23 फ़रवरी 2023

अंधविश्वास (Superstition)

तथ्यों के विपरीत किसी भी बात पर आंख मूंद कर सहज विश्वास कर लेना अंधविश्वास (Superstition) कहलाता हैअंधविश्वास एक तर्कहीन विश्वास है जिसका कोई ठोस आधार नहीं होता। अंधविश्वास का प्रमुख कारण डर और स्वार्थ होता है। अंधविश्वास की समस्या सदियों से चली आ रही है जो पूरे विश्व में है। ये अलग बात है कि भारत में यह समस्या अपेक्षाकृत कहीं अधिक है। प्राचीन काल में मनुष्य अनेक प्राकृतिक घटनाओं से अनभिज्ञ थे। वे उन घटनाओं का कारण किसी अदृश्य शक्ति या भूत-प्रेत का प्रकोप समझते थे। 

हमारे देश भारत में अंधविश्वास की ऐसी प्रथाएं चलन में थीं जो सभ्य समाज के लिए कलंक थीं, जैसे सती-प्रथा, नर-बलि। किन्तु ऐसे जघन्य अपराध जैसी प्रथायें भी तो इसी समाज या कुछ मनीषियों के अथक प्रयास करने से समाप्त हो सकीं। आज के आधुनिक युग में भी अंधविश्वास वैसे ही फल-फूल रहा है जैसे सदियों पहले था। इसके चक्कर में अनपढ़ के साथ-साथ बहुत पढ़े-लिखे लोग भी आ जाते हैं। इसलिए जागरूक हों और "विश्वास जरूर करें पर अंधविश्वास नहीं"

कौन सा दिन शुभ और कौन सा दिन अशुभ:

मनुष्य की कृतियों में अनेक दोष हो सकते हैं लेकिन परमात्मा की कृतियों में नहीं। भगवान ने जो कुछ भी बनाया है, सुन्दर एवं शुभ है।
 

सौजन्य: आपकी सहेली ज्योति देहलीवाल

हमें जानना चाहिए कि हर दिन पवित्र है। शुभ कर्मों के लिए हर दिन शुभ है और अशुभ कामों के लिए हर दिन अशुभशास्त्रों ने कहा है कि शुभ काम में देर नहीं करनी चाहिए। कौन जाने इतनी देर में आसुरी प्रवृतियाँ उभर आयें और सत्कर्म करने का विचार बदल जाये। कौन सा दिन अच्छा है और कौन सा दिन बुरा, ऐसा विचार, अशुभ कर्मों के लिए करना चाहिए। इसी बहाने आज की घड़ी टल जाए तो जो उफान-आवेश दुष्कर्मों के लिए उठ रहा है, किसी प्रकार टल ही जाए। किन्तु यह बात शुभ कर्मों के संबंध में लागू नहीं होती। यदि उनमें विलंब किया जायेगा तो जो उत्साह आज है, कल ठंडा हो सकता है, जो परिस्थिति आज है वह कल बदल सकती है। ऐसी दशा में जो आज हो सकता है वह कल के लिए टाला जाए तो संभव है वह, "कल भी न आवे"। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए मनीषियों और तत्वदर्शियों का सदा से यह मत रहा है कि शुभ कर्म के लिए हर दिन शुभ है और हर घड़ी अमृतमय है।

Contents:

१. मुहूर्तवाद का जंजाल

२. मुहूर्तवाद से असुविधा और परेशानियां
३. निर्दोषों पर दोषारोपणन
४. अफवाहें और भ्रांतियां
५. भोलेपन का शोषण
६. ठगी का धन्धा
७. बिना परिश्रम के ही अधिक से अधिक लाभ की लालसा
८. अंध-विश्वास से दूर रहिये
९. अंधविश्वास (Superstition) पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

१. मुहूर्तवाद का जंजाल:

महमूद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर पर चढ़ाई की। गजनवी की फौज की अपेक्षा राजपूतों की सेना अधिक बड़ी और साधन संपन्न थी। पर जब आक्रमण हुआ तो पंडितों ने बताया कि अभी प्रत्याक्रमण करने का मुहूर्त नहीं है, इस समय लड़ेंगे तो हार जायेंगे। उन दिनों भला ज्योतिषियों की बात कौन टाल सकता था? राजपूतों को चुप बैठना पड़ा। फलस्वरूप गजनवी का आक्रमण सफल हुआ। यह ऐतिहासिक घटना बताती है कि शुभ-अशुभ दिनों के जंजाल में न तो कोई बुद्धिमत्ता है और न तथ्य।

सौजन्य: Sikandar Kumar Mehta

२. मुहूर्तवाद से असुविधा और परेशानियां:

आजकल उत्तर-मध्य भारत में विवाह शादियां कुछ नियत मुहूर्त में ही होती हैं। इस वजह से बड़े शहरों में तो कभी-कभी एक ही दिन में हजारों शादियां होती हैं। फलस्वरूप उन दिनों, रेलों, बसों में काफी भीड़ होती है। बाजार में खाद्य पदार्थों के दाम दूने हो जाते हैं। धर्मशाला, होटल ठसाठस भरे रहते हैं गाड़ी, बाजे, टेंट, लाइट आदि चीजें ढूंढ़े नहीं मिलते। यहाँ तक कि विवाह कराने वाले पंडितों तक का अकाल पड़ जाता है। इस अंधाधुंध विवाह में हर किसी को असुविधा बहुत होती है। यदि अन्य दिनों में विवाह होते तो सब काम सुविधानुसार और सस्ते में निपट जाते। पंजाब में सिक्ख ही नहीं, सनातनी हिंदू उन महीनों में प्रसन्नतापूर्वक विवाह करते हैं, जिनमें साधारणतया विवाह मुहूर्त नहीं होते। 

हिन्दू धर्म में ही अनेक मान्यताएँ प्रचलित हैं और वे विवाह के मुहूर्त सम्बंधी विश्वासों की दृष्टि से परस्पर सर्वथा भिन्न हैं। जो तथ्य वास्तविक होते हैं वे किसी प्रदेश या सम्प्रदाय पर ही लागू नहीं होते वरन् सभी देशों और सभी जातियों पर समान रूप से लागू होते हैं। इसलिए इस सम्बन्ध में विस्तृत दृष्टिकोण से विचार करने पर यही मानना पड़ता है कि यह दिनों के शुभ-अशुभ होने की मान्यता चंद लोगों का अपना विश्वास भर है, उसके पीछे न कोई ठोस आधार है न कोई तथ्य।

कई बार लड़के-लड़की का जोड़ा हर दृष्टि से उपयुक्त होता है, दोनों पक्ष के लोग संतुष्ट और प्रसन्न होते हैं। किन्तु विधि-विधान न मिलने से वह विचार छोड़ देना पड़ता है। और उस अभाव की पूर्ति फिर कभी भी नहीं हो पाती। कई बार तो उसी विधि-विधान के चक्कर में ऐसी शादियां हो जाती हैं जिनमें आजीवन असन्तोष और कलहपूर्ण जीवन बिताना पड़ता है। 

३. निर्दोषों पर दोषारोपण:


कई बार लड़के-लड़कियों को 'मंगली' घोषित कर दिया जाता है और उनके लिए जीवन-साथी मंगली ही चाहिए। इस अड़ंगे में कितने लड़के-लड़कियों की तो जिंदगी बेकार हो जाती है और अनुपयुक्त साथी से पल्ला बंध जाता है। 

अमुक दिन, अमुक घड़ी में जन्मा बालक अशुभ होता है। इस मान्यता ने अनेक बच्चों को आजीवन उपेक्षित एवं तिरस्कृत रहने के लिए विवश कर दिया। कानपुर की सब्जी मंडी निवासी एक १९ वर्षीय महिला ने अपनी एक साल की बेटी को गंगा नदी में फेंक दिया जिसको मल्लाहों ने तैरकर बचा लिया। उक्त महिला ने बताया कि उसे ज्योतिषियों ने बताया कि वह अशुभ घड़ी में पैदा हुयी है। अस्पताल में प्राथमिक उपचार के बाद बच्ची को उसकी माँ के साथ जेल भेज दिया गया।

मेरठ के एक युवक ने अपनी नवविवाहिता पत्नी को चारपाई से बांधकर उसपर मिट्टी का तेल छिड़ककर आग लगा दी। मरने से पूर्व उस जली हुई स्त्री ने पास पहुंचने वालों को बताया कि उसे, उसके पति ने जलाया है। युवक का विवाह एक वर्ष पूर्व ही हुआ था। तबसे वह बीमार सा चला आ रहा था। ज्योतिषियों ने उससे कहा था कि तुम्हारी स्त्री मंगली है, उसी वजह से तुम बीमार रहते हो। युवक ने इस पर विश्वास करके पत्नी को क्रूरता पूर्वक जला डाला। 

ऐसी बहुत सी घटनाएं आये दिन समाचार पत्रों में छपती रहती हैं। जो नहीं छप पाते उनकी संख्या भी कम नहीं है। ऐसी महिलाओं की संख्या बहुत बड़ी है, जिन्हें केवल इसलिये तिरस्कृत जीवनयापन करना पड़ता है कि वे तथाकथित अशुभ घड़ी में जन्मी हैं। और उनके कारण घर वालों पर कोई न कोई दैवी विपत्ति आती रहती है। 

बहुत से घरवाले सजा के डर से ऐसी बहू-बेटियों को जान से तो नहीं मारते पर उनके मरने की मनौती जरूर मनाते रहते हैं। ऐसे घृणित वातावरण में जिन नारियों को नारकीय और मौत से भी बदतर जीवन जीना पड़ रहा है, उसका कारण हत्यारी अंध-मान्यताऐं ही हैं। जिससे व्यर्थ ही किसी को शुभ और किसी को अशुभ घोषित कर दिया जाता है।

४. अफवाहें और भ्रांतियां:


अंधविश्वासों का प्रचलन किसी समाज के बौद्धिक स्तर की हीनता का परिचय देता है। इस संसार में ठग और धोखेबाजों की संख्या कम नहीं है। वे किसी भी बहाने भोले-भाले व्यक्तियों को फंसाते रहते हैं। मनुष्य को भगवान ने बुद्धि दी है। इसका इस्तेमाल भ्रम-जाल जो अपने चारों तरफ फैला हुआ है उसमें से जो ग्राह्य है उसे ग्रहण करें और जो त्याज्य है, उसे कचरे की तरह बाहर फेंक दें। अंधविश्वासी, मूढ़तावादी एवं रूढ़ि परायण बने रहने में पग-पग पर खतरा है। 

५. भोलेपन का शोषण:


एक व्यक्ति को किसी भविष्यवक्ता ने बताया कि उसकी मृत्यु दो साल बाद हो जायेगी। उस बेचारे ने वह बात सच मान ली। जो कुछ पैसा था, तीर्थयात्रा, ब्रह्मभोज आदि में खर्च कर दिया। जमीन जायदाद का बंटवारा और वसीयत कर दी। काम-धन्धा बंद कर दिया। नियत समय पर मौत की परीक्षा कर रहा था, पर वह आयी ही नहीं। इसके बाद वह दस बर्ष जिया पर असहाय  और अनाथ जैसी जिंदगी गुजारनी पड़ी। इसीलिये मनीषियों ने कहा है कि मनुष्य को श्रद्धालु तो होना चाहिए पर अंध-श्रद्धालु कदापि नहीं। किसी बात पर श्रद्धा करने से पूर्व उसकी वास्तविकता को गहराई से परखा जाना चाहिए जो उचित, सत्य और विवेक संगत हो, उसे ही स्वीकार करना चाहिए। 

६. ठगी का धन्धा:


ठगी के जितने भी तरीके देखने-सुनने में आते हैं, उनमें से आधे से अधिक अन्ध श्रद्धा पर आधारित होते हैं। भारतवर्ष में से यदि अंध-श्रद्धा की मानसिक हीनता एवं रुग्णता हट जाय तो ठगी के आधे से अधिक अपराध समाप्त हो जायेंगे। ठगी, इस देश का सबसे बड़ा अपराधी उद्योग है। 

सौजन्य: Sarita

कुछ ठगी गैर कानूनी होती है। उन्हें करने वालों पर मुकदमा चलता है और वे जेल जाते हैं। कुछ ठगी ऐसी भी है, जो कानूनी कही जाती है। उन्हें करने वाले न तो पुलिस द्वारा पकड़े जाते हैं और न ही उन पर कोई मुकदमा चलता है। वरन् सच तो ये है कि ये लोग समाज में पूजे जाते हैं और प्रचुर धन कमाकर सहज ही मालामाल बन जाते हैं। अन्ध-श्रद्धा का व्यवसाय अपनाकर ही यह सब किया जाता है। भारत की अशिक्षित, अविवेकी, भोली-भाली जनता इनके चंगुल में फंसती रहती है और अपना नैतिक, मानसिक, एवं आर्थिक सर्वनाश कराती रहती है। धर्म, देवी-देवताओं, भूत-प्रेत, ज्योतिष-भविष्यवाणी आदि की आड़ में जो कुछ होता है, उनमें से अधिकांश इतना जघन्य है कि उसका नग्न स्वरूप यदि किसी को देखने को मिले तो तिलमिलाए बिना नहीं रहेगा। 

७. बिना परिश्रम के ही अधिक से अधिक लाभ की लालसा:


अपनी योग्यता एवं सामर्थ्य की तुलना में बहुत अधिक चाहने वाले लोग ही सस्ते नुस्खे अपनाते हैं तथा शार्टकट का रास्ता ढूढ़ते फिरते हैं। वे कुछ पूजा-पाठ, टण्ट-घण्ट करके विपुल सम्पदा के स्वामी बनना चाहते हैं। ऐसे लोग ही ढोंगी पाखंडियों के अनावश्यक जंजाल में फंस जाते हैं जिनमें जादू, चमत्कार, कौतुहल का पुट रहता है। जहाँ कम परिश्रम, कम खर्च और कम समय में अधिक से अधिक लाभ मिलने की बात कही जाती है।

८. अंध-विश्वास से दूर रहिये:


इसमें संदेह नहीं कि अंध-विश्वास की शक्ति भी बड़ी विलक्षण है। और सावधान न रहा जाय तो अच्छे पढ़े-लिखे व्यक्ति भी उसके फंदे में फंस जाते हैं। इस अंध-विश्वास का परिणाम घातक होता है। यहाँ के अशिक्षित स्त्री-पुरुष और खासकर ग्रामीण लोग, छोटे बच्चों को किसी भी तरह की तकलीफ होते ही, प्रायः उसका कारण बुरी नज़र या किसी प्रकार का टोना-टोटका समझ लेते हैं। इसलिए वे रोग का समुचित इलाज कराने के बजाय ओझा, सोखा, गुनियों से झाड़-फूंक करवाते हैं, फूल, बतासा, पैसों का चढ़ावा चढ़ाते हैं। परिणाम यह होता है कि बीमारी बढ़ जाती है और बच्चा असमय में ही चला जाता है।

जुलाई सन् २०१८ में दिल्ली के बुराड़ी इलाके में मोक्ष पाने की चाहत में ग्यारह लोग फांसी लगाकर मर गये। इससे पता चलता है कि अंधविश्वास की जड़ें कितनी गहरी हैं? 

इस प्रकार की सैकड़ों मूढ़तायें जनता में फैली हुई हैं जिससे व्यक्ति और समाज की बहुत कुछ हानि होती रहती है पर अंध-श्रद्धा के नाम पर कोई उनके प्रतिकार का उपाय नहीं करता। हमें यह परख करनी चाहिए और इतना साहस करना चाहिए कि जो कुछ लोगों के द्वारा कहा, बताया या माना जा रहा है, यदि वह ठीक न लगे तो हिम्मत के साथ उसे अस्वीकार कर दें। 

९. अंधविश्वास (Superstition) पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ):

प्रश्न-१: अंधविश्वास क्या है?

उत्तर: अंधविश्वास वह धारणाएं या आस्थाएं होती हैं जिनका सामान्यत: वैज्ञानिक सबूत नहीं होता। ये आमतौर पर पुराने समय की परंपराओं, धार्मिक विश्वासों, या भ्रांतियों पर आधारित होते हैं।

प्रश्न-२: अंधविश्वास क्यों बुरा माना जाता है?

उत्तर: अंधविश्वास को बुरा माना जाता है क्योंकि यह अक्सर लोगों के विचारधारा और कार्य को गलत दिशा में ले जाता है। यह वैज्ञानिक विचारधारा और तर्क के विपरीत होता है, और कभी-कभी हानिकारक या घातक भी होता है।

प्रश्न-३: अंधविश्वास को कैसे खत्म किया जा सकता है?

उत्तर: अंधविश्वास को खत्म करने के लिए शिक्षा और जागरूकता महत्वपूर्ण हैं। लोगों को वैज्ञानिक तर्क और सोच के महत्व को समझाना, और उन्हें यह दिखाना कि कैसे अंधविश्वास से बचना है, यह सब जरूरी है।

प्रश्न-४: अंधविश्वास का क्या प्रभाव होता है?

उत्तर: अंधविश्वास का प्रभाव व्यक्ति से व्यक्ति और स्थिति से स्थिति पर निर्भर करता है। कुछ मामलों में, यह व्यक्तियों के निर्णयों और कार्यों पर बुरा प्रभाव डाल सकता है, जैसे कि चिकित्सा उपचार में देरी करना या गलत उपचार करना।

प्रश्न-५: अंधविश्वास के कुछ उदाहरण क्या हो सकते हैं?

उत्तर: अंधविश्वास अक्सर लोक कथाओं, धार्मिक कथाओं, या परम्पराओं से जुड़े होते हैं। उदाहरण के लिए, बिल्ली का रास्ता काटना, 13 नंबर को अशुभ मानना, घर के मुख्य दरवाजे पर नीबू और मिर्च लटकाना, शनिवार को नाखून नहीं काटना और दाढ़ी-बाल नहीं बनवाना, प्रस्थान के समय छींक आना आदि।

प्रश्न-६: अंधविश्वास और धार्मिक आस्था में क्या अंतर है?

उत्तर: अंधविश्वास और धार्मिक आस्था के बीच अंतर कभी-कभी अस्पष्ट हो सकता है, क्योंकि दोनों ही अक्सर अदृश्य बातों पर आधारित होते हैं। हालांकि, धार्मिक आस्था आमतौर पर व्यक्तिगत या सांप्रदायिक अनुभवों और संस्कृतियों पर आधारित होती है, जबकि अंधविश्वास अक्सर गलत धारणाओं और भ्रांतियों पर आधारित होते हैं।

सौजन्य: पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा लिखित पुस्तक, "अंधविश्वास से लाभ कुछ नहीं, हानि अपार हैं"। 

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