17 अप्रैल 2023

आधुनिक समाज का स्वरूप (Nature of Modern Society)

आधुनिक समाज को वर्तमान समय में, एक साथ रहने वाले लोगों के रूप में परिभाषित किया गया है। आधुनिकता एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था का नाम है. जिसमें प्राचीन परंपराओं के नाम पर नवीन परंपराओं को स्थान दिया गया है।

आधुनिकीकरण, एक ग्रामीण और कृषि स्थिति से एक धर्म-निरपेक्ष, शहरी और औद्योगिक समाज का परिवर्तन है। जैसे-जैसे समाज आधुनिक होता है, पारंपरिक एवं धार्मिक विश्वासों का महत्व अक्सर कम हो जाता है तथा विशिष्ट सांस्कृतिक लक्षण अक्सर खो जाते है। 

आधुनिक समाज में मनुष्य की आवश्यकताओं में बहुत वृद्धि हुई है। लोग ऊंचे-ऊंचे भवन, आधुनिक संसाधनों के प्रयोग से लेकर आधुनिक फैशन प्रणाली को अपना लिये हैं। पहले जहाँ एक ही घर में संयुक्त परिवार, आनंद से रहा करते थे, अब उससे भी बड़े घर में एकल-परिवार, अशांति से रह रहा है। आधुनिक होने के साथ-साथ, जीवन की असुविधाओं में भी वृद्धि हुई है। बहुत अधिक कमाने के बाद भी मनुष्य के आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं हो पाती, जिसके कारण वह चिंतित रहता है। इस तरह उसके जीवन में अशांति बढ़ रही है। आधुनिक मनुष्य, रहने का तरीका तो सीख लिया है किन्तु जीना नहीं आया है। 

सौजन्य: Facebook

परिवार की संरचना में परिवर्तन (Change in structure of family) 

प्रसिद्ध समाजशास्त्री, विलियम जे. गूड (William J. Goode) ने भारत, चीन, जापान, सहित अफ्रीका तथा मध्य एशिया के विभिन्न देशों का भ्रमण कर, वहाँ की पारिवारिक स्थिति पर गहन अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि आज के बदलते परिवेश में परिवार की संरचना में विशेष रूप से परिवर्तन हुआ है, जो निम्न है-

  • संयुक्त-परिवार का स्वरूप, विश्व स्तर पर धीरे-धीरे, एकल-परिवार में बदलता जा रहा है। 
  • व्यवस्थित विवाह (Arranged Marriage) की प्रथा में कमी तथा प्रेम विवाह की प्रथा में वृद्धि। 
  • स्त्री-पुरुष के बीच समानता बढ़ रही है। भारत में स्त्रियों का सामाजिक उत्थान हुआ है लेकिन शादियों में दहेज (Dowry) के लेन-देन का चलन बढ़ता ही जा रहा है।
  • माता-पिता का अपने बच्चों के उपर नियंत्रण में कमी आ रही है। 
  • संबन्धियों के बीच वैवाहिक घटना में कमी आ रही है। 

रिचर्ड आर. क्लेटन ने अपनी पुस्तक "The family marriage and social change" में पारिवारिक व्यवस्था में परिवर्तन को आर्थिक व्यवस्था में परिवर्तन से जोड़ा है। उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखा है कि समाज में जब आर्थिक व्यवस्था, प्रमुख रूप से कृषि पर आधारित थी तो उस समय संयुक्त परिवार की प्रधानता थी। लेकिन जैसे-जैसे समाज अपने कृषि-स्तर से औद्योगिक-स्तर की तरफ बढ़ता गया, मूल परिवार (Nuclear family) की प्रमुखता बढ़ने लगी। 

वैवाहिक सोच में परिवर्तन:


साधारणतया, आज युवक-युवतियाँ अपनी पसंद से विवाह करना चाहते हैं। लोग, अब अपने परंपरागत पारिवारिक-बंधन और मूल्यों से बंधे हुए रहना पसंद नहीं कर रहे हैं। पढ़े-लिखे लोग अपने माता-पिता की मर्जी से विवाह करना पसंद नहीं कर रहे हैं। खास तौर पर शहरों में नौकरी-पेशा वाले लोग अपनी ही मर्जी से शादी-विवाह करना पसंद करते हैं। अब आयोजित विवाह (Arranged Marriage) में लोगों का विश्वास घटता जा रहा है।

महिलाओं की स्थिति में सुधार:


महिलाएँ अपने अधिकार के प्रति पहले से ज्यादा सतर्क होती जा रही हैं। पारिवारिक मामलों में जो निर्णय लिये जा रहे हैं, उनमें उनकी हिस्सेदारी बढ़ती जा रही है। पढ़ी-लिखी, कामकाजी महिलाओं का प्रभाव पारिवारिक मामलों में विशेष रूप से बढ़ा है। अब लड़कियां भी अपनी मर्जी से विवाह करना पसंद करती हैं। "नारी-मुक्ति आंदोलन" से जुड़ी विचारधाराओं ने संयुक्त परिवार को ही नहीं बल्कि मूल परिवार (Nuclear family) को भी झकझोर कर रख दिया है। इन कारणों से तलाक की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है और वैवाहिक-बंधन कमजोर होते जा रहे हैं। 

यौन संबंधित विचारों में खुलापन:

कई विकासशील देशों में यौन संबंधित विचारों में परिवर्तन दिखाई पड़ने लगा है। लोगों के विचारों में, विशेष कर शहरों में काफी खुलापन आया है। इसका सीधा प्रभाव परिवार पर देखने को मिलता है, जैसे-शादी की उम्र में वृद्धि, पितृ सत्तात्मक चरित्र में कमी इत्यादि।

आधुनिक भारतीय समाज की विशेषताएँ:

उन्नत शिक्षा


भारतीय प्रौद्योगिकी की शिक्षण-संस्थानों से शिक्षा प्राप्त कर आज के युवा देश ही नहीं अपितु विदेशों में भी अपने ज्ञान और हुनर का लोहा मनवा रहे हैं, जैसे- सुन्दर पिचाई, सीइओ गुगल & अल्फाबेट। अरविन्द कृष्णा, अध्यक्ष & सीइओ आईबीएम ग्रुप। सत्या नडेला, सीइओ माइक्रोसॉफ्ट। पराग अग्रवाल, सीइओ ट्विटर। शांतनु नारायण, सीइओ एडोबी आदि।

औद्योगिक क्षेत्र


आधुनिक उद्योग जगत, कम्प्यूटरीकृत, स्वचालित-मशीनों पर आधारित है जिससे उत्पादन क्षमता में वृद्धि हुई है और उत्पाद की गुणवत्ता भी बेहतर हुई है। 

डिजिटल इंडिया


इस योजना का उद्देश्य बुनियादी ढांचे में सुधार करना और इंटरनेट कनेक्टिविटी को बढ़ाकर ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी सुविधाओं को आम नागरिकों तक पहुंचाना है साथ ही प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में देश को डिजिटल रूप से सशक्त बनाना है। 

लोकतांत्रिक व्यवस्था


भारत में लोकतांत्रिक सामाजिक व्यवस्था है जिसमें समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व के सिद्धांत की अवधारणा है। 

न्याय व्यवस्था


भारतीय संविधान में सामाजिक न्याय के लिए अनेक प्रावधान हैं। सबको समानता की दृष्टि से सभी आवश्यक सुविधाएं प्रदान की जानी चाहिए। 

धर्म-निरपेक्षता


आधुनिक भारतीय समाज में सभी लोगों को समान धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त है। जिसके फलस्वरूप कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म को स्वीकार कर, जीने के लिए स्वतंत्र है। 

आर्थिक असमानता


आधुनिक समाज में जनता को तीन वर्गों में वर्गीकृत किया गया है अमीर, मध्यम और गरीब। अमीर-गरीब के बीच का फासला लगातार बढ़ रहा है। 

स्त्रियों की दशा में सुधार


भारतीय समाज में स्त्रियाँ की दशा में बहुत सुधार हुआ है। आज महिलाएँ, जीवन के हर क्षेत्र में पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। 

जनसंख्या में वृद्धि


जनसंख्या-वृद्धि, आज की ज्वलंत समस्या है। यह भारतीय समाज के आधुनिक स्वरूप को अत्यधिक प्रभावित किया है। जनसंख्या बढ़ने से महंगाई और बेरोजगारी बढ़ रही है। प्रदूषण बढ़ रहा है। जीवन स्तर गिर रहा है। सामाजिक तथा नैतिक मूल्यों में गिरावट आई है। 

दहेज प्रथा


दहेज प्रथा, आधुनिक समाज के नाम पर कलंक है। इस समस्या के कारण अधिकांश युवतियों का घर उजड़ता है और जीवन बर्बाद होता है। 

रोजगार


जनसंख्या के अनुपात में लोगों को रोजगार के अवसर अभी तक उपलब्ध नहीं हो पाये हैं। रोजगार नहीं मिलने पर पढ़े-लिखे युवा, हताश एवं निराश होकर गलत रास्तों पर चल पड़ते हैं। हालांकि रोजगार सृजन की दिशा में सरकार की मेक इन इंडिया, स्टार्ट-अप इंडिया जैसी महत्वपूर्ण योजनायें चल रही हैं और उम्मीद है कि निकट भविष्य में इनके आशातीत परिणाम मिलें। 

नयूक्लियर फेमिली का चलन


संयुक्त परिवार का विघटन हो रहा है और उसकी जगह न्यूक्लियर फेमिली का चलन बढ़ता जा रहा है। परिवार, अब माता-पिता और बच्चों तक सीमित होकर रह गया है। आज आधुनिक समाज में वृद्धों के देखभाल में कमी आ रही है। आज फेमिली जितनी एडवांस, आधुनिक होती है, उसमें बड़े-बुजुर्ग, अपने ही परिवार से दूर होते जा रहे हैं।

सामाजिक मूल्यों में परिवर्तन


आधुनिक समाज के सोच-विचार में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं। जिसके कारण प्राचीन सामाजिक मूल्यों का ह्रास हुआ है। 

प्रतिस्पर्धी महत्वाकांक्षाएं


वर्तमान समय में एक दूसरे का अनुकरण करने की इच्छा बढ़ती जा रही है। इन अनावश्यक इच्छाओं और महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए मनुष्य अनैतिक और अवैधानिक कार्य जैसे, चोरी, डकैती, छिनैती, भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, अपहरण आदि को अंजाम दे रहा है जिससे उसका नैतिक, चारित्रिक एवं सामाजिक पतन हो रहा है। 

अलगाववादी प्रवृत्तियों को प्रोत्साहन


आधुनिक भारतीय समाज में अलगाववादी प्रवृतियाँ उभर कर सामने आ रही हैं। जातिवाद, संप्रदायवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद आदि विचारधाराओं ने अलगाववाद को प्रोत्साहित किया है। लोगों में काफी वैचारिक परिवर्तन हुए हैं। समाज में "बहुजन-हिताय" की भावना का लोप हो रहा है। उसकी जगह, अपनी जाति, अपनी भाषा, अपना समुदाय, अपने क्षेत्र के हित की भावना जन्म ले रही है। 

पर्यावरण प्रदूषण


आधुनिकता और विकास की इस अंधी दौड़ में जीवन के मूल्यों की अनदेखी हो रही है। नतीजतन, पर्यावरण प्रदूषण का खतरा निरंतर बढ़ता जा रहा है। यदि समय रहते पर्यावरण संरक्षण के प्रभावी कदम नहीं उठाये गये तो इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। 

आधुनिक समाज के स्वरूप में काफी परिवर्तन हुआ है।

आज लोगों के पास आधुनिक सुख-सुविधाएं बहुत हैं पर शांति नहीं है। शांति मिलेगाी भी तो कैसे? आधुनिक समाज के लोग, समझदार जो ठहरे। अपने वे लोग, जिनसे हमारा खून का रिश्ता है, हम आधुनिक समाज के लोग उनको त्याग कर दूसरों से रिलेशन बनाते हैं। यह सही है कि दुख-दर्द भी अपनों से ही मिलता है पर अपने तो अपने ही होते हैं। जैसा कि फिल्म, "अपने" का एक गाना है-

अपने तो अपने होते हैं, बाकी सब सपने होते हैं।........

सौजन्य: Quora

शिक्षा का स्तर काफी बढ़ा है पर नैतिक शिक्षा में कमी आयी है और नैतिक मूल्यों का ह्रास हुआ है। आधुनिक समाज में बृद्धों की स्थिति दयनीय होती जा रही है। जब उन्हें सहारे की सबसे अधिक जरूरत होती है, उसी समय हम उनको बेसहारा छोड़ देते हैं। हम ये भूल जाते हैं कि हम भी एक दिन बूढ़े होगे। समाज में मां-बाप, परिवार की जड़ होते हैं। आधुनिकता का सीधा प्रभाव मनुष्य के जीवन पर पड़ा है। इससे उसका जीवन और एकांकी हो गया है। पहले घर-परिवार, नगर, समाज आदि सभी एकता के सूत्र में बंधे हुए थे। आधुनिक व्यक्ति का जीवन आत्मिक एकता की नहीं बल्कि एक शरीर में कई रूपों की कहानी है। समाज में बदलाव, ज्यादातर देखा-देखी होता है और बदलाव होना भी चाहिए। बदलाव के परिणाम अच्छे भी होते हैं, और बुरे भी। हम मनुष्यों के पास भगवान ने विकसित बुद्धि दिया है। जिससे अच्छे बुरे का विवेचन तो हम कर ही सकते हैं। और हम अपने स्वभाव को उस सूप के जैसा बना सकते हैं, जो अच्छे अर्थात् ग्राह्य को अपने भीतर समेटता है और बुरे यानी त्याज्य को दूर फेंकता है। 

सारांश

हम सभी समाज की ईकाई हैं। और हम सबसे ही समाज का निर्माण होता है। कहावत है कि, "अकेला चना भांड़ नहीं फोड़ता" लेकिन यह भी कहा गया है कि, "हम बदलेंगे युग बदलेगा, हम सुधरेंगे, युग सुधरेगा" तो समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने के लिए पूरे समाज को तो हम नहीं बदल सकते पर हम खुद को तो बदल ही सकते हैं।

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सौजन्य: गूगल

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