30 दिसंबर 2025

विकसित भारत 2047: आत्मनिर्भर और सशक्त भारत की दिशा में

भूमिका:-

भारत स्वतंत्रता के अमृतकाल में प्रवेश कर चुका है। अब लक्ष्य है — विकसित भारत 2047 🇮🇳 , यानी ऐसा भारत जो आत्मनिर्भर, समृद्ध, न्यायसंगत, और तकनीकी रूप से अग्रणी हो।

यह केवल एक सरकारी लक्ष्य नहीं, बल्कि हर भारतीय का सपना है। यह वह यात्रा है जिसमें “आज का प्रयास” और “कल का उजाला” एक साथ जुड़े हैं।

Source: Youth Ki Awaj

विकसित भारत 2047 का लक्ष्य है, "आत्मनिर्भर, तकनीकी और समृद्ध भारत का निर्माण।" जानिए कैसे बदल रहा है भारत का वर्तमान और भविष्य।

१. विकसित भारत का अर्थ: केवल आर्थिक ही नहीं, समग्र विकास

विकास का मतलब सिर्फ ऊँची-ऊँची इमारतें या बढ़ता GDP नहीं होता। विकसित भारत का अर्थ है; जहाँ एक—

  • हर नागरिक को शिक्षा, स्वास्थ्य और सम्मान मिले।
  • हर गाँव तक आधुनिक सुविधाएँ पहुँचें। 
  • हर युवा को अवसर और पहचान मिले। 
  • और हर व्यक्ति आत्मनिर्भर बने। 

यानी, ऐसा भारत जहाँ विकास सभी के लिए और सबके साथ हो।

२. भारत की वर्तमान स्थिति: एक सशक्त शुरुआत

विकिपीडिया में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत की अर्थव्यवस्था, सकल घरेलू उत्पाद की दृष्टि से विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है जबकि क्रय-शक्ति समता की दृष्टि से विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया, आत्मनिर्भर भारत, और स्टार्टअप इंडिया जैसी योजनाओं ने देश को नई ऊर्जा दी है।

भारत ने अंतरिक्ष, रक्षा, कृषि, और सेवा क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। करोड़ों लोगों को आवास, बिजली, पानी और बैंकिंग जैसी सुविधाएँ मिली हैं।

यानी विकसित भारत का सपना अब दूर नहीं, साकार होने की राह पर है।

३. 2047 तक का लक्ष्य: भारत को कहाँ पहुँचना है?

भारत का लक्ष्य है — “2047 तक एक ऐसे भारत का निर्माण जो आर्थिक रूप से सशक्त, सामाजिक रूप से समान, और पर्यावरण की दृष्टि से संतुलित हो।” इस दृष्टि में शामिल हैं;

  • हर नागरिक की भागीदारी।
  • तकनीकी और नवाचार आधारित विकास। 
  • सशक्त शासन प्रणाली। 
  • सतत (Sustainable) अर्थव्यवस्था। 
  • सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों का संरक्षण। 

४. आत्मनिर्भर भारत: 2047 की नींव

आत्मनिर्भर-भारत अभियान ने देश में स्वदेशी उत्पादन, नवाचार और कौशल विकास की भावना जगाई है। छोटे उद्योगों और एम. एस. एम. ई. को प्रोत्साहन मिल रहा है।

भारत अब केवल आयातक ही नहीं, निर्यातक बनने की दिशा में तेजी से अग्रसर है। कृषि, औद्योगिक उत्पादन और डिजिटल सेवाओं में आत्मनिर्भरता बढ़ रही है।

यह अभियान भारत को आर्थिक स्वतंत्रता की ओर ले जा रहा है, जो विकसित भारत की सबसे मजबूत नींव है।

५. शिक्षा और कौशल विकास: विकसित समाज की कुंजी 

2047 के भारत में शिक्षा सिर्फ डिग्री नहीं, बल्कि कौशल और नवाचार की पहचान होगी। 

नई शिक्षा नीति (NEP 2020) ने शिक्षा-प्रणाली को लचीला और व्यवहारिक बनाया है।

डिजिटल लर्निंग, स्किल ट्रेनिंग और उद्यमिता, अब शिक्षा का हिस्सा बन चुकी हैं।

युवाओं को रोजगार नहीं, रोजगार-सृजन की दिशा में प्रेरित किया जा रहा है।

यानी, शिक्षा अब ज्ञान और कर्म का संगम बन चुकी है।

6. तकनीकी भारत: डिजिटल से ग्लोबल तक 

भारत तकनीकी-क्रांति के केंद्र में है। UPI, आधार, और डिजिटल गवर्नेंस ने दुनियाँ को भारत की क्षमता दिखाई है। 

AI, Robotics, Quantum Computing, और 5G जैसी तकनीकें भविष्य की दिशा तय कर रही हैं।

ग्रामीण भारत तक इंटरनेट पहुँचने से हर नागरिक डिजिटल रूप से सशक्त बन रहा है। 

2047 तक भारत “टेक्नोलॉजी एक्सपोर्टर नेशन” के रूप में स्थापित होगा।

७. महिला सशक्तिकरण: समता से समृद्धि की ओर

विकसित भारत की पहचान होगी — सशक्त महिलाएँ। महिलाएँ आज रक्षा, विज्ञान, राजनीति और व्यापार आदि सभी क्षेत्रों में नेतृत्व कर रही हैं।

सरकार ने "बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ", "महिला उद्यमिता योजना", और "मातृत्व-लाभ योजना" जैसी पहलें की हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में स्वयं-सहायता समूह, महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रहे हैं।

जब हर महिला सशक्त होगी, वास्तव में तभी भारत विकसित कहलाएगा।

८. सतत विकास: प्रकृति और प्रगति का संतुलन

विकसित भारत का सपना तभी साकार होगा जब विकास प्रकृति के साथ तालमेल में होगा।

भारत ने नेट ज़ीरो-इमिशन-2070 का लक्ष्य तय किया है।

सौर-ऊर्जा, जैव-ईंधन और इलेक्ट्रिक वाहनों की दिशा में बड़े कदम उठाए गए हैं।

“स्वच्छ भारत मिशन” ने नागरिकों में स्वच्छता की आदत डाली है।

सच्चा विकास वही है जो भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी संसाधन बचा कर रखे

९. आर्थिक सुधार और विश्व में भारत की भूमिका

भारत अब “उभरती अर्थव्यवस्था” नहीं, बल्कि वैश्विक निर्णायक शक्ति बन रहा है।

G20 की अध्यक्षता से भारत की कूटनीतिक ताकत सिद्ध हुई।

अंतरराष्ट्रीय व्यापार और निवेश में भारत की हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है।

“वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना, भारत को विश्व-नेतृत्व की दिशा में ले जा रही है।

2047 तक भारत एक स्थायी, न्यायपूर्ण और शांतिपूर्ण विश्व व्यवस्था का केंद्र बन सकता है।

१०. युवाशक्ति: भविष्य की सबसे बड़ी ताकत

भारत, विश्व का सबसे युवा देश है। “2047 का भारत, आज के युवाओं के हाथों में है।”

स्टार्टअप्स, इनोवेशन और डिजिटल उद्यमिता ने युवाओं को नई पहचान दी है।

खेल, कला, विज्ञान और सेवा क्षेत्रों में युवा, भारत की पहचान बना रहे हैं।

युवा अब “नौकरी खोजने” के बजाय “अवसर बनाने” की सोच रखते हैं।

युवाशक्ति ही विकसित भारत की धड़कन और दिशा दोनों है।

११. शासन और पारदर्शिता: बेहतर प्रशासन की ओर

2047 का भारत “स्मार्ट गवर्नेंस” का मॉडल बनेगा।

ई-गवर्नेंस, डिजिटल पारदर्शिता, और सिंगल विंडो सिस्टम जैसी पहलें, भ्रष्टाचार को कम कर रही हैं।

नागरिकों की भागीदारी अब नीतियों के केंद्र में है।

ग्रामीण स्तर तक डिजिटल सुविधा मिलने से शासन की पहुँच हर व्यक्ति तक है।

यह लोकतंत्र का वह स्वरूप है जिसमें सरकार और जनता दोनों साझेदार हैं।

12. चुनौतियाँ और समाधान की दिशा:-

विकसित भारत की राह में कुछ चुनौतियाँ हैं, जैसे- बेरोजगारी, जनसंख्या दबाव, पर्यावरण संकट, और आर्थिक एवं शिक्षा के क्षेत्र में असमानता। लेकिन इनसे निपटने की दिशा भी स्पष्ट है; 

  • कौशल आधारित रोजगार।
  • सतत-विकास नीति। 
  • समान अवसरों वाली शिक्षा व्यवस्था। 
  • जनभागीदारी आधारित शासन

भारत ने हमेशा हर चुनौती को अवसर में बदला है — और यही उसकी असली ताकत है।

निष्कर्ष:

“विकसित भारत 2047” कोई सपना नहीं, बल्कि यथार्थ की ओर बढ़ता संकल्प है। आज का भारत आत्मनिर्भर है, तकनीकी रूप से प्रगतिशील है, और मानवीय मूल्यों पर आधारित है।

जब देश का हर नागरिक जिम्मेदारी से अपने हिस्से का योगदान देगा, तो 2047 तक भारत न केवल विकसित, बल्कि विश्व का नेतृत्वकर्ता राष्ट्र होगा। यह वही भारत होगा जिसके बारे में हम सब गर्व से कहेंगे — “यह नया भारत है, जो सपने नहीं, संकल्प पूरे करता है।”

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28 दिसंबर 2025

सपना वह नहीं जो नींद में आए, जो आपको सोने न दे वही सपना है | प्रेरक ब्लॉग

भूमिका

हर इंसान सपने देखता है। कोई बड़े सपने देखता है तो कोई छोटे। कोई सपनों को भूल जाता है, तो कोई उन्हें जीने लगता है। लेकिन कुछ सपने ऐसे होते हैं जो केवल आँखों में नहीं रहते, वे दिल और दिमाग पर इस कदर हावी हो जाते हैं कि रातों की नींद उड़ जाती है।

ऐसे सपने इंसान को चैन से सोने नहीं देते, आराम करने नहीं देते और बार-बार यह याद दिलाते रहते हैं कि ज़िंदगी में अभी बहुत कुछ करना शेष है।

जब दुनियाँ सुकून की नींद सो रही होती है, तब ऐसे सपनों से जूझ रहा व्यक्ति करवटें बदल रहा होता है—कभी डर में, कभी उम्मीद में तो कभी संघर्ष की योजना बनाते हुए।

Source: Facebook 

यही वह मोड़ है जहाँ यह प्रश्न उठता है— "क्या रात की नींद उड़ा देने वाले सपने हमें कमजोर बनाते हैं या यही सफलता की असली शुरुआत होते हैं?"

सपने क्या होते हैं?

सपने केवल कल्पनाएँ नहीं होते। सपने मनुष्य के अंदर की वह आवाज़ होते हैं जो इंसान को उसकी सीमाओं से बाहर निकलने के लिए मजबूर करते हैं। 

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम साहब ने कहा था कि "सपने वो नहीं हैं जो आप सोते समय देखते हैं बल्कि सपने वो हैं जो आपको सोने नहीं देते।"

सपने हमें बताते हैं ;

  • हम जहाँ हैं, वहीं ठहरना नहीं है।
  • हमारे भीतर और भी क्षमता छिपी है। 
  • साधारण जीवन से आगे भी एक दुनियाँ है। 
  • जो व्यक्ति सपनों से डरता है, वह अक्सर आराम को चुनता है।
  • और जो सपनों को जीता है, उसकी नींद अक्सर कुर्बान हो जाती है।

क्यों कुछ सपने रात की नींद उड़ा देते हैं?

१. लक्ष्य का बोझ: जब इंसान अपने लक्ष्य को लेकर गंभीर हो जाता है, तो उसका दिमाग उसे आराम की अनुमति नहीं देता। हर समय उसके दिमाग में इस तरह के सवाल घूमते रहते हैं, जैसे कि—

  • क्या मैं सही दिशा में जा रहा हूँ?
  • अगर असफल हो गया तब क्या होगा?
  • और समय ही हाथ से निकल गया तो?

यही कुछ ऐसे सवाल हैं जो रातों की नींद को चुरा लेते हैं।

2. असफलता का डर: रात की शांति में डर और गहरा हो जाता है। दिन में तो हम खुद को व्यस्त रख लेते हैं, लेकिन रात में जब अकेले होते हैं, तब मन खुद से पूछता है कि—

  • अगर मैं हार गया तो?
  • समाज क्या कहेगा? 
  • परिवार की उम्मीदें टूट गईं तो?

यह डर नींद को दुश्मन बना देता है।

३. कुछ कर गुजरने की तड़प: कुछ लोग जीवन को केवल जी लेने के लिए नहीं जीते बल्कि उनके भीतर कुछ कर गुजरने की तड़प होती है और उनकी यह तड़प इतनी प्रचंड होती है कि नींद भी उन्हें बाधा लगने लगती है। ऐसे लोग सोचते हैं कि “अगर सो गया, तो समय हाथ से निकल जाएगा।”

क्या नींद उड़ना गलत है?

यह सवाल बहुत महत्वपूर्ण है। अगर नींद उड़ने का कारण है— निरंतर चिंता, दूसरों से तुलना, नकारात्मक सोच या बेवजह का डर, तो यह मानसिक नुकसान है।

✅ लेकिन अगर आपकी नींद उड़ने का कारण है— लक्ष्य की स्पष्टता और प्राप्ति, सीखने की भूख, कुछ कर गुजरने का जुनून, आत्मविकास और भविष्य की तैयारी; तब यह आपके सफलता की पहली कीमत है।

इतिहास गवाह है: जो लोग चैन की नींद सोते रहे, वे केवल सपने देखते रहे और जो लोग सपनों के लिए जागते रहे, उन्होंने ही इतिहास लिखा।

  • डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम— उनके अंदर विकसित भारत का सपना था। 
  • थॉमस एडिसन— सपने को साकार करने के लिए हजारों बार असफल हुए लेकिन हार नहीं मानी। 
  • स्वामी विवेकानंद— शक्तिशाली, वैभवशाली भारत के निर्माण का सपना जिसमें आधुनिक विज्ञान और प्राचीन आध्यात्म का संगम हो।
  • महात्मा गांधी— देश को गुलामी की जंजीरों से  आज़ादी दिलाने का सपना। 
  • डॉ. भीमराव अंबेडकर— समानता का सपना। 

सपने और संघर्ष का गहरा संबंध

सपने, बिना संघर्ष के नहीं आते और संघर्ष बिना बेचैनी के नहीं होता। जब सपने बड़े होते हैं तब—

  • रास्ते कठिन होते हैं।
  • अकेलापन बढ़ता है। 
  • आलोचना मिलती है। 

लेकिन यही संघर्ष इंसान को मजबूत बनाता है।

रात की बेचैनी: अभिशाप या वरदान?

अभिशाप तब है, जब—

  • आप केवल सोचते भर हैं, करते कुछ नहीं। 
  • डर आपको जकड़ ले। 
  • आत्मविश्वास टूटने लगे। 

वरदान तब है, जब—

  • आप रात में योजना बनाते हैं।
  • सीखते हैं, लिखते हैं और सोच-विचार करते हैं। 
  • अगले दिन कुछ बेहतर बनने की तैयारी करते हैं। 

कैसे पहचानें कि आपके सपने सही हैं?

✔ आपके सपने आपको बेहतर इंसान बना रहे हैं। 

✔ आप खुद से प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। 

✔ आप सीखने के लिए हमेशा तत्पर हैं। 

✔ असफलता से भाग नहीं रहे। 

अगर ये लक्षण हैं, तो सच मानिये आपकी नींद उड़ना बेकार नहीं है।

सपनों और स्वास्थ्य के बीच संतुलन कैसे बनाएँ?

१. लक्ष्य लिखिए: जो लक्ष्य काग़ज़ पर होते हैं, वे दिमाग पर बोझ कम डालते हैं।

२. सोचने का समय निर्धारित करें: दिन में सोचने और योजना बनाने का एक समय तय करें और रात में दिमाग को आराम दें।

३. नींद को दुश्मन न बनाएं: याद रखें— थका हुआ दिमाग बड़े सपनों को भी कमजोर बना देता है, इसलिए भरपूर नींद लें।

४. तुलना छोड़ें: दूसरों की सफलता आपकी यात्रा तय नहीं करती इसलिए औरों से अपनी तुलना, बिल्कुल छोड़ दें। 

सपने देखने वालों और भीड़ में अंतर

सपने तो सभी देखते हैं परंतु उससे वास्ता नहीं रखते। लेकिन जो लोग अपने सपनों को जीते हैं वे-

  • त्याग करते हैं। 
  • अकेले चलते हैं, किसी का इंतजार नहीं करते। 
  • लोगों के ताने और आलोचनाओं की परवाह नहीं करते। 
  • और अंत में एक दिन वही इतिहास बनाते हैं।

निष्कर्ष

रातों की नींद उड़ा देने वाले सपने, हर किसी को नहीं आते। यह बेचैनी इस बात का संकेत है कि आप साधारण नहीं रहना चाहते, कुछ अलग करने की तमन्ना रखते हैं। माना कि यह रास्ता इतना आसान भी नहीं है। हाँ, इसमें त्याग है, जूनून है, लेकिन सच में आपका यही त्याग, यही जुनून आगे चलकर सुकून बनता है।

जो सपने आपको सोने नहीं देते, वही आपको जाग्रत जीवन की ओर ले जाते हैं। अगर आपकी नींद आपके सपनों की वजह से उड़ रही है, तो घबराइए मत— "शायद आप सही रास्ते पर हैं।"

FAQ:

Q1. सच्चा सपना किसे कहते हैं?

उत्तर: सच्चा सपना वह होता है जो आपको केवल ख्वाबों में नहीं, बल्कि उसे वास्तविकता में बदलने हेतु कर्म करने पर  मजबूर करता है।

Q2. क्या ज्यादा सपने देखना नुकसानदायक है?

उत्तर: सपने, जब तक आपको आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं, तब-तक वे नुकसानदेह नहीं होते। 

Q3. क्या सफलता के लिए नींद त्यागना जरूरी है?

उत्तर: बिल्कुल नहीं। नींद त्यागना जरूरी नहीं है, संतुलन जरूरी है। सफलता के लिए स्मार्ट मेहनत सबसे अहम है।

Q4. क्या हर बेचैनी सफलता की निशानी है?

उत्तर: नहीं, केवल सकारात्मक बेचैनी ही उपयोगी होती है।

Q5. युवा अपने सपनों को कैसे पहचानें?

उत्तर: जो लक्ष्य आपको बार-बार सोचने पर मजबूर करे और वास्तविक रूप देने के लिए आपको बेचैन करे, वही आपका सपना है।

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26 दिसंबर 2025

चलती चक्की काल की पड़े सभी पर चोट (सुंदर कहानी)

यह संसार काल की एक ऐसी चक्की है, जो निरंतर घूम रही है। इसमें न कोई छोटा है, न बड़ा। काल की चोट से न तो अमीर सुरक्षित है, न गरीब। “चलती चक्की काल की पड़े सभी पर चोट” केवल एक कथन नहीं है, बल्कि जीवन की कड़वी सच्चाई है। आज का मनुष्य अपने धन, पद, शक्ति और दिखावे के घमंड में यह भूल जाता है कि काल की मार जब पड़ती है, तो वह किसी का पक्ष नहीं लेती। 

यह ब्लॉग एक बड़ी ही सुंदर कहानी के माध्यम से उसी सत्य को उजागर करता है कि कैसे काल की मार सभी पर पड़ती है। इसलिए मनुष्य को चाहिए कि कालचक्र और ईश्वर को कभी न भूले। 

रोचक कहानी:

सम्राट विक्रमादित्य अन्य राजाओं की तरह विलासी नहीं थे। वे हर समय प्रजा की चिंता में लगे रहते थे। एक दिन प्रातः चार बजे अपने महल से बिल्कुल अकेले किसान के वेष में बाहर निकले। और दूर एक जंगल में जाकर देखा कि एक रीछ एक तरफ से आया और उनके सामने वाली राह पर चलने लगा। उस रीछ ने महाराज को नहीं देखा परंतु महाराज ने उसे देख लिया था। 

थोड़ी दूर चलकर वह रीछ जमीन पर लोटपोट हो गया और एक आलाबाला सोलह-साला सुंदर युवती बनकर एक कुएं पर जा बैठा। सम्राट भी छिपकर यह निराला तमाशा देखने लगे। तबतक कुएं पर दो सिपाही आये। दोनों सगे भाई थे। छुट्टी लेकर घर जा रहे थे। 

युवती ने मुस्कुरा कर बड़े भाई से कहा- तुम्हारे पास कुछ खाने को है? बड़ा सिपाही- जी नहीं।

युवती ने अपने चितवन से उसे घायल करते हुए कहा- मुझे तो बड़ी भूख लगी है।

बड़ा सिपाही उस युवती पर मोहित हो गया और बोला- 'यदि आपकी आज्ञा हो तो समीप के किसी गाँव से ले आऊं?'

युवती- आपको तकलीफ होगी। 

बड़ा- आपके लिए तकलीफ! आपके लिए तो मैं जान तक दे सकता हूँ। 

युवती- तो ले आओ। 

बड़ा भाई चला गया

अब युवती ने छोटे भाई को कटाक्ष मारा और अपने पास बुलाया। वह आकर अदब से बैठ गया। 

युवती- मैं तुम्हीं पर रीझ गयी हूँ। 

छोटा- ऐसा न कहिये। आपने बड़े भाई साहब पर अपनी कृपा-कटाक्ष किया था। इसलिए आप मेरी भावज हुयीं और भावज तो माता समान होती है। 

युवती- तुम बड़े मूर्ख मालूम पड़ते हो।

छोटा- क्यों? 

युवती- तुम्हारे बड़े भाई की उम्र क्या है? 

छोटा- पचास साल। 

युवती- और तुम्हारी? 

छोटा- पैंतीस साल। 

युवती- और मेरी। 

छोटा- आप ही जानें। 

युवती- अपनी बुद्धि से बताओ। 

छोटा - होंगी पंद्रह-सोलह साल की। 

युवती- अब तुम्हीं बताओ कि एक सोलह साल की लड़की पैंतीस साल के युवक को पसंद करेगी या पचास साल के बूढ़े को? 

छोटा सिपाही निरूत्तर हो गया। 

युवती- जो मैं कहूँ, वही करो। तुम मेरे साथ भाग चलो। 

छोटा- कदापि नहीं। आप मेरे भाई से सप्रेम बात कर चुकी हैं। आप भावज हैं और माता के समान हैं। 

युवती- अगर तुम मेरी आज्ञा नहीं मानोगे तो मारे जाओगे। 

छोटा- चाहे कुछ भी हो, इसकी परवाह नहीं। 

थोड़ी देर में पाव भर पेड़ा लेकर बड़ा सिपाही आ गया। 

युवती ने अपनी साड़ी जहाँ-तहाँ से फाड़ डाली थी। उसी साड़ी से मुंह ढंककर वह रोने लगी। 

बड़ा- रोती क्यों हो? यह लो पेड़ा खाओ। 

युवती- पेड़ा उधर कुंएं में डाल दो और तुम भी उसी में कूद मरो।

बड़ा- क्यों? 

युवती- तुम्हारा यह छोटा भाई बहुत दुष्ट है। यदि तुम जल्दी न आते तो इसने मेरा सतीत्व नष्ट कर दिया होता। यह देखो छीना-झपटी में मेरी रेशमी साड़ी तार-तार हो गयी है। 

बड़ा- क्यों बे? तेरी ये हरकत? 

छोटा- भाई साहब! यह झूठ कहती है। 

बड़ा- हूँ! तू सच्चा और वह झूठी है? 

छोटा- मैंने कुछ नहीं किया। 

बड़ा- और यह बिना कारण ही रोती है? साड़ी कैसे फटी? 

छोटा- मैंने कुछ भी नहीं किया। 

बड़ा- अबे साले! तू बड़ा पाजी है। 

छोटा- देखो, गाली मत देना। 

बड़ा- चोरी और उपर से सीनाजोरी? तू भाई नहीं, दुश्मन है। 

इतना कहकर म्यान से तलवार निकाली। छोटा भाई था तो सुशील; परंतु कलयुगी ही था न। वह भी आ गया सिपाहियाना गरमी में। उसने देखा कि बेकसूर होने पर भी उसका भाई एक अनजान और बदचलन औरत के बहकावे में उसे धर्मभ्रष्ट समझ रहा है। उसने भी तलवार सम्हाली। 

दोनों ने पैंतरे बदले और चलने लगीं तलवारें। पांच मिनट में दोनों मरकर गिर गये। युवती हंसी। जमीन पर लोटपोट कर काला सांप बन गयी और आगे को चल दी। सम्राट ने प्रण कर लिया कि इस विचित्र जीव की पूरी कारगुजारी वे अवश्य देखेंगे।

आगे चलकर एक नदी मिली। उसमें एक बड़ी नाव आ रही थी। उसमें तीन सौ आदमी बैठे थे। जब वह नाव बीच धारा में पहुँची, वही काला सांप नाव की सीध में तैर चला। नाव के पास पहुंचा और चिटककर नाव में जा गिरा। लोगों ने जब यह तमाशा देखा तो मारे डर के, सभी नाव के एक तरफ हो गये। नाव उलट गयी और सब डूबकर मर गए। वह सांप फिर लौटा और जमीन पर लोटने लगा। 

सम्राट ने सोचा- अजब लीला है। 

अबकी बार वह एक वृद्ध ज्योतिषी बन गया, सफेद दाढ़ी, ललाट पर चंदन और हाथ में पत्रा लिए। सम्राट ने आगे दौड़कर उसके पैर पकड़ लिए। 

वह- तुम कौन? 

सम्राट- मैं एक राजा हूँ। 

वह- क्या चाहते हो? 

सम्राट- सुबह जब आप रीछ के रूप में थे, तबसे आपके पीछे लगा हूँ। आपने युवती और सांप बनकर जो करिश्मा किये हैं, वह सब मैंने देखा है। यह आपका चौथा रूप है। 

वह- अच्छा तो तुम क्या जानना चाहते हो? 

सम्राट- यह कि आप कौन हैं? 

वह- तुम इस बवाल में मत पड़ो। अपने रास्ते जाओ। 

सम्राट- नहीं, स्वामिन्! जबतक आपका परिचय प्राप्त नहीं कर लूँगा तबतक एक पग नहीं बढ़ूंगा। 

वह- मैं महाकाल हूँ और लोगों के विनाश के काम में लगा रहता हूँ। 

सम्राट- आप जिसे चाहते हैं, उसे साफ कर डालते हैं? 

महाकाल- नहीं स्वतंत्र नहीं हूँ। परमात्मा का एक तुच्छ सेवक हूँ। 

सम्राट- अच्छा तो मेरी मौत कब आयेगी? 

महाकाल- यह बताने की आज्ञा नहीं है। तुम अभी बहुत दिन जीवित रहोगे और तुम्हारे द्वारा ईश्वर बहुत से परोपकार के कार्य करवायेंगे। 

सम्राट- अब आप किसकी घात में हैं? 

महाकाल- यह तुम्हारे अधिकार से बाहर का प्रश्न है। 

सम्राट- आपने रीछ बनकर क्या किया था? 

महाकाल- एक आदमी पेड़ पर चढ़कर लकड़ी काट रहा था। उसे पेड़ पर से गिराने के लिए रीछ बनकर पेड़ पर चढ़ गया और गिराकर मारा। 

सम्राट- आप विविध प्रकार के रूप क्यों बनाते हैं? 

महाकाल- जिसकी मौत जिस रूप में लिखी होती है, उसे उसी बहाने से मारता हूँ। 

सम्राट- क्या कोई आपके कराल हाथ से बचा भी है? 

महाकाल- कोई-कोई योगी बच गये, पारब्रह्म की ओट। चलती चक्की काल की, पड़े सभी पर चोट।। 

सम्राट- क्या करने से काल की चोट नहीं होती? 

महाकाल- परमात्मा की शरणागति से। परमात्मा अपने भक्त का काल अपने हाथ में ले लेते हैं। उस पर मेरा कोई अधिकार नहीं रह जाता। 

सम्राट- आपका आज का यह किस्सा किसी को सुनाऊँ तो क्या वह सुनेगा? और क्या विश्वास करेगा? 

महाकाल- नहीं। अगर सुनेंगे तो भी गप मानेंगे। लोग दिलबहलाव के किस्से सुनते हैं। जिन कहानियों से दिमाग को खुराक मिलती है, उसे नहीं सुनते। 

सम्राट- सचमुच यह जगत विचित्रताओं की रंगभूमि है। इस जगत को कोई नहीं जानता है, यद्यपि सभी यही समझते हैं कि वे इस जगत को जानते हैं। आपको मैं प्रणाम करता हूँ। अब आप जाइये। आपके दर्शन से यह उपदेश मिला कि, "काल और ईश्वर को कभी नहीं भूलना चाहिए।"

कहानी का स्रोत: गीताप्रेस से प्रकाशित पुस्तक, "एक लोटा पानी"

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24 दिसंबर 2025

विद्या-धन: सर्वोत्तम धन | शिक्षा और ज्ञान का वास्तविक महत्व

क्यों शिक्षा और ज्ञान ही जीवन की सबसे बड़ी पूँजी है?

भूमिका:

मानव जीवन में धन का महत्व निर्विवाद है। धन से जीवन की अनेक आवश्यकताएँ जैसे— भोजन, वस्त्र, आवास, सुविधा और सुरक्षा, पूरी होती हैं। लेकिन क्या केवल भौतिक धन ही जीवन को सार्थक और सफल बना सकता है? भारतीय संस्कृति और जीवन के अनुभव, दोनों ही बताते हैं कि सच्चा और सर्वोत्तम धन “विद्या-धन” है। 

धन, जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करता है, लेकिन जीवन को दिशा देने का काम केवल विद्या-धन करता है। विद्या, वह धन है जो कभी नष्ट नहीं होता और जीवन के हर मोड़ पर हमारा मार्गदर्शन करता है।

विद्या वह धन है जो न चोरी होता है, न नष्ट होता है और न ही बाँटने से घटता है। बल्कि इसे जितना बाँटो, उतना ही बढ़ता है। यही कारण है कि विद्या-धन को सभी धनों में श्रेष्ठ माना गया है।

इस ब्लॉग में हम सरल और व्यवहारिक भाषा में यह समझेंगे कि विद्या-धन क्या है, इसका महत्व क्या है, यह भौतिक धन से श्रेष्ठ क्यों है और आज के आधुनिक जीवन में विद्या-धन कैसे हमारे भविष्य को सुरक्षित बनाता है? 

विद्या-धन क्या है?

विद्या-धन का वास्तविक मतलब भौतिक धन-संपत्ति से कहीं अधिक गहरा और व्यापक होता है। इसका तात्पर्य केवल किताबी ज्ञान या डिग्री से नहीं है, बल्कि इसका अर्थ जीवन के हर क्षेत्र में प्राप्त किये गए ज्ञान, अनुभव, बुद्धिमत्ता, गलत-सही का बोध और जीवन जीने की कला से है।

संक्षेप में कहें तो विद्या-धन वह आंतरिक संपत्ति है जो व्यक्ति के सोचने, समझने और सही निर्णय लेने की क्षमता को मजबूत बनाती है।

भारतीय संस्कृति में विद्या-धन का महत्व

भारतीय परंपरा में विद्या को ईश्वर से भी ऊँचा स्थान दिया गया है— “न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते”

अर्थात् ज्ञान के समान पवित्र इस संसार में कुछ भी नहीं है।

विद्वत्वं च नृपत्वं च नैव तुल्यं कदाचन।     

स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते॥

एक राजा और विद्वान की तुलना कभी नहीं हो सकती; क्योंकि  राजा तो केवल अपने राज्य में सम्मान पाता है जबकि विद्वान सर्वत्र सम्मान पाता है। 

न चौरहार्यं न च राजहार्यं न भ्रातृभाज्यं न च भारकारि।

व्यये कृते वर्धत एव नित्यं विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्॥

विद्याधन ऐसा धन है कि इसे न तो कोई चुरा सकता है, न राजा छीन सकता, न तो भाई इसका बंटवारा कर सकते और न ही यह किसी तरह का बोझ बनता है। यही एक ऐसा धन है जो खर्च करने पर नित्य बढ़ता है। इसीलिये तो विद्याधन, सर्वोत्तम धन है। 

माता शत्रुः पिता वैरी येन बालो न पाठितः।                       

न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये बको यथा ॥

अर्थात् वह माता शत्रु है और पिता बैरी के समान है जो अपने बच्चों को पढ़ाया नहीं। क्योंकि विद्या से विहीन बच्चे, सभा में उसी प्रकार शोभा नहीं पाते जैसे हंसों के बीच बगुला। 

प्राचीन गुरुकुल व्यवस्था में शिक्षा को जीवन के निर्माण का सशक्त माध्यम माना जाता था। माता-पिता अपने बच्चों को धन के साथ-साथ विद्या देना अपना सबसे बड़ा कर्तव्य मानते थे।

विद्या-धन की विशेषताएँ:

विद्या-धन, ऐसा धन है जिसे प्राप्त कर महामूर्ख भी पूज्यनीय और ख्याति को प्राप्त हो जाता है। यहाँ हम कुछ चुनिंदा महापुरुषों के उदाहरण देंगे जो अपने जीवन के शुरुआती दिनों में या तो महामूर्ख या पथभ्रष्ट थे परंतु बाद में विद्याधन अर्जित कर इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए अमर हो गये। 

१. महर्षि बाल्मीकि: महर्षि बाल्मीकि शुरू में रत्नाकर नामके डकैत हुआ करते थे। लूटमार ही उनका पेशा था। उसी से वे अपने परिवार का भरणपोषण करते था। परंतु दैववश उनकी मुलाकात श्रृषियों से हुई। वे उन्हें भी लूटने का प्रयास किया। तब उन्होंने रत्नाकर से पूछा कि तुम जो ये पापकर्म कर रहे हो, क्या इसमें तुम्हारे परिवार के लोग भी भागीदार होंगे? तब रत्नाकर श्रृषियों को पेड़ से बांधकर घर गया और परिजनों से पूछा कि मैं जो ये लूटमार का धन्धा कर रहा हूँ, आप-सब लोगों के लिए ही तो कर रहा हूँ तो आप-सभी तो जरूर मेरे इस पापकर्म में भागीदार होंगे? परिवार के लोगों ने उसके इस पापकर्म में भागीदार होने से साफ मना कर दिया। यह सुनकर डाकू रत्नाकर की आंखें खुल गयीं और वापस आकर श्रृषियों के पैरों में गिरकर क्षमा मांगी और अपने उद्धार का उपाय पूछा। तब श्रृषियों ने उसे "राम-नाम" जपने को कहा किन्तु उस मूर्ख को राम शब्द बोलना मुश्किल था। तब ऋषियों ने सोचा कि यह मूर्ख तो आजीवन मारने-मरने का काम किया है इसलिए "मरा" शब्द का जाप करने को कहा। चूंकि मरा शब्द का बार बार उच्चारण करने से स्वत: राम शब्द हो जाता है। इस तरह रामनाम जपकर वही डाकू रत्नाकर विद्वत्ता को प्राप्त हुए और आदिकवि महर्षि बाल्मीकि के नाम से विख्यात हुए। उन्होंने महान ग्रंथ "रामायण" की रचना संस्कृत में किया। 

२. कालिदास: विश्वप्रसिद्ध नाटक "अभिज्ञान शाकुंतलम्" के रचनाकार कालिदास जी पहले बज्र मूर्ख थे। उनकी मूर्खता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि वे पेड़ की जिस डाली पर बैठे थे, उसी को काट रहे थे। तत्कालीन विद्वानों ने उसका विवाह छल करके उस समय की महान विदुषी विद्योत्तमा से प्रतिशोधवश करा दिया। बाद में विद्योत्तमा को पता चला कि उसका पति तो महामूर्ख है, तब उसने अपने पति को अपमानित कर घर से बाहर निकाल दिया। अपमानित होकर वह मूर्ख सीधे काली के मंदिर में जाकर घोर तपस्या की और विद्याधन अर्जित किया। तदोपरांत अभिज्ञान शाकुंतलम नामक महान ग्रंथ की रचना संस्कृत भाषा में किया जिसका अनुवाद दुनियाँ की अनेक भाषाओं में हुआ है। वे सम्राट विक्रमादित्य के नवगुणियों में शामिल थे। 

विद्या-धन और भौतिक धन में अंतर:

   भौतिक धन विद्या-धन

बंटवारा होता है।                   बंटवारा नहीं हो सकता। 

चोरी हो सकता है।                चोरी नहीं हो सकता। 

खर्च करने से घटता है। बाँटने से बढ़ता है। 

अस्थायी होता है।                 स्थायी होता है। 

अहंकार बढ़ा सकता है।         विनम्रता सिखाता है

संकट में छिन सकता है।  संकट में सहारा बनता है। 

विद्या-धन, सर्वोत्तम धन क्यों है?

विद्या को सर्वोत्तम धन कहा गया है, क्योंकि विद्या-धन 

आजीवन साथ रहती है: धन, संपत्ति और पद, समय के साथ बदल सकते हैं लेकिन विद्या जीवन-भर व्यक्ति के साथ रहती है। परिस्थितियाँ चाहे जैसी भी हों, ज्ञान व्यक्ति को नए रास्ते खोजने की क्षमता देता है।

व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाती है: जिस व्यक्ति के पास विद्या-धन होता है, वह कभी भी पूरी तरह असहाय नहीं होता। ज्ञान उसे रोजगार, व्यवसाय और समस्या-समाधान के नए अवसर प्रदान करता है।

सही निर्णय लेने की शक्ति देती है: जीवन में गलत निर्णय अक्सर अज्ञान के कारण होते हैं। विद्या, व्यक्ति को सोच-समझकर निर्णय लेने की समझ देती है, जिससे जीवन में पछतावे कम होते हैं।

व्यक्तित्व को निखारती है: सच्ची विद्या केवल बुद्धि ही नहीं बढ़ाती बल्कि सत्चरित्र का भी निर्माण करती है। विद्या से व्यक्ति के अंदर आत्मविश्वास, धैर्य, अनुशासन, विनम्रता के गुण विकसित होते हैं।

समाज और राष्ट्र को मजबूत बनाती है: शिक्षित व्यक्ति न केवल अपने लिए बल्कि समाज और देश के लिए भी सशक्त बनता है। सच कहें तो राष्ट्र की प्रगति का आधार ही विद्या-धन होता है।

विद्या-धन कैसे अर्जित करें? (व्यवहारिक उपाय)

१. निरंतर सीखने की आदत डालें

सीखना, केवल स्कूल-कॉलेज तक सीमित नहीं होना चाहिए।अच्छी किताबें पढ़ें। नए कौशल सीखें और जीवन के अनुभवों से सीख लें। 

२. केवल कागजी डिग्री नहीं, समझ विकसित करें

रट्टा लगाने वाली विद्या उपयोगी नहीं होती। इसलिए विषय को समझने और उसे जीवन में लागू करने का प्रयास करें।

३. अच्छे लोगों की संगति करें

कहा जाता है कि, "जैसा संग, वैसा रंग।" ज्ञानवान और सकारात्मक लोगों के साथ रहने से विद्या-धन स्वतः बढ़ता है।

४. अपनी गलतियों से सीखें

गलतियाँ, विद्या का बड़ा स्रोत भी होती हैं। जो व्यक्ति अपनी गलतियों से सीख लेता है, सच मायने में वही विद्या का धनी होता है।

५. विद्या का उपयोग समाज के लिए करें

ज्ञान का सही उपयोग ही मनुष्य के जीवन को सार्थक बनाता है। जब विद्या दूसरों के काम आए, तभी वह सच्चा धन बनती है।

आधुनिक युग में विद्या-धन का महत्व:

आधुनिक युग में विद्याधन सबसे स्थायी और मूल्यवान संपत्ति है। धन, संपत्ति और पद समय के साथ नष्ट हो सकते हैं, लेकिन विद्या मनुष्य के साथ जीवनभर रहती है। यह रोजगार, आत्मनिर्भरता और सामाजिक सम्मान प्रदान करती है।

विद्याधन से व्यक्ति में सही-गलत का विवेक, तार्किक सोच और समस्याओं का समाधान करने की क्षमता विकसित होती है। तकनीकी प्रगति, प्रतिस्पर्धा और तेजी से बदलते समय में केवल वही व्यक्ति सफल होता है जो निरंतर सीखता रहता है।

साथ ही, विद्या समाज और राष्ट्र के विकास का आधार है। शिक्षित नागरिक ही एक सशक्त, जागरूक और प्रगतिशील समाज का निर्माण करते हैं। इसलिए आधुनिक युग में विद्याधन न केवल व्यक्तिगत उन्नति, बल्कि सामाजिक और राष्ट्रीय विकास के लिए भी अत्यंत आवश्यक है।

निष्कर्ष:

“विद्या-धन: सर्वोत्तम धन” केवल एक कहावत नहीं, बल्कि जीवन का गहरा सत्य है। भौतिक धन आवश्यक है, लेकिन विद्या-धन के बिना वह अधूरा है। विद्या-धन— "जीवन को दिशा देता है। व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाता है और समाज तथा राष्ट्र को सशक्त करता है।"

इसलिए हमें अपने जीवन में सबसे अधिक निवेश, विद्या-धन में करना चाहिए, क्योंकि यही वह धन है जो कभी कम नहीं होता, बल्कि जीवन के हर मोड़ पर हमारा सबसे बड़ा सहारा बनता है।

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21 दिसंबर 2025

शुभचिंतन का प्रभाव (शिक्षाप्रद कहानी)

"शुभचिंतन का प्रभाव" पर आधारित यह कहानी बहुत ही प्रेरक और शिक्षाप्रद कहानी है। यह गीताप्रेस से प्रकाशित पुस्तक, "एक लोटा पानी" से ली गयी है। इस कहानी के माध्यम से मानव-समाज के लिए उच्च कोटि का संदेश दिया गया है । इससे हमें यह सीख मिलती है कि-

"जब हम किसी के प्रति शुभचिंतन या अशुभचिंतन, जिस तरह का भाव रखते हैं तो वह भावना उसके पास जाकर वैसा ही शुभ या अशुभ प्रभाव डालती है।"

कहानी:

बहुत समय पहले सेठ गंगासरन जी काशी में रहते थे। वे भगवान शंकरजी के सच्चे भक्त थे। सोमवती अमावस्या का प्रातःकाल का समय था। मणिकर्णिका घाट पर अनेक नर-नारी, साधु-संन्यासी स्नान कर रहे थे। 'जय गंगे', 'जय शंकर' और 'जय सूर्य देव' के नारे लगाये जा रहे थे। भक्त गंगासरन जी स्नान कर रहे थे। तबतक अलवर के मंदिर से कोई गंगा में कूदा और डूबने लगा। किसी की हिम्मत न पड़ी कि उस डूबने वाले को बचाने की कोशिश करता, क्योंकि डूबने वाला, अपने बचाने वाले को प्रायः इस तरह जकड़ लेता है कि दोनों डूब मरते हैं। परंतु सेठ जी का हृदय करुणा से भर गया। वे तैरना भी जानते थे। वे तुरंत नदी में छलांग लगाये और तेजी से तैरकर डूबने वाले को पकड़ लिए। किनारे लाकर देखा तो वह उन्हीं का मुनीम नंदलाल था। पेट से पानी निकालने के बाद जब नंदलाल को होश में देखा तब भक्त सेठजी ने कहा- 'मुनीम जी, आपको गंगाजी में किसने फेंका था?'

'किसी ने नहीं।'

'तो क्या किसी का धक्का खाकर आप गिरे थे?'

'नहीं तो।'

'फिर क्या बात थी?'

'मैं स्वयं ही आत्महत्या करना चाहता था।'

'वह क्यों?'

'मैंने आपके पांच हजार रुपये सट्टे में बर्बाद कर दिये हैं। मैंने सोचा कि आप मुझे गबन के आरोप में गिरफ्तार कराकर जेल में बंद करा देंगे। अपनी बदनामी से बचने के लिए मैंने मर जाना उत्तम समझा था।'

एक शर्त पर मैं तुम्हारा अपराध क्षमा कर सकता हूँ। 

'वह शर्त क्या है?'

प्रतिज्ञा करो कि आज से किसी प्रकार का कोई जूआ  नहीं खेलोगे, सट्टा नहीं करोगे।

प्रतिज्ञा करता हूँ और शंकर की शपथ लेता हूँ। 

'जाओ माफ किया। वो पांच हजार की रकम मेरे नाम घरेलू खर्च में डाल देना।'

'परंतु अब आप मुझे अपने यहाँ मुनीम नहीं रखेंगे?'

'रखूँगा क्यों नहीं? भूल हो जाना स्वाभाविक है। फिर तुम नवयुवक हो। लोभ में आकर भूल कर बैठे। नंदलाल, मैं तुम्हें मैं अपना छोटा भाई मानता हूँ। चिंता मत करो।

मुनीम ने अपने दयालु मालिक के चरणों में सिर रख दिया। 

         ×           ×           ×            ×            ×

अगले वर्ष सेठ गंगासरन जी को कपड़े के व्यापार में एक लाख का मुनाफा हुआ। मुनीम नंदलाल को फिर लोभ के भूत ने घेरा। अबकी बार वह सेठ जी के प्राण लेने की तरकीब सोची। उसने सोचा कि सेठजी यदि बीच में ही उठ जायॅं तो विधवा सेठानी और बालक शंकरलाल मेरे ही भरोसे रह जायेंगे। वे दोनों क्या जानें कि 'मिती काटा और तत्काल धन' किसे कहते हैं। बुद्धिमानी से भरे हीले-हवाले से यह एक लाख मेरी तिजोरी में जा पहुंचेगा। किसी को कुछ खबर भी नहीं होगी, अंत में घाटा दिखला दूंगा। व्यापार में लाभ ही नहीं होता, घाटा भी तो होता है। 

संध्या का समय था। नंदलाल अपने घर से एक गिलास दूध संखिया डालकर सेठ के पास ले गया और बोला, "दस दिन हुये मेरी गाय ने बच्चा दिया था। आज से दूध लेना शुरू किया जायेगा। आपकी बहू ने कहा, "दूध का पहला गिलास मालिक को पिला आओ। उसके बाद ही हमलोग दूध का उपयोग करेंगे।"

सेठजी बोले- 'गिलास मेज पर रख कर घर चले जाओ। मैं भी भोजन करने जा रहा हूँ। सोते समय तुम्हारा यह लाया हुआ दूध मैं अवश्य पी लूंगा।'

मेज पर वह विषाक्त दूध रखकर दुष्ट मुनीम चला गया। 

भोजन करके सेठजी आये तो देखा गिलास खाली पड़ा है। सारा दूध पड़ोस की पालतू बिल्ली पी गयी। सुबह सुना कि पड़ोसी की बिल्ली मर गयी। वह क्यों मरी, कैसे मरी- इस बात की छानबीन नहीं की गयी। पशु के मरने-जीने की चिंता मनुष्य नहीं करता। दुकान पर सेठ को गद्दी पर बैठा देख मुनीम को महान आश्चर्य हुआ, परंतु वह कुछ नहीं बोला। 

रात के स्वप्न में सेठजी को भगवान् शंकर जी के दर्शन हुए। भगवान् कह रहे थे- 'तुमने जिस दुष्ट मुनीम को पांच हजार के गबन के मामले में क्षमा कर दिया था, उसने दूध में संखिया मिलाकर तुमको समाप्त करने का षणयंत्र रचा था। मैंने प्रेरणा करके बिल्ली भेजी थी और तुम्हारे प्राण बचाये थे। उसी विष से पड़ोसी की बिल्ली मरी थी।'

सेठ ने उसी समय जाकर सेठानी को अपना सपना सुनाया। सुनकर बेचारी सेठानी सहम गयी। फिर संभलकर बोली- 'जब वह तुम्हारा ऐसा अशुभचिंतक है तब उसे निकाल बाहर करो और कोई दूसरा ईमानदार मुनीम रख लो।'

'मैं अपने शुभचिंतन के द्वारा उसका अशुभचिंतन नष्ट कर डालूँगा।' सेठ ने दृढ़ता से कहा।

'यह कैसे हो सकता है?' सेठानी ने आश्चर्यचकित होकर प्रश्न किया। 

'मैं उसके प्रति वैरभावना नहीं रखूँगा, बल्कि प्रेम-भावना को बढ़ाता रहूँगा।'

'इससे क्या होगा?'

'जब हम किसी के प्रति शत्रुता के विचार रखते हैं, तब वह भावना उसके पास जाकर उसकी शत्रुता को और बढ़ा देती है।'

'मैं नहीं समझी।'

एक दृष्टांत सुनाता हूँ, तब तुम अवश्य समझ जाओगी। एक बार बादशाह अकबर, प्रधानमंत्री बीरबल के साथ सैर करने शहर से बाहर निकले। सामने एक लकड़हारा आता दिखाई पड़ा। बादशाह ने बीरबल से पूछा- 'यह लकड़हारा मेरे प्रति कैसा विचार रखता है? बीरबल ने उत्तर दिया- 'जैसे विचार आप उसके प्रति रखेंगे, वैसे ही विचार वह भी आपके प्रति रखेगा; क्योंकि दिल से दिल की राह है।' बादशाह एक पेड़ पर चढ़कर छुप गये और कहने लगे- 'साला लकड़हारा मेरे जंगल की लकड़ियाँ बिना इजाजत चुराकर काट लाता है और अपना खर्च चलाता है। कल इसे फांसी देंगे।' तबतक वह लकड़हारा पास आ पहुँचा। बीरबल ने कहा- 'लकड़हारे! तुमने सुना या नहीं कि आज बादशाह अकबर मर गया।' लकड़हारे ने लकड़ी का गट्ठा फेंक दिया और वह नाचते हुए बोला- 'बड़ा अच्छा हुआ। बड़ा बदमाश बादशाह था। मीना बाजार में वह एक राजपूूतनी को बुरी नजर से देखा उसने छाती में कटार घुसेड़ दिया होता, परंतु "माता" कहकर क्षमा मांगी, तब प्राण बचे थे। मैं तो प्रसाद बांटूंगा। अच्छा हुआ कि मर गया।' बादशाह ने बीरबल का सिद्धांत मान लिया।

'फिर क्या हुआ?' सेठानी की उत्सुकता बढ़ी। 

उसी समय एक वृद्धा घास लिए आती दिखाई पड़ी। बादशाह पेड़ पर अभी भी छिपा बैठा रहा; क्योंकि वह शुभचिंतन और अशुभचिंतन का प्रभाव देखना चाहता था। अशुभचिंतन का प्रभाव वह देख चुका था। अबकी बार शुभचिंतन का प्रभाव देखने के लिए बादशाह ने कहा- बीरबल! वह देखो, बेचारी वृद्धा आ रही है। कमर झुक गयी है, मुंह में दांत भी नहीं होंगे। लाठी के सहारे चल रही है। अपनी गाय के लिए थोड़ी घास छील लायी है। दस रूपये माहवारी इसकी पेंशन आज से ही बांध दो, वजीरेआजम!' जब बुढ़िया पास आयी तब बीरबल कहने लगे- 'बूढ़ी माई! तुमने सुना कि आज आधी रात के समय बादशाह अकबर को काला नाग सूंघ गया। सुबह कब्र भी लग गयी।' बुढ़िया ने घास पटक दिया और रो-रोकर कहने लगी- 'गजब हो गया, राम-राम बड़ा बुरा हुआ। ऐसा दयालु बादशाह अब कहाँ मिलेगा। हिन्दू मुसलमान, दोनों ही उसकी दो आंखें थीं। उसने गोवध बंद करवा दिया। मजाल क्या कि कोई किसी गाय की पूंछ का एक बाल भी खिंच ले! भगवन्, तुम मेरे प्राण ले लेते, बादशाह को न मारते।'               

प्रातः स्नान के बाद भणवद्भक्त सेठ गंगासरन भगवान् विश्वनाथजी के मंदिर में गये। पूजन करके हाथ जोड़कर बोले- 'अन्तर्यामी भोलेनाथ! मुझे अपने मुनीम के पतन का आंतरिक दुख है, परंतु मेरे मन में उसके प्रति जरा भी द्वेष देखें तो बेशक मुझे दण्ड दें। भगवन्! आप मेरे मुनीम का चित्त शुद्ध कर दिजिए। यदि उसकी लोभ-भावना दूर न हुयी तो मेरी भक्ति का क्या फल हुआ? काम, क्रोध, लोभ- ये ही तीन मानव के प्रबलतम शत्रु हैं। मुझे अपने जीवन का भय नहीं है। मैं तो आत्मसमर्पण करके निश्चिन्त हो गया हूँ। 

         ×            ×            ×            ×            ×

सांझ को एक संपेरा मुनीम जी के घर के सामने से निकला। मुनीम ने उसे बुलाकर कहा- 'तुम्हारे पास कोई ऐसा भी सांप है जिसके विष के दांत तोड़े न गये हों?'

'जी हाँ, ऐसा सांप इसी पेटी में मौजूद है। कल ही पकड़ा था।'

'तुम उसे बेंच दो। ये लो पांच रूपए।'

संपेरे ने फन वाला विषधर एक मिट्टी की हांड़ी में बंद कर दिया और मुंह पर कपड़ा बांध दिया। 

जब रात के दस बजे, तब हांड़ी लेकर नंदलाल सेठजी के मकान पर पहुँचा। जिस कमरे में सेठजी सोते थे, उसकी खिड़की का एक शीशा टूटा हुआ था। खिड़की के नीचे ही भक्तजी का पलंग रहता था। नंदलाल ने उसी खिड़की के द्वारा वह काला सांप अंदर फेंक दिया, जो सेठजी की रजाई के उपर जा गिरा। फिर हंसता हुआ नंदलाल लौट आया। 

प्रातः जब सेठजी रजाई से बाहर निकले तब सेठानी भी वहीं खड़ी थी। उसी रजाई में से एक काला सांप निकला और पलंग के नीचे उतर गया। सेठानी चीख पड़ी और नौकर को बुलाने लगी। 

'नौकर को क्यों बुलाती हो?' सेठजी बोले। 

'इस सांप को मरवाऊंगी। आपको काटा तो नहीं!' सेठानी ने कहा। 

'मेरी प्रेम परीक्षा लेने के लिए भगवान् भोलेनाथ ने अपने गले का हार भेजा था। रातभर सोता रहा। कभी मेरा हाथ पड़ गया तो कभी पैर भी पड़ गया; परंतु अगर उसे काटना ही होता तो रात भर में न जाने कितनी बार काटता' सेठजी ने कहा। तबतक लाठी लेकर नौकर आ गया। सेठजी बोले- 'हीरा! लाठी रख दो। एक कटोरा दूध लाओ। दूध पिलाकर सर्प देवता को जाने दो, जहाँ वे जाना चाहें। खबरदार! मारना मत।'

और वह इसी घर में रहने लगे, सेठानी ने व्यंग्य किया।

'कोई परवाह नहीं, रहने दो। भला, सांप कहाँ नहीं रहते। सांप पर ही पृथ्वी टिकी है!' सेठजी ने कहा।

रात को सेठजी ने सपने में फिर भगवान् भोलेनाथ को बैल पर चढ़े हुए मुस्कुराते देखा। भगवान् ने मुनीम वाली सर्प-क्रिया बयान कर दी। सेठ ने कहा- कुछ भी हो, अपने शुभचिंतन के द्वारा मुझे मुनीम के अशुभचिंतन को नष्ट करना है। आपका आशीर्वाद रहेगा तो मैं इस परीक्षा में अवश्य पास होऊंगा। आप भी इसमें मेरी सहायता करें। 

        ×            ×            ×            ×            ×

अपने दोनों अशुभचिंतन के कुकृत्यों को विफल देख मुनीम नंदलाल ने तीसरी स्कीम सोची। उसने दो नामी चोरों से दोस्ती गाँठी। एक दिन आधी रात के समय नंदलाल उन दोनों चोरों को लेकर सेठजी के मकान के पीछे जा पहुँचा। सेंध लगाकर तीनों भीतर घुसे। सेठजी की तिजोरी जिस कमरे में रहती थी, उस कमरे को मुनीम जानता था। ज्यों ही मुनीम उस कमरे में पहुँचा, उसने काशी के कोतवाल भगवान् कालभैरव को त्रिशूल लिए खजाने के पहरे पर खड़ा देखा। भय खाकर भागना चाहा तो भगवान् ने उसे पकड़ लिया और दो तमाचे लगाकर कहा- 'कमीने, जिसने तुझे आत्महत्या से बचाया, उसके प्रति बदमाशी-पर-बदमाशी करता ही चला जा रहा है। आज तुझे खत्म कर दूंगा।'

दोनों चोर भाग गये। मुनीम ने भगवान् भूतनाथ के चरण पकड़ लिये और गिड़गड़ाने लगा- आज मेरा सारा अशुभचिंतन मर गया। मैं अभी सेठजी से माफी मांगता हूँ। अपने सुधार के लिए यह एक मौका दिजिए। 

वही हुआ। मुनीम ने जाकर सेठजी को जगाया और उनके चरण पकड़कर अपने तीनों अपराधों को स्वीकार करते हुए क्षमा मांगी। सेठजी ने हंसकर मुनीम को छाती से लगा लिया और कहा- "मेरे शुभचिंतन की विजय हुयी।" और वास्तव में नास्तिक मुनीम ईमानदार आस्तिक बन गया था।

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18 दिसंबर 2025

विज्ञान के प्रकार, उद्देश्य और मानव जीवन में इसका महत्व

भूमिका:-

आज का युग विज्ञान का युग है। सुबह आँख खुलने से लेकर रात को सोने तक हमारा जीवन विज्ञान से घिरा हुआ है। मोबाइल फोन, बिजली, इंटरनेट, दवाइयाँ, वाहन, कृषि के उन्नत उपकरण, अंतरिक्ष में चक्कर लगाते उपग्रह, ये सभी विज्ञान की ही तो देन हैं। लेकिन क्या आपने विज्ञान और इसके प्रकार के प्रकार के बारे में कभी गहराई से सोचा है? 

इस ब्लॉग में हम "विज्ञान की परिभाषा, इसके उद्देश्य, प्रमुख प्रकार, एवं मानव जीवन में अनुप्रयोग और महत्व के बारे में विस्तार से जानेंगे।"

विज्ञान क्या है? 

विज्ञान (Science) वह व्यवस्थित ज्ञान-प्रणाली है, जो निरीक्षण, प्रयोग, तर्क और प्रमाण के आधार पर सत्य की खोज करता है। विज्ञान अंधविश्वास पर नहीं, बल्कि तथ्यों और प्रमाणों पर आधारित होता है। सरल शब्दों में कहा जाए तो— “विज्ञान प्रश्न पूछने, प्रयोग करने और तर्कपूर्ण उत्तर खोजने की प्रक्रिया है।” उदाहरण के लिए—

  • आकाश नीला क्यों दिखता है?
  • वस्तुएँ नीचे ही क्यों गिरती हैं?
  • रोग कैसे फैलते हैं और उनका इलाज कैसे संभव है? इत्यादि । 

विज्ञान का उद्देश्य (Objective of Science):- 

प्रमुख उद्देश्य निम्न है—

  • प्रकृति के नियमों को समझना
  • मानव जीवन को सरल और सुरक्षित बनाना
  • समस्याओं का तार्किक समाधान खोजना
  • समाज और सभ्यता का विकास करना

विज्ञान के प्रकार:-

अध्ययन के क्षेत्र और विषय-वस्तु के आधार पर विज्ञान को निम्न वर्गों में बाँटा जा सकता है—

१. प्राकृतिक विज्ञान (Natural Science)

प्राकृतिक विज्ञान, प्रकृति और भौतिक जगत का अध्ययन करता है। यह विज्ञान की सबसे प्रमुख शाखा है और इसके अंतर्गत कई उपशाखाएँ आती हैं, जैसे-

(क) भौतिकी (Physics): भौतिकी वह विज्ञान है जो ऊर्जा, बल, गति, प्रकाश, ध्वनि और पदार्थ के गुणों का अध्ययन करता है। यह हमारे दैनिक जीवन में कई रूपों में दिखाई देता है, जैसे—गुरुत्वाकर्षण बल, बिजली, चुंबकत्व, गति के नियम आदि।

उदाहरण: मोबाइल फोन, टेलीविजन, मोटर-गाड़ी, रॉकेट, एक्स-रे मशीन आदि।

(ख) रसायन विज्ञान (Chemistry): रसायन विज्ञान पदार्थ की संरचना, गुण, अभिक्रियाओं और उनके अनुप्रयोगों का अध्ययन करता है। यह दवाइयों, खाद्य प्रसंस्करण, पेट्रोलियम उद्योग, सौंदर्य प्रसाधनों और कई अन्य चीजों में उपयोगी है। 

उदाहरण: साबुन और डिटर्जेंट, पेट्रोल और डीजल, खाद्य-संरक्षक (Preservatives), उर्वरक आदि।

(ग) जीव विज्ञान (Biology): इसके अंतर्गत जीवों के जीवन-चक्र, उनकी संरचना, क्रियायें, विकास और पर्यावरण के साथ उनके संबंध का अध्ययन होता है। 

उदाहरण: मानव शरीर की क्रियाएं, पौधों की वृद्धि, आनुवंशिकी (Genetics), जैव-प्रौद्योगिकी (Biotechnology) आदि।

(घ) पृथ्वी विज्ञान (Earth Science): यह विज्ञान पृथ्वी की संरचना, जलवायु, महासागर, भूकंप, ज्वालामुखी आदि का अध्ययन करता है। 

उदाहरण: भूकंप की भविष्यवाणी, जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक संसाधनों की खोज आदि।

२. सामाजिक विज्ञान (Social Science)

सामाजिक विज्ञान समाज, मानव-व्यवहार और सामाजिक संरचनाओं का अध्ययन करता है। इसकी शाखाएँ निम्न हैं-

(क) मनोविज्ञान (Psychology): यह विज्ञान, मानव-मस्तिष्क, उसकी सोचने की क्षमता, भावनाएं और व्यवहार का अध्ययन करता है। 

उदाहरण: मानसिक स्वास्थ्य, तनाव-प्रबंधन, बच्चों की सीखने की प्रक्रिया आदि।

(ख) समाजशास्त्र (Sociology): यह समाज, सामाजिक-संबंधों, परंपराओं और सांस्कृतिक संरचनाओं का अध्ययन करता है। 

उदाहरण: पारिवारिक संबंध, सामाजिक वर्गीकरण, ग्रामीण और शहरी समाज आदि।

(ग) अर्थशास्त्र (Economics): अर्थशास्त्र धन, उत्पादन, उपभोग, बाजार और व्यापार का अध्ययन करता है। 

उदाहरण: मुद्रा प्रणाली, व्यापार, औद्योगिक विकास, महंगाई, बेरोजगारी आदि।

(घ) राजनीति विज्ञान (Political Science): यह राजनीति, सरकारों, सरकारी-नीतियों और शासन-प्रशासन का अध्ययन करता है।

उदाहरण: लोकतंत्र, चुनाव-प्रणाली, संविधान, अंतरराष्ट्रीय संबंध आदि।

३. औपचारिक विज्ञान (Formal Science)

औपचारिक विज्ञान, तार्किक और गणितीय नियमों पर आधारित होता है। यह वास्तविक भौतिक वस्तुओं का नहीं बल्कि अवधारणाओं का अध्ययन करता है।

(क) गणित (Mathematics): संख्याओं, गणनाओं, आकारों और पैटर्न का अध्ययन करता है।

उदाहरण: बीजगणित, ज्यामिति, सांख्यिकी, डाटा-विश्लेषण आदि।

(ख) तर्कशास्त्र (Logic): यह सोचने और तर्क करने के नियमों का अध्ययन करता है।

उदाहरण: कंप्यूटर प्रोग्रामिंग, निर्णय लेने की प्रक्रियाएं आदि।

(ग) कंप्यूटर विज्ञान (Computer Science): सूचना-प्रौद्योगिकी, सॉफ्टवेयर-विकास, नेटवर्किंग और डेटा-साइंस का अध्ययन करता है। 

उदाहरण: आर्टिफिशियल-इंटेलिजेंस, मशीन-लर्निंग, साइबर सुरक्षा आदि।

४. अनुप्रयुक्त विज्ञान (Applied Science)

यह विज्ञान की खोजों और सिद्धांतों को व्यावहारिक जीवन में लागू करने से संबंधित है।

इंजीनियरिंग (Engineering): इसके अन्तर्गत वैज्ञानिक सिद्धांतों का उपयोग करके मशीनें, संरचनाएँ और प्रौद्योगिकी का विकास होता है। 

चिकित्सा विज्ञान (Medical Science): इसमें मानव-शरीर, रोगों और उनके उपचार का अध्ययन होता है। 

कृषि विज्ञान (Agricultural Science): इसमें फसल उत्पादन, मृदा और कृषि तकनीकों का अध्ययन होता है। 

५. पर्यावरण विज्ञान (Environmental Science):

यह पर्यावरण, पारिस्थितिकी-तंत्र और मानव प्रभावों का अध्ययन करता है।

६. अंतरिक्ष विज्ञान (Space Science):

यह ब्रह्मांड, तारों, ग्रहों और अंतरिक्ष संबंधी घटनाओं का अध्ययन करता है। 

इसकी उपशाखाएँ हैं- खगोल विज्ञान – जो तारों, ग्रहों और आकाशीय पिंडों का अध्ययन करता है और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी– जिसके अंतर्गत उपग्रहों और अंतरिक्ष अभियानों का अध्ययन होता है। 

आधुनिक समय में उभरते विज्ञान:-

आज के डिजिटल-युग में विज्ञान की कुछ शाखाएँ बड़ी तेजी से विकसित हो रही हैं भविष्य की दुनियाँ को नये आकार दे रही हैं; जैसे-

  • कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI)
  • डेटा साइंस
  • जैव-प्रौद्योगिकी
  • नैनो टेक्नोलॉजी
  • अंतरिक्ष विज्ञान

विज्ञान के अनुप्रयोग और महत्व:-

दैनिक जीवन में विज्ञान का उपयोग

  • बिजली, मोबाइल, इंटरनेट और परिवहन के तमाम साधन विज्ञान की ही देन हैं।
  • दवाइयाँ, सर्जरी और चिकित्सा-तकनीक ने जीवन को अधिक सुरक्षित बनाया है।
  • कृषि में आधुनिक तकनीकों और संयंत्रों से खाद्य-उत्पादन बढ़ा है।

चिकित्सा विज्ञान और स्वास्थ्य

  • एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड, एमआरआई जैसी तकनीकों ने रोगों का पता लगाना आसान बना दिया है।
  • टीकों और दवाओं ने घातक बीमारियों से बचाव किया है।

पर्यावरण-संरक्षण में विज्ञान की भूमिका

  • नवीकरणीय ऊर्जा जैसे- सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जल ऊर्जा आदि ने प्रदूषण कम करने में मदद की है।
  • जल शुद्धिकरण और अपशिष्ट-प्रबंधन में वैज्ञानिक विधियों का उपयोग हो रहा है।

अंतरिक्ष और खगोल विज्ञान

  • सैटेलाइट्स ने दूरसंचार, मौसम पूर्वानुमान और इंटरनेट सेवाओं को आसान बनाया है।
  • मंगल और चंद्रमा के मिशनों ने नए संभावित जीवन की खोज के द्वार खोले हैं।

निष्कर्ष:-

विज्ञान हमारे जीवन के हर पहलू को प्रभावित करता है। यह हमें सोचने, खोजने और समस्याओं का समाधान करने की क्षमता देता है। विज्ञान के विभिन्न प्रकार, उनकी उपशाखाएँ, हमें दुनियाँ को बेहतर ढंग से समझने और जीवन को सरल बनाने में मदद करती हैं। 

सही मायनों में कहा जाये तो, विज्ञान मानव-सभ्यता की प्रगति की नींव है।

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