1 जनवरी 2023

प्रकृति के गहरे रहस्य

सृष्टि में हमारे चारों तरफ विद्यमान जड़ से लेकर चेतन तक सभी चीजें जैसे सूर्य, चन्द्रमा, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, पेड़-पौधे, नदियाँ, समुद्र, पहाड़, सभी जीव-जन्तु जिनकी रचना स्वतः हुयी है अर्थात् मनुष्य ने नहीं की है, उसे प्रकृति कहते हैं। 

प्रकृति सर्वव्यापी है। प्रकृति हमें जीवन देती है। हमें पलने-बढ़ने के लिए आवश्यक सभी चीजें प्रदान करती है। जब हम प्राकृतिक रचनाओं को ध्यान से देखते हैं तो हम पाते हैं कि प्रकृति बहुत ही खूबसूरत है और इसके रहस्य अत्यंत गहरे हैं। 

आज हम विकास के उच्च स्तर पर पहुंचने के बावजूद, इतने वैज्ञानिक आविष्कार के बाद भी हम प्रकृति के रहस्यों को लेशमात्र ही जान पाये हैं। प्रकृति के गहरे रहस्यों पर से पूरी तरह पर्दा उठाना हमारे लिए मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। यदि हमें जीवन को गहराई से समझना है तो हमें प्रकृति और उसके महत्व को भी समझना ही होगा। 

सौजन्य: Pinterest

Contents:

प्रकृति के कुछ अनसुलझे रहस्य

प्रकृति की नज़र में, जीवों के प्रति कोई भेदभाव नहीं
प्रकृति सभी जीवधारियों को जीने की राह देती है
विज्ञान के नियमों को अगर देखना हो तो, आप प्रकृति में तलाशें
प्रकृति के महत्व

प्रकृति के कुछ अनसुलझे रहस्य:-

प्रकृति अनगिनत रहस्यों से भरी पड़ी है, जिनमें से कुछ तो हम समझ लिए हैं जबकि बहुत सारे रहस्य अभी तक अनसुलझे हैं। यहाँ प्रकृति के कुछ प्रमुख अनसुलझे रहस्य दिये जा रहे हैं जो निम्न हैं;

  • प्रकृति की एक से बढ़कर एक विलक्षण रचनाएँ, उसकी अप्रतिम सुंदरता और उसमें स्वतः घटने वाली बहुत सारी रोमांचक घटनाओं के विषय में हम गहराई से नहीं जानते।  
  • मानव मस्तिष्क कैसे काम करता है? इस पर अनेक प्रश्न अभी भी अनुत्तरित हैं।
  • जीवन की उत्पत्ति कैसे हुई? यह आज भी एक बड़ा रहस्य है। विज्ञान, अनेक सिद्धांत प्रस्तुत किए हैं, लेकिन अभी भी इसका कोई स्पष्ट जवाब नहीं है।
  • कई प्रकार के प्राणियों पर अभी तक अविष्कार हो रहे हैं। समुद्र की गहराइयों में और जंगलों की सघनता में अभी भी जीव-जंतुओं की अनगिनत प्रजातियाँ हैं, जो कि मानवता के लिए अज्ञात हैं।
  • पृथ्वी के केंद्र की स्थिति और परिस्थिति के बारे में हम पूरी तरह से अभी तक समझ नहीं पाये हैं।   
  • हमारी पृथ्वी में कितने ऊर्जा-संसाधन छुपे हुए हैं, यह भी एक रहस्य है।
  • पृथ्वी की जलवायु क्यों और कैसे बदल रही है, इसके विविध पहलुओं को समझना अभी भी हमारे लिए चुनौतीपूर्ण कार्य है। 
  • गहन जंगलों में विभिन्न प्रकार की औषधीय जड़ी-बूटियां और वनस्पतियाँ हैं, जिनके गुण तथा उपयोग अभी तक हमारे शोध के विषय हैं। 
  • प्रकृति में हर चीज की अपनी भाषा है, चाहे वह पशुओं के आपसी संवाद हों, पक्षियों की चहचहाहट हो या पेड़ों की हलकी-हलकी सरसराहट हो। यह भाषा समझना, हमें प्रकृति के संबंध में एक नई दृष्टिकोण प्रदान करता है।
  • प्रकृति में हर चीज एक संबंधित चक्र में चलती है, जैसे जल-चक्र, जीवन-चक्र आदि। यह चक्र भी अपने आप में जीवन के संरक्षण और पुनर्निर्माण के लिए महत्वपूर्ण हैं।
  • प्रकृति के अचानक भीषण प्रकोप, जैसे की भूकंप, चक्रवात आदि जो समय-समय पर अपनी विनाशलीला के द्वारा हमारे सामर्थ्य और ज्ञान को चुनौती देते हैं। 
  • प्रकृति की संरचना और मानवता की उन्नति के बीच का संघर्ष भी एक बड़ा विषय है। 
  • हमारा समूचा ब्रह्माण्ड खुद में ही एक बहुत बड़ा रहस्य है। ब्रह्माण्ड कैसे और कितनी तेजी से विस्तार कर रहा है, यह पूरी तरह हमें ज्ञात नहीं है। ब्लैक होल के अंदर क्या होता है? यह अभी भी हमारे लिए एक बड़ा रहस्य है।
  • क्या हमारे ब्रह्माण्ड में हमसे अलग, कहीं और भी जीवन है? इस प्रश्न का जवाब अभी तक नहीं मिला है।
  • DNA, RNA और प्रोटीन्स के बारे में ज्ञान होने के बावजूद, जीवन के मूल प्रक्रियाओं की संपूर्ण समझ अभी भी विकसित हो रही है।
  • पृथ्वी पर अभी भी बहुत से जीवों की खोज हो रही है, जिनको हमने पहले कभी नहीं देखा है।
  • गुरुत्वाकर्षण तरंगें कैसे उत्पन्न होती हैं और इसका असर हमारे ब्रह्माण्ड पर कैसे पड़ता है, यह अभी भी समझा जा रहा है।
  • समुद्र की गहराई में कभी-कभी अज्ञात कारणों से उत्पन्न होने वाली ध्वनियाँ, हमारे लिए रहस्य का विषय बनी हुयी हैं। 
  • समुद्र की गहराई में रहने वाले जीव और उनके जीवन के रहस्य अभी भी अध्ययन के विषय हैं। 
ये प्रकृति के गहरे रहस्यों के कुछ उदाहरण मात्र हैं, वैसे उनकी फेहरिस्त बड़ी लम्बी है। 

प्रकृति की नज़र में, जीवों के प्रति कोई भेदभाव नहीं:

प्रकृति की नजर में उंच-नीच, अमीर-गरीब, रंग-रूप का कोई भेदभाव नहीं बल्कि वह एक माँ की तरह नि:स्वार्थ भाव से हम सभी की रक्षा करती है। जो सुख-शांति हमें प्रकृति के गोद में मिल सकती है, वह दुनियाँ में अन्यत्र कहीं भी नहीं मिल सकती है। इसीलिये तो हमारे श्रृषि-मुनियों की चाहे तपस्थली हो, हमारे धार्मिक स्थान हों या फिर हमारे तीर्थस्थल हों, सभी या तो नदियों के किनारे, सागर तट पर, घने जंगलों या फिर पहाड़ों पर होते आये हैं। 

                                       सौजन्यPatrika

प्रकृति सभी जीवधारियों को जीने की राह देती है:

प्रकृति में विद्यमान सभी जीवधारियों की तरह मनुष्य को भी बचपन से लेकर बुढ़ापे तक, जीवन जीने की राह प्रकृति से खुद ब खुद मिलती है। हम खामख्वाह परेशान होते हैं। क्योंकि अब हमें अपने ज्ञान-विज्ञान की प्रगति के आगे, प्रकृति पर भरोसा नहीं रहा। बच्चा जब नौ महीने तक माँ के उदर में होता है तो उसे कौन जिन्दा रखता है? वही बच्चा जब जन्म लेता है तो उसे जीने के लिए आहार लेने की सीख कौन देता है? थोड़ा बडे़ होने के बाद उसे बोलना, चलना कौन सिखाता है? यह सब अपने आप प्राकृतिक रूप से होता है। हम मनुष्य ही हैं जो अपने तथा अपने परिवार के भविष्य को लेकर बहुत चिंतित रहते हैं। इसी चिंता में बहुत से लोगों की तो पूरी जिंदगी गुजर जाती है। आज हम सभी अपने जीवन की बीमा करवा रहे हैं ताकि भविष्य को लेकर चिंता मुक्त हो सकें। परंतु इंसान के अलावा क्या किसी अन्य जीव-जन्तु, पशु-पक्षी को अपने भविष्य को लेकर चिंता करते हुए देखा गया है? आखिर उनकी चिंता कौन करता है?, यह सोचने का विषय है। 

विज्ञान के नियमों को अगर देखना हो तो, आप प्रकृति में तलाशें:

कटहल का बड़ा और काफी वजनदार फल, पेड़ के तनों और उसकी मोटी शाखाओं में ही लगता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सभी फल, पेड़ के तनों में भी किसी एक ही तरफ नहीं लगते बल्कि तनों के चारों तरफ लगते हैं। ऐसा इसलिए कि पेड़ का संतुलन बना रहे और पेड़ का अस्तित्व भी बचा रहे। यह हैरान करने वाली बात है कि आखिर पेड़-पौधों को यह विज्ञान की भाषा कौन सिखाता है? अब जरा सोचिए! तरबूज जैसा बड़ा फल अगर पेड़ों पर लगता, तो उस पेड़ का क्या हाल होता? और जब तरबूज पेड़ से नीचे गिरता तो उस समय उस पेड़ के नीचे मौजूद अन्य जीव-जंतुओं का क्या हश्र होता? 

प्रकृति के महत्व:

प्रकृति के महत्व का अंदाजा हम इसी बात से लगा सकते हैं कि प्रकृति हम सभी को जीने के लिए आवश्यक सभी पदार्थ जैसे हवापानीफल-फूलअन्नपेड़-पौधेऔषधिय जड़ी-बूटियांमिट्टीखनिज पदार्थ आदि सभी कुछ हमें मुफ्त में प्रदान करती है। 

प्रकृति के महत्व पर जब बात आती है तब कुछ दसक पहले और आज के खानपान तथा स्वास्थ्य पर नज़र डालना जरूरी हो जाता है। बात बहुत पहले की भी नहीं है, यह सन् १९७०-८० के दसक की है। उन दिनों ग्रामीण अंचल के एक बड़े और गरीब तबके को भरपेट भोजन नहीं मिलता था। उनके खाने में ज्यादातर जौ, बाजरा, मक्का, मड़ुआ की रोटी, सांवां-कोदो के भात, चटनी, तरकारियाँ और गुड़ का शरबत हुआ करता था। ये अनाज उस समय प्राकृतिक खाद यानी पशुओं के गोबर और कम्पोस्ट खाद से उगते थे। लोग अपने खेत खलिहान में परिश्रम करते, जिससे उन्हें खूब भूख लगती और गहरी नींद आती थी। फिर भी उन्हें अपने गरीबी पर तरस आता था। लेकिन एक महत्वपूर्ण बात यह थी कि वे शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ और बलिष्ठ हुआ करते थे। वे बहुत कम बीमार पड़ते थे। अगर बीमार हुए भी तो पेड़ की पत्तियों, छालों से बने काढ़े से प्रायः ठीक हो जाया करते थे। इंजेक्शन शायद ही उस समय किसी को लगता हो। क्योंकि वे प्रकृति से सीधे जुड़े होते थे और उनके संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए प्राकृतिक जीवनशैली हुआ करती थी। 

दूसरी तरफ, आज विकास के दौर में लोगों को खाने के लिए, भात-दाल, रोटी-सब्जी, चटनी, चोखा, अंचार सहित भरपेट  भोजन मिल रहा है। यही नहीं, उनको खाने के बहुत से आधुनिक खाद्य-पदार्थ जैसे- पिज्जा, बर्गर, चाऊमिन, पास्ता, मोमो और पीने के लिए चाय, काफी, कोल्ड ड्रिंक्स आदि सब सुलभ हैं। परंतु, आज के विकास के इस दौर में एक चीज की निहायत कमी है और वो है अच्छा स्वास्थ्य। आज के परिवेश में अच्छा स्वास्थ्य जो अमूल्य है, वही लोगों के जीवन से गायब होता जा रहा है। आज शायद ही कोई संपूर्ण रूप से स्वस्थ होगा। आज बच्चा जब माँ के पेट में होता है, तभी से उसका सामना, दवाओं से होने लगता है। आज लोगों को अक्सर भूख और नींद की शिकायत रहती है। उसका मूल कारण है, अप्राकृतिक जीवनशैली। अब आप ही सोचिए, जब कुछ नहीं था तभी सबकुछ था लेकिन आज जब सबकुछ है, तब कुछ भी नहीं है। 

प्रकृति का जीवन में कितना महत्व है, संक्षेप में हम समझ गये। अब हम इसके महत्व की चर्चा विस्तार से करेंगे जो इस प्रकार है। 

जीवन का आधार: वह प्रकृति ही है जो हमें जीवन के लिए आवश्यक सभी पदार्थ जैसे- जल, वायु, खाद्य और ऊर्जा प्रदान करती है।

आरोग्यता: वृक्षों का ऑक्सीजन प्रदान करना, और वायुमंडलीय प्रदूषण को कम करना, हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

जैव-विविधता: प्रकृति में अनेक प्रजातियां पाई जाती हैं जो जीवन के संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

आत्मिक और मानसिक स्वास्थ्य: प्रकृति से जुड़ने से मनुष्य के मानसिक और आत्मिक शांति में वृद्धि होती है।

आर्थिक महत्व: कृषि, मत्स्य-पालन, पर्यटन आदि उद्योग, प्रकृति पर ही आधारित हैं। 

जलवायु संतुलन: वनस्पतियां, कार्बन-डाईऑक्साइड को अवशोषित करती हैं और ऑक्सीजन का निर्माण करती हैं, जिससे जलवायु का संतुलन बना रहता है।

मृदा-संरक्षण: पेड़-पौधे, मिट्टी को अधिक उपजाऊ बनाए रखते हैं और इसे क्षरण से भी बचाते हैं।

सांस्कृतिक महत्व: कई जगहों पर प्रकृति को पूजा जाता है और यह हमारे सांस्कृतिक और धार्मिक पर्वों का भी हिस्सा है।

आकर्षण का केंद्र: नदियाँ, पहाड़, समुद्र, तथा जंगल, सदियों से मनुष्य को अपनी ओर आकर्षित करते रहे हैं।  

उपचारिता: प्रकृति की ढेर सारी जड़ी-बूटियाँ और पौधे हमें औषधीय गुण प्रदान करते हैं, जिससे हमारे अनेक रोगों का इलाज संभव होता है।

जलचक्र: प्रकृति के इस चक्र से जीवनोपयोगी पदार्थ जल की आपूर्ति होती है।

भू-ताप संतुलन: समुद्र और वन, भूताप को संतुलित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिससे पृथ्वी पर जीवन संभव है।

उर्वरकता: प्रकृति, कीड़ों, कीटकनाशक पक्षियों और अन्य जीवों के माध्यम से मृदा की उर्वरकता को बनाए रखती है।

अंतःसंवेदनशीलता: प्रकृति के संपर्क में रहने से मानव में संवेदनशीलता और समझ बढ़ती है, जो समाज में सहयोग और समरसता बढ़ाती है।

प्रदूषण नियंत्रण: वन और जल के स्रोत, जल-प्रदूषण और वायु-प्रदूषण को नियंत्रित करने में हमारी मदद करते हैं। 

प्रकृति से ही हमारा अस्तित्व है, फिर भी हम उसी को हराने में लगे हुए हैं। उसका अंधाधुंध दोहन करने में लगे हैं। ये तो वही बात हुई कि पेड़ की जिस डाल पर हम बैठे हैं, उसी डाल को खुद काटने में लगे हुए हैं। प्रकृति से संतुलन बनाकर रहने के बजाय हम उसी का विनाश करने में लगे है। जिसका खामियाजा हम भुगत भी रहे हैं। नाना प्रकार बिमारियाँ, अशांति, दिनों-दिन बढ़ता हुआ प्रदूषण, इन सब का ही तो नतीजा है।  

                          सौजन्य: India TV Hindi

प्रकृति में सब कुछ विद्यमान है। हमें जो भी चाहिए, प्रकृति में तलाश करें, अवश्य मिलेगा। प्रकृति हमारे जीवन का आधार है और बड़ी दयालु है। प्रकृति हमसे बहुत प्रेम करती है। वह हमें आलिंगनबद्ध करने को हमेशा तत्पर रहती है। हम ही अपने विकास के दंभ में उससे दूर भागते जा रहे हैं। प्रकृति बड़ी शक्तिशाली है। जो हमें विकसित करती है वह हमारा विनाश भी कर सकती है। अगर हमें दुलारती है तो हमें कठोर दंड देने में भी नहीं चूकती। इसलिए हमें चाहिए कि हम भी प्रकृति के साथ उतना ही प्रेम करें। उस के छेड़छाड़ न करें बल्कि उसके साथ सहयोग करें और उचित संरक्षण दें। प्रकृति के साथ संतुलन बना कर रहने में ही हम सबकी भलाई है।

संबंधित लेख, अवश्य पढ़ें-

--------

2 टिप्‍पणियां:

सबसे ज़्यादा पढ़ा हुआ (Most read)

फ़ॉलो

लोकप्रिय पोस्ट

विशिष्ट (Featured)

मानसिक तनाव (MENTAL TENSION) I स्ट्रेस (STRESS)

प्रायः सभी लोग अपने जीवन में कमोबेश मानसिक तनाव   से गुजरते ही हैं। शायद ही ऐसा कोई मनुष्य होगा जो कभी न कभी मानसिक त...