में श्रद्धालुओं की संख्या कम होती है, लेकिन इसका धार्मिक महत्व कुंभ मेले जैसा ही होता है।
२. कुंभ मेला: कुंभ मेले का आयोजन हर १२ साल में हरिद्वार (गंगा नदी), प्रयागराज (त्रिवेणी संगम), उज्जैन (क्षिप्रा नदी) और नासिक (गोदावरी नदी) में लगता है। कुंभ मेला, हिंदू धर्म का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है। इसे “अमृत-कुंभ” की कथा से जोड़ा जाता है। इसमें करोड़ों श्रद्धालु, साधु-संतों के साथ पवित्र स्नान का लाभ प्राप्त करते हैं।
३. महाकुंभ मेला: यह १२ कुंभ यानी १४४ वर्षों के बाद लगता है। यह सबसे बड़ा और पवित्रतम पर्व माना जाता है। इसे मोक्ष-प्राप्ति के लिए सर्वोत्तम अवसर के रूप में जाना जाता है।
महाकुंभ २०२५ के शाही स्नान की तिथियाँ:-
महाकुंभ का धार्मिक महत्व:-
महाकुंभ का आयोजन भारतीय संस्कृति में अद्वितीय स्थान रखता है। इसे धर्म, आस्था, ज्ञान और साधना के संगम के रूप में देखा जाता है। प्रयागराज का विशेष महत्व इसलिए है क्योंकि यह त्रिवेणी-संगम—गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदियों के संगम का स्थल है। महाकुंभ, साधु-संन्यासियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। शास्त्रों के अनुसार, महाकुंभ में स्नान करने से १००० अश्वमेध यज्ञ के बराबर पुण्य मिलता है।
इसका वैश्विक महत्व है। यह यूनेस्को की मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि-सूची में अंकित है। यह धार्मिक तीर्थयात्रियों का दुनियाँ में सबसे बड़ा मेला है। इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि ४ फरवरी सन् २०१९ ई. में आयोजित कुंभ मेले में श्रद्धालुओं की उपस्थिति ५ करोड़ थी।
महाकुंभ के दौरान संगम में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति और पापों का नाश होने की मान्यता है। यह पर्व सनातन धर्म की पवित्रता और उसके शाश्वत मूल्यों को सजीव करता है। ऋषि-मुनियों के अनुसार, महाकुंभ में स्नान करने से आत्मा शुद्ध होती है और भौतिक संसार की बाधाओं से मुक्ति मिलती है। इसलिए करोड़ों श्रद्धालु पावन संगम में स्नान का लाभ लेने हेतु एकत्र होते हैं।
पौराणिक कथा:-
महाकुंभ की कथा समुद्र-मंथन की पौराणिक घटना से जुड़ी है। पुराणों के अनुसार, देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया। मंथन में जब अमृत-कलश प्राप्त हुआ, तो उसे लेकर देवताओं और असुरों के बीच संघर्ष हुआ। इस दौरान भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर अमृत को सुरक्षित रखा।
इस संघर्ष में अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर चार स्थानों-प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिरीं। इसलिए इन्हीं स्थानों पर कुंभ का आयोजन होता है। यह भी माना जाता है कि उस समय देवताओं ने अमृत की रक्षा के लिए १२ दिन और रातों तक संघर्ष किया, जो पृथ्वी के १२ वर्षों के बराबर है। इसलिए, हर १२ वर्षों में महाकुंभ का आयोजन किया जाता है।
प्रयागराज महाकुंभ की विशेषता:-
प्रयागराज के महाकुंभ को अन्य स्थानों पर होने वाले कुंभ मेलों से अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। इसका कारण है संगम स्थल, जो तीन पवित्र नदियों के संगम का प्रतीक है। यह स्थान सभी तीर्थों का राजा माना जाता है।
महाकुंभ में अर्धनग्न नागा साधुओं, संतों और महात्माओं का जमावड़ा होता है, जो अपने-अपने अखाड़ों के साथ पवित्र स्नान के लिए संगम में डुबकी लगाते हैं। विभिन्न अखाड़ों की पेशवाई इस मेले का मुख्य आकर्षण होती है।
आधुनिक व्यवस्था और प्रबंधन:-
महाकुंभ मेला अब केवल धार्मिक आयोजन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह प्रबंधन और तकनीकी कौशल का भी उदाहरण बन गया है। करोड़ों श्रद्धालुओं की उपस्थिति को देखते हुए इसे व्यवस्थित करना बड़ी चुनौती होती है। २०२५ के इस महाकुंभ के लिए सरकार ने अत्याधुनिक सुविधाओं के साथ प्रशानिक व्यवस्था बहुत ही चुस्त दुरूस्त किया है। इनमें डिजिटल-मैपिंग, आर्टिफिशियल-इंटेलिजेंस आधारित ट्रैफिक-मैनेजमेंट, जल-स्वच्छता और स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार शामिल है। विशेष रूप से बनाए गए टेंट-सिटी, मोबाइल-हॉस्पिटल्स, और 24x7 हेल्पलाइन सेवाएं मेले को और अधिक सुविधाजनक बनाती हैं।
प्रमुख व्यवस्थाएं:-
सुरक्षा व्यवस्था: लाखों पुलिसकर्मी, होम गार्ड और सीसीटीवी कैमरे, मेले की निगरानी करते हैं। ड्रोन का उपयोग भी सुरक्षा के लिए किया जाता है।
स्वास्थ्य सेवाएं: मेले में अत्याधुनिक अस्पताल, एंबुलेंस, और मेडिकल-कैंप स्थापित किए गए हैं।
परिवहन: विशेष ट्रेनों, बसों और पार्किंग स्थलों की व्यवस्था की जाती है।
स्वच्छता: मेले के दौरान स्वच्छता बनाए रखने के लिए विशेष सफाई अभियान चलाए जाते हैं।
डिजिटल सुविधाएं: श्रद्धालुओं के लिए मोबाइल एप्स और ऑनलाइन गाइडेंस आदि सुविधाएं उपलब्ध हैं।
प्रयागराज महाकुंभ जायें तो वहाँ क्या करें और क्या न करें:
- मन में श्रद्धा के साथ जायें।
- कीमती और अनावश्यक सामान न ले जाएं।
- अजनबियों पर भरोसा न करें।
- अनऑथराइज्ड जगहों पर भोजन करने से बचें।
- स्नान करते समय नदी में बैरिकेडिंग से आगे न जाएं।
- खुले में शौच न करें।
- कचरा, कूड़ेदान में फेंकें।
- उपलब्ध शौचालयों का प्रयोग करें।
- स्नान करते समय मौन होकर जाप करें।
- स्नान के के दौरान साबुन, डिटर्जेंट या शैम्पू का इस्तेमाल न करें।
- संभव हो तो साधु-संतो का दर्शन करें।
- संगम से त्रिवेणी का जल लायें और घर के कोने कोने में छिड़कें।
- वहाँ की मिट्टी-रेत जरूर ले आयें और घर के पूजास्थल में रखें।
- अपने साथी से बिछड़ जाने पर खोया-पाया केन्द्र की सहायता लें।
- आपातकाल की स्थिति में महाकुंभ का हेल्पलाइन नंबर १९२० और पुलिस हेल्पलाइन नंबर ११२ पर संपर्क करें।
निष्कर्ष:-
प्रयागराज महाकुंभ २०२५ का धार्मिक महत्व विशेष है। यह विश्व में भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता की अद्वितीय झलक प्रस्तुत करता है। इसके आयोजन में पौराणिक कथाओं की गहराई, आध्यात्मिकता की ऊंचाई, और आधुनिक व्यवस्थाओं की समृद्धि देखने को मिलती है। यह मेला न केवल श्रद्धालुओं के लिए, बल्कि पूरे विश्व के लिए भारतीय परंपरा और संस्कृति का उत्सव है।
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