8 अक्टूबर 2025

सोचो! साथ क्या जायेगा? | अच्छे कर्म ही जीवन की असली दौलत

परिचय:-

मनुष्य का जीवन एक लंबी यात्रा की तरह है। इस यात्रा में हम आजीवन धन-दौलत, मकान, गाड़ियाँ, नाम, शोहरत, रिश्ते आदि बहुत कुछ जोड़ने में लगे रहते हैं। लेकिन जब अंत समय आता है, तब एक सवाल सामने खड़ा होता है—"सोचो! साथ क्या जायेगा?"

यह सवाल न केवल जीवन का सार समझाता है बल्कि हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि हम किस दिशा में जी रहे हैं। क्या हम केवल भौतिक भोग-सामग्री को इकट्ठा करने में लगे हैं, या फिर जीवन के असली अर्थ को समझकर, आत्मा की असली पूँजी इकट्ठा कर रहे हैं?

Source: Punjab Kesari

असली दौलत, बैंक-बैलेंस नहीं बल्कि आपके अच्छे कर्म और मानवीय सेवा है। तो आइये जानते हैं कि जीवन को सार्थक और सफल बनाने के लिए हमें क्या अपनाना चाहिए।

जीवन की सच्चाई:-

जब कोई इंसान जन्म लेता है तो खाली हाथ आता है और जब मरता है तब भी खाली हाथ ही जाता है। इस बीच का समय ही असली जीवन है। हम अपने लिए तमाम तरह सुख-सुविधाएँ जुटाते हैं, लेकिन मृत्यु के बाद कुछ भी हमारे साथ नहीं जाता।

  • धन-दौलत: कितना भी कमा लो, वह बैंक अकाउंट और लॉकर में ही रह जाएगा।
  • शोहरत: लोग कुछ दिन याद करेंगे, फिर नए चेहरे आ जाएंगे और आपको भुला देंगे। 
  • मकान और गाड़ियाँ: मरने के बाद इनको इस्तेमाल करने वाले दूसरे होंगे।
  • सगे-संबंधी: जीवन के साथ चलते तो हैं, पर अंत में हमें अकेले जाना पड़ता है।

याद रखें! साथ में केवल हमारे कर्म और संस्कार जाते हैं। यही असली जमा-पूँजी है।

क्यों जरूरी है यह सोचना – "साथ क्या जायेगा?"

जीवन का उद्देश्य स्पष्ट होता है – जब हमें यह पता चल जाता है कि जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है, तो हम सही चीज़ों में निवेश करने लग जाते हैं।

अहंकार कम होता है – जब हमें इस बात का ज्ञान हो जाता है कि अंत में सबको खाली हाथ ही जाना है, तब अहंकार और घमंड का कोई अर्थ नहीं रह जाता है। 

मानवता की ओर झुकाव बढ़ता है – दूसरों की सेवा करना, अच्छे काम करना ही, जीवन की असली जमापूँजी है।

शांति मिलती है – जब-तक भोग सामग्री से चिपके रहते हैं, चिंता खत्म नहीं होती बल्कि बढ़ती ही जाती है लेकिन जैसे ही हम आत्मिक-सोच की तरफ अपना पग बढ़ाते हैं उसी समय से शांति स्थापित हो जाती है।

व्यवहारिक दृष्टिकोण: हमें क्या करना चाहिए?

१. अच्छे कर्मों की कमाई करें: कर्म ही एकमात्र पूँजी है जो जीवन के बाद भी आत्मा के साथ रहती है। इसलिए-

  • सच बोलें। 
  • जरूरतमंदों की मदद करें। 
  • ईमानदारी से काम करें। 
  • दूसरों को आशीर्वाद दें, न कि श्राप। 

२. रिश्तों में निवेश करें: धन-दौलत तो यहीं रह जाएगा, लेकिन अच्छे रिश्ते आपको जीवनभर सुकून देंगे। अतः

  • परिवार को समय दें। 
  • बुजुर्गों का सम्मान करें। 
  • बच्चों को अच्छे संस्कार दें। 
  • मित्रता में सच्चाई रखें। 

३. आत्म-विकास पर ध्यान दें: मन और आत्मा को मजबूत बनाना ही सबसे बड़ा निवेश है, इसलिए-

  • ध्यान और प्रार्थना करें। 
  • अच्छे ग्रंथ पढ़ें। 
  • सकारात्मक सोच रखें। 
  • हर दिन कुछ नया सीखें। 

४. समाज-सेवा को प्राथमिकता दें: समाज से हमें सब कुछ मिलता है, इसलिए हमें भी लौटाना चाहिए।

  • गरीब बच्चों की शिक्षा में मदद करें। 
  • पर्यावरण की रक्षा करें। 
  • दान-पुण्य, जैसे नेक कार्य करें। 
  • समाज में प्रेम और भाईचारा का प्रसार करें।

प्रेरक कहानी:-

प्राचीन काल में, एक धनी व्यापारी जीवनभर धन कमाने और इकट्ठा करने में ही लगा रहा। मरने के बाद, जब उसकी आत्मा यमलोक पहुँची तो चित्रगुप्त ने उससे पूछा—"तुम साथ में क्या लाए हो?" व्यापारी ने बड़े गर्व से जवाब दिया—"मेरे पास करोड़ों का धन, सोना-चाँदी और महल हैं।"

उस व्यापारी का जबाब सुनकर, चित्रगुप्त मुस्कुराए और बोले—"तुम्हारी ये सब चीजें तो वहीं पृथ्वी पर रह गयीं। यहाँ तुम्हारे साथ केवल तुम्हारे कर्म ही आए हैं।" व्यापारी को यह पता नहीं था, इसलिए वह घबराकर पूछा—"तो क्या मैं यहाँ खाली हाथ हूँ?" चित्रगुप्त बोले—"हाँ! क्योंकि तुमने दूसरों की मदद नहीं की, पुण्य का काम नहीं किया। सिर्फ अपने लिए जिया और कोई सत्कर्म नहीं किया।" 

यह सुनकर व्यापारी की आत्मा रो पड़ी। उसे एहसास हुआ कि असली दौलत तो नेकी के काम थे, जो उसने कभी किए ही नहीं। 

यह कहानी हमें यही सिखाती है कि धन-दौलत या दुनियाँ की कोई भी भोग-सामग्री साथ नहीं जाती, केवल कर्म और संस्कार ही साथ जाते हैं।

आध्यात्मिक दृष्टिकोण:-

गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कर्म को प्रधान बताते हुए कहा है—"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।" 

बौद्ध धर्म भी यही सिखाता है कि "लोभ और मोह ही सारे दुखों की जड़ हैं।" 

संत कबीर ने जीवन में भोग-संग्रह के बजाय संतोष को प्राथमिकता देते हुए कहा है— "साईं इतना दीजिए, जामे कुटुंब समाय।" अर्थात् हे प्रभो! मुझे इतना ही दिजिये कि मैं अपने परिवार का भरणपोषण के साथ द्वार पर आये मेहमान का भी उचित सत्कार कर सकूँ। 

आधुनिक जीवन से जुड़ी सीख:-

आज के समय में लोग भौतिक सुख-सुविधाओं के पीछे भाग रहे हैं। नौकरी, बिज़नेस, सोशल मीडिया की शोहरत—सबका मकसद यही है कि लोग हमें पहचानें और हम अमीर दिखें। लेकिन जब जीवन का अंत आता है तो ये सब बेकार हो जाता है।

  • बड़े से बड़े बंगले, महंगी गाड़ियाँ, साथ नहीं जाएगीं। 
  • मोबाइल, लैपटॉप सब यहीं रह जाएंगे। 
  • बैंक-बैलेंस किसी और के काम आएगा। 

इसलिए जरूरी है कि हम अपने भौतिक और आध्यात्मिक जीवन, दोनों को संतुलित करें। 

जीवन में अपनाने योग्य बातें:-

  • जरूरत से ज्यादा इकट्ठा न करें।
  • कमाई का एक हिस्सा दान, परोपकार में लगायें। 
  • समय का महत्व समझें और इसे परिवार और आत्म-विकास में समय लगाएँ।
  • माफ करना सीखें, क्योंकि नफरत और क्रोध साथ नहीं जाएंगे।
  • सादा जीवन, उच्च विचार का आदर्श जीवन में उतारें। 
  • दीन-दुखियों की सेवा करें। 

निष्कर्ष:-

जीवन अनमोल है और समय तेजी से निकलता जा रहा है।इसलिए, जरा सोचिए! आपके साथ क्या जाने वाला है? धन, शोहरत और संपत्ति तो बिल्कुल नहीं, जायेगा तो केवल आपकी नेकी, दया, प्रेम और सेवा।

Source: Pinterest

आपके विचार से जीवन की असली पूँजी क्या है? कृपया नीचे कमेंट सेक्शन में अपनी राय जरूर साझा करें।🙏

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs):-

प्रश्न-१: मृत्यु के बाद हमारे साथ क्या जाता है?

उत्तर: मृत्यु के बाद साथ केवल हमारे सत्कर्म और सद्विचार ही जाते हैं। 

प्रश्न-२: जीवन का असली धन क्या है?

उत्तर: अच्छे कर्म, सेवा-भाव, प्रेम और संस्कार ही असली धन हैं जो मृत्यु के बाद भी आत्मा के साथ रहते हैं।

प्रश्न-३: अच्छे कर्म क्यों जरूरी हैं?

उत्तर: चूंकि अच्छे कर्म ही हमारी आत्मा की असली पूँजी हैं और इन्हीं से हमें समाज में सम्मान, मानसिक शांति एवं सद्गति मिलती है। 

प्रश्न-४: जीवन को सार्थक कैसे बनाया जा सकता है?

उत्तर: मानव सेवा, दान, सकारात्मक सोच, रिश्तों और आत्म-विकास पर ध्यान देकर जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है।

प्रश्न-५: क्या पैसा जीवन में जरूरी नहीं है?

उत्तर: पैसा जीवनयापन के लिए जरूरी है, लेकिन इनका उपयोग जीवन को सुधारने और समाज की भलाई के लिए भी होना चाहिए। 

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5 अक्टूबर 2025

नैतिक मूल्यों का मानव कल्याण पर प्रभाव | जीवन, समाज और विकास में नैतिकता का महत्व

 ✨ परिचय:-

आज के समय में जब भौतिकता और प्रतिस्पर्धा, जीवन का अहम् हिस्सा बन चुकी है, तब भी असली खुशी और शांति नैतिक मूल्यों में ही छिपी हुई है। नैतिक मूल्य हमें यह सिखाते हैं कि—

  • सही और गलत में फर्क क्या है? 
  • दूसरों के साथ हमें कैसा व्यवहार करना चाहिए और 
  • जीवन को हमें किस दिशा में आगे बढ़ाना चाहिए? 
👉 बिना नैतिक मूल्यों के समाज, केवल दिखावे की चकाचौंध बनकर रह जाता है

नैतिक मूल्यों का मानव कल्याण पर गहरा प्रभाव जानें तथा सत्य, करुणा, ईमानदारी और सेवा-भाव, कैसे व्यक्ति, समाज और राष्ट्र को सकारात्मक दिशा देते हैं।

🌿 नैतिक मूल्य क्या होते हैं?

नैतिक मूल्य जीवन के ऐसे सिद्धांत हैं जो हमें इंसानियत और सही आचरण का मार्ग दिखाते हैं। ये मूल्य हर व्यक्ति, परिवार और समाज के लिए आधार-स्तंभ की तरह काम करते हैं।

Source: You Tube

प्रमुख नैतिक मूल्य:

  • सत्य – सच बोलना और ईमानदारी से जीना।
  • अहिंसा – हिंसा से दूर रहना और शांति को बढ़ावा देना।
  • इमानदारी – अपने काम इमानदारी से करना। 
  • करुणा – दूसरों के दुख-दर्द को समझना। 
  • न्याय – सबके साथ समान व्यवहार करना। 
  • धैर्य – कठिन परिस्थितियों में धैर्य रखना। 
  • सेवा-भाव – समाज और जरूरतमंदों की मदद करना। 

💡 नैतिक मूल्यों का मानव-जीवन पर प्रभाव:-

१. मानसिक शांति और आत्मसंतोष:

  • सच बोलने वाला व्यक्ति अपराधबोध से मुक्त रहता है।
  • ईमानदार इंसान को भ्रष्ट लोगों के बीच परेशानी हो सकती है परन्तु भीतर से उसे आत्मविश्वास और संतोष मिलता है।

👉 उदाहरण: ईमानदारी से व्यापार करने वाला व्यापारी धीरे-धीरे ग्राहकों का विश्वास जीतकर लंबी अवधि तक सफल रहता है।

२. सामाजिक सामंजस्य और भाईचारा:

  • नैतिक मूल्य, समाज में सहयोग और प्रेम की भावना को बढ़ाते हैं।
  • लोग, जब नि:स्वार्थ-भाव से दूसरों की मदद करते हैं, तभी मानव-कल्याण संभव होता है।

👉 उदाहरण: आपदा के समय किसी की नि:स्वार्थ-भाव से सहायता करना, मानवीय करुणा और नैतिकता का सजीव उदाहरण है।

३. शिक्षा और संस्कार का विकास:

  • जीवन में केवल व्यवसायिक शिक्षा ही पर्याप्त नहीं है, नैतिक शिक्षा भी जरूरी है।
  • नैतिक शिक्षा, बच्चों के चरित्र का निर्माण करती है।

👉 उदाहरण: गुरुकुल परंपरा में बच्चों को विद्या के साथ-साथ नैतिकता का पाठ भी पढ़ाया जाता जाता था।

४. भ्रष्टाचार और अपराध में कमी:

  • जहाँ नैतिक मूल्यों की कद्र होती है, वहाँ भ्रष्टाचार और अपराध कम होते हैं।
  • ईमानदारी और न्यायप्रियता अपनाने से सुरक्षित समाज का निर्माण होता है।

👉 उदाहरण: अगर प्रशासन और राजनीति में नैतिकता हो तो रिश्वतखोरी और अपराध स्वतः कम हो जायेंगे। 

५. पर्यावरण-संरक्षण और मानव कल्याण:

  • नैतिकता की भावना केवल इंसान तक सीमित नहीं है बल्कि यह प्रकृति से भी जुड़ी है।
  • पर्यावरण की रक्षा करना भी आने वाली पीढ़ियों के लिए हमारी जिम्मेदारी है।

👉 उदाहरण: यदि हर व्यक्ति पेड़ लगाने और प्रदूषण कम करने को अपना कर्तव्य समझे तो जलवायु-परिवर्तन की समस्या कम हो सकती है।

🌏 नैतिक मूल्यों और मानव कल्याण के बीच संबंध:-

  • व्यक्तिगत स्तर पर – आत्मविश्वास, ईमानदारी और संतुलन मिलता है।
  • परिवार स्तर पर – रिश्तों में विश्वास और प्रेम बढ़ता है।
  • सामाजिक स्तर पर – सहयोग और भाईचारा मजबूत होता है।
  • राष्ट्रीय स्तर पर – भ्रष्टाचार कम होकर विकास तेज़ गति से होता है।
  • वैश्विक स्तर पर – शांति और सद्भाव से पूरी मानवता का कल्याण होता है।

🙏 धार्मिक और दार्शनिक दृष्टिकोण:-

भारत की आध्यात्मिक परंपरा हमेशा से नैतिक मूल्यों को मानव-कल्याण का आधार मानती रही है।

  • गीता कहती है– "धर्म का पालन ही जीवन का उद्देश्य है।"
  • महात्मा गांधी – सत्य और अहिंसा को मानव कल्याण का साधन मानते थे।
  • गौतम बुद्ध – करुणा और मैत्री को जीवन का पथ बताया।

🧩 आधुनिक युग में नैतिक मूल्यों की आवश्यकता:-

आज की दुनियाँ में तकनीक और भौतिक साधन तेजी से बढ़े हैं, लेकिन उसके साथ तनाव, स्वार्थपरता, अपराध और प्रदूषण भी बढ़ गया है।

👉 अगर नैतिक मूल्यों को न अपनाया जाए तो यह सारी प्रगति मानव-कल्याण की जगह विनाश का कारण बन सकती है।

नैतिक मूल्यों को अपनाने के व्यवहारिक तरीके:-

  • नैतिक शिक्षा का पाठ बचपन से ही पढ़ाना। 
  • स्कूलों में वैल्यू-एजुकेशन लागू करना। 
  • परिवार में आदर्श आचरण दिखाना। 
  • धार्मिक व आध्यात्मिक शिक्षाओं का अभ्यास करना।
  • सोशल मीडिया का सकारात्मक उपयोग करना। 
  • सामाजिक सेवा और दान की आदत डालना। 
  • पर्यावरण संरक्षण को भी जीवन का हिस्सा बनाना। 
  • घर-परिवार, समाज में नैतिक मूल्यों की स्थापना हेतु उसे खुद अमल में लाना। 

🎯 निष्कर्ष:-

नैतिक मूल्य, इंसान को केवल सफल ही नहीं बनाते, बल्कि उसे सम्मानित, संतुलित और सुखी भी बनाते हैं। मानव-कल्याण की असली चाबी ईमानदारी, सत्य, करुणा और सेवा-भाव जैसे नैतिक मूल्यों में ही छिपी है।

👉 अगर हर व्यक्ति अपने जीवन में नैतिक मूल्यों को अपनाए तो समाज, राष्ट्र और पूरी मानवता, शांति और समृद्धि की ओर बढ़ सकती है।

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3 अक्टूबर 2025

राम-नाम की महिमा : जीवन का सबसे सरल और प्रभावी साधन

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्रीराम हम सबके आदर्श हैं। हमारे शास्त्रों और संतों ने बार-बार यही संदेश दिया है कि राम-नाम का जप जीवन की सबसे बड़ी साधना है। यह केवल धार्मिक आस्था का ही विषय नहीं, बल्कि मानसिक शांति, सकारात्मक ऊर्जा और आध्यात्मिक विकास का आसान उपाय भी है। 

आज की भागदौड़ और तनाव भरी दुनियाँ में जब हर कोई मानसिक संतुलन और आत्मिक शांति की तलाश में है, तब राम-नाम का स्मरण एक जीवनदायी उपाय बनकर सामने आता है।

Source: You Tube (Untold Sanatan Tales) 

राम-नाम जप, जीवन में सुख-शांति और सकारात्मकता हासिल करने का सबसे सरल मार्ग है। जानें राम-नाम जप की महिमा, लाभ, एक प्रेरक कहानी के साथ। 

राम-नाम का अर्थ और महत्व:-

"राम" शब्द केवल भगवान श्रीराम का नाम नहीं है, बल्कि यह एक दिव्य शक्ति का प्रतीक है। संस्कृत में "राम" उसे कहते हैं जो आनंद प्रदान करे। जब हम राम-नाम का जप करते हैं, तो हमारी चेतना आनंद और शांति से भर जाती है। संत तुलसीदास जी ने भी कहा है – "राम-नाम बिनु सुख नाहीं।" अर्थात्, बिना राम-नाम के जीवन में सच्चा सुख संभव नहीं है। 

राम-नाम की महिमा का अंदाजा इसी बात लगाया जा सकता है कि रत्नाकर नाम का डाकू "मरा-मरा" शब्द का जाप करके, आदिकवि बाल्मीकि के नाम से मशहूर हुए और रामायण नामक महान ग्रंथ की रचना संस्कृत में कर सके। 

पद्मपुराण में राम-नाम की महिमा का वर्णन मिलता है-        राम नाम सदा पुण्यं नित्यं पठति यो नरः। अपुत्रो लभते पुत्रं सर्वकामफलप्रदम्॥

अर्थ: राम-नाम जप सदा पुण्य प्रदान करने वाला है। जो मनुष्य इसका नित्य पाठ करता है उसे पुत्र लाभ मिलता है और उसके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं।

क्यों है राम-नाम का जप विशेष?

  • राम-नाम जप करने से मन की चंचलता शांत होती है।
  • नियमित स्मरण से तनाव और चिंता कम होती है।
  • मनुष्य के विचार, पवित्र और सकारात्मक बनते हैं।
  • यह आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का सरल मार्ग है।
  • इसके लिए किसी विशेष स्थान, समय या साधन की आवश्यकता नहीं, इसे कोई भी, कभी भी कर सकता है।

राम-नाम की महिमा (एक रोचक कहानी):-

एक नगर में दो भाई रहते थे परंतु दोनों का स्वभाव बिल्कुल विपरीत था। बड़ा भाई सत्संगी, संत महात्माओं की सेवा-भाव रखने वाला, धर्म के अनुकूल आचरण करने वाला था जबकि छोटा व्याभिचारी, दुर्व्यसनी एवं पापाचारी था। उसे संत-महात्मा फूटी आँख भी नहीं सुहाते थे। बड़ा भाई, छोटे भाई के कुकर्मों से दुखी रहता था। 

एक बार उस नगर में संत मंडली पधारी। बड़ा भाई उन्हें घर ले जाकर उनकी भलीभाँति सेवा-सत्कार एवं पूजन करके छोटे भाई के सद्गति का उपाय पूछा। उस समय उसका छोटा भाई कहीं बाहर से आया और महात्माओं को वहाँ देखकर खुद को एक कमरे में बंद कर लिया। महात्मा लोग भी ठान लिये कि उसकी सद्गति का मार्ग देकर ही जायेंगे। अत: वे लोग उसके कमरे के बाहर बैठ गये। बहुत देर के बाद जब छोटे भाई को लघुशंका लगी तो कमरे का दरवाजा खोलकर भागना चाहा। परंतु एक महात्मा उसकी बांह पकड़ लिए। वह बहुत कोशिश किया परंतु अपनी बांह छुड़ा नहीं सका। 

तब महात्मा बोले कि हमारी दो शर्तें मान लो तो हम बांह छोड़ देंगे। छोटा भाई महात्माओं से अपना पिण्ड छुड़ाने के लिए के लिए शर्त मानने को तैयार हो गया। महात्मा बोले कि, "एक बार राम-नाम बोलो"। वह राम का नाम लिया। फिर महात्मा बोले कि अब तुम वादा करो कि इस राम-नाम को किसी भी कीमत पर नहीं बेंचोगे। वह बेबसी में बोला कि ठीक है। तब महात्मा उसका हाथ छोड़ दिये। 

समय बीता और बड़ा भाई परलोक सिधार गया। छोटा भाई अब और भी निरंकुश हो गया। वेश्यावृत्ति में जब उसका पूरा धन-दौलत समाप्त हो गया तब वेश्याएँ उसका गला दबाकर मार डालीं। मरणोपरांत यमदूत उसको लेखाधिकारी के यहाँ उसके कर्मों का लेखाजोखा करने के लिए ले गये। उसके कर्मों के बहीखाते की जांच होने लगी। जांचकर्ताओं को उसके बहीखाता के तमाम पन्ने पलटे जाने पर वे बिल्कुल काले नजर आये क्योंकि वह तो आजीवन कुकर्म ही किया था। 

पन्ने पलटते वक्त जांचकर्ता चौंक उठे। बहीखाते के सारे काले पन्नों के बीच में से एक पन्ना चमक रहा था और उस पर सुनहरे अक्षरों में राम-नाम लिखा हुआ था। इसकी सूचना लेखाधिकारी को दी गयी क्योंकि उन्हें उसके कर्मों का हिसाब जो करना था। अत: लेखाधिकारी उससे बोले किसी समय पर तुमने राम का पवित्र नाम लिया है इसलिए बोल- "इसके बदले तुम्हें क्या चाहिए"। 

तब उस पापी को ध्यान में आया कि यह राम का नाम तो उस महात्मा के कहने पर मैंने बेबसी में लिया था और महात्मा को दिया गया दूसरा वचन भी याद आया कि इसे किसी भी कीमत पर बेंचना नहीं है। फिर भी जानने के लिए उसने लेखाधिकारी से उस राम-नाम की कीमत पूछा।

लेखाधिकारी राम-नाम की अपरंपार महिमा तो सुने थे लेकिन उसके वास्तविक कीमत का उल्लेख उनके रूलबुक में नहीं था। लेखाधिकारी उससे बोले कि अब तुम धर्माधिकारी जी के पास चलो, वही तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर देंगे। तब उस पापी को समझ में आया कि "राम-नाम" कीमती है, इसलिए इस कीमत का क्षणभर के लिए ही सही, फायदा उठाया जाय।

अतः वह लेखाधिकारी से बोला कि आप पालकी मंगाओ और उसमें कंधा दो, तभी जाऊँगा। अतः लेखाधिकारी ने अपनी लाज बचाने के लिए पालकी मंगाई और कंधा देकर उसे धर्माधिकारी के दरबार में ले गए और उनसे अपनी समस्या विस्तार से बतायी। धर्माधिकारी भी सन्नाटे में आ गए क्योंकि राम-नाम की वास्तविक कीमत तो उन्हें भी नहीं पता था। फिर क्या था, लेखाधिकारी, धर्माधिकारी अपने दो सेवकों के साथ उसकी पालकी को कंधा देकर ब्रह्मलोक में ब्रह्मा जी के यहाँ ले गए। ब्रह्मा जी की स्तुति करके धर्माधिकारी जी राम-नाम की कीमत पूछे। पर राम-नाम की वास्तविक कीमत ब्रह्मा जी भी नहीं बता सके और वे सबको शिवलोक चलने का सुझाव दिये। 

उस अधर्मी के हठ पर पालकी को ब्रह्मा जी, धर्माधिकारी जी, लेखाधिकारी, एक सेवक के साथ कंधा देकर शिवलोक पहुंचे। सभी को पालकी ढोते देखकर शिवजी बड़े आश्चर्यचकित हो पूछे कि आखिर इस पालकी में कौन बड़भागी है जिसे आप सभी महानुभाव उसे लेकर यहाँ आये हैं और माजरा क्या है? साफ-साफ बतायें। तब ब्रह्मा जी ने सारा वृत्तांत शिवजी से कह सुनाया और राम-नाम की कीमत बताने को कहा। परंतु शिवजी भी इसमें अपनी असमर्थता जताई और बोले कि राम-नाम की महिमा के अलावा वास्तविक कीमत तो मुझे भी नहीं मालूम है। 

अब वास्तविक कीमत जानने के लिए हमें गोलोक में विष्णु भगवान् के पास चलना चाहिए। अब तक वह पापी भी जान चुका था कि राम-नाम की कीमत, बहुत बड़ी है। इसलिए वह और तनकर बैठ गया और शिवजी, ब्रह्मा जी, धर्माधिकारी जी और लेखाधिकारी सभी को पालकी में कंधा देने को कहा। 

सभी देवताओं को अपने-अपने पद की लाज को बचाना था कि कहीं यह पापी यह न जान ले कि राम-नाम की कीमत इतने बड़े देवताओं को भी नहीं मालूम है। इसलिए मजबूरन सभी पालकी में कंधा देकर उसे गोलोक में विष्णु भगवान् के पास ले गए। वहाँ पहुँच कर सभी देवता विष्णु भगवान् की स्तुति किये तदोपरांत भगवान् शिवजी और ब्रह्मा जी ने विष्णु भगवान् से सारी बात बतायी और राम-नाम की कीमत जानना चाहा। 

विष्णु भगवान् बोले कि आपलोग उसे पालकी में से ले आकर मेरी गोद में रख दिजिए। यह सुनकर सभी देवताओं ने उस अधम को उठाकर भगवान् विष्णु की गोद में रखे। और उनसे राम-नाम की कीमत जानने का इंतजार करने लगे ताकि उचित कीमत के अनुसार पापी को यहाँ से ले जाकर उसके कर्मों का उचित फल दिया जा सके। 

सभी देवताओं को इंतजार करते देख, भगवान् विष्णु मुस्कुराते हुए बोले कि आप सभी लोग जरा विचार करिये कि जिस पापी को एक बार राम-नाम लेने से आप लोग उसे ढोकर यहाँ तक ले आये और मेरी गोद में बिठा दिये। अब क्या वह यहाँ से वापस जायेगा? बिल्कुल नहीं। आप लोग अपनी-अपनी बुद्धि और विवेक से राम-नाम की कीमत का अंदाजा खुद ही लगा सकते हैं, और इससे अधिक आपलोगों से क्या बताया जाय? 

वैज्ञानिक दृष्टि से राम-नाम जप:-

आज विज्ञान भी मानता है कि जप और ध्यान से मस्तिष्क में सकारात्मक तरंगें उत्पन्न होती हैं। जब हम "राम-राम" बोलते हैं तो इसकी ध्वनि-तरंगें नकारात्मक विचारों को दूर कर देती हैं। धीरे-धीरे यह हमारे अवचेतन मन को भी शुद्ध कर देती है। यही कारण है कि राम-नाम जपने वाले लोग अधिक शांत, धैर्यवान और प्रसन्नचित्त रहते हैं।

व्यवहारिक जीवन में राम-नाम का महत्व

  • सुबह उठते ही राम-नाम जप से दिन की शुरुआत सकारात्मकता से होती है।
  • काम के बीच स्मरण करने से थकान भी नहीं लगती और किसी तरह का तनाव भी पास नहीं फटकता। 
  • सोने से पहले राम-नाम लेने से नींद, गहरी और सुकूनभरी होती है। 
  • मुश्किल की घड़ी में राम-नाम आशा और हिम्मत देता है।
  • जनमानस के मुख से प्रायः यह कहते हुए सुना जाता है- "राम-नाम की लूट है, लूट सके जो लूट। अंतकाल पछताओगे तब तन जईहें छूट।।"

निष्कर्ष:-

राम-नाम जप केवल धार्मिक परंपरा ही नहीं है बल्कि सार्थक  जीवन जीने की एक शक्तिशाली साधना और समाधान भी है। यह मन को शांति देता है, शरीर को स्वस्थ बनाता है, रिश्तों में मधुरता लाता है और आत्मा को परमात्मा से जोड़ता है।

इसलिए, चाहे आप किसी भी उम्र, स्थिति या परिस्थिति में हों – यदि रोज़ाना कुछ समय राम-नाम जप में लगाएँगे तो जीवन में अद्भुत अवश्य बदलाव देखेंगे।

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1 अक्टूबर 2025

स्मार्ट फोन के फायदे और नुकसान | उपयोग, असर और समाधान

आज के दौर में स्मार्टफोन हमारी ज़िंदगी का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। सुबह नींद खुलने से लेकर रात को सोने तक हम किसी न किसी रूप में मोबाइल का इस्तेमाल करते ही रहते हैं। चाहे ऑनलाइन पढ़ाई करनी हो, कामकाज संभालना हो, परिवार से जुड़े रहना हो या मनोरंजन करना हो, स्मार्टफोन हर जगह हमारे साथ है। 

नि:संदेह इसके बहुत से फायदे हैं, लेकिन इसके गलत इस्तेमाल से नुकसान भी काफी हैं। इससे युवाओं में अपराधिक प्रवृत्ति, तलाक और सुसाइड की घटनाएं बढ़ रही हैं। ज्यादा स्क्रीन-टाइम से बच्चों और युवाओं की फिजिकल एक्टिविटी, एकाग्रता और यहां तक कि दिमाग की शांति भी भंग हो रही है। मोबाइल के अधिक प्रयोग करने से अकेलापन, अवसाद, एंग्जाइटी और नींद की समस्या बढ़ रही है। 

Source: Tutorial Pandit

जानिए स्मार्टफोन के फायदे और नुकसान। शिक्षा, रोज़गार और जीवन में इसके प्रभाव, स्वास्थ्य पर असर और संतुलित उपयोग के उपाय।

१. भारत में स्मार्टफोन की बढ़ती लोकप्रियता के कारण:-

  • सस्ती इंटरनेट सुविधा 
  • व्यापार, शिक्षा और अन्य आर्थिक गतिविधियों तक पहुंचने का एक महत्वपूर्ण माध्यम
  • एक-दूसरे से अधिक समय तक संवाद करने की सुविधा
  • 5G नेटवर्क की लॉन्चिंग और AI की क्षमताएं 
  • शिक्षा और ऑनलाइन लर्निंग का बढ़ता महत्व
  • सोशल मीडिया का आकर्षण और मनोरंजन
  • ऑनलाइन क्लासेज और गेमिंग की सुविधा
  • मोबाइल ऐप्स से बैंकिंग, शॉपिंग, हेल्थ और एंटरटेनमेंट सब कुछ एक जगह मिलना
  • ऑनलाइन काम और वर्क फ्रॉम होम का ट्रेंड

२. स्मार्टफोन के फायदे:-

I) संचार का सबसे आसान तरीका: 

  • आज एक कॉल, मैसेज या वीडियो कॉल से पलभर में दुनियाँ के किसी भी कोने से जुड़ा जा सकता है।

  • व्हाट्सएप, टेलीग्राम जैसे ऐप्स से मैसेजिंग
  • ज़ूम, गूगल मीट से ऑनलाइन मीटिंग और क्लासेस
  • सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स से रिश्तों को बनाए रखना

II) ज्ञान और शिक्षा का भंडार: 

  • यूट्यूब, गूगल, ऑनलाइन कोर्स और ई-बुक्स की मदद से छात्र, घर बैठे दुनियाँ के बेहतरीन शिक्षकों से पढ़ सकते हैं।

  • ऑनलाइन कोचिंग क्लासेस, डिजिटल लाइब्रेरी और ई-लर्निंग ऐप्स जैसे- Byju’s, Unacademy, Khan Academy की सुविधा। 
  • इससे ग्रामीण और दूरदराज़ के क्षेत्रों में भी बच्चे और युवा आसानी से पढ़ाई कर सकते हैं।

III) समय और धन की बचत

  • ऑनलाइन शॉपिंग से बाज़ार जाने का समय बचता है।
  • ऑनलाइन पेमेंट से नकदी साथ ले जाने की ज़रूरत नहीं रहती।
  • गूगल मैप्स की मदद से रास्ता ढूँढना बेहद आसान हो गया है।
  • स्मार्टफोन ने हमारी रोज़मर्रा की कई परेशानियों को बहुत हद तक कम कर दिया है।

IV) मनोरंजन का साधन

  • स्मार्टफोन, एक छोटा-सा टीवी, रेडियो और गेमिंग कंसोल बन चुका है।
  • मनपसंद फ़िल्में और वेब सीरीज़ देख सकते हैं और संगीत सुन सकते हैं। 
  • ऑनलाइन गेम खेल सकते हैं।

V) रोज़गार और व्यापार में सहायक: 

  • छोटे व्यापारी व्हाट्सएप के जरिये अपना सामान बेच सकते हैं।
  • इंस्टाग्राम, फेसबुक जैसे प्लेटफ़ॉर्म्स से ऑनलाइन मार्केटिंग हो सकती है।
  • इससे ब्लागिंग, फ्रीलांसिंग करके कमाई कर सकते हैं। 

VI) आपात-स्थिति में मददगार

  • दुर्घटना, बीमारी या किसी भी आपात-स्थिति में स्मार्टफोन जीवन-रक्षक साबित होता है।
  • तुरंत एंबुलेंस, पुलिस या परिवार वालों को कॉल किया जा सकता है।
  • हेल्थ ऐप्स से शरीर की गतिविधियों पर नज़र रखी जा सकती है।

३. स्मार्टफोन के नुकसान:- 

Source: You Tube (Prajapati News) 

 I) स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव

  • लंबे समय तक स्मार्टफोन का उपयोग आँखों और शरीर के लिए हानिकारक है।
  • लगातार स्क्रीन देखने से आँखों की रोशनी कम हो सकती है।
  • गर्दन और कमर-दर्द की समस्या बढ़ती है।
  • देर रात तक मोबाइल चलाने से नींद पूरी नहीं होती।

II) मानसिक स्वास्थ्य पर असर

  • सोशल मीडिया की लत से तनाव और चिंता बढ़ती है।
  • लगातार नोटिफिकेशन से ध्यान भटकता है।
  • फ़ोन पर अधिक समय बिताने से चिड़चिड़ापन और अकेलापन की प्रवृत्ति बढ़ती है।

III) समय की बर्बादी

  • मनोरंजन के नाम पर लोग घंटों गेम खेलने या सोशल मीडिया स्क्रॉल करने में गँवा देते हैं।
  • पढ़ाई और जरूरी काम प्रभावित होता है।
  • उत्पादकता घट जाती है।
  • समय की बर्बादी से जीवन की दौड़ में पीछे छूटने का खतरा बढ़ता है।

IV) सामाजिक संबंधों में दूरी

  • स्मार्टफोन ने दुनियाँ को करीब लाया है लेकिन घर-परिवार और रिश्तेदारों में दूरी भी बढ़ा दी है।
  • लोग परिवार के साथ समय बिताने के बजाय मोबाइल में व्यस्त रहते हैं।
  • दोस्तों की मुलाकात अब सिर्फ़ ऑनलाइन रह गई है।
  • असली दुनियाँ की बातचीत कम हो गई है।

V) बच्चों और युवाओं पर नकारात्मक असर

Source: Onlymyhealth

  • बच्चे पढ़ाई छोड़कर गेम और वीडियो में खो जाते हैं।
  • हिंसक या अनुचित कंटेंट, मानसिक विकास पर असर डालता है।
  • सोशल मीडिया के गलत ट्रेंड, बच्चों के व्यवहार को बिगाड़ सकते हैं।

VI) सुरक्षा और गोपनीयता का खतरा

  • ऑनलाइन फ्रॉड और साइबर क्राइम बढ़ रहे हैं।
  • व्यक्तिगत जानकारी (फ़ोटो, बैंक डिटेल) चोरी होने का खतरा रहता है।
  • हैकिंग और धोखाधड़ी के मामले आम हो चुके हैं।

४. स्मार्टफोन का संतुलित उपयोग कैसे करें? 

स्मार्टफोन के फायदे तभी तक उपयोगी हैं जब तक हम इसका सही इस्तेमाल करें। इसके लिए कुछ व्यवहारिक सुझाव निम्न हैं-

  • समय सीमा तय करें – रोज़ाना सिर्फ़ ज़रूरी काम के लिए ही स्मार्टफोन का उपयोग करें।
  • सोने से पहले मोबाइल से दूरी – रात को सोने से एक घंटा पहले फोन दूर रख दें।
  • सोशल मीडिया का सीमित उपयोग – बेवजह स्क्रॉलिंग से बचें।
  • बच्चों पर निगरानी रखें – उन्हें पढ़ाई और खेलकूद की ओर प्रेरित करें।
  • डिजिटल डिटॉक्स अपनाएँ – हफ़्ते में एक दिन मोबाइल से पूरी तरह दूरी बनाएँ।
  • सुरक्षा का ध्यान रखें – पासवर्ड और प्राइवेसी सेटिंग्स मजबूत करें।

निष्कर्ष:-

स्मार्टफोन एक दुधारी तलवार है। इसका सही उपयोग जीवन को आसान और सुविधाजनक बनाता है, जबकि गलत या अत्यधिक उपयोग से स्वास्थ्य, रिश्तों और समाज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

👉 इसलिए, हमें स्मार्टफोन को संतुलित तरीके से इस्तेमाल करना चाहिए – इसे न पूरी तरह त्यागना है और न ही इसमें पूरी तरह डूबना है।

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19 सितंबर 2025

दिनोंदिन बढ़ता प्राकृतिक कहर: जिम्मेदार कौन और समाधान के उपाय

प्रस्तावना:-

आज के दौर में प्राकृतिक आपदाएँ दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं। कभी बाढ़ तो कभी सूखा, कहीं भूकंप तो कहीं जंगल की आग, कहीं बादल फटने और भूस्खलन का कहर तो कहीं आकाशीय बिजली का तांडव– इन सबने मानव-जीवन को हिला कर रख दिया है। पहले लोग मानते थे कि इस तरह की आपदाएँ केवल “प्रकृति का क्रोध” हैं, लेकिन आज वैज्ञानिक मानते हैं कि इन आपदाओं के पीछे मानव गतिविधियों की भी अहम् भूमिका है।

अब सवाल ये उठता है – इस तरह की प्राकृतिक आपदाओं के लिए जिम्मेदार कौन? क्या यह केवल प्रकृति की देन है या फिर इंसानी लापरवाही भी इसका कारण है?

प्राकृतिक आपदाओं के बढ़ते कारण, मानव जिम्मेदारी और बचाव के उपाय जानें। ग्लोबल वार्मिंग व पर्यावरण असंतुलन से बचने के समाधान भी पढ़ें।

१. प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती घटनाएँ:-

> बीते कुछ दशकों में प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति और तीव्रता में तेजी से इज़ाफा हुआ है।

> सन् २०२३ ई. में भारत के कई हिस्सों में असामान्य बाढ़ आयी। 

> कैलिफोर्निया, ऑस्ट्रेलिया और ग्रीस जैसे देशों में जंगल की आग ने लाखों हेक्टेयर क्षेत्र को जलाकर खाक कर दिया।

> हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियर पिघलने से बाढ़ और भूस्खलन की घटनाएँ बढ़ रही हैं।

> अभी इसी साल २०२५ की इस बारिश में भारत के अधिकांश हिस्सों में आयी बाढ़ की विभिषिका, बादल फटने और आकाशीय बिजली गिरने की जितनी घटनाएं हुयी हैं और जानमाल की जितनी क्षति हुयी है, उतना तो शायद हमने पहले कभी नहीं सुना। 

ये सब घटनाएं गंभीर है और इन्हें देखते हुए यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिरकार इस तरह की प्राकृतिक आपदाओं के लिए जिम्मेदार कौन है? 

२. जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग:-

> आज वैश्विक तापमान औसतन १.२°C बढ़ चुका है। सुनने में यह संख्या छोटी लगती है, लेकिन इसके प्रभाव विनाशकारी हैं।

> हिमालय और आर्कटिक क्षेत्र में ग्लेशियर पिघल रहे हैं।

> महासागरों का जल-स्तर निरंतर बढ़ रहा है, जिससे उनके तट पर बसे शहर, खतरे में हैं।

> वर्षा का पैटर्न अब बदल गया है – कहीं बेमौसम बारिश, कहीं लम्बा सूखा। विगत कई वर्षों से यह देखा जा रहा है कि अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में कम वारिश हो रही है वहीं रेगिस्तानी इलाके में बाढ़ जैसे हालात होते जा रहे हैं। 

यानी ग्लोबल वार्मिंग और बढ़ता प्राकृतिक संकट केवल वैज्ञानिक आंकड़ा नहीं, बल्कि हमारी रोजमर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा बन गया है।

३. दिनोंदिन बढ़ते प्राकृतिक कहर में मानव गतिविधियों की भूमिका:-

प्रकृति का संतुलन बिगाड़ने में इंसानी लापरवाही सबसे बड़ी वजह है।

(क) वनों की कटाई और शहरीकरण:

  • हर साल लाखों-करोड़ों की संख्या में पेड़ काटे जाते हैं ताकि शहरों का विस्तार हो सके।
  • जंगल खत्म होने से बारिश का संतुलन बिगड़ता है और भूस्खलन की घटनाएँ बढ़ती हैं।

(ख) औद्योगिक प्रदूषण:

  • फैक्ट्रियों से निकलने वाला धुआँ और जहरीली गैसें, पानी और मिट्टी को जहरीला बना रहे हैं।
  • कार्बन डाइऑक्साइड और ग्रीनहाउस गैसें, ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ा रही हैं।

(ग) प्राकृतिक संसाधनों का गैरजिम्मेदराना उपभोग:

  • प्लास्टिक का अंधाधुंध उपयोग, भूजल का अत्यधिक दोहन और पेट्रोल-डीज़ल का अधिक प्रयोग भी प्राकृतिक आपदाओं को न्योता दे रहे हैं।
  • यानी इंसानी लापरवाही से उत्पन्न प्राकृतिक कहर एक सच्चाई है जिसे अब नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता।

४. बढ़ती आपदाओं के लिए जिम्मेदार कौन है?

अब सवाल उठता है कि इन बढ़ती आपदाओं के लिए जिम्मेदार कौन है।

(क) सरकार:

  • विकास परियोजनाओं के क्रियान्वयन में पर्यावरणीय प्रभाव को नज़रअंदाज किया जाता है।
  • खनन, बांध-निर्माण और अवैध पेड़ कटाई को रोकने में ढिलाई बरती जाती है।

(ख) समाज:

  • आम लोग कचरा फैलाने, पानी और बिजली की बर्बादी करने, प्लास्टिक का इस्तेमाल बढ़ाने में योगदान देते हैं।
  • जागरूकता की कमी के कारण लोग पर्यावरण को बचाने के लिए पहल नहीं करते।

(ग) अंतरराष्ट्रीय स्तर:

विकसित देश सबसे ज्यादा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जित करते हैं लेकिन इसका सबसे ज्यादा नुकसान गरीब और विकासशील देशों को झेलना पड़ता है।

यानी पर्यावरण असंतुलन में मानव जिम्मेदारी की महत्वपूर्ण भूमिका है। दोष केवल सरकार या उद्योगों का ही नहीं, बल्कि समाज और हर नागरिक का भी है।

५. प्राकृतिक कहर का समाधान और बचाव के उपाय:-

(क) नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग:

  • सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और जल ऊर्जा का इस्तेमाल बढ़ाया जाए।
  • कोयला और पेट्रोलियम पर निर्भरता घटाई जाए।

(ख) पर्यावरण संरक्षण:

  • वृक्षारोपण को जनआंदोलन बनाया जाए।
  • प्लास्टिक और प्रदूषण पर सख्त नियंत्रण लगे।

(ग) आपदा प्रबंधन:

  • बाढ़, सूखा और भूकंप जैसी आपदाओं से बचाव की तैयारी पहले से हो।
  • गांव-गांव में जागरूकता अभियान चलाए जाएँ।

(घ) व्यक्तिगत जिम्मेदारी:

  • बिजली और पानी की बचत करें।
  • कार-पूलिंग और पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग करें। 
  • कचरा पृथक्करण और रिसाइक्लिंग की आदत डालें।

इन प्रयासों के फलस्वरूप, प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के उपाय और रणनीतियाँ मजबूत होंगी और भविष्य सुरक्षित बनेगा।👌

निष्कर्ष:-

प्रकृति हमें चेतावनी देती है – कभी बाढ़ के रूप में, कभी सूखे के रूप में, कभी आग या भूकंप के रूप में। सवाल यह नहीं कि “प्राकृतिक कहर क्यों बढ़ रहा है?”, बल्कि यह है कि “हम इसे रोकने के लिए क्या कर रहे हैं?”

आज आवश्यकता है कि हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी को बखूबी समझे। सरकार, समाज और अंतरराष्ट्रीय समुदाय – सब मिलकर इसपर काम करें। तभी हम लगातार बढ़ते प्राकृतिक कहर का समाधान खोज पाएँगे और आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित और हरा-भरा भविष्य बना पाएँगे।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs):-

Q1. दिनोदिन बढ़ते प्राकृतिक कहर का मुख्य कारण क्या है?

👉 इसका मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई और मानव की लापरवाह गतिविधियाँ हैं।

Q2. प्राकृतिक आपदाओं के लिए जिम्मेदार कौन है – प्रकृति या इंसान?

👉 आपदाएँ प्राकृतिक होती हैं, लेकिन उनकी तीव्रता और आवृत्ति बढ़ाने में इंसान की भूमिका सबसे अधिक है।

Q3. ग्लोबल वार्मिंग का प्राकृतिक आपदाओं से क्या संबंध है?

👉 ग्लोबल वार्मिंग से तापमान बढ़ता है, जिससे बर्फ पिघलती है, समुद्र स्तर बढ़ता है और असामान्य मौसम पैटर्न बनते हैं।

Q4. प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के उपाय क्या हैं?

👉 नवीकरणीय ऊर्जा का प्रयोग, वृक्षारोपण, प्रदूषण-नियंत्रण और आपदा-प्रबंधन की तैयारी सबसे प्रभावी उपाय हैं।

Q5. क्या आम लोग भी पर्यावरण असंतुलन को रोकने में योगदान दे सकते हैं?

👉 हाँ, बिजली-पानी बचाकर, प्लास्टिक का कम उपयोग करके और वृक्षारोपण में भाग लेकर हर नागरिक योगदान दे सकता है।

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13 सितंबर 2025

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत – जीवन बदलने वाला प्रेरणादायक सिद्धांत

प्रस्तावना:-

"मन के हारे हार है, मन के जीते जीत", कबीर दास जी की यह उक्ति हमें सिखाती है कि असली हार या जीत, बाहरी कारणों से नहीं बल्कि हमारी सोच पर निर्भर करती है। यदि मनुष्य का मन हार मान ले तो बाहरी जीत भी निरर्थक हो जाती है और यदि मन में जीत की भावना हो तो बड़ी से बड़ी कठिनाई भी आसान हो जाती है। जीवन की हर चुनौती का समाधान मन की दृढ़ता और सकारात्मक सोच से संभव है। 

"मन के हारे हार है, मन के जीते जीत" का अर्थ, महत्व और व्यवहारिक जीवन में उपयोग। जानें सफलता पाने और मन को मजबूत बनाने के आसान उपाय।

"मन के हारे हार है, मन के जीते जीत" का अर्थ:-

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। 

कहें कबीर हरि पाइए मन ही की परतीत।।

भावार्थ: जीवन में हार और जीत दोनों केवल हमारे मन के भाव हैं। अर्थात् जब हम किसी काम को शुरू करने से पहले ही मानसिक रूप से हार मान लेते हैं तब समारा आत्मविश्वास डगमगा जाता है और हम सचमुच हार जाते हैं। परंतु जब हम मानसिक रूप से हार नहीं मानते हैं तो हम अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए पूरे आत्मविश्वास के साथ प्रयास करते हैं और हम जीत जाते हैं अर्थात् हम अपने लक्ष्य को हासिल कर लेते हैं।

👉 असली जीत बाहरी परिस्थितियों पर नहीं, बल्कि मन की स्थिति पर निर्भर करती है।

"मन की शक्ति" क्यों है सबसे बड़ी ताकत?

१. विचारों की ऊर्जा: मन में उठने वाले विचार, जीवन की दिशा तय करते हैं।

२. आत्मविश्वास का स्रोत: सकारात्मक मन, आत्मविश्वास को जन्म देता है।

३. संघर्ष झेलने की क्षमता: मजबूत मन, कठिन परिस्थितियों में भी हार नहीं मानता।

४. प्रेरणा और उत्साह: मन ही वह शक्ति है जो इंसान को लगातार आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है।

यदि मन नकारात्मक हो जाए, तो अवसर भी बाधा लगते हैं, और यदि मन सकारात्मक हो तो बाधाएँ भी अवसर बन जाती हैं।

ऐतिहासिक और प्रेरणादायक उदाहरण:-

महात्मा गांधी: गांधी जी ने अंग्रेजों जैसी ताक़तवर सत्ता को चुनौती दी, लेकिन उनका सबसे बड़ा हथियार था- "मन की शक्ति"। उन्होंने न हिंसा अपनाई, न ही हथियार। केवल आत्मबल और सत्य के आधार पर उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया और सफलता भी पाई।

डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम: बहुत ही साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाले कलाम साहब "मिसाइल मैन" के खिताब से नवाजे गए और भारत के राष्ट्रपति भी बने।

अरुणिमा सिन्हा: रेल-दुर्घटना में पैर कट जाने के बावजूद अरुणिमा सिन्हा ने मन से हार नहीं मानी और कृत्रिम पैर के साथ उन्होंने माउंट एवरेस्ट को फतह किया।  

👉 इन सबका राज़ एक ही था — मन की जीत।

व्यवहारिक जीवन में इसका महत्व:-

"मन के हारे हार है, मन के जीते जीत" का महत्व वैसे तो जीवन के हर क्षेत्र में है, परंतु यहाँ उदाहरण के तौर पर कुछ क्षेत्रों के ही नाम दिये जा रहे हैं, जो निम्न हैं-

पढ़ाई में: छात्र यदि मन से हार मान लें तो सफलता मुश्किल है।

व्यवसाय में: व्यापार में उतार-चढ़ाव तो आते रहते हैं किंतु  मजबूत मन ही उसमें भी सफलता दिलाता है।

स्वास्थ्य में: डॉक्टर भी मानते हैं कि आधा इलाज रोगी के मन में है। यदि मरीज सकारात्मक सोच रखे, तो दवाइयाँ जल्दी असर करती हैं।

संबंधों में: विश्वास और धैर्य, रिश्तों को मजबूत रखते हैं।

मन की हार और जीत के परिणाम:-

जब मन हारता है, तब-

  • आत्मविश्वास टूट जाता है। 
  • छोटे-छोटे कार्य भी कठिन लगते हैं। 
  • सफलता के अवसर हाथ से निकल जाते हैं। 
  • निराशा, तनाव और अवसाद बढ़ते हैं। 

जब मन जीतता है, तब-

  • हर कठिनाई अवसर के रूप में दिखती है। 
  • प्रयास लगातार जारी रहते हैं। 
  • सफलता निश्चित होती है। 
  • सकारात्मकता और शांति बनी रहती है।

मन को जीतने के उपाय:-

  • हर परिस्थिति में सकारात्मक पहलू देखें।
  • ध्यान और योग करें। 
  • असफलता से हार न मानें बल्कि सीख लें। 
  • प्रेरक साहित्य पढ़ें। 
  • लक्ष्य स्पष्ट रखें। 
  • सकारात्मक लोगों का साथ चुनें। 

निष्कर्ष:-

"मन के हारे हार है, मन के जीते जीत" केवल एक कहावत नहीं, बल्कि जीवन जीने का महत्वपूर्ण सिद्धांत है। वाह्य-परिस्थितियाँ चाहे जैसी भी हों, यदि मन में जीत का दृढ़ संकल्प है तो सफलता निश्चित है। जीवन की हर समस्या का समाधान मन की शक्ति में छिपा है। इसलिए हमें अपने मन को सकारात्मक, धैर्यवान और उत्साही बनाए रखना चाहिए। यही जीत का मूल मंत्र है।

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इमेज स्रोत: विकिपीडिया

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