12 अगस्त 2024

उद्यमेन ही सिद्ध्यंति कार्याणि न मनोरथैः

 भूमिका:-

उद्यमेन ही सिद्ध्यंति कार्याणि न मनोरथैः" यह संस्कृत के  निम्नलिखित श्लोक का अंश है;

उद्यमेन ही सिद्ध्यंति कार्याणि न मनोरथैः। 

नहिं सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः।। 

जिसका अर्थ है, "केवल इच्छाओं और कल्पनाओं से कार्य पूरे नहीं होते, बल्कि उन्हें सिद्ध करने के लिए कठोर परिश्रम, सतत प्रयास और दृढ़ संकल्प की आवश्यकता होती है। ठीक उसी तरह जैसे सोये हुए सिंह के मुंह में हिरन खुद से प्रवेश नहीं करते उसके लिए उसे भी परिश्रम करना ही पड़ता है।" यह सूक्ति जीवन के उस महत्वपूर्ण सत्य की ओर संकेत करती है, जहाँ केवल मन में इच्छाएँ रखने से कुछ भी प्राप्त नहीं किया जा सकता। इसे अंग्रेजी में कहते हैं, "There is no shortcut to success"

हममें से बहुत से लोग भाग्य के भरोसे यह सोच के बैठे रहते हैं कि "वही होगा जो मेरे भाग्य में लिखा होगा" और जब अपर्याप्त परिश्रम से उनके अभीष्ट कार्य सिद्ध नहीं होते तब वे ही अपने भाग्य को कोसते हुए कहते हैं कि "मेरे नसीब में ही नहीं था, इसीलिए नहीं हुआ।" परंतु ऐसे लोग यह भूल जाते हैं कि कार्य की सफलता का आधार हमारे सार्थक परिश्रम और निरंतर प्रयास हैं। 

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यह सूक्ति हमें प्रेरित करती है कि हमें अपने सपनों को साकार करने के लिए पूरी निष्ठा, लगन और इमानदारी के साथ परिश्रम करना चाहिए, क्योंकि बिना प्रयास के सफलता की कल्पना करना व्यर्थ है। इस लेख में, हम इस सूक्ति, जो कि सफलता की कुंजी है, के महत्व पर विस्तार से चर्चा करेंगे।  

उद्यम और मनोरथ से क्या तात्पर्य है? 

उद्यम का तात्पर्य इच्छित कार्य को पूरा करने के लिए उस दिशा में किए जाने वाले प्रयास और परिश्रम से है। इसमें व्यक्ति की निरंतर सक्रियता और उसकी मेहनत शामिल होती है, जो उसे उसके लक्ष्य-प्राप्ति की दिशा में अग्रसर करती है। उद्यम की सफलता के लिए उसमें शारीरिक श्रम के साथ मानसिक और भावनात्मक स्तर का समावेश भी जरूरी होता है। यह उस समर्पण और अनुशासन का प्रतीक है, जो किसी भी कार्य को सफल बनाने के लिए आवश्यक होता है। यदि हम अपने कार्यों को पूरी लगन, निष्ठा और ईमानदारी के साथ करते हैं, तो हमें सफलता अवश्य मिलती है।

मनोरथ शब्द संस्कृत में दो शब्दों, "मन: + रथ" के विसर्ग संधि से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ है "मन की इच्छा या अभिलाषा।" मनोरथ का तात्पर्य उन मानसिक इच्छाओं से है जो व्यक्ति के मन में उत्पन्न होती हैं। केवल मनोरथ से कार्य सिद्ध नहीं होते; इन्हें साकार करने के लिए परिश्रम की आवश्यकता होती है और यह श्लोक भी हमें यही शिक्षा देता है।

केवल मनोरथ, एक भ्रम;

मनोरथ का अर्थ है मन की इच्छाएँ, अभिलाषा या सपने। लेकिन यदि इच्छाओं के अनुरूप उद्यम न किया जाय तो ये इच्छाएँ कोरी कल्पना बनकर रह जाती हैं। वे केवल मानसिक संतोष का साधन बनकर रह जाती हैं। बहुत से लोग जीवन में बड़े-बड़े सपने तो देखते हैं, लेकिन उन सपनों को साकार करने के लिए आवश्यक उद्यम नहीं करते। ऐसे में उनके सपने कभी वास्तविकता में नहीं बदलते। उपरोक्त श्लोक हमें बताता है कि मात्र इच्छाएँ रखना पर्याप्त नहीं है; हमें उन इच्छाओं को पूरा करने के लिए उद्यमशील होना चाहिए।

परिश्रम और दृढ़-संकल्प; सफलता की आधारशिला:

उद्यम की सफलता के लिए परिश्रम के साथ-साथ दृढ़-संकल्प का होना भी महत्वपूर्ण है। असफलता और बाधाएँ तो जीवन का हिस्सा हैं। कई बार हमें असफलताओं का सामना करना पड़ता है, लेकिन इन असफलताओं को स्वीकार कर, उनसे सीख लेकर और फिर से प्रयास करने का नाम ही दृढ़ता है। कहा जाता है, "सफलता उन्हीं को मिलती है जो निरंतर प्रयास करते रहते हैं।" हमारे जीवन में ऐसी परिस्थितियां आ जाती हैं जो हमारे साहस और हौसले को पस्त कर देती हैं, हमारे धैर्य की परीक्षा लेती हैं और हमें हार मानने को विवश कर देती हैं लेकिन यदि हम उस समय हार मानने के बजाय उन विषम परिस्थितियों का दृढ़ता से डट सामना करते हैं तो आखिरकार सफल हो ही जाते हैं। 

इतिहास साक्षी है, बहुत से लोगों ने कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी हिम्मत नहीं हारी, अपने प्रयासों को नहीं छोड़ा और अंततः सफलता प्राप्त की। जैसे महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता संग्राम में अपने दृढ़-संकल्प और अथक प्रयासों से ब्रिटिश साम्राज्य की चूलें हिलाकर रख दी और स्वतंत्रता-संग्राम में विजय प्राप्त की। उनकी सफलता का मूल-मंत्र था, "कर्म करते रहो, परिणाम की चिंता मत करो।"

प्राचीन कथाओं और आधुनिक उदाहरणों से प्रेरणा:

प्राचीन कथाओं में भी इस बात पर बल दिया गया है कि बिना उद्यम के कुछ भी हासिल नहीं होता। महाभारत-कथा के अनुसार गुरु द्रोणाचार्य के शिष्य तो सारे राजकुमार थे उनमें से केवल अर्जुन ही सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बन सके थे। क्योंकि उन्होंने अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए कठोर साधना और परिश्रम किया। इसी प्रकार, आधुनिक युग में, जब हम महान वैज्ञानिकों, उद्यमियों और कलाकारों के जीवन को देखते हैं, तो पाते हैं कि उनकी सफलता का मूल कारण उनका परिश्रम, दृढ़ता और अनवरत प्रयास ही है। अल्बर्ट आइंस्टीन, थॉमस एडिसन, या जमशेदजी टाटा जैसे महान व्यक्तियों ने अपनी उपलब्धियों को मनोरथ के माध्यम से नहीं, बल्कि कठोर परिश्रम और सतत प्रयास के माध्यम से हासिल किया। ये उदाहरण हमें सिखाते हैं कि जीवन में यदि हमें कुछ बड़ा हासिल करना है, तो इसके लिए केवल मनोरथ ही पर्याप्त नहीं है; उनके पीछे मेहनत और समर्पण भी जरूरी है।

उद्यम का जीवन में महत्व:

जीवन में उद्यम का बहुत अधिक महत्व है, क्योंकि यह हमें न केवल सफलता प्राप्त करने में मदद करता है, बल्कि हमें आत्मनिर्भर, सृजनात्मक, और समाज के प्रति उत्तरदायी बनाता है। उद्यम यानी कर्म की महत्ता का वर्णन महान संतों एवं कवियों की रचनाओं में भी देखने को मिलता है। गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं- कर्म प्रधान विश्व करि राखा, जो जस करहिं ताहि फल चाखा। 

रामधारी सिंह 'दिनकर' जी, उद्यम को सुख का खजाना बताया है-

बस उद्यम ही विधि है, जो सुख की निधि है। समझो धिक्कार रहित जीवन को, नर हो न निराश करो मन को।। कुछ काम करो कुछ काम करो, जग में रहकर कुछ नाम करो।। 

उद्योग की महत्ता को संस्कृत में भी इस प्रकार दर्शाया गया है- 

उद्योगिनं पुरुषसिंह मुपैति लक्ष्मी:

दैवं हि दैवमिति कापुरुषा: वदन्ति

अर्थात् उद्योगी यानी परिश्रमी व्यक्ति पर ही देवी लक्ष्मी की कृपा होती है। भाग्य में जो लिखा है वही होगा, ऐसा कायर पुरुष कहते हैं। 

कहा जाता है कि, "परिश्रम ही वह सुनहरी चाबी है जो सौभाग्य का द्वार खोल देती है।" जिस प्रकार एक किसान अपने खेत में मेहनत करता है, बीज बोता है, पानी देता है और फसल की देखभाल करता है, तभी उसे फसल की अच्छी पैदावार मिलती है। सफलता का कोई शॉर्टकट रास्ता नहीं होता, किसी भी कार्य में सफलता पाने के लिए निरंतर परिश्रम करना आवश्यक है। 

यहाँ उद्यम के महत्व को निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से समझते हैं जो इस प्रकार हैं;

१. सफलता का मूलमंत्र:

सफलता के लिए परिश्रम की महत्ता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। चाहे वह शिक्षा का क्षेत्र हो, व्यवसाय हो, या फिर व्यक्तिगत जीवन के लक्ष्य, हर क्षेत्र में परिश्रम ही सफलता की कुंजी है। इतिहास के पन्नों में जब हम महान व्यक्तियों की जीवनी पढ़ते हैं, तो पाते हैं कि वे सभी अपने जीवन में कठिन परिश्रम और संघर्षों का सामना किये थे। उनके जीवन में बड़ी से बड़ी कठिनाइयाँ आईं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी, कठिनाइयों का मुकाबला किया और निरंतर प्रयास करते रहे। उनका यही परिश्रम और दृढ़ता उन्हें सफलता के शिखर पर पहुँचाने में सहायक बना। 

२. आत्मनिर्भरता:

उद्यमशीलता, व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाता है। जब हम अपने प्रयासों से अपने कार्यों को पूरा करते हैं, तो हम अपने जीवन को आत्मनिर्भर बनाते हैं। यह आत्मनिर्भरता हमें आत्म-सम्मान और आत्मिक संतोष का अनुभव कराती है। उद्यमशील व्यक्ति दूसरों पर निर्भर नहीं रहता, बल्कि अपने परिश्रम से अपने सभी सामाजिक एवं नैतिक जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वहन करते हुए जीवन में आगे बढ़ता जाता है।

३. धीरज और स्थायित्व की वृद्धि:

उद्यमशीलता से हमारे जीवन में धीरज और स्थायित्व की वृद्धि होती है। जब हम किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए निरंतर प्रयास करते हैं, तो हमें धैर्य रखना पड़ता है। यह धैर्य और निरंतरता ही हमें विषम परिस्थितियों में भी आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं। उद्यमशील व्यक्ति छोटी-छोटी असफलताओं से घबराता नहीं है, बल्कि उनसे सीख लेकर और अधिक मजबूत बनता है।

४. सृजनात्मकता और नवाचार:

जब हम किसी कार्य को करने में पूरी लगन और परिश्रम से लगते हैं, तो हमारे दिमाग में नए विचारों का सृजन होता है।जिन्हें हम कार्यान्वित कर अपने जीवन को अधिक अर्थपूर्ण और संतोषजनक बनाते हैं।

५. आर्थिक समृद्धि:

उद्यम और आर्थिक समृद्धि के बीच महत्वपूर्ण संबंध है। मेहनत और परिश्रम से व्यक्ति अपने कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है, जिससे वह आर्थिक रूप से समृद्ध बनता है। सफल उद्यमी अपने परिवार और समाज के लिए भी प्रेरणा एवं आर्थिक सहयोग का स्रोत बनता है, जिससे उसके व्यक्तिगत जीवन के साथ समाज का भी उत्थान होता है।

६. समाज में योगदान:

उद्यम न केवल व्यक्तिगत विकास का साधन है, बल्कि यह समाज में योगदान देने का एक जरिया भी है। जब हम मेहनत करते हैं और सफलता प्राप्त करते हैं, तो हम अपने अनुभवों और संसाधनों के माध्यम से समाज को भी कुछ वापस देने की स्थिति में आते हैं। यह समाज को बेहतर बनाने में सहायक होता है।

७. आध्यात्मिक विकास:

उद्यम का आध्यात्मिक महत्व भी होता है। कठोर परिश्रम और संघर्ष से व्यक्ति का आत्मबल बढ़ता है जिससे वह जीवन की उचाईयों की ओर अग्रसर होता है। यह हमें जीवन के गहरे अर्थ को समझने और आत्म-साक्षात्कार की ओर बढ़ने में सहायता करता है।

उद्यमशीलता की विशेषताएँ: एक सफल उद्यमी के अंदर निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं;

प्रयास और परिश्रम: यह उद्यमशील व्यक्ति की प्रथम मांग है। वह अपने कार्यों को पूरा करने के लिए मेहनत के साथ  लगातार प्रयासरत रहता है। 

संकल्प और समर्पण: उद्यमी व्यक्ति अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित रहता है। और अपने संकल्प को नहीं छोड़ता, चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ सामने आएँ, वह अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रतिबद्ध रहता है।

प्रेरणा: सफल उद्यमी प्रायः स्व-प्रेरित होते हैं। वे असफलताओं से नहीं डरते बल्कि उन्हें अपने उद्यम पर पूरा भरोसा होता है।

धैर्य और निरंतरता: उद्यमी में धैर्य और निरंतरता का विशेष महत्व है। कभी-कभी कार्य में सफलता मिलने में देर हो सकती है इसके लिये उद्यमी को धैर्य नहीं खोता बल्कि निरंतर प्रयासरत रहता है। 

आत्मविश्वास: उद्यमी का आत्मविश्वास ही उन्हें सफलता दिलाता है। उन्हें खुद पर, अपने उत्पादों,  सेवाओं और सफलता पर भरोसा होता है। 

जुनून: यह उद्यमी की प्रमुख विशेषता होती है। वे अपने जुनून से कुछ अलग कर गुजरने का दमखम रखते हैं। 

सकारात्मक दृष्टिकोण: सफल उद्यमी का दृष्टिकोण सदैव सकारात्मक होता है। उनका यह दृष्टिकोण, उद्योग के क्षेत्र में एक दिशासूचक की तरह काम करता है।

नेतृत्व का गुण: वह गुण है, जो एक उद्यमी के कर्मचारियों को प्रेरित करने, उनका मार्गदर्शन करने और उन्हें लक्ष्यों की तरफ आगे बढ़ने में सहायक सिद्ध होता है। 

निर्णय लेना: वे सही समय पर सही निर्णय, बहुत सोच-समझकर लेते हैं और और अपने निर्णयों पर दृढ़ता से कायम रहते हैं। 

जोखिम उठाना: कहा गया है,"जिन ढूँढ़ा तिन पाइयां, गहरे पानी पैठि।" अर्थात् मोती पाने के लिए गहरे पानी में उतरना ही पड़ता है। इसलिए उद्यमी एक सीमा तक जोखिम उठाने से पीछे नहीं हटते। 

प्रबंधन कौशल: यह एक कला है जिससे टीम के सदस्यों, कर्मचारियों को सही दिशा में ले जाने और उनका नेतृत्व करने में मदद करता है।  

निष्कर्ष:-

"उद्यमेन ही सिद्ध्यंति कार्याणि न मनोरथैः" यह सूक्ति केवल एक कहावत नहीं, बल्कि जीवन का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है। यह हमें सिखाती है कि केवल इच्छाएँ और सपने देखना पर्याप्त नहीं है; उन्हें साकार करने के लिए निरंतर प्रयास करना आवश्यक है। परिश्रम और दृढ़ता के बिना सफलता प्राप्त करना असंभव है। यह जीवन का वह सत्य है जिसे स्वीकार कर, हम अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए निरंतर प्रयासरत रह सकते हैं। इस प्रकार, हमें अपने जीवन में इस सिद्धांत को अपनाकर, हर कार्य को पूरी निष्ठा, मेहनत और समर्पण के साथ करना चाहिए, ताकि हम अपने सपनों को हकीकत में बदल सकें और एक सफल जीवन जी सकें।

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