8 मई 2023

सृजन के नियम (LAW OF CREATION)

यह लेख एनमैरी पोस्टमा द्वारा लिखित पुस्तक, "द सीक्रेट" जो डा. सुधीर दीक्षित द्वारा हिन्दी अनुवादित पुस्तक-"गहरा रहस्य" पर आधारित है। ऐनमैरी पोस्टमा जब बचपन में ही थीं कि उनकी मां गुजर गईं। ग्यारह साल की उम्र में अचानक उनके कमर के नीचे का हिस्सा बेजान हो गया और वे ह्वीलचेयर पर आ गयीं। तो वे अपनी इच्छा के बदौलत ही असंभव दिख रही मंजिलों तक पहुँचने में सफलता पायीं और वे यूरोप की पहली पेशेवर ह्वीलचेयर माडल बनीं तथा कई बेस्टसेलिंग पुस्तकें भी लिखीं। 

द सीक्रेट में सृजन का नियम समझाया गया है। इसमें लेखिका कहती हैं कि, "म अपने जीवन की परिस्थितियों को स्वयं सृजन करते हैं। क्योंकि हम अपने अधिकांश बाहरी संसार का निर्माण, अपने आंतरिक संसार से ही करते हैं। सच तो यह है कि हम निरंतर सृजन कर रहे हैं। हालांकि अक्सर इसका हमें अहसास नहीं होता है। एक के बाद एक, आते विचारों से ही हम अपने जीवन को आकार देते हैं। हम जिस पर गहराई से ध्यान केंद्रित करते हैं, वही हमारे जीवन में बढ़ता है- चाहे वह अच्छा हो या बुरा।" 

सौजन्य: StoryMirror

प्रस्तावना

हमें ज्ञात हो या न हो, हम लगातार सृजन कर रहे हैं। लेकिन आपको ठीक वैसे ही जीवन का सृजन करना चाहिए, जैसा जीवन जीने के लिए आप पैदा हुए थे। इसके लिए आपको सृजनात्मक शक्ति के बारे में जागरूक बनना होगा, उसका दोहन करना होगा और उद्देश्यपूर्ण ढंग से उसका उपयोग करना सीखना होगा। आप ब्रह्माण्ड के प्रतिबिंब हैं। आपमें असीम क्षमता मौजूद है और ऐसी कोई चीज नहीं है, जिसे आप प्राप्त नहीं कर सकते। इस लेख में यह बताया गया है कि आप अपने जीवन के सभी महत्वपूर्ण स्तरों पर ब्रह्माण्ड के साथ मिलकर कैसे काम करें? यह आपके उस मनचाहे जीवन के सृजन करने का मार्गदर्शन करता है, जैसा जीवन आपको जीना चाहिए। 

सृजन के बारह नियम:-

नियम १. अपनी इच्छा को मुक्त करें


हम बहुत अधिक इच्छाएँ रखते हैं पर हमें ठीक-ठीक यह पता नहीं होता है कि वास्तव में हम क्या चाहते हैं? और क्यों चाहते हैं? इच्छाएँ तो सागर की लहरों की तरह एक के बाद एक मष्तिष्क में आती रहती हैं। उनमें से अच्छी भी होती हैं और बुरी भी। ब्रह्माण्ड उन इच्छाओं को पूरा करता है जो आपके लिए हितकर होती है। चूंकि बुरी इच्छाएँ मन-मष्तिष्क को दूषित करती हैं, विषाक्त बनाती हैं, जो बहुत बड़ी हानि है। इसलिए शुभेच्छा करें, शुभ कामनाएं करें 
इच्छा शक्ति, जीवित बचे रहने के लिए उत्कृष्ट ईंधन है। लेकिन जीवन को जिया कैसे जायब्रह्माण्ड की वास्तविक समृद्धि को कैसे पाया जाय? यह सीखने के लिए, हमें अपनी आंतरिक शक्तियों, जैसे- आत्मज्ञान, साहस, समर्पण और विश्वास की आवश्यकता होती है। 

नियम-२. दिल से इच्छा करें


जब तक हम अपनी सोच और मान्यताओं में दीवारें खड़ी करती रहेंगे, हम उनमें कैद रहेंगे  सृजन का नियम, इरादे से ही प्रारंभ होता है यानी अपनी भावनाओं की बताई दिशा में अपने विचार केन्द्रित करना। च्छा-शक्ति, सृजन का एक सशक्त साधन है इरादा समर्पण, विश्वास और आंतरिक ज्ञान की अभिव्यक्ति है। इरादे दो प्रकार के होते हैं: अहं का इरादा और हृदय का इरादा। अहं के इरादे में भय, जकड़न और नियंत्रण होता है जबकि हृदय के इरादे में प्रेम, स्वतंत्रता, समर्पण और विश्वास होता है। अहं के इरादे में हर चीज आपकी खुशी, आपके कल्याण, आपकी सफलता के इर्द-गिर्द घूमती है। हृदय का इरादा मूलतः धन, शक्ति, ओहदे या प्रसिद्धि से संचालित नहीं होता। जब आप हृदय के इरादे से जीते हैं तो ब्रह्माण्ड अधिक आसानी से आपकी सेवा कर सकता है। आपको वही चीजें मिलती हैं जिनसे आपका अहं नहीं जुड़ा होता, यह ब्रह्माण्ड का नियम है। 

नियम-३. जानें कि आप जो चाहते हैं, क्यों चाहते हैं


जब आप बिना पर्याप्त कारण के कोई चीज चाहते हैं तो आपकी इच्छा पूरी नहीं हो सकती। इसलिए जब आप कोई चीज चाहें तो यह महत्वपूर्ण है कि आप इस बारे में पूर्णतः स्पष्ट रहें कि आप क्या चाहते हैं और आप उसे क्यों चाहते हैं? आप कोई चीज को पाना चाहते हैं तो- आपको पूरे दिल से, शिद्दत से चाहत रखना होगा। ब्रह्माण्ड के साथ संवाद करने का केवल एक ही तरीका है और वह है अपनी भावनाओं के जरिए, ब्रह्माण्ड को संप्रेषित करना। ब्रह्माण्ड ऊर्जा है, इसलिए जो आप पाना चाहते हैं, उन्हें अपनी भावनाओं को ऊर्जा के रूप में रुपांतरित करके ब्रह्माण्ड को संप्रेषित करना होगा। तभी ब्रह्माण्ड आसानी से आपकी सहायता कर सकता है। उदाहरण के लिए यदि आप नया मकान चाहते हैं तो आप इस बात पर ध्यान केंद्रित करें कि आपको तब कैसा लगेगा? जब घर हूबहू आपके मनचाहे चित्र जैसा दिखेगा। 

नियम-४. आप जो चाहते हैं उसमें विश्वास करें


आपको अपनी मनचाही चीज प्राप्त करने के लिए गहराई से विश्वास करना होगा तभी आपको इच्छित वस्तु मिलेगी। यदि इसमें आपको एक प्रतिशत भी संदेह है तो आपकी इच्छा साकार नहीं होगी। सच्ची आस्था तभी आ सकती है जब आप तनावपूर्ण और भयभीत न हों, बल्कि राह में आने वाली हर चीज से निबटने को तैयार हों, चाहे यह चीज जो भी हो। सच्ची आस्था के लिए अनचाहे जबाबों और परिणामों का जोखिम लेने का साहस होना चाहिए, बाधाओं से उबरने की तैयारी होनी चाहिए। 

सौजन्यYou Tube

नियम-५. निर्णय लें, चयन करें

निर्णय लेने का अर्थ है, लक्ष्य तय करने का साहस करना, अपनी ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित करना और अपनी मनचाही चीज के सभी परिणामों की पूरी जिम्मेदारी लेना। जब आप प्रतिक्रिया करते हैं तब आप निष्क्रिय ऊर्जा भेजते हैं। और जब आप अपने भाग्य में भागीदारी करने का निर्णय लेते हैं तब आप सक्रिय ऊर्जा भेजते हैं। यदि आप निर्णय नहीं लेते हैं, तब भी आप सृजन कर रहे हैं- बस अनिर्णय की ऊर्जा, बिना दिशा या केन्द्र-बिंदु के सृजन करती है

नियम-६. अपने नकारात्मक प्रवाह को पहचाने


सकारात्मक प्रवाह, जीवन-शक्ति है, सृजनात्मक शक्ति है। यह स्वयं को सत्य और प्रेम के रूप में प्रकट करता है। नकारात्मक प्रवाह, सकारात्मक प्रवाह का विरोधी होता है। यह जीवन-प्रगति और विकास को 'ना' कह देता है। यदि आप अपनी सृजनात्मक शक्ति का प्रभावी उपयोग करना सीखना चाहते हैं तो आपको अपने अंदर के नकारात्मक प्रवाह से पूरी तरह मुक्त होकर, सकारात्मक प्रवाह को प्रवाहित करना होगा। 

नियम-७. छोड़ना सीखें


निर्णय लेने का आशय है, अपना आरामदायक दायरा (Comfort Zone) छोड़ने के लिए तैयार होना। अधिकतर लोग अपने पुराने, जाने-पहचाने स्वरूपों को पकड़े रहना पसंद करते हैं, चाहे वे कितने ही नकारात्मक और विनाशकारी क्यों न हों। क्योंकि पुराने स्वरूपों का परिणाम पहले से पता होता है, इसलिए यह सुरक्षित (Safe) लगता है। आप एक चीज को छोड़े बिना दूसरी चीज नहीं चुन सकते। जीवन में मनचाही चीज को पाने के लिए आपको उन सभी मान्यताओं को छोड़ना होगा जो अब तक आपको पीछे रोक रखी हैं। 

नियम- ८. वर्तमान में जिएं

वर्तमान में जीने के लिए गहरे विश्वास की जरूरत होती है। अपनी सृजनात्मक शक्ति का उपयोग करना सीखना और वर्तमान में जीना, इन दोनों में गहरा संबंध है। "द सीक्रेट" आपसे वादा करती है कि आप जीवन में जो भी चाहते हैं, उसे प्राप्त कर सकते हैं लेकिन पहला कदम है, उसे चाहत करना जो आपके पास है। चूंकि अतीत और भविष्य की सारी घटनाएं वर्तमान में होती हैं, इसलिए सृजनात्मक शक्ति का उपयोग करने के लिए आपको वर्तमान में जीना होगा।  

नियम-९. अपना उत्तरदायित्व स्वीकार करें


अपनी जिम्मेदारी लेना, अपनी आंतरिक मान्यताओं और बाहरी परिस्थितियों के आपसी संबंध को स्वीकार करना है। जब आप अपने लिए जिम्मेदारी लेते हैं तब आप यह निर्णय लेते हैं कि आगे से आप अपने जीवन की कमान अपने हाथों में थाम लेंगे। शिकायतें और आरोप लगाने की आदत एवं अपनी आलोचना करने के ढंग को छोड़कर, स्वयं को पीड़ित की भूमिका से दूर रखकर, आप अपने उपर उत्तरदायित्व लेने की बुनियाद तैयार करते हैं। 

नियम- १०. अपने आत्मसम्मान को सशक्त बनाएं


चूंकि हमारे आंतरिक संसार से ही हमारा बाहरी संसार बनता है, इसलिए अक्सर हमारी आत्म-छवि से ही हमारा भाग्य तय होता है। आप जैसे भी हैं, जब आप स्वयं को उसी स्वरूप में प्रेम करने और महत्व देने का चुनाव करते हैं तो आप शक्तिशाली बनने की दिशा में कदम उठाते हैं और स्वयं को ब्रह्माण्ड की शक्ति से जोड़ लेते हैं। स्वस्थ आत्मसम्मान के बिना आप सृजन के नियम कैसे कार्य करते हैं, यह तो समझ सकते हैं पर आप उन्हें सक्रिय करने में समर्थ नहीं होंगे। यदि आपमें आत्मसम्मान का प्रबल अहसास है है तो आपके विचार सकारात्मक और सृजनात्मक होंगे, जिनसे आप सकारात्मक परिस्थितियों का निर्माण कर सकेंगे। आत्मसम्मान का स्वस्थ अहसास आत्मविश्वास बढ़ाता है जिससे आप उचित निर्णय लेने में समर्थ होते हैं। आत्मसम्मान, आपको आपके आंतरिक शक्ति से जोड़ता है जिससे आप अपने भीतर की सृजनात्मक शक्ति का सचेतन उपयोग कर सकें।

नियम- ११. आप जो पाना चाहते हैं, वह दें


आप जो पाना चाहते हैं उसे देना, सृजन के नियम का सच्चा रहस्य है। जब आप अपनी सबसे मनचाही चीज देने में समर्थ होते हैं तो आपका आंतरिक स्वरूप आपकी इच्छा के तार को झनझना देता है और आप यह पहचान लेते हैं कि ब्रह्माण्ड किन रूपों में वह चीज दे रहा है। देना और पाना, मूलतः एक ही चीज है- ऊर्जा के ब्रह्माण्डीय प्रवाह के दो पहलू। आप जीवन में जो देते हैं आपको हमेशा वही मिलता है।

नियम-१२. अपना उद्देश्य जाने


आप यहाँ संसार में क्यों आये हैं? आपके जीवन का क्या उद्देश्य है? यह जानने की इच्छा, मानसिक और आध्यात्मिक विकास के लिए अनिवार्य है। उद्देश्यहीन लोगों का जीवन अस्पष्ट और खोखला हो सकता है। यदि आप अपने जीवन का उद्देश्य नहीं जानते तो आप अपने लिए सही चीजों का सृजन नहीं कर सकते।

गहरे रहस्य का ध्यान


शांतिपूर्ण पल का चयन करें। फर्श पर, गद्दी पर या उस कुर्सी पर आरामदेह मुद्रा में बैठें जो भोजनकक्ष की कुर्सी जितनी ऊंची हो। यदि आप फर्श पर या कुशन पर बैठ रहे हैं तो कमल मुद्रा में बैठें या पालथी मार लें। अपनी कमर, कंधे और सिर को सीधे रखें। हाथों को अपने गोद में रख लें। अब अपने ध्यान को बाहरी संसार से हटाकर अपने श्वास पर केन्द्रित करें। नाक से सांस लें, पल भर अंदर रोकें और फिर मुंह से सांस को बाहर छोड़ें। आप सांस लेने में जितनी देर लगाते हैं उससे अधिक समय सांस छोड़ने में लगायें। सांस को अपने थोड़े खुले होठों के बीच से धीरे से निकलने दें। इस दौरान होठों को न भींचें और सांस को बाहर निकालने पर अधिक जोर न लगाएं। जब बाहरी विचार आयें तो अपना ध्यान पुनः अपनी सांस पर केन्द्रित करें। 

हर अंदर आनेवाली सांस के साथ उन गुणों को अंदर ग्रहण करने पर ध्यान केन्द्रित करें, जिनकी आवश्यकता आपको अपने विकास के लिए सबसे ज्यादा हो, जैसे- साहस, इच्छा शक्ति और लगन। हर बाहर निकलने वाली सांस के साथ अपना ध्यान अपने व्यक्तित्त्व के उन पहलुओं को छोड़ने पर केन्द्रित करें जो आपके लक्ष्य को साकार करने की दिशा में बाधा डालते हैं, जैसे- डर, शंका या असुरक्षा। 

इसे पांच मिनट से अधिक समय तक हर दिन या सप्ताह में कई बार करें। प्रारंभ में आपको इससे कुंठा हो सकती है। और ये लग सकता है कि कुछ भी नहीं हो रहा है। लेकिन स्वयं को  हताश न होने दें। यदि आप अभ्यास करते रहेंगे तो आपको सचमुच तीव्र परिणाम मिलेंगे और आप अभ्यासों के परिणाम को अधिक स्पष्टता से देखने लगेंगे।

सारांश

जो लोग अपने आत्मज्ञान को गहरा बनाते हैं, वे आंतरिक स्तर पर अधिक प्रेमपूर्ण, समृद्ध और स्वतंत्र बनते हैं और उनके पास देने के लिए अधिक होता है। जिन लोगों के पास देने के लिए अधिक होता है, ब्रह्माण्ड उन्हें ही देता है। ऐसे लोग यह देखकर आश्चर्यचकित रह जायेंगे कि ब्रह्माण्ड उन्हें कितना कुछ दे सकता है। यही नहीं, उन्हें जीवन के रहस्यों का ज्ञान भी हो सकेगा।

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