सोच को बदलो, सितारे
बदल जायेंगे, नज़र को बदलो, नज़ारे बदल
जायेंगे।
नजर का आशय दृष्टि से है, जो आंखों से देखा जाता है। लेकिन एक ही चीज को देखने वाले विभिन्न लोगों की उस चीज को लेकर प्रतिक्रियाएं अलग-अलग होती हैं, उसे नजरिया कहते हैं। कामयाबी, हमारे नजरिए से तय होती है। लोग दुनियाँ को तो बदलना चाहते हैं परंतु खुद को नहीं बदलना चाहते हैं। जीतने की इच्छा तो प्रायः सभी में होती है परन्तु जीतने की तैयारी करने की इच्छा बहुत कम लोगों में होती है। नजरिये को बदला जा सकता है, परंतु यह बदलाव एक दिन में नहीं होता है, कुछ समय तो लगता है। इसमें कितना वक़्त लगेगा? यह हमारे-आपके दृढ़ संकल्प के साथ बदलाव के लिए तैयार होने और निष्ठा एवं लगन के साथ बदलाव के लिए उठाये गए कारगर उपाय के उपर निर्भर करता है।
अगर हम अपना नजरिया बदलना शुरू कर दें तो यकीन मानिए हम बहुत सी जिंदगियों को बदल सकते हैं।
जब भी हम कोई काम करते हैं तो उसकी सफलता में सबसे बड़ा हाथ हमारे सकारात्मक नजरिया का होता है।
आशावादी सोच वाले व्यक्ति के लिए नजरिया, जहाँ कामयाबी की सीढ़ी बन जाती है। वहीं दूसरी तरफ निराशावादी सोच वाले व्यक्ति के रास्ते का रोड़ा बन जाता है।
हम अपने जीवन में हर चीजों को कैसे लेते हैं? हम अपने लिए किस तरह के जीवन का निर्माण करते हैं, यह हमारे एटिट्यूड, हमारे एप्रोच, हमारे दृष्टिकोण, हमारे नजरिये से तय होता है। यह हमारी नजरिया ही है जो हमें एक दूसरे से अलग करती है।
इस विषय पर यहाँ एक बड़ी अच्छी कहानी प्रस्तुत की जा रही है-
एक गाँव में सुबह-सुबह ही एक घुड़सवार आया। उसने अपने घोड़े को रोका और उस गाँव के दरवाजे पर बैठे हुए एक बूढ़े आदमी से उसने पूछा कि, "मैं इस गाँव में निवास करना चाहता हूँ। आप यह बताओ कि इस गाँव के लोग कैसे हैं? उस बूढ़े ने कहा: यार! ये बताओ, तुम जिस गाँव को छोड़कर यहाँ आये हो, उस गाँव के लोग कैसे थे? घुड़सवार ने कहा: उस गाँव के लोगों का तो नाम भी मत लो। उस गाँव के लोग बहुत बुरे हैं। उनका नाम लेते ही मेरा तो खून खौलने लगता है। मेरा बस चले तो मैं उन्हें मार डालूँ। तब बूढ़े आदमी ने कहा: दोस्त! तुम आगे जाओ। इस गाँव के लोग तो बहुत ही बुरे हैं। यह गाँव, तुम्हारे रहने के लायक नहीं है।
आपका नजरिया आपकी समस्याओं को, अवसरों में बदलता है।
बाइबिल में डेविड और गोलियथ की कहानी आती है-
एक राक्षस था जिसका नाम गोलियथ था। आसपास के लोगों में उसका बहुत दहशत था। वह जिसको भी पाता, मारकर खा जाता था। डेविड, एक १७ साल का लड़का था। वह भेंड़ चराता था। वह अक्लमंद और बहादुर था। एक दिन वह अपने भाइयों से पूछा कि सब लोग गोलियथ से क्यों डरते हैं? उसके भाई बोले कि, वह बहुत विशालकाय और खूंखार है। उसे मारा नहीं जा सकता है। इस पर डेविड ने कहा, "बात यह नहीं है कि गोलियथ के बड़ा होने के वजह से उसे मारा नहीं जा सकता, बल्कि हकीकत यह है कि वह इतना बड़ा है कि उस पर लगाया गया निशाना चूक ही नहीं सकता।"
डेविड का नज़रिया, उसका दृष्टिकोण, उन सभी लोगों से अलग था जो उस राक्षस से डरते थे। डेविड ने उस राक्षस को गुलेल से मार डाला।
यहाँ परिस्थितियां सबके लिए एक समान हैं, समस्या सबकी एक है परंतु परिणाम अलग है। सब लोग उस राक्षस गोलियथ से डरते हैं और उससे दूर भागते हैं परंतु डेविड उससे डरता नहीं है। उसे समस्याओं को अवसर में बदलना बखूबी आता है। इसलिए वह अपनी समस्या के आगे हार नहीं मानता है, वह समस्या से दूर नहीं भागता है बल्कि उसका डटकर मुकाबला करता है और उस राक्षस को मारने में कामयाब हो जाता है। क्योंकि उसका नज़रिया बाकी सबसे अलग है।
अपनी नज़रिया को कैसे बदलें?
- अपने अतीत और भविष्य को छोड़, वर्तमान में जीएं।
- सकारात्मक सोच रखें।
- नकारात्मक असर से बचें।
- दृढ़ इच्छाशक्ति बहुत जरूरी है।
- अपने अंदर के डर को बाहर निकालें।
- आत्मविश्वास बनाये रखें।
- आशावादी बनें।
- जीवन के बड़े लक्ष्यों को, छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटकर उसे तय समय में पूरा करने की आदत डालें।
- मनपसंद काम करें।
- दिन की शुरुआत, अच्छे से करें।
- खुद को विनम्र बनायें।
- हमेशा खुश रहने की आदत डालें।
- स्वास्थ्य ठीक रखें।
नज़रिया पर अनमोल विचार
- स्वामी विवेकानंद जी कहते हैं कि, “मन में अच्छे विचार लायें। उसी विचार को अपने जीवन का लक्ष्य बनायें। हमेशा उसी के बारे में सोचें।"
- नजर का आपरेशन तो संभव है पर नजरिये का नहीं। फर्क सिर्फ सोच का होता है वरना, सीढ़ियाँ जो उपर जाती हैं, वही नीचे भी आती हैं।
- नज़रिया बदलने से पूरा परिदृश्य बदल जाता है।
निष्कर्ष
आमतौर पर हम आसपास की चीजों को जैसे देखते हैं, कोई जरूरी नहीं कि वो वैसा ही हो। क्योंकि किसी भी चीज को हम अपने जिस नज़रिये, जिस दृष्टिकोण से देखते हैं, वह हमें उसी के अनुरूप दिखाई देता है। यदि हम अपने सकारात्मक नजरिये से किसी चीज को देखते हैं तो वह चीज हमें अच्छी लगती है। और अगर हम नकारात्मक नज़रिये से देखते हैं तो वही चीज हमें बुरी लगती है। अगर हम अच्छाई तलाशते हैं तो हमें अच्छाई नज़र आती है और अगर हम बुराई ढूढ़ते हैं तो हमें बुराई नज़र आती है। यह हमारे उपर निर्भर करता है कि चीजों को हम अपने किस नज़रिये से देखते हैं?
अत: हमें अपनी नजर बदलनी चाहिए, नजारे तो खुद ब खुद बदल जायेंगे। हमें अपनी दृष्टि बदलने भर की देर है, दृश्य तो अपने-आप बदल जायेंगे।
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नज़रिया से संबंधित पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ):
प्रश्न: नजरिया किसी इंसान को कैसे प्रभावित प्रभावित करता है?
प्रश्न: क्या सफलता और असफलता, नजरिया से तय होती है?
प्रश्न: अपने नकारात्मक नजरिये को जानने के बावजूद हम उसे बदलते क्यों नहीं?
प्रश्न: क्या नजरिये को बदला जा सकता है?
उत्तर: हाँ, दुनियाँ में कुछ भी असंभव नहीं है। आप अपने नज़रिये के मालिक हैं, गुलाम नहीं। अपने नज़रिये को बदलने के लिए आपको, अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति, लगन और इमानदारी के साथ अपने-आप को बदलने का अभ्यास करना होगा। कहावत है, करत-करत अभ्यास से, जड़मति हो सुजान। रसरी आवत जात ते, सिल पर परत निसान।।
प्रश्न: मन में गलत विचार आने से कैसे रोकें?
उत्तर: अपनी दिनचर्या में निम्न बातों को शामिल कर अभ्यास करने से बुरे विचारों पर अंकुश लगाया जा सकता है-
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