13 मई 2023

नजर बदलो, नजारे बदल जायेंगे । Change Your Attitude

सोच को बदलो, सितारे बदल जायेंगे, नज़र को बदलो, नज़ारे बदल जायेंगे।

कश्तियाँ बदलने की जरूरत नहीं, दिशाओं को बदलो, किनारे बदल जायेंगे।।

सौजन्य: Pinterest

नजर का आशय दृष्टि से है, जो आंखों से देखा जाता है। लेकिन एक ही चीज को देखने वाले विभिन्न लोगों की उस चीज को लेकर प्रतिक्रियाएं अलग-अलग होती हैं, उसे नजरिया कहते हैं। कामयाबी, हमारे नजरिए से तय होती है। लोग दुनियाँ को तो बदलना चाहते हैं परंतु खुद को नहीं बदलना चाहते हैं। जीतने की इच्छा तो प्रायः सभी में होती है परन्तु जीतने की तैयारी करने की इच्छा बहुत कम लोगों में होती है। नजरिये को बदला जा सकता है, परंतु यह बदलाव एक दिन में नहीं होता है, कुछ समय तो लगता है इसमें कितना वक़्त लगेगा? यह हमारे-आपके दृढ़ संकल्प के साथ बदलाव के लिए तैयार होने और निष्ठा एवं लगन के साथ बदलाव के लिए उठाये गए कारगर उपाय के उपर निर्भर करता है। 

अगर हम अपना नजरिया बदलना शुरू कर दें तो यकीन मानिए हम बहुत सी जिंदगियों को बदल सकते हैं। 

जब भी हम कोई काम करते हैं तो उसकी सफलता में सबसे बड़ा हाथ हमारे सकारात्मक नजरिया का होता है। 

आशावादी सोच वाले व्यक्ति के लिए नजरिया, जहाँ कामयाबी की सीढ़ी बन जाती है। वहीं दूसरी तरफ निराशावादी सोच वाले व्यक्ति के रास्ते का रोड़ा बन जाता है। 


आपने देखा होगा कि कुछ आदमी बहुत काम करते हैं, बहुत परिश्रम करते हैं फिर भी वो हमेशा परेशान, दुखी और पिछड़े रहते हैं। दूसरी तरफ समाज में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो कम काम करते हैं, कम परिश्रम करते हैं फिर भी सुखी और समृद्ध होते हैं। इसी तरह विद्यार्थियों में भी आपने देखा होगा कि कुछ छात्र ऐसे होते हैं जो साल भर बहुत मेहनत करते हैं, कहीं खेलने भी नहीं जाते, किसी के साथ बातचीत में भी समय व्यतीत नहीं करते, रात-रात भर जाग कर पढ़ते भी हैं। फिर भी परीक्षा में अच्छे अंक नहीं ला पाते। दूसरी तरफ कुछ छात्र ऐसे होते हैं जो कम पढ़ते हैं, वे खेलकूद भी करते हैं, सभी तरह के सामाजिक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़ कर भाग लेते हैं, फिर भी परीक्षा में अव्वल दर्जे से पास होते हैं। आखिर ऐसा क्यों होता है? इसका कारण लोगों की अपनी-अपनी नजरिया है। यह नजरिये का फर्क है जो परिस्थितियों के एक होते हुए भी कोई उन्नति के शिखर को छू लेता है तो कोई अवनति के गर्त में चला जाता है। यह सोच और नज़रिया का ही कमाल था कि हमारे भूतपूर्व और लोकप्रिय राष्ट्रपति श्री ए. पी. जे. अब्दुल कलाम साहब जो एक मछुआरे के घर पैदा हुए। उन्होंने अपने जीवन के आरंभिक काल में अखबार भी बेंचा फिर भी जीवन की ऊंचाइयों के शिखरतम स्तर पर पहुँच सके, और संसार भर में "मिसाइल मैन" के नाम से प्रसिद्ध हुए।

हम अपने जीवन में हर चीजों को कैसे लेते हैं? हम अपने लिए किस तरह के जीवन का निर्माण करते हैं, यह हमारे एटिट्यूड, हमारे एप्रोच, हमारे दृष्टिकोण, हमारे नजरिये से तय होता है। यह हमारी नजरिया ही है जो हमें एक दूसरे से अलग करती है।

इस विषय पर यहाँ एक बड़ी अच्छी कहानी प्रस्तुत की जा रही है- 

एक गाँव में सुबह-सुबह ही एक घुड़सवार आया। उसने अपने घोड़े को रोका और उस गाँव के दरवाजे पर बैठे हुए एक बूढ़े आदमी से उसने पूछा कि, "मैं इस गाँव में निवास करना चाहता हूँ। आप यह बताओ कि इस गाँव के लोग कैसे हैं? उस बूढ़े ने कहा: यार! ये बताओ, तुम जिस गाँव को छोड़कर यहाँ आये हो, उस गाँव के लोग कैसे थे? घुड़सवार ने कहा: उस गाँव के लोगों का तो नाम भी मत लो। उस गाँव के लोग बहुत बुरे हैं। उनका नाम लेते ही मेरा तो खून खौलने लगता है। मेरा बस चले तो मैं उन्हें मार डालूँ। तब बूढ़े आदमी ने कहा: दोस्त! तुम आगे जाओ। इस गाँव के लोग तो बहुत ही बुरे हैं। यह गाँव, तुम्हारे रहने के लायक नहीं है। 


वह घुड़सवार अभी वहाँ से गया भी नहीं था कि एक बैलगाड़ी आकर वहीं रुकी। उसमें एक आदमी अपने पूरे परिवार को लिए हुए था। उसने भी बूढ़े से कहा: मैं इस गाँव में बसने आया हूँ। इस गाँव के लोग कैसे हैं? उस बूढ़े ने उससे भी पूछा कि तुम जिस गाँव को छोड़कर आ रहे हो, वहाँ के लोग कैसे हैं? उसने कहा: उस गाँव के लोग तो बहुत भले हैं। उस गाँव के लोगों को याद करने से, उनके प्रति कृतज्ञता से मेरी आँखों में आंसू आ जाते हैं। मेरी ऐसी कुछ मजबूरी आ गई कि मुझे वह गाँव छोड़कर यहाँ आना पड़ा। इस गाँव के लोग कैसे हैं? उस बूढ़े ने कहा आओ वत्स! तुम्हारा स्वागत है। इस गाँव के लोग स्वभाव में बेहतर हैं। इस गाँव के लोगों से मिलने के बाद, तुम यह गाँव छोड़कर कभी जाना नहीं चाहोगे। आ जाओ, यह गाँव तुम्हारा स्वागत करता है। 

यहाँ सवाल आपका है, आपके स्वभाव का है सवाल गाँव का नहीं है। आप जैसे हैं, गाँव वैसा ही हो जायेगा। आपकी दृष्टि क्या है? आपका नजरिया क्या है जीवन को देखने की? आप जीवन को कैसे लेते हैं- आनंद से लेते हैं या दुख से? अगर आप दुख से लेते हैं तो आप जीवन के प्रति जो भी करेंगे, वह सुखद नहीं हो सकता। इसलिए जीवन को आनंद से लें। जीवन को धन्यवाद से लें। जीवन को कृतज्ञता से लें और जीवन के प्रति प्रेमपूर्वक, शान्तिपूर्ण, जीवन के प्रति बिना अहंकार के भाव से व्यवहार करें। नजरिया में बदलाव, "चित्त का परिवर्तन है, ट्रान्सफार्मेशन आफ माइन्ड है।" 

हमारा अहम चीज, हमारी अंदरूनी शख्सियत है जिसकी वजह से हमारा जो नजरिया बनता है उसी नजरिये से हम उपर उठते हैं;

एक आदमी मेले में गुब्बारा बेंच रहा था। उसके पास लाल, पीले, नीले, हरे, गुलाबी, सभी रंगों के गुब्बारे थे। जब उसके गुब्बारों की बिक्री कम होने लगती, तो वह आदमी हीलियम गैस से भरा एक गुब्बारा हवा में उड़ा देता। जब बच्चे गुब्बारे को हवा में उड़ते हुए देखते तो वैसा ही गुब्बारा पाने के लिए वे मचलने लगते। उस आदमी की बिक्री जब भी कम होती, तब वह गुब्बारे उड़ाने वाला तरीका अपनाता था। एक दिन एक बच्चे ने उससे पूछा, "अगर आप काले गुब्बारे को हवा में छोड़ेंगे तो क्या वो भी उड़ेगा"? इस पर गुब्बारे वाले ने उस बच्चे से बोला, "बेटा, गुब्बारा अपने रंग की वजह से हवा में नहीं उड़ता, बल्कि उसके अंदर भरी हुई चीज के वजह से उड़ता है। "

हार्वर्ड विश्वविद्यालय के विलियम जेम्स का मानना है, "हमारी पीढ़ी की सबसे बड़ी खोज यह है कि इंसान अपना नजरिया बदल कर अपनी जिंदगी को बेहतर बना सकता है।"

आपका नजरिया आपकी समस्याओं को, अवसरों में बदलता है।

बाइबिल में डेविड और गोलियथ की कहानी आती है-

एक राक्षस था जिसका नाम गोलियथ था। आसपास के लोगों में उसका बहुत दहशत था। वह जिसको भी पाता, मारकर खा जाता था। डेविड, एक १७ साल का लड़का था। वह भेंड़ चराता था। वह अक्लमंद और बहादुर था। एक दिन वह अपने भाइयों से पूछा कि सब लोग गोलियथ से क्यों डरते हैं? उसके भाई बोले कि, वह बहुत विशालकाय और खूंखार है। उसे मारा नहीं जा सकता है। इस पर डेविड ने कहा, "बात यह नहीं है कि गोलियथ के बड़ा होने के वजह से उसे मारा नहीं जा सकता, बल्कि हकीकत यह है कि वह इतना बड़ा है कि उस पर लगाया गया निशाना चूक ही नहीं सकता।" 

डेविड का नज़रिया, उसका दृष्टिकोण, उन सभी लोगों से अलग था जो उस राक्षस से डरते थे। डेविड ने उस राक्षस को गुलेल से मार डाला।

यहाँ परिस्थितियां सबके लिए एक समान हैं, समस्या सबकी एक है परंतु परिणाम अलग है। सब लोग उस राक्षस गोलियथ से डरते हैं और उससे दूर भागते हैं परंतु डेविड उससे डरता नहीं है। उसे समस्याओं को अवसर में बदलना बखूबी आता है। इसलिए वह अपनी समस्या के आगे हार नहीं मानता है, वह समस्या से दूर नहीं भागता है बल्कि उसका डटकर मुकाबला करता है और उस राक्षस को मारने में कामयाब हो जाता है। क्योंकि उसका नज़रिया बाकी सबसे अलग है।

अपनी नज़रिया को कैसे बदलें?  

  • अपने अतीत और भविष्य को छोड़, वर्तमान में जीएं।
  •  सकारात्मक सोच रखें। 
  • नकारात्मक असर से बचें। 
  • दृढ़ इच्छाशक्ति बहुत जरूरी है
  • अपने अंदर के डर को बाहर निकालें। 
  • आत्मविश्वास बनाये रखें। 
  • आशावादी बनें। 
  • जीवन के बड़े लक्ष्यों को, छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटकर उसे तय समय में पूरा करने की आदत डालें। 
  • मनपसंद काम करें। 
  • दिन की शुरुआत, अच्छे से करें। 
  • खुद को विनम्र बनायें।
  • हमेशा खुश रहने की आदत डालें।
  • स्वास्थ्य ठीक रखें।

नज़रिया पर अनमोल विचार

  • स्वामी विवेकानंद जी कहते हैं कि, “मन में अच्छे विचार लायें। उसी विचार को अपने जीवन का लक्ष्य बनायें। हमेशा उसी के बारे में सोचें।"
  • नजर का आपरेशन तो संभव है पर नजरिये का नहीं। फर्क सिर्फ सोच का होता है वरनासीढ़ियाँ जो उपर जाती हैंवही नीचे भी आती हैं। 
  •  नज़रिया बदलने से पूरा परिदृश्य बदल जाता है। 

निष्कर्ष

आमतौर पर हम आसपास की चीजों को जैसे देखते हैं, कोई जरूरी नहीं कि वो वैसा ही हो। क्योंकि किसी भी चीज को हम अपने जिस नज़रिये, जिस दृष्टिकोण से देखते हैं, वह हमें उसी के अनुरूप दिखाई देता है। यदि हम अपने सकारात्मक नजरिये से किसी चीज को देखते हैं तो वह चीज हमें अच्छी लगती है। और अगर हम नकारात्मक नज़रिये से देखते हैं तो वही चीज हमें बुरी लगती है। अगर हम अच्छाई तलाशते हैं तो हमें अच्छाई नज़र आती है और अगर हम बुराई ढूढ़ते हैं तो हमें बुराई नज़र आती है। यह हमारे उपर निर्भर करता है कि चीजों को हम अपने किस नज़रिये से देखते हैं? 

अत: हमें अपनी नजर बदलनी चाहिए, नजारे तो खुद ब खुद बदल जायेंगे। हमें अपनी दृष्टि बदलने भर की देर है, दृश्य तो अपने-आप बदल जायेंगे।

संबंधित पोस्ट, अवश्य पढ़ें:

नज़रिया से संबंधित पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ):

प्रश्न: नजरिया किसी इंसान को कैसे प्रभावित प्रभावित करता है?


उत्तर: नज़रिया एक अंदरूनी भाव है, जो व्यक्ति के व्यवहार के द्वारा प्रकट होता है। जब हमारा रवैया सकारात्मक और अनुकूल होता है तब परिणाम सकारात्मक होते हैं और सफलता की राह आसान हो जाती है। 

प्रश्न: क्या सफलता और असफलता, नजरिया से तय होती है?


उत्तर: हाँ, वह नजरिया ही होती है जो किसी व्यक्ति को मुश्किल हालतों में भी सफलता के अवसर नज़र आते हैं और किसी को हर हालातों में समस्या ही दिखाई देती है। कुछ लोग अपने सकारात्मक नज़रिये से अपने जीवन में सफलता की कहानियाँ लिखते चले जाते हैं तो कुछ लोग अपने नकारात्मक नज़रिये से पतन की गहराइयों में गिर जाते हैं। किसी भी व्यक्ति के जीवन में उसका नज़रिया महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

प्रश्न: अपने नकारात्मक नजरिये को जानने के बावजूद हम उसे बदलते क्यों नहीं


उत्तर: आम इंसान का स्वभाव बदलाव का विरोधी होता है। हमें बदलाव तकलीफ़देह लगता है। कई बार हम अपनी बुराईयों के साथ जीने में इतना आराम महसूस करते हैं कि बेहतरी के लिए होने वाले बदलाव को स्वीकार ही नहीं करते। 

प्रश्न: क्या नजरिये को बदला जा सकता है?

उत्तर: हाँ, दुनियाँ में कुछ भी असंभव नहीं है। आप अपने नज़रिये के मालिक हैं, गुलाम नहीं। अपने नज़रिये को बदलने के लिए आपको, अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति, लगन और इमानदारी के साथ अपने-आप को बदलने का अभ्यास करना होगा। कहावत है, करत-करत अभ्यास से, जड़मति हो सुजान। रसरी आवत जात ते, सिल पर परत निसान।।

प्रश्न:  मन में गलत विचार आने से कैसे रोकें

उत्तर: अपनी दिनचर्या में निम्न बातों को शामिल कर अभ्यास करने से बुरे विचारों पर अंकुश लगाया जा सकता है-

मन में गलत-सही में भेद का अहसास होना, अपने आप को काम में व्यस्त रखना, अच्छी संगति रखना, अच्छे साहित्य पढ़ना, ध्यान और व्यायाम करना। रुचिकर और स्वास्थ्यप्रद भोजन लेना, आदि।

श्रोत: शिव खेड़ा की पुस्तक, "जीत आपकी" और गूगल

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